HINDI CLASS 10TH QUESTION PAPER 2017 (ICSE)

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HINDI

SECTION – A 

प्रश्न 1. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए :

(i) पुस्तकें ज्ञान का भंडार होती हैं तथा हमारी सच्ची मित्र एवम् गुरु भी होती हैं। हाल ही में पढ़ी गई अपनी किसी पुस्तक के विषय में बताते हुए लिखिए कि वह आपको पसन्द क्यों आई और आपने उससे क्या सीखा?

(ii) ‘पर्यावरण है तो मानव है’ विषय को आधार बनाकर पर्यावरण सुरक्षा को लेकर आप क्या-क्या प्रयास कर रहे हैं ? विस्तार से लिखिए।

(iii) कम्प्यूटर तथा मोबाइल मनोरंजन के साथ-साथ हमारी ज़रूरत का साधन अधिक बन गए हैं। हर क्षेत्र में इनसे मिलने वाले लाभों तथा हानियों का वर्णन करते हुए, अपने विचार लिखिए।

(iv) अरे मित्र ! “तुमने तो सिद्ध कर दिया कि तुम ही मेरे सच्चे मित्र हो” इस पंक्ति से आरम्भ करते हुए कोई कहानी लिखिए।

(v) प्रस्तुत चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर उसका परिचय देते हुए कोई एक कहानी अथवा घटना लिखिए जिसका सीधा व स्पष्ट सम्बन्ध चित्र से होना चाहिए।

ICSE Hindi Question Paper 2017 Solved for Class 10 1

उत्तर :

(i) पुस्तकें ज्ञान का भंडार होती हैं तथा पुस्तकों द्वारा ही हमारा बौद्धिक एवं मानसिक विकास संभव होता है। ज्ञान प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन होने के साथ-साथ, पुस्तकें हमें सामाजिक व्यवहार, संस्कार, कर्तव्यनिष्ठा जैसे गुणों के संवर्धन में सहायक सिद्ध होती हैं तथा प्रबुद्ध नागरिक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र एवं गुरु भी होती हैं। अच्छी पुस्तकें चिंतामणि के समान होती हैं, जो हमारा मार्गदर्शन करती हैं तथा हमें असत् से सत् की ओर, तमस से ज्योति की ओर ले जाती हैं। पुस्तकें हमारा अज्ञान दूर करके हमें प्रबुदध नागरिक बनाती हैं।

जिस प्रकार संतुलित आहार हमारे शरीर को पुष्ट करता है, उसी प्रकार पुस्तकें हमारे मस्तिष्क की भूख को मिटाती हैं। समाज के परिष्कार, व्यावहारिक ज्ञान में वृद्धि एवं कार्यक्षमता तथा कार्यकुशलता के पोषण में भी पुस्तकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। पुस्तकों के अध्ययन से हमारा एकाकीपन भी दूर होता है।

हाल में ही मैंने श्री विद्यालंकार द्वारा रचित ‘श्रीरामचरित’ नामक पुस्तक पढ़ी जो तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ पर आधारित है। हिंदी में लिखी होने के कारण इसे पढ़ना सुगम है। इस रचना में ‘श्री राम’ की कथा को अत्यंत सरल भाषा में सात सर्गों में व्यक्त किया गया है। पुस्तक मूलत : तुलसी कृत रामचरितमानस का ही हिंदी अनुवाद प्रतीत होती है। यह पुस्तक मुझे बहुत पसंद आई तथा इसीलिए मेरी प्रिय पुस्तक’ बन गई। इस पुस्तक में पात्रों का चरित्र अनुकरणीय है। पुस्तक में लक्ष्मण, भरत और राम का, सीता और राम में पति-पत्नी का, राम और हनुमान में स्वामी-सेवक का, सुग्रीव और राम में मित्र का अनूठा आदर्श चित्रित किया गया है।

यह पुस्तक लोक-जीवन, लोकाचार, लोकनीति, लोक संस्कृति, लोक धर्म तथा लोकादर्श को प्रभावशाली ढंग से रूपायित करती है। श्री राम की आज्ञाकारिता तथा समाज में निम्न मानी जाने वाली जातियों के प्रति स्नेह, उदारता आदि की भावना आज भी अनुकरणीय है। ‘गुह’, ‘केवट’ तथा ‘शबरी’ के प्रति राम की वत्सलता अद्भुत है। श्री राम का मर्यादापुरुषोत्तम रूप आज भी हमें प्रेरणा देता है। उन्होंने जिस प्रकार अनेक दानवों एवं राक्षसों का विध्वंस किया, उससे यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी अन्याय का डटकर विरोध ही नहीं करना चाहिए वरन उसके समूल नाश के प्रति कृत संकल्प रहना चाहिए। सीता का चरित्र आज की नारियों को बहुत प्रेरणा दे सकता है। इस पुस्तक की एक ऐसी विशेषता भी है, जो तुलसी कृत रामचरितमानस से भिन्न है।

पुस्तक में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के चरित्र को भी उजागर किया गया है। विवाह के उपरांत लक्ष्मण अपने अग्रज राम के साथ वन को चले गए; पर उनकी नवविवाहिता पत्नी उर्मिला अकेली रह गई। तुलसीदास जैसे महाकवि की पैनी दृष्टि भी उर्मिला के त्याग, संयम, सहनशीलता तथा विरह-वेदना पर नहीं पड़ी। विद्यालंकार जी ने उर्मिला के उदात्त चरित्र को बखूबी चिंत्रित किया है। पुस्तक में ज्ञान, भक्ति एवं कर्म का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक के अंत में रामराज्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख किया गया है।

‘रामराज्य’ की कल्पना हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी की थी। इस प्रकार पुस्तक में वर्णित रामराज्य आज के नेताओं एवं प्रशासन के लिए मार्गदर्शन का कार्य करता है। यद्यपि पुस्तक ‘श्रीराम’ के जीवन चरित्र पर आधारित है तथापि इसमें कहीं भी धार्मिक संकीर्णता आदि का समावेश नहीं है। यह पुस्तक सभी के लिए पठनीय तथा प्रेरणादायिनी है।

(ii) मानव और प्रकृति का संबंध अत्यंत प्राचीन है। प्रकृति ने मानव को अनेक साधन दिए, जिनसे उसका जीवन सुखद बना रहे, लेकिन मानव ने प्रकृति का शोषण करना आरंभ कर दिया तथा प्रकृति को अपनी ‘चेरी’ समझने की भूल करने लगा। वैज्ञानिक प्रगति’ को आधार बनाकर मनुष्य ने अपने पर्यावरण को ही प्रदूषित करना आरंभ कर दिया। वह यह भूल गया कि पर्यावरण है तो जीवन है। सृष्टि के आरंभ में प्रकृति में एक संतुलन बना हुआ था।

धीरे-धीरे बढ़ती जनसंख्या, नगरों की वृद्धि, वैज्ञानिक उपलब्धियों एवं औद्योगिक विकास के कारण प्रदूषण जैसी घातक समस्या का जन्म हुआ। आजकल वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण एवं भूमि प्रदूषण के कारण स्थिति इस हद तक बिगड़ गई है कि अनेक घातक एवं असाध्य रोगों का जन्म हो रहा है तथा वातावरण अत्यंत विषाक्त हो गया है। प्रदूषण एक विश्व व्यापी समस्या है जिसका समाधान करना कठिन है, फिर भी इसकी रोकथाम के लिए समूचे विश्व में प्रयास किए जा रहे हैं; जैसे औद्योगिक इकाइयों को आबादी वाले क्षेत्रों से दूर स्थापित करना, वाहनों में पेट्रोल तथा डीजल के स्थान पर ऐसी गैसों का प्रयोग करना जो प्रदूषण मुक्त हों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों के लिए ‘ट्रीटमेंट प्लांट’ लगाने तथा अपशिष्ट पदार्थों को किसी नदी में प्रवाहित न करने की बाध्यता तथा झुग्गी झोंपड़ियों को घनी आबादी से दूर बसाया जाना।

पर्यावरण सुरक्षा को लेकर आजकल प्रत्येक नागरिक प्रयासरत है। मैं भी इस दिशा में प्रयासरत हूँ। मैंने अपने मित्रों के साथ मिलकर ‘मित्र मंडल’ नाम से एक टोली बनाई है जो स्थान-स्थान पर जाकर स्वच्छता अभियान चलाती है तथा झुग्गी-झोंपड़ियों में जाकर उन्हें स्वच्छता रखने की प्रेरणा देती है। हमारी टोली को लोगों ने बहुत पसंद किया है तथा हमारे प्रयास से पर्यावरण को स्वच्छ रखने में सहायता मिली है। कुछ समाजसेवी संस्थाओं की ओर से हमें ऐसे डस्टबिन’ निःशुल्क दिए गए हैं जिन्हें हमने अपने नगर के विभिन्न स्थानों पर रखा है, जिससे कि लोग बेकार की चीजें, कागज़ के टुकड़े, फलों के छिलके आदि इसमें डालें।

हमारा यह प्रयास बहुत सफल रहा है तथा हमारी टोली के साथ बहुत से लोग जुड़ते जा रहे हैं। हम स्थान-स्थान पर जाकर ‘नुक्कड़ नाटकों’ के द्वारा भी लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरुकता लाने का प्रयास कर रहे हैं। सप्ताह में एक दिन हमारी टोली विभिन्न क्षेत्रों में जाकर श्रमदान करके स्वच्छता अभियान चलाते हैं। हमारे प्रयास को देखकर उन क्षेत्रों के निवासी भी स्वच्छता अभियान में संलग्न हो जाते हैं। हमारी टोली द्वारा पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए एक ओर विशेष प्रयास किया है – वह है वृक्षारोपण का कार्यक्रम चलाना।

वृक्षारोपण पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए सर्वोत्तम उपाय माना गया है क्योंकि वृक्ष ही हमसे अशुद्ध वायु लेकर हमें शुद्ध वायु प्रदान करते हैं और पर्यावरण को स्वच्छ रखते हैं। हमने अपने आचार्यों की सहायता से नगर निगम के उद्यान विभाग की ओर से अनेक पौधे प्राप्त कर लिए हैं, जिन्हें हम अपने आचार्यों के मार्गदर्शन में ही शहर के स्थान-स्थान पर लगाते हैं तथा वहाँ के लोगों को भी वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करते हैं। हमारे इस प्रयास की बहुत सराहना की गई है।

हमने एक सतर्कता अभियान भी चलाया है जिसके अंतर्गत पहले से लगे पेड़-पौधों के संरक्षण पर बल दिया जाता है, पहले से लगे पेड़-पौधों को पानी दिया जाता है तथा उन्हें काटने से रोका जाता है। हमारी अपेक्षा है कि हमारी तरह वे भी पर्यावरण को स्वच्छ तथा प्रदूषण मुक्त बनाने में अपना योगदान दें तथा स्वेच्छा से इसी प्रकार की गतिविधियों का संचालन करें जिनसे वातावरण प्रदूषण मुक्त हो सके।

(iii) विज्ञान के आविष्कारों ने आज दुनिया ही बदल दी है तथा मानव जीवन को सुख एवं ऐश्वर्य से भर दिया है। कंप्यूटर तथा मोबाइल फ़ोन भी इनमें अत्यंत उपयोगी एवं विस्मयकारी खोज हैं। कंप्यूटर को यांत्रिक मस्तिष्क भी कहा जाता है। यह अत्यंत तीव्र गति से न्यूनतम समय में अधिक-सेअधिक गणनाएँ कर सकता है तथा वह भी बिल्कुल त्रुटि रहित। आज तो कंप्यूटर को लेपटॉप के रूप में एक छोटे से ब्रीफकेस में बंद कर दिया गया है जिसे जहाँ चाहे वहाँ आसानी से ले जाया जा सकता है।

कंप्यूटर आज के युग की अनिवार्यता बन गया है तथा इसका प्रयोग अनेक क्षेत्रों में किया जा रहा है। बैंकों, रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों आदि अनेक क्षेत्रों में कंप्यूटरों द्वारा कार्य संपन्न किया जा रहा है। आज के युद्ध तथा हवाई हमले कंप्यूटर के सहारे जीते जाते हैं। मुद्रण के क्षेत्र में भी कंप्यूटर ने क्रांति उत्पन्न कर दी है। पुस्तकों की छपाई का काम कंप्यूटर के प्रयोग से अत्यंत तीव्रगामी तथा सुविधाजनक हो गया है। विज्ञापनों को बनाने में भी कंप्यूटर सहायक हुआ है। आजकल यह शिक्षा का माध्यम भी बन गया है।

अनेक विषयों की पढ़ाई में कंप्यूटर की सहायता ली जा सकती है। कंप्यूटर यद्यपि मानव-मस्तिष्क की तरह कार्य करता है परंतु यह मानव की तरह सोच-विचार नहीं कर सकता केवल दिए गए आदेशों का पालन कर सकता है। निर्देश देने में ज़रा-सी चूक हो जाए तो कंप्यूटर पर जो जानकारी प्राप्त होगी वह सही नहीं होगी। कंप्यूटर का दुरुपयोग संभव है। इंटरनेट पर अनेक प्रकार की अवांछित सामग्री उपलब्ध होने के कारण वह अपराध प्रवृत्ति चारित्रिक पतन एवं अश्लीलता बढ़ाने में उत्तरदायी हो सकती है। कंप्यूटर के लगातार प्रयोग से आँखों की ज्योति पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

इसका अधिक प्रयोग समय की बरबादी का कारण भी है। एक कंप्यूटर कई आदमियों की नौकरी ले सकता है। भारत जैसे विकासशील एवं गरीब देश में जहाँ बेरोजगारों की संख्या बहुत अधिक है, वहाँ कंप्यूटर इसे और बढ़ा सकता है। कंप्यूटर की भाँति मोबाइल फ़ोन भी आज जीवन की अनिवार्यता बन गया है। आज से कुछ वर्ष पूर्व इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि हम किसी से बात करने के लिए किसी का संदेश सुनाने के लिए किसी छोटे से यंत्र को अपने हाथ में लेकर घूमेंगे। इस छोटे से यंत्र का नाम है, मोबाइल फ़ोन।

मोबाइल फ़ोन से जहाँ चाहे, जिससे चाहें, देश या विदेश में कुछ ही क्षणों में अपना संदेश दूसरों तक पहुँचाया जा सकता है और उनकी बात सुनी जा सकती है। यही नहीं इस उपकरण से (एस.एम.एस.) संदेश भेजे और प्राप्त किए जा सकते हैं। समाचार, चुटकुले, संगीत तथा तरह-तरह के खेलों का आनंद लिया जा सकता है। किसी भी तरह की विपत्ति में मोबाइल फ़ोन रक्षक बनकर हमारी सहायता करता है।

मोबाइल फ़ोन असुविधा का कारण भी है। किसी सभा, बैठक अथवा कक्ष में जब अचानक मोबाइल फ़ोन की घंटी बजती है या घंटी के स्थान पर कोई फ़िल्मी गीत बजता है, तो यह व्यवधान का कारण बन जाता है। आजकल तो अनचाहे फ़ोन बजते रहते हैं जिनमें अनेक प्रकार के अवांछित संदेश प्राप्त होते हैं। किसी को धमकी देने, डराने, बदनाम करने जैसे कुकृत्यों के लिए मोबाइल फ़ोन का ही प्रयोग किया जाता है। आजकल मोबाइल फ़ोन से फ़ोटों खींचे जा सकते हैं। इस सुविधा का प्रायः दुरुपयोग किया जा सकता है।

मोबाइल फ़ोन का सबसे बड़ा दुरुपयोग तब होता है जब वाहन चलाते समय चालक मोबाइल फ़ोन से बातचीत करने लगता है। इसके कारण अनेक दुर्घटनाएँ घटित हो जाती हैं। कुछ भी हो कंप्यूटर और मोबाइल फ़ोन आज के जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। जिनके बिना जीवन असंभव-सा लगता है।

(iv) “अरे मित्र ! तुमने तो सिद्ध कर दिया कि तुम ही मेरे सच्चे मित्र हो।” रवि ने अपने मित्र अजय से कहा, “मैं बहत भाग्यशाली हूँ कि मुझे तुम्हारे जैसा मित्र मिला।” रवि और अजय दोनों मित्र थे। दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे। अजय जहाँ समृद्ध परिवार से था वहीं रवि की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। ऐसा होने पर भी रवि बहुत स्वाभिमानी लड़का था। किसी के आगे हाथ पसारना उसे पसंद नहीं था। रवि पढ़ाई में होशियार होने के साथ खेलकूद में भी हमेशा आगे रहता था। वह अपनी विद्यालय की क्रिकेट टीम का उपकप्तान था। दूसरों की हर संभव सहायता करना उसकी आदत थी।

वैसे तो उसके अनेक मित्र थे परंतु अजय उसका सबसे प्रिय मित्र था। रवि के माता-पिता एक कारखाने में काम करते थे। एक दिन कारखाने में काम करते हुए उसके पिता दुर्घटनाग्रस्त हो गए। उनका दाँया हाथ मशीन में आ गया। डॉक्टर ने बताया कि हाथ को ठीक होने में तीनचार महीने का वक्त लगेगा। इसलिए तुम्हें तीन महीने घर पर रहकर आराम करना पड़ेगा। इसी विवशता के कारण वे नौकरी पर नहीं जा रहे थे। पिता के वेतन के अभाव में घर की आर्थिक स्थिति और भी बिगड़ गई। अब घर का खर्च केवल उसकी माता के वेतन पर ही चलता था।

रवि की वार्षिक परीक्षा निकट आ गई। रवि को अंतिम सत्र की फ़ीस तथा परीक्षा शुल्क जमा करना था पर रवि असमंजस में था कि करे तो क्या करे। एक दिन कक्षाध्यापिका ने रवि को अपने कक्ष में बुलाया और उसे अंतिम तिथि तक फ़ीस न जमा करवाने की बात कही। ऐसी स्थिति में परीक्षा में न बैठने तथा विद्यालय से नाम काटने की चेतावनी भी दी। कक्षाध्यापिका के कक्ष से निकलकर जब रवि कक्षा में पहुँचा तो वह बड़ा हताश लग रहा था।

उसे उदास देखकर अजय बोला, “मित्र ! क्या हुआ तुम बहुत उदास दिखाई दे रहे हो।” रवि पहले तो मौन रहा, पर बार-बार पूछने पर उसने सारी बात अपने मित्र को बता दी।। अजय बोला, “चिंता ना करो मित्र, ईश्वर बहुत दयालु है। वह कोई न कोई रास्ता अवश्य निकालेगा।” रवि ने अगले दिन से विद्यालय आना छोड़ दिया। जब रवि तीन-चार दिन स्कूल नहीं आया, तो अजय को चिंता हुई। उसने शाम को उसके घर जाने की सोची। जिस समय अजय वहाँ पहुँचा रवि अपने पिता जी को दवा पिला रहा था, उसकी माँ खाना बना रही थी।

अजय को देखकर रवि खुश हो गया। वह बोला, “अरे मित्र ! तुम विद्यालय क्यों नहीं आ रहे ?” तभी रवि की माँ बोली, “बेटा ! अभी फ़ीस के पैसों का इंतजाम नहीं हुआ है। मैं कोशिश कर रही हूँ।” रवि अगले दिन भी विद्यालय नहीं आया। उससे अगले दिन अजय जल्दी ही रवि के घर पहुंचा और उसे समझा-बुझाकर किसी तरह विद्यालय ले आया। रवि जब कक्षा में पहुँचा तो सीधे कक्षाध्यापिका के कक्ष में गया।

इससे पहले कि वह कुछ कहता कक्षाध्यापिका मुसकराकर बोली, “तुम्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं। तुम्हारी फ़ीस जमा हो चुकी है।” यह सुनकर रवि चौंका। कक्षाध्यापिका ने उसे बताया कि तुम्हारी फ़ीस तुम्हारे मित्र अजय ने जमा कर दी है। तभी छुट्टी की घंटी बज गई। रवि जब अजय के पास पहुँचा, तो उसकी आँखों में आँसू थे। अजय को देखते ही उसने उसे गले से लगा लिया और बोला, “मैं आजीवन तुम्हारा ऋणी रहूँगा। मैं तुम्हारे पैसे भी जल्दी चुका दूंगा।” किसी ने ठीक कहा है कि संकट के समय ही सच्ची मित्रता की पहचान होती है।

(v) प्रस्तुत चित्र का संबंध बाल मजदूरी से है। चित्र में कुछ लड़कियाँ संभवत : बीड़ी बना रही हैं। लड़कियों की आयु 8-10 वर्ष के बीच है। वे सभी अत्यंत निर्धन वर्ग से संबंधित हैं जिन्हें जीविकोपार्जन के लिए इस प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं। यद्यपि बाल श्रम कानून की दृष्टि से जुर्म है तथापि भारत में असंख्य बच्चे इस बुराई में संलग्न हैं, ऐसे बच्चों का बचपन उदास है, जो आयु उनके खेलने-कूदने की तथा हाथों में कलम दवात एवं पुस्तकें लेने की है उसी आयु में वे अत्यंत घृणित एवं दयनीय वातावरण में बाल मजदूरी करने को विवश हैं ।

बाल मज़दूरी में लिप्त इन बच्चों को अत्यंत गंदे वातावरण में दस से बारह घंटे काम करना पड़ता है तथा वेतन के नाम पर इन्हें गिने-चुने सिक्के मिलते हैं। निर्धनता तथा किसी अन्य प्रकार की विवशता के कारण इन्हें मज़दूरी करनी पड़ती है। . इतना काम करने के बाद भी इन्हें दो मीठे बोल सुनने को नहीं मिलते। हर समय मालिक या ठेकेदार की डाँट-फटकार और झिड़कियाँ सुनने को मिलती हैं। सरकार की ओर से बाल मजदूरी रोकने के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए और बाल मजदूरी के लिए विवश करने वालों पर सख्त कार्यवाही करनी चाहिए।

 

प्रश्न 2.निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए :

(i) आपके क्षेत्र में एक ही साधारण-सा सरकारी अस्पताल है, जिसके कारण आम जनता को बहुत अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उन परेशानियों का उल्लेख करते हुए एक और सुविधायुक्त सरकारी अस्पताल खुलवाने का अनुरोध करते हुए स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिए।

(ii) ओलम्पिक में अपने देश के बढ़ते कदम देख कर आपको बहुत ही प्रसन्नता हो रही है। इस वर्ष के ओलम्पिक की उपलब्धियों को बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।

उत्तर :

(i) स्वास्थ्य अधिकारी

(स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार)

शास्त्री भवन,

नई दिल्ली।

दिनांक ………..

विषय – अपने क्षेत्र में सरकारी अस्पताल खुलवाने के संबंध में।

मान्यवर महोदय,

मैं रोहिणी सेक्टर – 26 का निवासी दयाराम गर्ग हूँ तथा अपने क्षेत्र के विकास मंडल’ का अध्यक्ष भी हूँ। इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान क्षेत्र के निवासियों की चिकित्सा संबंधी परेशानियों की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ।

मान्यवर, हमारे क्षेत्र में केवल एक ही सरकारी अस्पताल है, वह भी अत्यंत साधारण तथा छोटे आकार का है। क्षेत्र की आम जनता को अपने इलाज के लिए बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। हमारा क्षेत्र घनी आबादी वाला क्षेत्र है। जिसके अधिकांश निवासी निम्न आय वर्ग के हैं। जिसके कारण वे बड़े-बड़े निजी अस्पतालों में इलाज नहीं करवा सकते। आपसे अनुरोध है कि वर्तमान सरकारी अस्पताल में आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जाएँ तथा इस क्षेत्र में एक और सुविधायुक्त सरकारी अस्पताल खुलवाने के संबंध में तत्काल आवश्यक कार्यवाही की जाए।

धन्यवाद

भवदीय

दयाराम गर्ग

अध्यक्ष विकास मंडल, रोहिणी सेक्टर – 26।

(ii) परीक्षा भवन

………… नगर।

दिनांक ……..

प्रिय मित्र दिनेश,

सस्नेह नमस्कार।

मैं यहाँ कुशल हूँ। आशा है तुम भी सकुशल होंगे। तुम्हें जानकर प्रसन्नता होगी कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में खेलों के स्तर पर सुधार हुआ है। नए उदीयमान खिलाड़ियों ने विभिन्न खेलों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है, जिसे देखकर लगता है कि वे दिन दूर नहीं जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में भारत विशेष स्थान प्राप्त करेगा।

रियो ओलंपिक 2016 में भारत की ओर से 124 खिलाड़ियों का सबसे बड़ा दल भेजा गया। ओलंपिक में स्वर्ण जीत चुके अभिनव बिंद्रा भारतीय दल के ध्वजवाहक बने और समापन पर साक्षी मलिक ने यह उत्तरदायित्व निभाया। यद्यपि हमारे खिलाड़ियों ने अपनी ओर से पूरा प्रयास किया परंतु केवल पी. वी. सिंधू एकल महिला बैडमिंटन में रजत और साक्षी मलिक फ्रीस्टाइल 58 कि. ग्रा. कुश्ती मे कांस्य पदक जीतने में सफल रही।

दीपा कर्माकर ने ओलंपिक में पहली बार भारतीय जिमनास्ट के रूप में पदार्पण किया और चौथे स्थान पर रही तथा प्रोदुनोवा वोल्ट सफलतापूर्वक करने वाली विश्व की पाँच जिमनास्टों में से एक बनी। बाईस वर्ष बाद भारतीय पुरुष हॉकी टीम क्वार्टर फाइनल तक पहुँची। इसी प्रकार मुक्केबाज़ विकास कृष्ण यादव मिडल वेट स्पर्धा में क्वार्टर फाइनल तक पहँचे। सानिया मिर्जा तथा रोहन बोपन्ना की जोडी टेनिस के मिश्रित युगल में मेडल के करीब तक पहुँची।

अभिनव बिंद्रा 10 मीटर एयर राइफल शूटिंग के मात्र आधे अंक से पदक से चूक गए। इस प्रकार भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा जितना कि उनसे अपेक्षा की जा रही थी। परंतु खिलाड़ियों तथा भारत सरकार के खेल मंत्रालय ने अगले ओलंपिक में अच्छा प्रदर्शन करने का संकल्प लिया है, जो भविष्य के लिए अच्छा संकेत है।

अंकल-आंटी को मेरी नमस्ते कहना और चिंटू को प्यार।

तुम्हारा अभिन्न मित्र,

क. ख. ग.।

 

प्रश्न 3. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा उसके नीचे लिखे गए प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए। उत्तर यथासंभव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए :

पंजाब में उस वर्ष भयंकर अकाल पड़ा था। उन दिनों वहाँ महाराणा रणजीत सिंह का राज था। उन्होंने यह घोषणा करवा दी, “महाराज के आदेश से शाही भण्डार-गृह हर जरूरतमंद के लिए खुला है। प्रत्येक ज़रूरतमंद एक बार में जितना उठा सके, ले जाए।” यह घोषणा सुनते ही गाँवों व शहरों से ज़रूरतमंदों की भीड़ राजमहल में उमड़ पड़ी। उन दिनों लाहौर में एक सद्गृहस्थ बूढ़े सज्जन रहते थे। वे कट्टर सनातनी विचारों के थे। उन्होंने जीवन में कभी भी किसी के आगे अपना हाथ नहीं फैलाया था। अँधेरा होने पर वह शाही भण्डार के दरवाजे पर पहुँचे।

द्वार खुला था किसी तरह की कोई जाँच-पड़ताल नहीं हुई। उन्होंने बड़े संकोच से अपनी चादर को फैलाया, उसके कोने में थोड़ा सा अनाज बाँध लिया। ज्यादा अनाज उठाना उनके लिए मुश्किल था। इतने में पगड़ी बाँधे एक व्यक्ति वहाँ आया। उसने कहा, “भ्राताजी आपने तो काफी कम अनाज लिया है।” बूढ़े सज्जन ने कहा, “असल में मैं बूढ़ा लाचार हूँ। इस अकाल में तो थोड़ा अनाज लेना ही सही है, जिससे सब ज़रूरतमंदों को मिल जाए।” उस व्यक्ति ने बूढ़े की गठरी खोल दी। उसमें भरपूर अनाज भर दिया।

बूढ़े सज्जन ने कहा, “मैं इतना अनाज नहीं उठा सकता और न ही इसकी मजदूरी का पैसा दे सकता हूँ।” इतने में उस अजनबी ने बूढ़े की गठरी अपने कन्धों पर ले ली और बूढ़े के पीछे-पीछे चल पड़ा। जब वे बूढ़े के घर के द्वार पर पहुँचे तो वहाँ दो बच्चे उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्हें देखते ही वे बोले – “बाबा, कहाँ चले गए थे?” बूढ़ा खामोश रहा। अजनबी ने कहा, “घर में कोई बड़ा लड़का नहीं है ?” बूढ़ा बोला, “लड़का था लेकिन काबुल की लड़ाई में शहीद हो गया।

अब बहू है तथा मेरे ये पोते हैं।” वह अजनबी बोला, “भाई जी धन्य हैं आप, जिनका बेटा देश के लिए शहीद हो गया।” रोशनी में बूढ़े ने उस अजनबी को पहचान लिया। वे खुद महाराजा रणजीत सिंह थे। बूढ़े ने पोतों से कहा, “इनके सामने दंडवत प्रणाम करो।” और स्वयं भी प्रणाम करने लगे और थोड़ी देर बाद बोले, “आज मुझसे बड़ा पाप हो गया। आपसे बोझा उठवाया।””नहीं, यह पाप नहीं, मेरा सौभाग्य था कि मैं शहीद के परिवार की सेवा कर सका। आप सबकी सेवा करना मेरा फ़र्ज है। अब आप जीवन भर हमारे साथ रहिए और हमें कृतार्थ कीजिए।”

(i) राज्य को किस विपत्ति का सामना करना पड़ा था ? उन दिनों वहाँ के राजा कौन थे और उन्होंने उस समस्या का क्या समाधान निकाला? 

(ii) राजा ने राज्य में क्या घोषणा करवाई और क्यों ? 

(iii) बूढ़े आदमी के बारे में आप क्या जानते हैं ? उनका पूर्ण परिचय दीजिए। 

(iv) बूढ़े आदमी ने थोड़ा-सा अनाज ही क्यों लिया था ? कारण स्पष्ट करते हुए बताइए कि उस अजनबी व्यक्ति ने उस बूढ़े की कैसे सहायता की ? 

(v) इस गद्यांश से मिलने वाली शिक्षाओं पर प्रकाश डालिए। 

उत्तर :

(i) पंजाब राज्य को भयंकर अकाल का सामना करना पड़ा था। उन दिनों पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह का राज था। भयंकर अकाल को देखते हुए उन्होंने निश्चय किया कि जनता को अनाज की कमी न रहे। इसका समाधान करने के लिए राज्य के शाही भंडार-गृह को सबके लिए खोल दिया जाना चाहिए।

(ii) राजा, महाराजा रणजीत सिंह ने घोषणा करवा दी कि राज्य का शाही भंडार-गृह सबके लिए खोल दिया गया है। जिस व्यक्ति को अनाज की आवश्यकता हो, वह एक बार में जितना अनाज उठा सके, शाही भंडार-गृह से ले जा सकता है।

(iii) बूढ़ा आदमी लाहौर का रहने वाला था। वह कट्टर सनातनी विचारों का था, अत्यंत स्वाभिमानी था तथा उसने जीवन में कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया था। अकाल ग्रस्त होने के कारण उसे भी विवशता में शाही भंडार-गृह से अनाज लेने जाना पड़ा।

(iv) बूढ़े आदमी ने अपनी चादर में थोड़ा-सा अनाज ही लिया, क्योंकि अधिक अनाज उठाना उसके लिए मुश्किल था। वृद्धावस्था एवं शारीरिक दुर्बलता के कारण वह अधिक अनाज नहीं उठा सकता था। पगड़ी बाँधे आए एक अजनबी ने उसकी चादर में भरपूर अनाज भर दिया और उस गठरी को अपने कंधों पर रखकर बूढ़े के घर तक पहुँचाया।

(v) इस गद्यांश से ये शिक्षाएँ मिलती हैं कि :

  1. देश के राजा को विनम्र, दयालु तथा परोपकारी होना चाहिए। किसी भी प्रकार की विपत्ति आने पर उसका हर संभव समाधान करना चाहिए।
  2. हमें वरिष्ठ नागरिकों तथा बड़े-बूढ़ों की हर प्रकार से सहायता करनी चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए।
  3. हमें शहीदों के परिवारों की हर प्रकार से सहायता करनी चाहिए।

 

प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए :

(i) निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए : आनंद, पुत्र, राक्षस।

(ii) निम्नलिखित शब्दों में से दो शब्दों के विलोम लिखिए : आलस्य, सदाचार, सामिष, कृत्रिम।

(iii) निम्नलिखित शब्दों में से दो शब्दों को शुद्ध कीजिए : प्रतीष्ठा, ग्रन्थ, परीस्थती।

(iv) निम्नलिखित में से किसी एक मुहावरे की सहायता से वाक्य बनाइए : अपना उल्लू सीधा करना, हाथ मलना।

(v) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन कीजिए :

(a) विद्यार्थी को जानने की इच्छा रखने वाला होना चाहिए। (रेखांकित शब्दों के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग कीजिए।) –

(b) इतनी आयु होने पर भी वह विवाहित नहीं है। (‘नहीं’ हटाइए परन्तु वाक्य का अर्थ न बदले।)

(c) रात में सर्दी बढ़ जाएगी। (अपूर्ण वर्तमान काल में बदलिए।)

(d) अन्याय का सब विरोध करते हैं। (रेखांकित का विशेषण लिखते हुए वाक्य पुनः लिखिए।)

उत्तर :

(i) आनंद – हर्ष, प्रसन्नता

पुत्र – बेटा, सुत

राक्षस – दानव, निशाचर

(ii) आलस्य – स्फूर्ति

सदाचार – दुराचार

सामिष – निरामिष

कृत्रिम – स्वाभाविक

(iii) प्रतिष्ठा, ग्रंथ, परिस्थिति।

(iv) अपना उल्लू सीधा करना – अधिकांश लोग धनी एवं प्रभावशाली लोगों से अपना उल्लू सीधा करने के लिए मित्रता का ढोंग रचाते हैं।

हाथ मलना – समय पर काम न करने वाले लोग हाथ मलते रह जाते हैं।

(v) (a) विद्यार्थी को जिज्ञासु होना चाहिए।

(b) इतनी आयु होने पर भी वह अविवाहित है।

(c) रात में सर्दी बढ़ रही है।

(d) अन्याय के सब विरोधी हैं।

SECTION – B

साहित्य सागर – संक्षिप्त कहानियाँ

प्रश्न 5. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“उसने कोई बहाना न बनाया। चाहता तो कह सकता कि यह साजिश है। मैं नौकरी नहीं करना चाहता इसीलिए हलवाई से मिलकर मुझे फँसा रहे हैं, पर एक और अपराध करने का साहस वह न जुटा पाया। उसकी आँखें खुल गई थीं।”

[बात अठन्नी की – सुदर्शन]

(i) किसे कौन फँसा रहा था ? उसने क्या अपराध किया था ? 

(ii) रसीला कौन है ? उसका परिचय दीजिए। 

(iii) हमें अपने नौकरों से कैसा व्यवहार करना चाहिए ? कहानी के आधार पर उदाहरण देकर समझाइए। 

(iv) इस कहानी में लेखक ने समाज की कौन-सी बुराई को प्रकट करने का प्रयास किया है ? क्या वे अपने प्रयास में सफल हुए ? समझाकर लिखिये। 

उत्तर :

(i) रसीला को कोई फँसा नहीं रहा था। हाँ, यदि वह चाहता तो कोई बहाना बनाकर कह सकता था कि उसके मालिक जगत सिंह हलवाई से मिलकर उसे फँसा रहे हैं। रसीला ने अपने मालिक द्वारा पाँच रुपये की जलेबी मँगाये जाने पर उसमें से अठन्नी की हेरा-फेरी की थी।

(ii) रसीला इंजीनियर बाबू जगतसिंह के यहाँ नौकर था, जिसे दस रुपया मासिक वेतन मिलता था। वह इसीवेतन से गाँव में रहने वाले अपने बूढ़े पिता, पत्नी, एक लड़की और दो लड़कों का पालन-पोषण करता था।

(iii) हमें नौकरों से मानवता से भरा व्यवहार करना चाहिए। हमें उनकी हर समस्या तथा कठिनाई आदि का ध्यान रखना चाहिए। जहाँ तक संभव हो, उसका समाधान करना चाहिए। हमें प्रतिवर्ष उनके वेतन में भी वृद्धि करनी चाहिए। हमें सोचना चाहिए, जो व्यक्ति हमारी इतनी सेवा करता है यदि कभी उनसे थोडीबहुत भूल-चूक हो भी जाए तो उसे क्षमा कर देना चाहिए। जगत सिंह को जब पता चला कि रसीला ने जलेबियाँ लाने में अठन्नी की हेरा-फेरी की है तथा उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है तो उसका पहला अपराध समझकर उसे क्षमा कर देना चाहिए था।

(iv) इस कहानी में लेखक ने समाज में व्याप्त रिश्वतखोरी एवं भ्रष्टाचार जैसी बुराई को प्रकट करने का प्रयास किया है। समाज के उच्च तथा प्रतिष्ठित पदों पर आसीन लोग रिश्वत लेकर भी सम्मानित जीवन व्यतीत करते हैं जबकि एक निर्धन व्यक्ति केवल अठन्नी की हेरा-फेरी करने के जुर्म में छह महीने का कारावास भोगने पर मजबूर है। कहानी में बाबू जगतसिंह की हृदयहीनता का भी पर्दाफाश किया गया है। लेखक अपने प्रयास में पूरी तरह सफल रहा है, क्योंकि रसीला द्वारा अठन्नी की हेरा-फेरी करने का अपराध स्वीकार कर लेने तथा उसके पहले अपराध को क्षमा किए जाने की प्रार्थना के बावजूद उसे छह महीने का कारावास हो गया।

 

प्रश्न 6. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“नेताजी सुंदर लग रहे थे। कुछ-कुछ मासूम और कमसिन । फ़ौजी वर्दी में। मूर्ति को देखते ही ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो …’ वगैरह याद आने लगते थे। इस दृष्टि में यह सफल और सराहनीय प्रयास था। केवल एक चीज़ की कसर थी जो देखते ही खटकती थी।”

[नेताजी का चश्मा – स्वयं प्रकाश]

(i) मूर्ति किसकी थी और वह कहाँ लगाई गई थी ? 

(ii) यह मूर्ति किसने बनाई थी और इसकी क्या विशेषताएँ थीं? 

(iii) मूर्ति में क्या कमी थी ? उस कमी को कौन पूरा करता था और कैसे ? 

(iv) नेताजी का परिचय देते हुए बताइए कि चौराहे पर उनकी मूर्ति लगाने का क्या उद्देश्य रहा होगा ? क्या उस उद्देश्य में सफलता प्राप्त हुई ? स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर :

(i) मूर्ति नेताजी सुभाषचंद्र बोस की थी, जो संगमरमर की थी। इसे शहर के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर लगाया गया था।

(ii) यह मूर्ति कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर मोतीलाल जी द्वारा बनाई गई थी। मूर्ति संगमरमर की थी। टोपी की नोक से दूसरे बटन तक कोई दो फुट ऊँची थी- जिसे कहते हैं बस्ट और सुंदर थी। नेताजी फ़ौजी वर्दी में थे।

(iii) शहर के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर लगी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति में एक चीज़ की कमी थी नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था। अर्थात् चश्मा संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था। मूर्ति को चश्मा पहनाने का काम चश्मा बेचने वाला एक बूढ़ा मरियल-सा लँगड़ा आदमी करता था जिसे कैप्टन कहते थे जो घूम-घूमकर चश्में बेचा करता था। वह अपने चश्मों में से एक चश्मा मूर्ति पर लगा देता था। जब किसी ग्राहक को मूर्ति पर लगे चश्मे को खरीदने की इच्छा होती तो वह मूर्ति से चश्मा हटाकर वहाँ कोई दूसरा फ्रेम लगा देता था।

(iv) नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक महान देशभक्त और क्रांतिकारी थे। इन्होंने भारत की स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया तथा विदेश में जाकर आज़ाद हिंद फौज का गठन किया। इन्होंने ‘दिल्ली चलो’ तथा ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ जैसे नारे दिए। चौराहे पर इनकी मूर्ति लगाने का उद्देश्य यही रहा होगा कि इन्हें देखकर लोगों को देशभक्ति की प्रेरणा मिले। इस उद्देश्य में सफलता अवश्य मिली, क्योंकि मूर्ति देखकर लोगों को उनके नारे याद आते थे और उनमें देशभक्ति की भावना हिलोरें लेने लगती थी।

 

प्रश्न 7. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :”बड़े भोले हैं आप सरकार ! अरे मालिक, रूप-रंग बदल देने से तो सुना है आदमी तक बदल जाते हैं। फिर ये तो सियार है।”

भेड़े और भेड़िए – हरिशंकर परसाई]

(i) उपर्युक्त कथन कौन, किससे क्यों कह रहा है ? 

(ii) बूढ़े सियार ने भेड़िये का रूप किस प्रकार बदला ?

(iii) यह कैसी कहानी है, बूढ़े सियार ने किन तीन बातों का ख्याल रखने के लिए कहा ? क्यों कहा? 

(iv) सियारों को किन-किन रंगों में रंगा गया ? वे किसके प्रतीक थे ? इस कहानी से आपको क्या शिक्षा मिलती 

उत्तर :

(i) उपर्युक्त कथन सियार ने भेड़िये का हाथ चूमकर कहा है। बूढ़ा सियार अपने साथ तीन रँगे सियारों को लाया था उसने भेड़िये से कहा था कि ये आपकी सेवा करेंगे और आपके चुनाव का प्रचार भी करेंगे। जब भेडिये ने रँगे सियारों के प्रति आशंका प्रकट की तब बूढ़े सियार ने उपर्युक्त कथन कहा।

(ii) बूढे सियार ने सियारों को रँगने के साथ-साथ भेडिये का रूप भी बदला। उसके मस्तक पर तिलक लगाया। गले में कंठी पहनाई और मुँह में घास के तिनके खोंस दिए। इस प्रकार उसने भेड़िए को पूरा संत बना दिया।

(iii) प्रस्तुत कहानी प्रतीकात्मक है जिसमें तीखा व्यंग्य समाहित है। कहानी में स्पष्ट किया गया है कि प्रजातंत्र के नाम पर स्वार्थी, ढोंगी और चालाक राजनेता जनता को भ्रमित कर अपना उल्लू सीधा करते हैं। बूढ़े सियार ने भेड़िये को तीन बातों का ख्याल रखने को कहा – अपनी हिंसक आँखों को ऊपर मत उठाना हमेशा ज़मीन की ओर देखना और कुछ मत बोलना क्योंकि इन पर अमल न करने से पोल खुल जाएगी और बना बनाया काम बिगड़ जाएगा।

(iv) बूढे सियार ने सियारों को तीन रंगों में रँगा। पहले सियार को पीले रंग में रंगा जिसे विद्वान, कवि, विचारक और लेखक बताया गया। दूसरे सियार को नीले रंग में रंगा, जो नेता और पत्रकार का प्रतीक बताया गया। तीसरे सियार को हरे रंग में रंगा गया तथा उसे धर्मगुरु बताया गया। इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें धोखेबाज़, झूठे, ढोंगी एवं चालाक राजनेताओं के बहकावे में नहीं आना चाहिए तथा उनसे सावधान रहना चाहिए।

साहित्य सागर – पद्य भाग

प्रश्न 8. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“मेघ आए बड़े बन-ठन के,

सँवर के आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,

दरवाज़े-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली,

पाहुन ज्यों आये हों, गाँव में शहर के !

मेघ आए बड़े बन-ठन के, सँवर के !”

[मेघ आए – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना]

(i) मेघ कहाँ आए हुए हैं ? कवि को मेघ देखकर क्या प्रतीत हो रहा है ? 

(ii) ‘बयार’ शब्द से आप क्या समझते हैं ? कवि इसके बारे में क्या बताना चाहता है ? 

(iii) दरवाज़े-खिड़कियाँ क्यों खुलने लगी हैं ? किसका स्वागत कहाँ पर किस प्रकार किया जाने लगा है ? कवि के भाव स्पष्ट कीजिए। 

(iv) कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए। 

उत्तर :

(i) मेघ बन-ठन कर आसमान में आए हुए हैं। मेघों को देखकर कवि को ऐसा लगा जैसे शहर से बन-ठन कर सज-सँवर कर कोई मेहमान (दामाद) किसी गाँव में आया हुआ हो।

(ii) बयार’ शब्द का अर्थ है – ‘हवा’। कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि जिस प्रकार किसी मेहमान के आगे-आगे नाचती-गाती कोई नटी या नर्तकी चलती है उसी प्रकार मेघों के घिरने तथा वर्षा के आगमन की खुशी में हवा चलने लगी।

(iii) बादल रूपी मेहमान (दामाद) बन-ठन कर, सज-सँवर कर आ रहे हैं, जिसके सामने नाचती-गाती हवा चल रही है, तो उस अतिथि को देखने के लिए लोगों ने प्रसन्न होकर अपने घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ खोल दी हैं। बूढ़े पीपल ने मेघ रूपी अतिथि का अभिवादन किया। हर्षित ताल परात भरकर पानी लाया। नदी ने यूंघट सरकाकर बाँकी चितवन से उसे उसी प्रकार देखा जैसे कोई प्रियतमा अपने प्रियतम को देखती है। पेड़ों ने भी उचक-उचककर अतिथि की ओर निहारा।

(iv) श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा रचित ‘मेघ आए’ शीर्षक कविता में मेघों के आगमन का शब्द चित्र उपस्थित किया गया है। मेघों के बन-ठन कर आगमन पर हवा नाचते-गाते चल रही है। पेड़ गरदन उचकाकर मेघों की ओर निहार रहे हैं। नदी चूँघट सरकाकर बाँकी चितवन से मेघों को देख रही है। धूल घाघरा उठाकर भाग रही है। बूढ़े पीपल ने मेघों का अभिवादन किया। इन सभी प्रयोगों से मेघों का आगमन चित्रात्मक बन गया है।

 

प्रश्न 9. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पायँ।”

बलिहारी गुरु आपनो जिन गोविंद दियो बताय।।

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहि।

प्रेम गली अति साँकरी, तामे दो न समाहि ।।

[साखी – कबीर दास]

(i) कवि किसके बारे में क्या सोच रहे हैं ? 

(ii) कवि किसके ऊपर न्योछावर (समर्पण) हो जाना चाहते हैं तथा क्यों ? 

(iii) ईश्वर का वास कहाँ नहीं होता है ? कवि हमें क्या त्यागने की प्रेरणा दे रहें हैं ? कवि का संक्षिप्त परिचय देते हुए बताइए। 

(iv) ‘साँकरी’ शब्द का क्या अर्थ है ? प्रेम गली से कवि का क्या तात्पर्य है ? उसमें कौन दो एक साथ नहीं रह सकते हैं समझाइए। 

उत्तर :

(i) कवि कबीरदास ईश्वर एवं अपने गुरु के बारे में सोच रहे हैं कि उसके सामने दोनों खड़े हैं। वह असमंजस में है कि इन दोनों में से वह किसके चरण सबसे पहले स्पर्श करे- अपने गुरु के या ईश्वर के ?

(ii) कबीरदास अपने समक्ष गुरु एवं ईश्वर को पाकर अपने गुरु पर न्योछावर हो रहे हैं। अर्थात् वे अपने गुरु पर बलिहारी जा रहे हैं, क्योंकि गुरु ने ही भगवान तक पहुँचने का मार्ग बताया था, अर्थात् गुरु की कृपा के बिना वे ईश्वर को नहीं पा सकते थे।

(iii) आम आदमी ईश्वर को खोजने के लिए जगह-जगह भटकता फिरता है। वह धार्मिक स्थानों में, पूजागृहों में, तीर्थ स्थानों में, ईश्वर की खोज में भटकता फिरता है। वह पवित्र नदियों पर जाकर भी ईश्वर को खोजता है, परंतु कवि के अनुसार इन सब स्थानों में ईश्वर का निवास नहीं होता। कवि ने इन सब प्रकार के ढोंगों को त्यागने की सलाह दी है। कबीर निर्गणवादी संत कवि थे, जो ढोंग-ढकोसलों तथा आडंबरों के विरोधी थे। उनके अनुसार ईश्वर का निवास स्थान मनुष्य के हृदय में है तथा ईश्वर निराकार एवं घट-घट वासी है। कबीर मूर्ति पूजा के विरोधी थे तथा उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों को उनके अंधविश्वासों एवं रूढ़ियों के कारण फटकारा।

(iv) ‘साँकरी’ का अर्थ है – ‘तंग’। ‘प्रेम की गली’ का अर्थ है – ईश्वर से साक्षात्कार करने का मार्ग। अर्थात् वह मार्ग जिसका अनुसरण करके ईश्वर तक पहुँचा जा सकता है। जिस प्रकार कोई गली इतनी तंग हो कि उसमें दो व्यक्तियों को भी स्थान नहीं मिल सके, उसी प्रकार ईश्वर को पाने के मार्ग में दो बातों को स्थान नहीं दिया जा सकता-अहंकार एवं ईश्वर। अर्थात् जब तक व्यक्ति के हृदय में अहंकार विद्यमान है तब तक वह ईश्वर का साक्षात्कार नहीं कर सकता। ईश्वर से मिलन के लिए अहंकार को छोड़ना आवश्यक है

 

प्रश्न 10. निम्नलिखितं पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

सुनूँगी माता की आवाज़

रहूँगी मरने को तैयार।

कभी भी उस वेदी पर देव

न होने दूंगी अत्याचार।।

न होने दूंगी अत्याचार

चलो, मैं हों जाऊँ बलिदान

मातृ मंदिर से हुई पुकार,

चढ़ा दो मुझको, हे भगवान।।

[मातृ मंदिर की ओर – सुभद्रा कुमारी चौहान]

(i) ‘मातृ मंदिर’ से क्या तात्पर्य है ? वहाँ से कवयित्री को क्या पुकार सुनाई दे रही है ? 

(ii) कवयित्री अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए क्या करने को तैयार है और क्यों? 

(iii) मंदिर तक पहुँचने के मार्ग में कवयित्री को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ? 

(iv) प्रस्तुत पद्यांश में कवयित्री की किस भावना को दर्शाया गया है ? वह इस कविता के माध्यम से पाठकों को क्या सन्देश देना चाहती हैं ? 

उत्तर :

(i) कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी मातृभूमि को ‘मातृ मंदिर’ के समान बताया है तथा अपनी पावन . धरती को ही मातृमंदिर कहा है। कवयित्री को मातृभूमि के प्रांगण से बलिदान के लिए स्वरों की गूंज सुनाई दे रही है। अर्थात् उसकी मातृभूमि उससे बलिदान की अपेक्षा कर रही है।

(ii) कवयित्री अपनी मातृभूमि पर अपना सर्वस्व बलिदान करने को तैयार है। अर्थात् अपने देश को पाप और अत्याचार से बचाने के लिए अपने प्राणों की बलि देने को तत्पर है, क्योंकि वह स्वयं को मातृभूमि की सुपुत्री मानती है। जिस प्रकार कोई पुत्र अथवा पुत्री अपनी माता के कष्टों के निवारण के लिए हर संभव प्रयास करता है, उसी प्रकार वह भी अपनी मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्यों का वहन करना चाहती है।

(iii) मातृभूमि रूपी ‘मातृमंदिर’ तक पहुँचने में कवयित्री को अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वहाँ तक पहुँचने का मार्ग कठिन है तथा चारों ओर बहुत से पहरेदार हैं। मातृमंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ भी ऊँची हैं जिन पर चढ़ने पर पैर भी फिसलते हैं। कवयित्री के चरण दुर्बल हैं। अर्थात् मातृभूमि पर विदेशी शासक अत्याचार कर रहे हैं। ये शासक अत्यंत शक्तिशाली हैं, जिनसे टक्कर लेना आसान नहीं है फिर भी कवयित्री उनसे टकराने का संकल्प करती है।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश में कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान अपनी पावन धरती के प्रति श्रद्धा भाव प्रकट करते हुए उसकी रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने का संकल्प करती है। कविता आत्मबलिदान की भावना से ओतप्रोत है जिसमें देश के प्रति गहरे अनुराग का सुंदर चित्रण किया गया है।

कवयित्री मातृभूमि के चरणों में शीघ्रातिशीघ्र पहुँच जाना चाहती है। इस कविता के माध्यम से वह पाठकों को संदेश देना चाहती है कि उन्होंने जिस पावन धरती पर जन्म लिया है, जहाँ उनका पालन-पोषण हुआ है उन्हें उस धरती के दुख-दर्द मिटाने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को उद्यत रहना चाहिए।

नया रास्ता – (सुषमा अग्रवाल)

प्रश्न 11. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“माँ को लगा, शायद अमित सरिता के रिश्ते को तैयार नहीं है। इसलिए वह बोली”, “बेटे, व्यवहार का तो किसी का भी पता नहीं है। न सरिता के बारे में ही कुछ कहा जा सकता है और न ही मीनू के बारे में व्यवहार का तो साथ रहने पर ही पता चलता है।”

(i) माँ को कैसे पता चलता है कि अमित सरिता के रिश्ते के लिए तैयार नहीं हैं ? 

(ii) अमित के पिता मायाराम जी सरिता के रिश्ते को क्यों नहीं स्वीकार करना चाहते हैं ? 

(iii) अमित और सरिता का रिश्ता तय होने के लिए माँ किसको और क्यों उकसाती है ? माँ की ऐसी धारणा से उनके स्वभाव के बारे में क्या पता चलता है ? समझाकर लिखिये। 

(iv) शादी के विषय में समाज की क्या परम्परा है ? आप इससे कहाँ तक सहमत हैं ? स्पष्ट कीजिये। 

उत्तर :

(i) अमित की माँ मायाराम जी की बेटी सरिता से अपने बेटे का विवाह कराना चाहती थी, इसीलिए उसने उसके फ़ोटो को देखकर उसके रंग-रूप की प्रशंसा करते हुए कहा कि उसके नाक-नक्श तीखे हैं। सरिता के बाल कटे हुए थे पर वह दयाराम की बेटी मीनू से ज्यादा अच्छी नहीं थी। तभी अमित ने अपनी माँ से पूछा कि सरिता बड़े घर की लड़की है, क्या वह तुम्हारे साथ रह सकेगी और हमारे घर के वातावरण में घुल सकेगी ? अमित की यह बात सुनकर उसकी माँ को लगा शायद अमित सरिता के रिश्ते को तैयार नहीं

(ii) अमित के पिता को लगा कि बड़े घर की लडकी सरिता ढेर सारा दहेज़ अपने साथ लाएगी और शायद परिवारवालों के साथ मिलकर नहीं रह पाएगी। साथ ही मायाराम जी दहेज़ विरोधी थे। वे नहीं चाहते थे कि एक बड़े घर की लड़की लेकर अपने बेटे को बेच डालें। उन्हें दयाराम जी की बेटी मीनू के बात करने का तौर-तरीका बहुत पसंद आया था। उन्हें पढ़ी-लिखी मीनू साधारण परिवार की होकर भी काफ़ी गुणवती लगी। इन्हीं कारणों से वे सरिता के रिश्ते को स्वीकार नहीं करना चाहते थे।

(iii) जब अमित ने अपनी माँ से पूछा कि क्या एक बड़े घर की लडकी सरिता हमारे घर के वातावरण में घुल-मिल सकेगी, तो माँ ने अपने ढंग से अमित को उकसाया। वह बोली कि मीनू और सरिता दोनों में से किसी के व्यवहार का पता नहीं है। व्यवहार का पता तो साथ रहकर ही चलता है। वास्तव में माँ ने धन के सपने देखने शुरू कर दिए थे। इसलिए उसने अपनी बातों के सामने किसी की एक न चलने दी। माँ की ऐसी धारणा को देखकर सरलता से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि माँ दहेज़ की लोभी थी तथा वह हर कीमत पर सरिता से अपने बेटे का रिश्ता करवाना चाहती है।

(iv) हमारे समाज में विवाह के संबंध में प्राचीन काल से ही यह परंपरा प्रचलित है कि वर पक्ष के माता-पिता अपने पुत्र के लिए लड़की देखते हैं। पूरा परिवार लड़की देखने जाता है और सब पहलुओं पर विचार करके कुछ निर्णय लेता है। वर एवं वधू पक्ष में शादी के आयोजन तथा लेन-देन आदि पर भी विचार-विमर्श किया जाता है। कन्या पक्ष विवाह में अपनी हैसियत के मुताबिक खर्च करने का प्रस्ताव रखता है। इन बातों के उपरांत ही शादी निश्चित होती है।

मैं इस व्यवस्था से बहुत सहमत नहीं हूँ, क्योंकि इसमें वर तथा वधू की इच्छाओं का बहुत कम ध्यान रखा जाता है दूसरे दहेज़ और धन का लालच देकर वर पक्ष को फुसलाया जा सकता है। अधिकांश लोग दहेज़ के लोभी होते हैं वे लड़की के रंग-रूप एवं गुणों की अपेक्षा दहेज़ को प्राथमिकता देते हैं। मेरे विचार में लड़की का चयन उसके गुणों के आधार पर किया जाना चाहिए इसीलिए आजकल शिक्षित युवक-युवतियाँ इन परंपराओं को न मानकर प्रेम-विवाह कर लेते हैं।

प्रश्न 12. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“मीनू ने अमित के कमरे में प्रवेश किया, तो देखा कि अमित अपने पलंग पर लेटा हुआ है। मीनू को देखकर उन्होंने उसे प्रेमपूर्वक बैठाया। उसे देखकर अमित के मुरझाये चेहरे पर भी खुशी की लहर दौड़ गई।”

(i) मीनू अमित को देखने कहाँ गई थी ? जाते समय वह मन में क्या सोच रही थी ? 

(ii) कमरे में प्रवेश करते ही उसने क्या देखा ? अमित की माँ ने मीनू से क्या पूछा ? उसने क्या उत्तर दिया ? 

(iii) मीनू के वकालत पास करने पर अमित की माँ को विशेष खुशी क्यों हो रही थी ? क्या उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया था ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए। 

(iv) मीनू के हृदय में बचपन से ही किसके प्रति दया की भावना थी ? वह उनकी किस प्रकार सहायता करने का निश्चय कर रही है ? 

उत्तर :

(i) मीनू अमित को देखने अस्पताल में गई थी। जाते समय उसके मन में अंतद्वंद्व चल रहा था कि क्या उसका अस्पताल जाना उचित होगा या नहीं कई बार उसके पाँव वापस मुड़े। वह फ़ैसला नहीं कर पा रही थी। फिर भी उसके कदम अस्पताल की ओर बढ़ते चले गए।

(ii) अस्पताल के कमरे में प्रवेश करते ही मीनू ने देखा कि अमित अपने पलंग पर लेटा हुआ है और अपनी माँ से बातें कर रहा है। मीनू की माँ ने उससे पूछा कि क्या उसकी वकालत पूरी हो गई है ? मीनू ने अत्यंत विनम्रता एवं सम्मान के साथ हाँ कहा और बताया उसने प्रथम श्रेणी में वकालत पास कर ली है और मेरठ में प्रैक्टिस भी शुरू कर दी है।

(iii) मीनू के वकालत पास करने का समाचार सुनकर अमित की माँ को विशेष खुशी हुई, क्योंकि संभवत: वह मन ही मन पुत्रवधू के रूप में मीनू को चाहने लगी थी और मीनू से अपने बेटे का विवाह संबंध जोड़ने पर उसे पश्चाताप भी हो रहा था। वह जानती थी कि अमित सरिता से अधिक मीनू को चाहता है, इसलिए वह अपने निर्णय पर पश्चाताप कर रही होगी।

(iv) मीनू के हृदय में बचपन से ही अपंगों के प्रति दया की भावना थी। मीनू मन ही मन निश्चय कर रही थी कि वह अपने विवाह के फालतू खर्च में से कुछ रुपये बचाकर राजो के चचेरे भाई मनोहर की सहायता करेगी। उसने निश्चय किया कि वह अपने घर के सामने उसे एक पान की दुकान खुलवा देगी और पाँच हजार खर्च करेगी। समय आने पर उसने उसे पान की दुकान खुलवा दी और उसकी जिंदगी सुधार दी।

 

प्रश्न 13.  निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“अमित का नाम सुनते ही दरवाज़े की ओर पीठ किए बैठी मीनू ने मुड़कर देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गई। मीनू जब भी अमित को देखती, उसके मन में अजीब सी घृणा उत्पन्न हो जाती। अमित व उसके सभी मित्र वहाँ आ चुके थे परन्तु मीनू अभी भी सोच में डूबी हुई थी।”

(i) मीनू इस समय कहाँ थी ? वहाँ अमित से उसकी कैसे मुलाकात हो गई ? 

(ii) मीनू और अमित के बीच क्या सम्बन्ध था ? वह उससे घृणा क्यों करती थी? 

(iii) उसे वहाँ किस सच्चाई का पता चला ? उन बातों का उसपर क्या प्रभाव पड़ा? 

(iv) “मीनू परिस्थितियों से हार मानने वाली कोई साधारण नारी नहीं थी” – स्पष्ट कीजिए कि उसने अपने जीवन को कैसे नई दिशा दी ? 

उत्तर :

(i) मीनू मेरठ में वकालत की पढ़ाई कर रही थी। वह अपनी सहेली नीलिमा के घर पर थी जहाँ वह उसके नवजात शिशु के नामकरण के दिन शिशु के लिए उपहार लेकर पहुंची थी। नीलिमा के पति सुरेंद्र अमित के मित्र थे। मीन और नीलिमा बैठे बातें कर रही थीं कि तभी अमित भी उसी कार्यक्रम में आ गया और इस प्रकार मीन और अमित की मुलाकात हो गई।

(ii) अमित अपने माता-पिता के साथ अपने विवाह के लिए मीनू को देखने उसके घर गया था। परंतु यह रिश्ता नहीं हो सका था, क्योंकि तभी एक धनाढ्य व्यक्ति दयाराम अपनी बेटी का रिश्ता लेकर अमित के घर पहुँचा। उसने दहेज़ देने का लालच भी दिया। मीनू अमित से घृणा करती थी, क्योंकि पढ़ी-लिखी और कुरूप न होने पर भी अमित और उसके परिवार ने उसका रिश्ता अस्वीकार कर दिया जिसके कारण उसके हृदय में हीन भावना घर कर गई कि शायद वह विवाह के योग्य ही नहीं है।

(iii) मीनू को वहाँ अमित के बारे में एक सच्चाई का पता चला कि मेरठ में ही किसी बहुत बड़े घर में उसका रिश्ता तय हुआ था, परंतु शादी से एक महीना पहले लड़की वालों ने कुछ ऐसी तीखी बात कह दी कि रिश्ता तोड़ना पड़ा। यह रिश्ता दयाराम की बेटी सरिता से संबंधित था। नीलिमा से मीनू को यह भी पता चला कि दयाराम जी अपनी बेटी को एक फ्लैट देना चाहते थे जिससे कि वह सास-ससुर से अलग रह सके, परंतु अमित उस लड़की से शादी करने का इच्छुक नहीं था।

नीलिमा को यह बात ज्ञात नहीं थी कि अमित ने मीरापुर में कोई लड़की देखी थी जो उसे बेहद पसंद थी पर उसके माता-पिता की ग़लती से वह रिश्ता नहीं हो पाया था। वह लड़की मीन ही थी। जब नीलिमा ने बताया कि अमित आज भी उस लड़की (मीन) से शादी करना चाहते हैं तो मीनू को बुरा नहीं लग रहा था। आज ये सब बातें सुनकर वह मन-ही-मन अमित से घृणा नहीं कर रही थी।

(iv) मीनू परिस्थितियों से हार मानने वाली कोई साधारण नारी नहीं थी। जब उसे वर पक्ष द्वारा कई बार अस्वीकार कर दिया गया तथा थोड़े समय के लिए उसमें निराशा व्याप्त हो गई, फिर भी उसने हार नहीं मानी। उसने निश्चय किया कि वह विवाह नहीं करेगी। उसने अपने पिता जी से अपनी छोटी बहन आशा की शादी करने को कह दिया। जब उसके पिता ने यह कहा कि बड़ी बहन की अपेक्षा छोटी बहन का विवाह करने पर समाज क्या कहेगा, तो उसने उनसे समाज की चिंता न करने को कहा। मीन ने अपने पैरों पर खड़ा होने का दृढ़-संकल्प किया तथा वकालत की पढ़ाई करके प्रैक्टिस करने का संकल्प दोहराया और सचमुच उसके इस संकल्प ने उसके जीवन को नई दिशा दी।

एकांकी संचय

प्रश्न 14.  निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :”दहेज़ देना तो दूर, बारात की खातिर भी ठीक से नहीं की गई। मेरे नाम पर जो धब्बा लगा, मेरी शान में जो ठेस पहुँची, भरी बिरादरी में जो हँसी हुई, उस करारी चोट का घाव आज भी हरा है। जाओ, कह देना अपनी माँ से कि अगर बेटी को विदा कराना चाहती है तो पहले उस घाव के लिए मरहम भेजे।”

[बहू की विदा – विनोद रस्तोगी]

(i) प्रस्तुत कथन किसने, किससे कहा ? सन्दर्भ सहित उत्तर लिखिए। 

(ii) ‘मरहम’ का क्या अर्थ है ? यहाँ मरहम से क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट कीजिए। 

(iii) वक्ता के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए। 

(iv) प्रस्तुत एकांकी में किस समस्या को उठाया गया है ? उस समस्या को दूर करने के लिए क्या-क्या कदम उठाए जा रहे हैं ? अपने विचार दीजिए।

(i) प्रस्तुत कथन जीवनलाल ने कमला के भाई प्रमोद से तब कहा जब वह अपनी बहन को उसके पहले सावन के लिए विदा कराने आया था। जीवनलाल ने कमला को विदा करने से साफ़ इंकार करते हुए कहा कि कमला के विवाह में पूरा दहेज़ नहीं दिया गया और बरात की खातिर भी ठीक से नहीं की गई। यदि विदा कराना ही है, तो मेरी प्रतिष्ठा को जो ठेस पहुँची है उसकी भरपाई के लिए दहेज़ के रूप में धन भेजें।

(ii) ‘मरहम’ का शाब्दिक अर्थ तो किसी घाव पर लगाया जाने वाला गाढ़ा और चिकना लेप है, परंतु यहाँ वह प्रतीकात्मक अर्थ के रूप में प्रयुक्त हुआ है। जीवनलाल के अनुसार उसके बेटे के विवाह में कम दहेज़ देकर और बरात की ठीक से खातिर न होने के कारण बिरादरी में उसकी हँसी हुई तथा उसकी शान को ठेस पहुँची जिसका घाव आज भी विद्यमान है। उस घाव का इलाज केवल धन रूपी मरहम से हो सकता है। जीवनलाल ने कमला के भाई प्रमोद से कहा कि यदि वह अपनी बहन को विदा कराना चाहता है, तो धन लेकर आए।

(iii) जीवनलाल एक धनी व्यापारी है परंतु धन का अत्यंत लोभी भी है। अपने बेटे के विवाह में कम दहेज़ मिलने के कारण वह खफ़ा है और इसी कारण अपनी पुत्रवधू को उसके पहले सावन पर उसके भाई के साथ विदा नहीं करता। इसी आक्रोश के कारण वह प्रमोद को अत्यंत जली-कटी सुनाता है। स्वयं उसकी पत्नी के अनुसार उन्हें इंसान से ज़्यादा पैसा प्यारा है। जब जीवनलाल का बेटा भी अपनी बहन को उसकी ससुराल से विदा कराकर नहीं ला सका क्योंकि उसके ससुरालवालों ने भी दहेज़ कम दिए जाने की शिकायत की थी, परंतु उसकी आँखें खुल गईं और उसका हृदय परिवर्तित हो गया और उसने अपनी पुत्रवधू को विदा करने का निश्चय कर लिया।

(iv) प्रस्तुत एकांकी में दहेज़ की समस्या को उजागर किया गया है, जो समाज के लिए भयानक अभिशाप है। यद्यपि इस समस्या के उन्मूलन के लिए हर दिशा से प्रयास हो रहे हैं, सरकार द्वारा कानून बनाकर भी इस पर रोक का प्रावधान किया गया है तथापि इस पर काबू नहीं पाया जा सका। दहेज़ विरोधी कानून के अंतर्गत दहेज़ लेने और देने को अपराध घोषित किया गया है, फिर भी चोरी-छिपे यह समस्या बढ़ती जा रही है। हाँ, आजकल के शिक्षित युवक-युवतियाँ प्रेम-विवाह करके दहेज़ लेने-देने को अस्वीकार कर रहे हैं। यह अच्छा संकेत है। मेरे विचार से सरकार को दहेज़ विरोधी कानून को अत्यंत कड़ा करके उस पर सख्ती से अम्ल करवाना चाहिए।

 

प्रश्न  15. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“प्राण जाएँ पर वचन न जाएँ ” – यह हमारे जीवन का मूलमंत्र है। जो तीर तरकश से निकलकर कमान से छूट गया, उसे बीच में लौटाया नहीं जा सकता। मेरी प्रतिज्ञा कठिनाई से पूरी होगी, यह मैं जानता हूँ और इस बात की हाल के युद्ध में पुष्टि भी हो चुकी है कि हाड़ा जाति वीरता में हम लोगों से किसी प्रकार हीन नहीं है।”

[मातृभूमि का मान – हरिकृष्ण ‘प्रेमी’]

(i) उपरोक्त कथन के वक्ता और श्रोता का संक्षिप्त परिचय दीजिए। 

(ii) वक्ता ने क्या प्रतिज्ञा ली थी? कारण सहित लिखिए। 

(iii) हाड़ा वंश के राजा कौन थे ? हाड़ा लोगों की क्या विशेषताएँ थीं? उनपर प्रकाश डालिए। 

(iv) ‘प्राण जाएँ पर वचन न जाएँ’ – इस कहावत का क्या अर्थ है ? एकांकी के सन्दर्भ में समझाइए। 

उत्तर :

(i) यह उपर्युक्त कथन मेवाड़ के महाराणा लाखा का है। जो उन्होंने अपने सेनापति अभयसिंह से कहा है। महाराणा लाखा को मुट्ठी भर हाड़ाओं द्वारा नीमरा के मैदान में बूंदी के राव हेमू से पराजित होकर भागना पड़ा था जिसके कारण उसके आत्म-गौरव को बहुत ठेस पहुंची थी। अब उन्होंने प्रतिज्ञा की है कि वे जब तक बूंदी के दुर्ग में सेना सहित प्रवेश नहीं कर लेंगे अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे। महाराणा का सेनापति अभय सिंह अत्यंत बुद्धिमान एवं चतुर व्यक्ति है। वह पूरा प्रयास करता है कि महाराणा ऐसी प्रतिज्ञा न करें।

(ii) वक्ता (महाराणा लाखा) को नीमरा के मैदान में बूंदी के राव हेमू से पराजित होकर भागना पड़ा था। मुट्ठी भर हाडाओं से मिली हार पर उसकी आत्मा उसे धिक्कार रही थी। महाराणा अपने आत्म-सम्मान एवं प्रतिष्ठा पर लगे इस कलंक को धोना चाहता था। इसलिए उसने प्रतिज्ञा की कि जब तक वह अपनी सेना के साथ बूंदी के किले में प्रवेश नहीं कर लेगा, अन्न-जल ग्रहण नहीं करेगा।

(iii) हाड़ा वंश के राजा राव हेमू थे। हाड़ा लोग अत्यंत वीर थे। वे युद्ध करने में यम से भी नहीं डरते थे। वे वीरता में मेवाड़ की सेना से किसी प्रकार कम नहीं थे। यद्यपि शक्ति और साधनों में वे मेवाड़ के उन्नत राज्य से छोटे थे, परंतु ऐसा होने पर भी उनकी शक्ति एवं सामर्थ्य को किसी भी प्रकार कम नहीं आँका जा सकता। हाड़ा लोग अपनी मातृभूमि का अपमान कभी नहीं सह सकते थे। बूंदी के हाड़ा सुख-दुख में मेवाड़ के साथ रहते थे।

(iv) ‘प्राण जाएँ पर वचन न जाएँ’ कहावत का अर्थ है कि अपने वचन या अपनी प्रतिज्ञा की रक्षा में दृढ रहना तथा उसे पूरा करने के लिए अपने प्राणों की भी परवाह न करना है। ‘मातृभूमि का मान’ शीर्षक एकांकी में मेवाड़ के शासक महाराणा लाखा ने भी इसी प्रकार की एक प्रतिज्ञा की थी जिसके अनुसार वे जब तक बूंदी के दुर्ग में अपनी सेना के साथ प्रवेश नहीं कर लेंगे तब तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करेगे। अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरी करने के लिए वे अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करेंगे।

 

प्रश्न 16. निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :

“मेरी आकाँक्षा है कि सब डालियाँ साथ-साथ फले-फूलें, जीवन की सुखद, शीतल वायु के स्पर्श से झूमें और सरसराएँ। विटप से अलग होने वाली डाली की कल्पना ही मुझे सिहरा देती है।”

[सूखी डाली – उपेन्द्र नाथ ‘अश्क’]

(i) उपर्युक्त कथन कौन, किससे किस संदर्भ में कह रहा है ? 

(ii) सब डालियाँ साथ-साथ फलने-फूलने से क्या आशय है ? ‘डालियाँ’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ? 

(iii) किसकी आकांक्षा है कि सब खुशहाल रहें और क्यों ? इस एकांकी से आपको क्या शिक्षा मिलती है ? 

(iv) प्रस्तुत कथन से वक्ता की किस चारित्रिक विशेषता का पता चलता है ? अपने विचार भी प्रस्तुत कीजिये। 

उत्तर :

(i) उपर्युक्त कथन दादा कर्मचंद अपनी पोती इंदु से तब कह रहा है जब उसे पता चला कि छोटी बहू बेला का मन परिवार में नहीं लग रहा है। दादा कर्मचंद ने परिवार के सभी सदस्यों को एक विशेष अभिप्राय से बुलाया है। वे चाहते हैं कि कोई इस कुटुंब से अलग न हो। वे इंदु और मँझली बहू से कहते हैं कि उन्हें बेला की कभी हँसी नहीं उड़ानी चाहिए। उससे कभी लड़ना-झगड़ना नहीं चाहिए बल्कि उसका सम्मान करना चाहिए।

(ii) सब डालियाँ साथ-साथ फलने-फूलने का आशय है – परिवार के सभी सदस्य प्रेम और स्नेह से मिल-जुल कर एक साथ रहें, किसी से लड़े-झगड़े नहीं बल्कि मेल-जोल से रहें और एक-दूसरे का आदर करें। ‘डालियाँ’ शब्द परिवार के सदस्यों के लिए प्रयुक्त हुआ है। यदि परिवार में सब लोग मिल-जुल कर रहेंगे, एक-दूसरे का सम्मान करेंगे तो परिवार का कोई सदस्य कभी परिवार से अलग होने की नहीं सोचेगा।

(iii) दादा कर्मचंद की इच्छा है कि उसके परिवार के सभी सदस्य सुख-शांति, मेल-जोल तथा स्नेह-सम्मान से रहें। सभी हर प्रकार से खुशहाल हों और उन्हें परिवार के किसी सदस्य से किसी प्रकार की कोई शिकायत न हो। इस एकांकी से शिक्षा मिलती है कि संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों को पारस्परिक स्नेह, सम्मान तथा आपसी मेलजोल से रहना चाहिए। एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए तथा कभी ऐसी स्थिति नहीं आने देनी चाहिए जिससे संयुक्त परिवार के बिखरने का खतरा हो । संयुक्त परिवार एक महान वृक्ष की तरह होता है जिसकी डालियाँ कभी अलग होने की बात नहीं सोचतीं।

(iv) उपर्युक्त कथन ‘सूखी डाली’ शीर्षक एकांकी के प्रमुख पात्र दादा कर्मचंद का है। वे परिवार के मुखिया हैं। उन्होंने बड़ी सूझ-बूझ एवं बुद्धिमानी से अपने परिवार को एक वट वृक्ष की भाँति एकता के सूत्र में बाँध रखा है, जब उन्हें पता चलता है कि छोटी बहू बेला के कारण परिवार में अशांति का वातावरण होने लगा है, तो उन्होंने घर के सभी सदस्यों को बुलाकर समझाया और कहा कि बेला को सभी के द्वारा उचित आदर-सम्मान मिलना चाहिए। दादा जी कभी नहीं चाहते कि कोई परिवार से अलग हो जाए। यही नहीं वे चेतावनी भी देते हैं कि यदि मैंने सुन लिया कि किसी ने बेला की हँसी उड़ाई है, किसी ने बहू का निरादर किया है तो इस घर से मेरा नाता सदा के लिए टूट जाएगा। दादा जी की इस बात का गहरा प्रभाव पड़ा और परिवार टूटने से बच गया।

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