राजस्थान के ऐतिहासिक स्रोत

राजस्थान के ऐतिहासिक स्रोत

Geetanjali Academy- By Jagdish Takhar

राजस्थान के इतिहास के प्रमुख स्रोत पुरातात्विक सामग्री, साहित्यिक सामग्री व पुरालेख सामग्री है।

  1. पुरातात्विक सामग्री: जैसे शिलालेख, ताम्रपत्र (दान-पत्र), सिक्के, शैलचित्र, स्मारक, मृण मूर्तियों, पत्थर के औजार, मिट्टी के बर्तन आदि। पुरातात्विक सामग्री से अभिप्राय उस सामग्री से है जो खोजों व उत्खनन से मिली है। पुरातात्विक सामग्री अधिक विश्वसनीय, सामयिक व प्रामाणिक दस्तावेज़ है।

(i) शिलालेख: ये प्रायः पत्थरों, शिलाओं आदि पर खुदे हुये मिले है। इनकी भाषा संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी, उर्दू व फारसी है। अधिकांशतः ये महाजनी लिपि (हर्ष लिपि) में खुदे है। इनमें वंशावली, तिथियाँ, विशेष घटनाओं तथा शासन स्वरूप का उल्लेख होता है। जिन शिलालेखो में मात्र किसी शासक की उपलब्धियों की यशोगाथा होती है, उसे ‘प्रशस्ति‘  कहते है, जैसे महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित ‘कीर्ति स्तम्भ की प्रशस्ति‘, महाराणा राजसिंह की ‘राज प्रशस्ति‘ आदि।

शिलालेख स्थान विशेष विवरण
घोसु.डी शिलालेख ( द्वितीय शताब्दी ईसा पू.) घोसु.डी गाँव (नगरी, चित्तौड़)

भाषा-संस्कृत, लिपि-ब्राह्मी

इसमें भागवत धर्म का प्रचार, संकर्शण तथा वासुदेव की मान्यता और अश्वमेघ यज्ञ के प्रचलन का वर्णन
भाबू्र अभिलेख (232 ई.पू.) सबसे पुराना ज्ञात बैराठ (जयपुर) सम्राट अशोक की बौद्ध आस्था का वर्णन
अपराजित का शिलालेख 661 ई. कु.डेश्वर मंदिर, नागदा (उदयपुर) मेवाड़ की धार्मिक स्थिति का वर्णन
मानमोरी का लेख 713 ई. मानसरोवर झील (चित्तौडगढ़) का तट ये अभिलेख कर्नल टॉड को मिला एवं इसमें चित्तौड़ की सामाजिक स्थिति की जानकारी है।
चित्तौड़ का लेख 971 ई. चित्तौडगढ़ इसमें स्त्रियों के मन्दिर में प्रवेश को निषेध बताया है।
बिजोलिया का लेख 1170 ई. पार्श्वनाथ मंदिर, बिजौलिया (भीलवाड़ा) सांभर व अजमेर के चौहान वंश की जानकारी
चीरवे का शिलालेख 1428 ई. चीरवा गाँव, 

उदयपुर

मेवाड़ के गुहिल शासक बप्पा से समरसिंह तक की जानकारी
श्रृंगी ऋषि शिलालेख श्रृंगी ऋषि स्थान (एकलिंग जी) मेवाड़ के राणा हम्मीर से मोकल तक की जानकारी तथा भीलों के सामाजिक जीवन की जानकारी
रणकपुर प्रशस्ति 1439 ई. जैन चौमुखा मंदिर, रणकपुर मेवाड़ के बप्पा रावल से कुम्भा तक का उल्लेख
कुम्भलगढ़ अभिलेख 1460 ई. कुम्भलगढ़ (राजसमंद) मेवाड़ शासकों की शुद्ध वंशावली
कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति 1460 ई. चित्तौड़ दुर्ग में कीर्तिस्तम्भ पर उत्कीर्ण श्लोक महाराणा कुम्भा द्वारा रचित चंडीशतक, संगीतराज, गीत गोविन्द टीका का उल्लेख है।
आमेर का लेख 1612 ई. आमेर (जयपुर) कच्छवाहा वंश की मुगलों से सम्बन्धों की जानकारी
राजप्रशस्ति  (1676 ई.)  विश्व का सबसे बड़ा शिलालेख राजसमंद झील के किनारे रणछोड़ भट्ट द्वारा रचित मेवाड़ के राजाओं व राजसिंह की उपलब्धियों का वर्णन
अजमेर अभिलेख (1200 ई.) राजस्थान में फारसी का सबसे पुराना अभिलेख अढ़ाई दिन के झोपड़े की दीवार पर (अजमेर) इसमें मस्जिद निर्माण करने वाले व्यक्तियों के नाम हैं।
धाई बी.पीर की दरगाह का लेख (1325 ई.) (फारसी अभिलेख) चित्तौडगढ़ इसमें चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद अंकित है।
आहड़ ताम्रपत्र (दान-पत्र) 1206 ई. आहड़ (उदयपुर) इसमें गुजरात के सोलंकी राजाओं की वंशावली का वर्णन है।
प्रतापगढ़ (ताम्रपत्र) 1641 ई. प्रतापगढ़ (चित्तौडगढ़) इसमें ‘टंकी‘ नामक कर का उल्लेख है, जो ब्राह्मणों पर लगता था।

(ii)  सक्के: सिक्के लेन-देन, व्यापार, राजकीय आय व आर्थिक व्यवस्था के स्तम्भ माने जाते है। ये सिक्के सोने, चाँदी, ताम्बे तथा सीसे के होते थे। राजस्थान में रेढ़ (टोंक) में चाँदी के ‘पंचमार्क सिक्के‘ मिले है जो कि भारत के प्राचीनतम सिक्के है तथा ये मालवा जनपद के सिक्के है। जोधपुर के महाराजा गजसिंह के समय गधिया सिक्के चलते थे। इन पर गधे के मुख अंकित थे। मुगल साम्राज्य के पतन के दौरान जोधपुर के शासकों ने विजयशाही सिक्के चलाये तथा जयपुर में कच्छवाहा शासकों ने झाड़शाही सिक्के चलवाये। ब्रिटिश शासन के बाद चाँदी के कलदार सिक्कों का प्रचलन हुआ। अकबर को चित्तौड़ विजय के उपरान्त मेवाड़ में ‘एलची सिक्के‘ चले। चांदोड़ी सिक्के मेवाड़ में तथा अखैशाही सिक्के जैसलमेर  में और स्वरूपशाही सिक्के उदयपुर में प्रचलित थे।

(iii)    स्मारक: विभिन्न प्रकार के भवन जैसे महल, मंदिर, दुर्ग, समाधियाँ, छतरियाँ, स्तूप, हवेलियाँ आदि भी इतिहास के निर्माण के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

(iv)    मृण मूर्तियां, बर्तन, औजार: उत्खनन से मिट्टी की अनेक मूर्तियां, बर्तन तथा पत्थर, ताम्बे व लौहे के औजार प्राप्त हुये हैं जो कि इतिहास निर्माण के महत्वपूर्ण स्रोत है।

  1. पुरालेखीय स्रोत: लिखित दस्तावेज़ पुरालेख कहलाते हैं। इनमें बहियाँ, पट्टे, परवाने, फरमान, खरीता, रूक्के आदि सम्मिलित है। यह सब रिकॉर्ड राज्य के पुरालेख संग्रहालयों जयपुर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर व बीकानेर में सुरक्षित है। राजस्थान राज्य अभिलेखागार का मुख्यालय बीकानेर में स्थित है। 1955 में इसकी स्थापना जयपुर में हुई परन्तु 1960 में ये बीकानेर स्थानान्तरित हो गया। 16वीं शताब्दी में राजस्थान के शासकों में इस तरह का रिकॉर्ड रखा जाता था।

बहियाँ:

(i) जिन बहियोें में राजा के दैनिक कार्यों का उल्लेख होता था, उन्हें हकीक़त बही कहा जाता था।

(ii)  जिन बहियों में राजा के शासकीय आदेशों की नकल होती थी, उन्हें हुक़ूमत बही कहा जाता था।

(iii) जिन बहियों में राजा को प्राप्त होने वाले महत्वपूर्ण पत्रों की नकल होती थी, उन्हें खरीता बही कहा जाता था।

(iv) शाही परिवार के विवाह सम्बन्धित आलेख विवाह बही में किये जाते थे।

(v) राजकीय भवनों, महलों पर होने वाले खर्च का लेखा-जोखा कठमाना बही में किया जाता था।

(vi) भूमि में रिकार्ड सम्बन्धी बही अडसट्ठा बही कहलाती थी।

खरीता: जो पत्र एक शासक द्वारा दूसरे शासक को भेजे जाते थे।

परवाना: जो पत्र एक शासक द्वारा अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को भेजे जाते थे।

अखबारात: मुगल दरबार द्वारा प्रकाशित दैनिक समाचारों का संग्रह।

फरमान, रूक्के: ये मुगल सम्राट द्वारा शाही वंश के लोगों या विदेशी शासकों के नाम भेजे जाते थे।

निशान: शहजादों व बैगमों द्वारा लिखे पत्र थे।

  1. साहित्यिक सामग्री: इसके अंतर्गत संस्कृत, अपभ्रश, अंग्रेजी, हिन्दी, फारसी, राजस्थानी भाषाओं में लिखे ग्रंथ आते हैं।

राजस्थान के विभिन्न अंचलों के प्राचीन नाम 

प्राचीन नाम अँचल राजधानी
1 यौद्धेय प्रदेश गंगा नगर के आसपास के क्षेत्र  
2 जाँगल प्रदेश बीकानेर व जोधपुर जिले अहिच्छत्र पुर
3 सपाद लक्ष (सांभर) जांगल प्रदेश का पूर्वी भाग
4. मरू(मारवाड़) जोधपुर मंडोर 
5.  गुजर्रत्रा जोधपुर का दक्षिण व पाली का समीपवर्ती भाग
6 मांड (वल्ल व दुग्गल) जैसलमेर, बाड़मेर का क्षेत्र जैसलमेर
7 मेदपाट (मेवाड़) उदयपुर, राजसमन्द, चित्तौडगढ़, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा व डूंगरपुर क्षेत्र चित्तौडगढ़
8 शिवि उदयपुर का क्षेत्र मध्यमिका
9 बागड़ (व्याग्रघाट) डूंगरपुर व बांसवाड़ा का क्षेत्र
10 चंद्रवर्ती (अर्बुद प्रदेश) सिरोही व आबू के आसपास का क्षेत्र
11 ढूंढाड़ जयपुर के आसपास का क्षेत्र
12 हाड़ौती (हेय-हेय प्रदेश) कोटा, बूँदी, बांरा व झालावाड़ का क्षेत्र बूंदी
13 मालवा प्रदेश झालावाड़
14 मत्स्य प्रदेश पश्चिमी अलवर, जयपुर व भरतपुर का कुछ भाग बैराठ
15 शूरसेन प्रदेश पूर्वी अलवर, भरतपुर, धौलपुर व करौली मथुरा
16 कुरू प्रदेश अलवर का उत्तरी भाग
17 मेवात अलवर
18 मेरवाड़ा अजमेर के आसपास का क्षेत्र
19 श्रीमाल/भीनमाल/सुवर्ण गिरि जालौर
20 शेखावाटी चुरू, सीकर व झुंझुनू
21 भोमट डूंगरपुर पूर्वी सिरोही व उदयपुर
22 डांगक्षेत्र धौलपुर, करौली व सवाई माधोपुर क्षेत्र

नोट:

(i) अलवर ऐसी जगह है जो कि मत्स्य, शूरसेन व कुरू प्रदेश में बँटा था।

(ii)  बीकानेर के राजा जांगलधर बादशाह कहलाते थे। जांगल प्रदेश की राजधानी अहिच्छत्रपुर थी।

राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ

    • राज्य के दक्षिणी पूर्वी तथा पूर्वी भागों से प्राप्त पुरावशेषों से यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग 1 लाख वर्ष पूर्व (पूर्व पाषाण काल) मानव पत्थरों से बेडोल औजारों का प्रयोग करता था। इस समय मानव राजस्थान में बनास, चम्बल, गम्भीरी, बेड़च और लूनी नदियों के किनारे निवास करता था।
    • मध्य पाषाण काल (50 हजार वर्ष पूव) में मानव आयताकार व गोल औजारों का प्रयोग करने लगा।
    • राजस्थान में मानव सभ्यता की आधार शिला उत्तर पाषाण काल (10 हजार वर्ष पूव) में रखी गई। इस काल में पहिये का आविष्कार हुआ, मानव ने खेती आरम्भ की और कपास की खेती कर कपड़ा बुनने का कार्य आरम्भ किया।
    • ऋग्वेद के अनुसार श्रीगंगानगर जिले की पूर्वी सीमा पर दृषद्वती नदी तथा पश्चिमी सीमा पर सरस्वती नदी (घग्घर) बहती थी। उस समय इस भाग को ब्रह्मवर्त कहते थे।
    • पहले थार के मरूस्थल की जगह टेथिस महासागर था। इस महासागर में दृषद्वती, सरस्वती व आहड़ नदियाँ आकर मिलती थी।
    • कालीबंगा (हनुमानगढ़) व आहड़ (उदयपुर) के उत्खनन से यह प्रमाणित होता है कि ये दोनों सभ्यताएँ सिन्धु घाटी सभ्यता (हडप्पा व मोहनजोदाड़ो) के समकालीन है।
  • राजस्थान की प्राचीन सभ्यता की खोज सर्वप्रथम आरेल स्टाईल ने की थी।

1. कालीबंगा सभ्यता:

    • इस सभ्यता के अवशेष अनूपगढ़ के पास व कालीबंगा में मिले थे। इस स्थल की खोज सर्वप्रथम अमलानंद घोष ने 1952 ई. में की। 1961 से 1969 तक बी.वी.लाल और बी.के.थापर ने यहाँ उत्खनन कार्य किया। कालीबंगा हनुमानगढ़ जिले की प्राचीन सरस्वती (घग्घर) नदी के किनारे स्थित है। कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ ‘काली चूड़ियाँ‘ है। कालीबंगा सभ्यता राजस्थान की सबसे प्राचीन सभ्यता हैं।
    • कालीबंगा में दो टीलों का उत्खनन किया गया। पश्चिमी टीला छोटा (गढ़ी क्षेत्र), जिससे पूर्व हड़प्पाकालीन सभ्यता (2400 ई.पू.) के अवशेष प्राप्त हुये हैं तथा दूसरा पूर्वी टीला (नगर क्षेत्र), जिससे हड़प्पाकालीन सभ्यता (2300 ई.पू.) के अवशेष मिले हैं। दोनों टीले एक सुरक्षा प्राचीर से घिरे हैं। इसलिये इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से जाना जाता है। राजस्थान सरकार ने कालीबंगा से प्राप्त पुरावशेषो के संरक्षण हेतु यहाँ एक संग्रहालय की स्थापना की है। पाकिस्तान में कोटदीजी नामक स्थान से प्राप्त अवशेष कालीबंगा के अवशेषों से मिलते-जुलते हैं।
    • कालीबंगा में उत्खनन से यह सिद्ध हुआ है कि यह एक नगरीय प्रधान सभ्यता थी। यहाँ नगर नियोजन सुनियोजित नक्शे के आधार पर किया गया था। सड़के एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी। मकान कच्ची ईंटों (30 20 10 से.मी.) के बनाए जाते थे। ईटों को धूप में पकाया जाता था। घरों से गंदे पानी के निकास के लिये पक्की ईंटों की नालियाँ एवं शोषण पात्रों का प्रयोग होता था। कुएँ के निर्माण के लिये पक्की ईंटों का प्रयोग होता था। नालियाँ ढ़की हुई थी।
    • यहाँ की एक बस्ती एक सुरक्षात्मक दीवार (परकोटे) से सुरक्षित की गई थी। यह दीवार 4.10 मीटर चौड़ी थी, जिसका निर्माण कच्ची ईंटों (30 20 10 से.मी.) से किया गया था। यह दीवार उत्तर से दक्षिण की और 250 मीटर लंबी तथा पूर्व से पश्चिम की ओर 180 मीटर चौड़ी थी।
    • पश्चिम छोटे टीले से यहाँ दोहरे जुते हुये खेत के अवशेष मिले हैं। इस खेत में एक साथ दो फसलें जौं एवं गेहूँ उगाई जाती थी।
    • यहाँ उत्खन्न से लाल काले मृदभा.ड, हवन कुण्ड, चूड़ियाँ, तन्दूर के आकार के चुल्हे तथा छत पर जाने के लिये सीढ़ियां मिली हैं। इसके अलावा खड़िया मिट्टी से बनी मुद्राएँ भी मिली है। यहाँ के भवनों की छतें लकड़ी की तिलियों व मिट्टी से बनी होती थी।
    • पश्चिमी टीलें की खुदाई से एक बहुत बड़ा मिट्टी का चबूतरा मिला है।
    • यहाँ के निवासी मृतक के शव को गाड़ते थे तथा मृतक के पास बर्तन व गहने रखते थे।
    • यहाँ से प्राप्त मुहरों पर सैंधव लिपि (चित्र लिपि) मिली है। जो अब तक पढ़ी नहीं जा सकी है। इस लिपि के अक्षर एक-दूसरे के ऊपर लिखे हुये प्रतीत होते हैं तथा ये लिपि सम्भवतः दाएँ से बाएँ लिखी जाती होगी। इस सभ्यता से स्नानागार के अवशेष नहीं मिले हैं।
  • कालीबंगा से प्राप्त एक मुहर पर व्याघ्र (बाघ) का चित्र अंकित हैं।

2. आहड़ सभ्यता: यह सभ्यता उदयपुर जिले में आहड़ (बेड़च) नदी घाटी में विद्यमान थी। यह सभ्यता दो स्थलों आहड़ (उदयपुर) व गिलुण्ड  (राजसमंद) में विस्तृत थी। आहड़ पर्वत मालाओं व एक नदी से घिरी थी, जबकि गिलुंड नदी-घाटी व मैदान मे विस्तृत थी। गिलुंड के एक और बनास नदी थी। आहड़ संस्कृति ग्रामीण थी।

    • आहड़ का प्राचीन नाम ताम्रवती नगरी था क्योंकि यहाँ प्राचीन काल में ताम्बे के औजार बनाने का प्रमुख केन्द्र था। आहड़ के लोगों का प्रमुख व्यवसाय धातुकर्म था।
    • स्थानीय लोग आहड़ को धूलकोट, आघाटपुर या आघात दुर्ग भी कहते थे।
    • उत्खनन: इस स्थल का उत्खनन सर्वप्रथम 1953 ई. में अक्षय कीर्ति व्यास के नेतृत्व में हुआ। 1954-56 में रतन चंद्र अग्रवाल ने 1961-62 में एच. डी. सांकलिया के नेतृत्व में यहाँ उत्खनन हुआ।
    • यहाँ से लाल व काले मृदभांड (मिट्टी के बर्तन) प्राप्त हुये हैं, जिन्हें उल्टी तपाई शैली से पकाया जाता था।
    • यहाँ के लोग धूप में पकाई ईंटों व पत्थरों से मकान बनाते थे। आहड़ से कच्ची ईंटों, गारे व पत्थर से बने मकान मिले हैं, जबकि गिलुंड से पक्की ईंटों की दीवारे मिली हैं।
    • यहाँ के लोग कृषि से परिचित थे तथा अन्न पकाकर खाते थे। इनकी अर्थव्यवस्था का प्रमुख साधन पशुपालन था।
    • यहाँ के लोग अनाज का भंडारण बड़े-बड़े मृदभांड में करते थे। जिन्हें यहाँ ‘गोरे‘ व ‘कोठ‘ कहा जाता था।
    • यहाँ खुदाई से ताम्बे की छह मुद्राएँ व तीन मोहरें प्राप्त हुई हैं। एक मुद्रा पर त्रिशूल उत्कीर्ण है।
    • आहड़ में एक घर में एक साथ छह चूल्हे प्राप्त हुये हैं। इनमें से एक पर मानव हथेली की छाप भी प्राप्त हुई है।
    • यहाँ मातृदेवी व बैल की मृणमूर्ति और दीपक प्राप्त हुये हैं।
    • यहाँ के लोग मृतकों को आभूषणों के साथ दफनाते थे।
  • यहाँ का प्रमुख उद्योग ताम्बा गलाना एवं इसके उपकरण बनाना था।

3.गणेश्वर सभ्यता (सीकर): गणेश्वर का टीला, तहसील – नीम का थाना, जिला सीकर में कांतली नदी के उद्गम स्थल पर स्थित है। यह सभ्यता 2800 ई. पूर्व विकसित हुई तथा ताम्रयुगीन संस्कृतियों में सबसे पुरानी है। इसलिये इसे ताम्रयुगीन संस्कृतियों की जननी कहा जाता है।

    • इस स्थल का उत्खनन 1977 ई. में आर. सी. अग्रवाल और विजय कुमार ने किया।
    • यह सभ्यता सीकर, झुंझुनू, जयपुर तथा भरतपुर तक फैली हुई है।
    • विश्व प्रसिद्ध खेतड़ी (झुंझुनू) यहाँ स्थित है।
    • यहाँ मकान पत्थरों के बनाए जाते थे तथा ईंटों का बिलकुल भी प्रयोग नहीं होता था।
    • लोग माँसाहारी थे तथा मछली पकड़ने के शौकीन थे। यहाँ मछली पकड़ने का काँटा मिला है।
  • गणेश्वर सभी हड़प्पा स्थलों को ताम्र धातु की आपूर्ति करता था।

4. बैराठ सभ्यता (जयपुर): बैराठ (विराट नगर) प्राचीन समय में मत्स्य जनपद की राजधानी थी तथा मौर्यकाल में बौद्धधर्म का प्रमुख केन्द्र था। चीनी यात्री ‘फाह्यान‘ बैराठ में ही आया था।

    • बैराठ में बीजक की पहाड़ी, भीम डूंगरी तथा महादेव डूंगरी आदि स्थानों पर प्रथम बार उत्खनन 1937 में दयाराम साहनी ने किया था तथा खुदाई से मौर्यकालीन व उससे पूर्व की सभ्यता के अवशेष मिले हैं।
    • पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान एक वर्ष बैराठ में रहे थे।
    • बैराठ से पाषाणयुगीन व मौर्ययुगीन संस्कृतियों के अवशेष प्राप्त हुये हैं।
    • यहाँ पाषाणयुगीन हथियारों का एक बहुत बड़ा कारखाना था, जहाँ से कुल्हाड़ियाँ व औजार मिले हैं।
    • 1837 ई. में कैप्टन बर्ट ने बीजक डूंगरी पर मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण सम्राट अशोक का शिलालेख खोजा था। स्थानीय लोग इस लेख को ‘बीजक‘ कहकर पुकारते थे। इसलिये इस पहाड़ी का नामकरण भी ‘बीजक पहाड़ी‘ हो गया।
    • बीजक पहाड़ी पर सम्राट अशोक द्वारा निर्मित गोल बौद्ध मंदिर व बौद्ध मठ के अवशेष प्राप्त हुये हैं। यहाँ से सम्राट अशोक का भाब्रू शिलालेख भी प्राप्त हुआ है।
    • उत्खनन से प्राप्त मृतभा.ड पर त्रिरत्न व स्वास्तिक के चिन्ह मिले हैं।
    • यहाँ शैलखंडों पर शंख लिपि के प्रमाण मिले हैं। शंख लिपि में प्रयुक्त अक्षर शंख की आकृति से मेल खाते हैं।
    • विराट नगर में अकबर ने एक टकसाल खोली थी। जिसमें अकबर जहाँगीर व शाहजहाँ के काल में ताम्बे के सिक्के ढाले जाते थे।
    • ‘ह्वेनसांग‘ ने अपनी वृतांत यात्रा ‘सी यू की‘ में लिखा कि मिहिर कुल ने बौद्ध विहारों का विध्वंस किया था।
  • नोट: राजस्थान में महाभारत कालीन पुरास्थल बैराठ (जयपुर) व नोह (भरतपुर) थे।

5. बागौर सभ्यता (भीलवाड़ा):

    • यह सभ्यता भीलवाड़ा जिले में कोठारी नदी के किनारे स्थित थी।
    • इसका उत्खनन 1967 में विरेन्द्रनाथ मिश्र ने किया।
  • यहाँ से मध्यपाषाण कालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं। यहाँ मकान पत्थरों से बने थे तथा लोग बस्ती बनाकर रहते थे।
    1. सुनारी (झुंझुनू): यहाँ से लौहयुगीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुये है। यहाँ अयस्क से लोहा बनाने की प्राचीनतम भट्टियाँ मिली है।
    1. जोधपुरा (जयपुर): यहाँ से मौर्यकाल व कुषाणकालीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं।
    1. नगरी (चित्तौडगढ़): नगरी (मध्यमिका) से शिवि जनपद के सिक्के प्राप्त हुये हैं
    1. रैढ (टोंक): यहाँ से लौह सामग्री के विशाल भ.डार मिले हैं। इसे प्राचीन भारत का टाटा नगर भी कहा जाता है। यहाँ 2007 में एशिया का सबसे बड़ा सिक्कों का भण्डार मिला है। इनके अलावा मालव जनपद की मुद्रा व भारत के सबसे पुराने पंचमार्क सिक्के मिले हैं।
    1. मल्लाह (भरतपुर): यहाँ से एक हारफून नामक हथियार मिला है, जो कि बड़े जानवरों को मारने के काम आता था।
    1. सोंथी (बीकानेर): इसे कालीबंगा प्रथम के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ से पूर्व हड़प्पाकालीन अवशेष मिले हैं। इसका उत्खनन सन् 1953 में अमलानंद घोष ने किया।
    1. नलियासर (जयपुर): सांभर झील के समीप स्थित इस स्थल से चौहान युग से पूर्व की सभ्यता के अवशेष मिले हैं व प्रतिहार कालीन मंदिर के अवशेष प्राप्त हुये हैं।
  1. तिलवाड़ा (बाड़मेर): यह स्थल बाडमेर जिले में लूनी नदी के किनारे स्थित था। इस स्थल से 500 ई.पू. से 200 ई. तक के अवशेष मिले हैं।

काल सभ्यता स्थल

    • आरम्भिक पाषाण कालीन स्थल (1.5 लाख वर्ष पूर्व): बैराठ (जयपुर), सीकर।
    • मध्य पाषाण कालीन स्थल (50 हजार से 10 हजार वर्ष पूर्व): बिलाड़ा (जोधपुर), रैढ़ (टोंक)
    • उत्तर पाषाण कालीन स्थल (10 हजार से 5 हजार वर्ष पूर्व): तिलवाड़ा (बाड़मेर), बागौर (भीलवाड़ा)।
    • महाभारत कालीन सभ्यता स्थल: नेह (भरतपुर), बैराठ (जयपुर)।
    • ईसा से आरम्भिक शताब्दियों तक के अवशेष स्थल: नगरी (चित्तौडगढ़), भीनमाल (जालौर), बैराठ व सांभर (जयपुर)।
    • महाभारत व रामायण काल में राजस्थान में मरू, जांगल व मत्स्य प्रदेश विद्यमान थे।
    • पांडव अपने वन प्रवास के दौरान बैराठ (विराट नगर), पुष्कर व आबू में रूके थे। पांडवों ने अपने अज्ञातवास का एक वर्ष मत्स्य प्रदेश में बिताया था।
    • जनपद युग: आर्य धीरे-धीरे पंजाब से दक्षिण भारत की ओर आ गए व कबीलों में रहने लगे। इन कबीलों को जनपद कहा जाता था।     300 ई.पू. से 20 ई.पू. तक भारत में कुल 16 जनपद स्थापित हुये जिनमें से राजस्थान में प्रमुख जनपद निम्न थे:
    • मत्स्य: इस जनपद में जयपुर, अलवर, धौलपुर, भरतपुर व करौली के कुछ भाग सम्मिलित थे। इस जनपद की राजधानी बैराठ थी।
    • मालव: ये सिकन्दर के आक्रमण से पीड़ित होकर राजस्थान में टोंक व अजमेर में आकर बस गये। इन्होंने नगर (टोंक) को राजधानी बनाया। यह जनपद सर्वाधिक शक्तिशाली थी।
    • शिवि: ये सिकन्दर के आक्रमण से डरकर उदयपुर आ गये। इनकी राजधानी मध्यमिका (चित्तौड़) थी।
    • अर्जुनायन: ये भी सिकन्दर के आक्रमण से डरकर भरतपुर व अलवर में आकर बस गये।
    • यौद्धेय: ये गंगानगर-हनुमानगढ़ (उत्तरी राजस्थान) में रहते थे। ये कभी युद्ध नहीं हारे।
    • राजस्थान में मौर्य साम्राज्य के प्रमाण बैराठ में सम्राट अशोक के दो शिलालेखो (250 ई.पू.) से मिलते हैं। अशोक के त्रिरत्न अभिलेख से यहा स्पष्ट होता है कि राजस्थान के जनपदों पर चंद्रगुप्त मौर्य का राज था।
  • मौर्यकाल में राजस्थान, सिंध, गुजरात और कोंकण मिलकर अपर जनपद (पश्चिम जनपद) कहलाते थे।

गुप्तकाल:

    • समुद्रगुप्त ने 350 ई. में क्षत्रप वंश के राजा रूद्रदामन को हराकर दक्षिणी राजस्थान पर अधिकार कर लिया, परन्तु चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने अंतिम क्षत्रप राजा रूद्र को हराकर संपूर्ण राजस्थान पर अपना अधिकार कर लिया।
  • राजस्थान के विभिन्न भागों पर गुप्त राजाओं का आधिपत्य 275 ई. से 499 ई. तक रहा।

हूण वंश:

    • इस वंश के राजा तोरमण हूण ने 503 ई. में गुप्त राजाओं को हराकर राजस्थान पर अपना अधिपत्य कर लिया।
    • गुप्त सम्राट बालादित्य ने मालवा के शासक यशोवर्मा की सहायता से 552 ई. में तोरमाण हुण के पुत्र मिहिर कुल को हराकर वापिस राजस्थान पर अधिकार जमा लिया।
  • मिहिर कुल को भारत का अटिल्ला कहा जाता था।

वर्धन काल:

    • सातवीं शताब्दी के शुरू में हूणों के पतन के बाद गुर्जरों ने राजस्थान पर अधिकार कर लिया। इन्होंने भीनमाल (जालौर) को अपनी राजधानी बनाया।
    • प्रभाकर वर्धन ने गुर्जरों का राज समाप्त कर राजस्थान में वर्धन राज्य स्थापित किया।
    • प्रभाकर वर्धन के पुत्र हर्षवर्धन ने गुर्जरों से भीनमाल छीन लिया और मालवा को भी अपने साम्राज्य में मिला लिया। हर्षवर्धन ने राजस्थान के अधिकांश भाग पर 643 ई. तक राज किया।
  • चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्षवर्धन के समय भीनमाल (जालौर) आया था।

राजस्थान का मध्यकालीन इतिहास (राजपूत काल)

    • वर्धन साम्राज्य के पतन के बाद भारत पुनः छोटे-छोटे राज्यों मे विभक्त हो गया। वर्धन वंश के पतन के बाद भारतीय इतिहास की प्रमुख घटना राजपूतों का उत्थान थी।
    • 7वीं से 12वीं शताब्दी का समय राजपूत काल कहलाता है। राजपूतों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में निम्न मत प्रचलित है।
    • चंदबरदाई के पृथ्वीराज रासों के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति गुरू वशिष्ठ के अग्निकु.ड से हुई है। इस अग्निकु.ड में प्रतिहार, परमार, चौहान और सोलंकी (चालुक्य) राजपूत उत्पन्न हुये है। ये अग्निकुंड आबू पर्वत में है।
    • गौरीशंकर हीराचन्द ओझा के अनुसार राजपूत वैदिक आर्यों की संतान हैं।
    • विदेशी इतिहास कारों ने राजपूतों को हूण व कुषाणों की संतान माना है, जबकि कर्नल जेम्स टॉड ने इन्हें सीथियन माना है।
  • आधुनिक सिद्धांत के अनुसार राजपूतांे की उत्पत्ति वैदिक काल के क्षत्रियों से हुई है। अतः राजपूत विशुद्ध भारतीय है। राजस्थान के राजपूत वंश निम्न है:

गुर्जर प्रतिहार

    • गुर्जर प्रतिहार वंश का शासन मुख्यतः 8वीं से 10वीं सदी तक रहा है। आरम्भ में इनकी शक्ति का प्रमुख केन्द्र मारवाड़ था। उस समय यह क्षेत्र गुर्जरात्रा (गुर्जर प्रदेश) कहलाता है। गुर्जर प्रदेश के स्वामी होने के कारण प्रतिहारों को गुर्जर प्रतिहार कहा जाने लगा। उस समय की मंदिर स्थापत्य शैली को गुर्जर प्रतिहार शैली कहा जाने लगा। गुर्जर प्रतिहारों ने 6वीं से 11वीं शताब्दी तक अरबों के आक्रमणों को रोके रखा।
    • गुर्जर प्रतिहारों का अधिपत्य राजस्थान के अलावा कन्नौज व बनारस तक भी था। कन्नौज 8वीं से 9वीं सदी तक व्यापार का प्रमुख केन्द्र था। इसलिये कन्नौज पर अधिकार हेतु गुर्जर-प्रतिहारों, बंगाल के पालवंश और दक्षिण के राष्ट्रकूटों के मध्य 100 वर्षों तक त्रिपक्षीय संघर्ष हुआ। अंत में गुर्जर प्रतिहार वंश के नागभट्ट द्वितीय ने 816 ई. में कन्नौज के शासक चक्रायुद्ध को हराकर कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया व 100 वर्षीय युद्ध को समाप्त किया।
    • राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारों की दो शाखाओं का अस्तित्व था। (1) मंडोर शाखा (2) भीनमाल (जालौर) शाखा।
    • मुहणोत नैणसी के अनुसार गुर्जर प्रतिहारों की 26 शाखाएँ थी। इनमें से मंडोर शाखा सबसे प्राचीन थी। राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारों की प्रारंभिक राजधानी मंडोर (जोधपुर) थी। मंडोर के प्रतिहार क्षेत्रीय थे।
    • नागभट्ट प्रथम: प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम ने 8वीं शताब्दी में भीनमाल पर अधिकार कर भीनमाल (जालौर) को अपनी राजधानी बनाया। बाद में उज्जैन उनकी शक्ति का प्रमुख केन्द्र रहा।
    • नागभट्ट द्वितीय (815-833 ई.): इसने 816 ई. में कन्नौज के शासक को हटाकर 100 वर्षीय युद्ध को समाप्त किया और कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया। इस समय प्रतिहार उत्तरी भारत का सबसे शक्तिशाली वंश हो गया। नागभट्ट द्वितीय ने अरब आक्रमणों को कई समय तक रोके रखा।
    • मिहिर भोज (836-885 ई.): नागभट्ट द्वितीय का पौत्र मिहिर भोज प्रतिहार वंश का सर्वाधिक कुशल प्रशासक था। इसे आदिवराह की उपाधि मिली थी। इसके समय प्रतिहार सबसे शक्तिशाली थे। मिहिर भोज के दक्षिण विजयी अभियानों को राष्ट्र कूट शासक ध्रुव ने रोक दिया।
    • 1018 ई. में महमूद गजनवी ने कन्नौज पर आक्रमण कर दिया और प्रतिहारांे को मारवाड़ से निकाल दिया। इस वंश का अंतिम शासक यशपात था। 
    • किराडू (बाड़मेर) का सोमेश्वर मंदिर गुर्जर प्रतिहार शैली से बना है।
    • भोज प्रथम के शासन काल में ग्वालियर प्रशस्ति की प्रशंसा की गई।
    • ओसियां के महावीर स्वामी जैन मंदिर का निर्माण वत्सराज प्रतिहार के शासन काल में हुआ।
    • महामारू शैली का प्रचलन गुर्जर प्रतिहारों के काल में ही हुआ।
  • प्रारंभिक प्रतिहार शासकों की जानकारी उधोतन सूरी द्वारा रचित ‘कुवलयमाला‘ से मिलती है।
राजस्थान में प्रचलित प्रसिद्ध सिक्के
सिक्के का नाम स्थान/शासक
झाड़शाही, मोहम्मद शाही जयपुर
विजयशाही, भीमशाही, गधिया व फदिया जोधपुर
अखैशाही जैसलमेर
चांदोड़ी, स्वरूपशाही,भीलाड़ी मेवाड़
उदयशाही डूंगरपुर
मदनशाही झालावाड़
आलमशाही प्रतापगढ़
गजशाही बीकानेर
तमंचाशाही धौलपुर
गुमानशाही कोटा
कलदार ब्रिटिशकाल में
अखयशाही अलवर
राजस्थान के प्रमुख राजवंश तथा उनके राज्य
राजवंश राज्य
चौहान वंश सांभर, अजमेर, रणथम्भौर, नाडोल, जालौर, सिरोही, हाड़ौती
गुहिल वंश मेवाड़ (उदयपुर, चित्तौड, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, शाहपुरा, राजसमंद)
राठौड़ वंश जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़
कच्छवाहा ढूंढाड़ (जयपुर, आमेर), अलवर
यादव करौली, जैसलमेर
परमार आबू, मालवा, जालौर
भाटी जैसलमेर
झाला झालावाड़
जाट वंश भरतपुर, धौलपुर
मुस्लिम नवाब टोंक
गुर्जर-प्रतिहार गुर्जरात्रा, मारवाड़, भीनमाल
राजस्थान के विभिन्न राज्यों की स्थापना
राज्य वंश संस्थापक वर्ष
शाकम्भरी (अजमेर) चौहान वासुदेव 551 ई.
रणथम्भौर चौहान गोविन्दराज 1194 ई.
जालौर चौहान कीर्तिपाल 1181 ई.
नाडोल चौहान लक्ष्मण 983 ई.
बूँदी हाड़ा चौहान देवीसिंह 1240 ई.
कोटा हाड़ा चौहान माधोसिंह 1625 ई.
मेवाड़ गुहिल गुहिल 566 ई.
मेवाड़ गुहिल बप्पा रावल 728 ई.
बागड़ गुहिल समर सिंह 1177 ई.
डूंगरपुर गुहिल पृथ्वीराज 1527 ई.
बाँसवाड़ा गुहिल जगमाल सिंह 1527 ई.
प्रतापगढ़ गुहिल प्रताप सिंह 1699 ई.
शाहपुरा गुहिल सुजान सिंह 1631 ई.
मारवाड़ राठौड़ राव सीहा 1256 ई.
बीकानेर राठौड़ राव बीका 1465 ई.
किशनगढ़ राठौड़ किशन सिंह 1609 ई.
आमेर कच्छवाहा धोलाराय 967 ई
ढूंढाड़ (जयपुर) कच्छवाहा दुल्हेराय 1137 ई.
अलवर कच्छवाहा प्रताप सिंह 1771 ई.
जैसलमेर भाटी राव जैसल 1155 ई.
करौली यादव विजय पाल 1348 ई.
भरतपुर जाट चूड़ामण 1720 ई.
टोंक पिण्डारी अमीर खाँ 1817 ई.
महत्वपूर्ण स्थानों के प्राचीन नाम
वर्तमान नाम प्राचीन नाम वर्तमान नाम प्राचीन नाम
अजमेर अजयमेरू जोधपुर मरूभूमि
धौलपुर कोठी झालरापाटन ब्रजनगर
करौली गोपालपाल (कल्याणपुर) जैसलमेर मांड
श्रीगंगानगर रामनगर झालावाड़ खींचीवाड़ा
चित्तौडगढ़ चित्रकूट महावीर जी चांदन
बीकानेर जांगल बूँदी हाड़ौती
मण्डोर माण्डवपुर रामदेवरा रूणैचा
हनुमानगढ़ भटनेर नागौर अहिच्छत्रपुर
बैराठ (जयपुर) विराटनगर चित्तौडगढ़ खिज्राबाद
सांचौर (जालौर) सत्यपुरी भीनमाल  (जालौर) भिल्लमाल
जालौर जाबालीपुर (जलालाबाद) अनूपगढ़ चुघेर
सांभर (जयपुर) सपादलक्ष तारागढ़ गढबीठली
बयाना (भरतपुर) श्रीपंथ जयपुर ढूंढाड़
अलवर आलोर (साल्वपुर) जयसमंद ढेबर
प्रतापगढ़ कांठल ओसियां (जोधपुर) उकेर 

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10 Most Important Question Daily

10 Most Important Question Daily

Geetanjali Academy- By Jagdish Takhar

 

हम प्रतिदिन 10 प्रश्नों का अभ्यास लगातार आप को प्रदान करेंगें ताकि परीक्षा तक हजारों अतिमहत्वपूर्ण सूचनाओं, तथ्यों ,योजनाओं का संकलन आप तक पहुँच सकें एवं आपकी परीक्षा की तैयारी को आप खुद जाँच सकें।

 

1. निम्नलिखित में से किस शिलालेख में चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद अंकित है ? 

(A) धाई बी.पीर की दरगाह का लेख। 

(B) शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह का लेख। 

(C) प्रतापगढ़ का ताम्रपत्र शिलालेख। 

(D) कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति। 

 

2. ब्राह्मणों पर लगने वाले टंकी नामक कर का उल्लेख मिलता है ? 

(A) आहड़ ताम्रपत्र 

(B) प्रतापगढ़ ताम्रपत्र 

(C) आमेर का लेख 

(D) रणकपुर प्रशस्ति 

 

3. सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए और सूचियों के नीचे दिये हुये कूट का प्रयोग करते हुये सही उत्तर का चयन कीजिए – 

सूची-I 

(प्रमुख राजवंष)

सूची-II

(सम्बन्धित सिक्के)

A. जैसलमेर 1. स्वरूपशाही
B. उदयपुर 2. विजयशाही
C. जोधपुर  3. झाडशाही
D. जयपुर  4. अखैशाही

 

कूट: 

(A) A -3, B -4, C-1, D-2 

(B) A -4, B – 1, C-2, D-3 

(C) A -2, B – 3, C-4, D-1 

(D) A -1, B – 3, C-4, D-2 

 

4.  जिन शिलालेखों में मात्र किसी शासक की उपलब्धियों की यषोगाथा होती है, उसे कहते है- 

(A) पुरालेख 

(B) शिलालेख 

(C) प्रशस्ति 

(D) स्मारक

 

5. कठमाना बही में शामिल किया जाता था – 

(A) राजा के शासकीय आदेशों की नकल। 

(B) राजा को प्राप्त होने वाले महत्वपूर्ण पत्रों की नकल। 

(C) राजकीय भवनों, महलों पर होने वाले खर्च का लेखा-जोखा। 

(D) भूमि के रिकॉर्डों सम्बन्धित बही। 

 

6. राजस्थान के इतिहास एवं संस्कृति में शामिल खरीता नामक शब्दावली का अर्थ है – 

(A) वह पत्र जो एक शासक द्वारा दूसरे शासक को भेजे जाते थे। 

(B) वह पत्र जो एक शासक द्वारा अपने अधीनस्थ कर्मचारियांे को भेजे जाते है। 

(C) मुगल दरबार द्वारा प्रकाशित दैनिक समाचारों का संग्रह। 

(D) शहजादों व बेगमों द्वारा लिखे गये पत्र। 

 

7. मुगल सम्राट द्वारा शाही वंश के लोगों या विदेशी शासकों के नाम भेजे जाने वाले पत्रों का कहा जाता था – 

(A) परवाना 

(B) निशान 

(C) अखबारात 

(D) रूक्के 

 

8. सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए और सूचियों के नीचे दिये हुये कूट का प्रयोग करते हुये सही उत्तर का चयन कीजिए – 

सूची-I (प्राचीनतम प्रदेश) सूची-II (राजधानी)
A. मरू  1. मथुरा
B. मांड  2. मध्यमिका
C. सूरसेन  3. जैसलमेर
D. शिवी  4. मंडौर

 

कूट:

(A) A -3, B-4, C-1, D-2 

(B) A -4, B-3, C-1, D-2

(C) A -2, B-3, C-4, D-1 

(D) A -1, B-3, C-4, D-2 

 

9. ऐसी कौनसी जगह है, जो कि मत्स्य, सूरसेन व कुरू प्रदेश में बँटा था – 

(A) भरतपुर 

(B) धौलपुर

(C) अलवर 

(D) करौली

 

10. चंद्रवर्ती नामक प्राचीन प्रदेश में शामिल वर्तमान अंचल है – 

(A) डूंगरपुर व बांसवाडा का क्षेत्र। 

(B) गंगानगर के आसपास के क्षेत्र। 

(C) झालावाड़ का क्षेत्र। 

(D) सिरोही व आबू के आसपास का क्षेत्र 

Answer Sheet 
Question 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
Answer A B B C C A D B C D

 

10 Most Important Question Daily

हम प्रतिदिन 10 प्रश्नों का अभ्यास लगातार आप को प्रदान करेंगें ताकि परीक्षा तक हजारों अतिमहत्वपूर्ण सूचनाओं, तथ्यों ,योजनाओं का संकलन आप तक पहुँच सकें एवं आपकी परीक्षा की तैयारी को आप खुद जाँच सकें।

 

1. योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग का गठन हुआ-

(A) 1 जनवरी,2015 को

(B) 5 जनवरी, 2015 को

(C) 28 जनवरी,2015 को

(D) 31 जनवरी, 2015 को

 

2. भारत में गरीबी के अनुमानों का आधार है?

(A) प्रति व्यक्ति आय

(B) प्रति व्यक्ति पोषण

(C) परिवार में से कोई नहीं

(D) उपयुक्त में से कोई नहीं

 

3.  कार्पाट का सबंध है-

(A) कम्प्यूटर हाईवेयर से

(B) निर्यात वृद्धि हेतु परामर्शी सेवा से

(C) बडे़ उद्योगों में प्रदूषण के नियंत्रण से

(D) ग्रामीण कल्याण कार्यक्रमों की सहायता व मूल्यांकन

 

4. एकीकृत बाल विकास सेवा योजना किसके द्वारा लागू की गई

(A) शिक्षा मंत्रालय

(B) एच.आर.डी. मंत्रालय

(C) वित्त मंत्रालय

(D) महिला एवं बाल-कल्याण मत्रांलय

 

5. निम्नलिखित में से कौन-सा एक असामनता घटाने का उपाय नहीं है?

(A) न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम

(B) अर्थव्यवस्था का उदारीकरण

(C) करारोपण

(D) भूमि-सुधार

 

6. कौन सा सुमेलित-

सूची I सूची II
(A) सर्व शिक्षा अभियान 1. 1987
(B) साक्षर भारत मिशन 2. 1988
(C) ऑपरेशन ब्लैक बौर्ड 3. 2001
(D) राष्ट्रीय साक्षरता मिशन 4. 2009

 

 कूट

A B C D
(a) 3 4 1 2
(b) 4 3 2 1
(c) 1 2 3 4
(d) 4 3 2 1

 

7. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना का लक्ष्य क्या है –

(A) लघु उद्यमियों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाना।

(B) निर्धन कृषकों को नगदी फ़सलों की कृषि के लिये ऋण उपलब्ध करना।

(C) वृद्ध व निःसहाय लोगों को पेंशन देना।

(D) कौशल विकास एवं रोज़गार सृजन में लगे स्वयंसेवी संगठनों का निधीकरण (फंडिंग) करना।

 

8. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का प्रमुख कार्य है –

(A) बैंक से अंतर्राष्ट्रीय जमा राशियों की व्यवस्था करना।

(B) सदस्य देशों की भुगतान संतुलन सम्बन्धी समस्याओं के समाधान में सहायता करना।

(C) विश्व बैंक की निजी क्षेत्रक उधारदाता शाखा के रूप में काम करना।

(D) विकासशील देशों के लिये निवेश ऋणों की वित्त व्यवस्था करना।

 

9. BRICS देशों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनो पर विचार कीजिए –

  1. वर्तमान मे, चीन का सकल घरेलू उत्पाद, अन्य तीनों देशों के सकल घरेलू उत्पाद के योग से  अधिक है।
  2. चीन की जनसंख्या किन्ही अन्य दो देशों  की जनसंख्या के योग से अधिक है।

उपयुक्त में से कौनसा/से कथन सही है/हैं –

(A) केवल 1 

(B) केवल 2

(C) 1 और 2 दोनों 

(D) न तो 1 और न ही 2

 

10. व्यापार करने की सुविधा का सूचकांक में भारत की रैंकिंग समाचार-पत्रों में कभी-कभी दिखती है।

निम्नलिखित में से किसने इस रैंकिंग की घोषणा की है

(A) आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD)

(B) विश्व आर्थिक मंच

(C) विश्व बैंक

(D) विश्व व्यापार संगठन (WTO)

 

Answer Sheet 
Question 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
Answer A C D D B A A B A C

ANCIENT HISTORY FINAL

ANCIENT HISTORY FINAL

Geetanjali Academy- By Jagdish Takhar

 

 

Chapter : 1

The Prehistoric Period

Topics :

  • Stone Age.
  • Paleolithic Age.
  • Mesolthic Age.
  • Neolithic Age.
  • Chalcolith Phase.
  • The prehistoric period in the history to makind can roughly be dated from 20000 BC to about 3500-2500 BC, when the first civilization began to take shape. The history of India is so exception. 
  • The first modern human beings or the Homo sapiens set foot on the Indian subcontinent anywhere between 2000 BC and 40000 B and they soon spread throughout a large part of the subcontinent, including peninsular India.
  • They continuously flooded the Indian subcontinent in waves after waves of migration from what is present-day Iran. These primitive people moved in groups of few ‘families’ and lived mainly on hunting and gathering.

 

Stone Age

  • The age when the prehisotoric man began to use stones for utilitarian purpose is termed as the Stone Age.
  • The stone age is divided into three broad divisions – Paleolithic age of the old stone age (from unknown till 8000 BC), Mesolithic Age of the middel some age. (8000 BC – 4000 BC) and the Neolithic Age or the new Stone Age (4000 BC – 2500 BC) on the basis of the specialization of the stone tools, which were made during that time.

 

Paleolithic Age (5,00,000 B.C. – 8000 BC)

  • The human living in the Paleolithic Age was essentially food gathers and depended on nature for food. The are of hunting and stalking wild animals individually and later in groups led to those people making stone weapons and tools.
  • First, cruedely carved out stones were used in hunting, but as the size of the groups began to increase and there was need for more food, these people began to make “specialized toos” by flaking stones, which were pointed on one end. These kinds of tools were generally used to kill small animals and for tearing flesh from the carcass if the hunter animals.
  • The basic technique of making these crude tools was by taking a stone and flanking its sides with a heavier stone. These tools were characteristic of the Paleolithic age and were very rough. By this time, human beigns had come to make and use fire.

 

Mesolithic Age (8000 B.C. – 6000 B.C.)

  • In the Mesolithic Age, the stone tools began to be made more pointed and sharp.
  • To ensure a life that had abundance of food and clothing, the stone tools began to appear in increasingly specialized way.
  • The simple handheld stone tools were now attached to thick branches from trees with rope made from animal skin and sinew. These tools are known as hadn axes, which could be flung at fast-moving animals from a distance.
  • They also produced crude stone tipped wooden spears, borers and burins.
  • This period also saw the domestication of animals and growing of wild varieties of crops. Because of farming small settlements began to take shape.
  • Archaeological excavations have unearthed Mesolithic sites in the Chotta Nagpur area of central India and the areas South of the Krishna river.
  • The famous Bhimbetka caves near Bhopal belong to the Mesolithic Age and are famous for their cave paintings. The exact date of these paintings is not certain, but some of the paintings are as old as 12,000 years.The prehistoric artist used natural white and red pigments in depicting the various themes. Which were close to his heart and sustenance.

 

Neolithic Age (6000 B.C. – 1000 B.C.)

  • The Neolithic Age (4000 BC – 2500 BC) or the New stone Age was the last phase of the Stone Age and is characterized by very finely flaked, small stone tools, also known as blades and burins. These stone blades cannot match their smooth surface and cutting edges. 
  • The Neolithic Age alos saw the domestication of cattle, horses and other farm animals, which were used for diary and meat proudcts. 
  • An important invention of this time was the making of the wheel.
  • The Neolithic Age quickly gave way to a number of small “Cultures” that were highly technical. These people used copper and bronze to make a range of utilitarian toos. This phase of peirod is termed as the Chalcolithic Age (1800 BC -1000 BC). A number of such sites have been found in the Chotta Nagpur plateau region, the upper Gangetic basin, Karnataka and near the banks of river Narmada.

 

Chalcolithic Phase :

  • Towards the end of the Neolithic period, metals like bronze and copper began to be used. This was the Chalcolithic phase (1800 BC to 1000 BC). 
  • Chalcolithic cultures extneded from the Chhotanagpur plateau to the upper Gangetic basin. 
  • Some of the sites of this era are Brahmgiri (near Mysore) and Navada Toli on the Narmada.

 

Chapter : 2

Indus Valley Civilization

 

Topics :

  • Discovery.
  • Origin of Civilization.
  • Town Planning.
  • Economic Life.
  • Harappan Script.
  • Decline of Indus Valley Civilization.
  • Important Sites of the Indus Valley Civilization.

 

Discovery

 

  • The Indus Valley civilization wasan ancient civilization thriving along the Indus river and the Ghaggar-Hakra river which is now in Pakistan and north -western India. Among other names for this civilization is the Harappan civilization in reference to the first excavated city of Harappa. 
  • An alternative term for the cultue is Saraswati-Sindhu civilization based on the fact that most of the Indus valley sites have been found along the Ghaggar – Hakra river. 
  • R. B. Dayaram Sahini first discovered Harappa (on Ravi) in 1921. R. D. Banerjee discovered Mohenjodaro or ‘Mound of the dead’ (on Indus) in 1922. Sir John Marshall played a crucial role in both these. 
  • Harappan civilization forms part of the proto history of India i.e. the script is there, but it cannot be deciphered and belongs to the Bronze Age.
  • The Indus valley civilization gradually developed to a full-fledged civilization which has been established through a continuous sequence of strata named as Pre-Harappan, Early Harappan, Mature Harappan and Late Harappan sages or phases.

 

There are two criteria for civilizaton is :

  1. It must have cities.
  2. It must have its own script.

 

Origin of Civiliation

As given by Western historians :

 

  • They considered this civilization as an offshoot of Mesopotamian or Byzantinian civilization and that it orignated suddenly.
  • Drawback of this theory is that there is no evidence supporting it.
  • Also Mesopotamian civilization’s findings were different than those of the Harappan civilization.

 

As given by Indian historians :

  • The civilization gradually developed and it had indigenous origin.
  • It evolved from the Neolithic period whee agriculture was practiced and surplus grains produced were traded.

 

Geographical Extent :

  • Covered parts of Punjab, Sindh, Baluchistan, Gujarat, Rajathan and some parts of Western UP. It extended from Manda in Jammu in the north to Daimabad in the south and from Alamgirpur in western UP to Sutkagendor in Baluchistan in the west.
  • Major sites is Pakistan are Harappa (on river Ravi in west Panjab), Mohenjodaro (on Indus), Chanhu-Daro (Sindi), etc. In India the major sits ae Lothal, Rangpur and Surkotda (Gujarat), Kalibangan (Rajasthan), Banawali (Hissar) and Alamgirpur (western UP).
  • The largest and the latest site in India is Dholavira in Guajarat. Dr. J. P. Joshi and Dr. R. S. Bisht were involved in it

 

Sites of the Civilization

  • More than 100 sites belonging to this civilization have been excavated.
  • According to radio-carbon dating, it spread from the year 2500-1750 B.C.
  • Copper, bronze, Silver and gold were known but not iron.

 

Town Planning of Harappan Civilization

  • Towns were planned in a chessboard pattern. 
  • Roads were well cut dividing the town into large rectangular or square blocks.
  • Flanking the streets, lanes and by-lanes were well-planned houses.
  • The city was divided into 2 parts –
  1. Citadel – was used by ruling class (Granary, Great bath etc. were part of Citadel
  2. Lower Town – was used by ruled class.
  • The houses were built of burnt bricks and were both single and double storyed. Elsewhere in the contemporary world mud bricks were used.
  • The doors and windows were at the rear of the house instead of being located in front and the doors were at the corner of the walls.
  • The streets were straight and cut each other at 90 deg.
  • The drainage system was fully covered which was below the city. It wa the most advanced system in the contemporary world.
  • Lamp posts at intervals indicate the exitence of street lighting.

 

Economic Life

Agriculture :

  • The Indus people sowed seeds in the flood plains in November, when the flood water receded, and reaped their harvest of wheat and barley in April.
  • The people grew wheat, barley, rail, peas, sesamum, mustard, rice (in Lothal), cotton, dates, melon, etc. The Indus people were the first to produce cotton in the world.
  • In Kalibangan, fields were ploughed with wooden ploughs.
  • Domestication of animals was done on a large scale. Besides the cattle, sheep, pigs, camels, cats and dogs were domesticated. Horses weren’t in regular use but elephant was. Remains of horse at surkotda and dogs with men in graves in Ropar have been discovered.
  • Prduced sufficient to feed themselves. There was no exchange of food grains/ export or import.
  • Food grains were stored in granaries. E.g. In Harappa and Mohenjo-Daro.

 

Trade and Commerce

  • Well-knit external and internal trade. There was no metalic money in circulation and trade was carried through Barter system.
  • Weights and measures of accuracy existed in Harappan culture (found at Lothal). The weights were made fo limestone, steatite, etc. and were generally cubical in shape.
  • 16 was the unit of measurement (16, 64, 160 and 320).
  • Flint tool-work, shell-work, bangle-making (famous in Kalibangan), etc. were practiced. Raw materials for these came from different surces; gold from north Karanataka, silver and Lapis Lazuli from Afghanistan and Iran, copper from Khetri and Baluchistan, etc.
  • Bead making factories existed in Chanudaro and Lothal. They were items of export.
  • A dockyard has been discovered at Lothal. Rangpur, Somnath and Balakot functioned as seaports. Sutkagendor and Sutakakoh functioned as outlets.
  • The inland transport was carried out by bullock carts.
  • Every merchant or mercantile family probably had a seal bearing an emblem often of a religious character, and a name or brief description, on one side. The standard Harappa seal was a square or oblong plaque made of steatite stone. The primary purpose of the seal was probably to mark the ownership of propery, but they may have also served as amulets.
  • The Mesopotamiam records from about 2350 B.C. onwards refer to trade relations with Meluhha, the ancient name of the Indus region. Harappan seais and other material have been found at Mesopotamia. There were also instance or trade with Sumer, Babylonia, Egypt etc.

 

Art and Craft

  • The Harappan culture belongs to the Bronze Age and bronze was made by mixing tin and copper, Tools were mostly made of copper and bronze. For making bronze, copper was obtained from Khetri in Rajasthan and from Baluchistan and tin from Afghanistan.
  • The people of this culture were not acquainted with iron at all.
  • The Indus valley people had achieved a great skill in drawing the figures of men, animals and various other objects of nature and were fully conversant with the art of craving with figures on ivory, soap-stone, leather, metal and wood proving their artstic acumen.
  • Cotton fabrics were quite common and woolens were popular in winter.
  • One male figure or a statue shows that generally two garments were worn and the female dress was more or less like that of a male.
  • The Indus valley people were very fond of ornaments (of gold, silver, ivory, copper, bronze and precious stones) and dressing up. Ornaments were worn by both men and women, rich or poor. Women wore heavy bangles in profusion, large necklaces, ear-rings, bracelets, figure- rings,girdles, nose-studs and anklets. The Harappans were expert bead makers.
  • Pottery was done in this civilization. It was of 2 types –

Simple :

  • Simple pottery included glasses, bowls and dishes which were mainly cirucular, square and cylindrical in shape.

Black & Red :

  • Articles made had black backgrounds with red designs. Seals of this period sugest that they used wooden carts. 
  • They also knew the art of ship building. 
  • They had very well developed system of both internal and external trade. 

 

Harappan Seals :

  • The Indus Valley Pottery was red or black pottery and the people indulged in dice games, their favorite pastime being gambling. 
  • The red sandstone torso of a man is particularly impressive for its realism.
  • The most impressive of the figurines is the bronze image of a dancing girl (identified as a devdassi) found at Mohenjodaro.
  • Maximum number of seals discovered is made of steatite with the unicorn symbol being discovered on the maximum number of seals.
  • For their children, the Harappans made cattle-toys with moveable heads, model monkeys which could slide down a string, little toy carts and whistles shapped like birds all of terracotta.

 

Religious Life :

  • The main object of worship was the Mother Goddess or Shakti. But the upper classes preferred a God – nude with two horns, much similar to Pashupati Shiva. Represented on the seal is a figure with three horned heads in a yogic posture, surrounded by an elephant, a tiger and a rhinoceros and below his throne is a buffalo. Near his feet are two deer. Pashupatinath represented the male deity.
  • The elaborate bathing arrangement marking the ciry f Mohenjodaro would suggest that regligious
  • purification by bath formed a feature of the Indus Valley people.
  • Phallus (lingam) and yoni worship was also prevalent.
  • Many trees (pepal), animals (bull), birds (dove, pigeon) and stones were worshipped. Unicorns were also worshipped. However no temple has been found though idolatry was practiced.
  • At Kalibangan and Lothal fire altars have been found.
  • Although no definite proof is available with regard to disposal of the dead, probably three methods of disposing the dead – complete burial (laid towards north) burial atter exposure of the body to birds and beasts, and cremation followed by burial of the ashes. The discovery of cinerary urns and jars, globlets or vessels with ashes, bones or charcoal may however suggest that during the flourishing period of the Indus valley culture, the third method was generally practiced. In Harappa there is one place where evidence of coffin burial is there.
  • The people probably believed in ghosts and spirits as amulets were worn.
  • Dead bodies were placed in the north-south orentation.
  • In appears from excavations that the people of this culture were well-versed with surgery. For example, some evidences have come from both Kalibangan and Lothal hinting at head surgery. Otherwise, they used to take recourse to black magic, amulets etc.

 

Harappan Script :

  • Harappan scripts were found on its seals and it is pictographic.
  • The script has not been deciphered so far, but overlaps of letters show that it was written from right to left in the first line and left to right in the second line. This style is called ‘Boustrophedon’.
  • Harappan script is closest to Dravidian script of Munda tribe of Jharkhand.

 

Decline of Indus Valley Civilization :

  • The Harappan culture lasted for aound 1000 years.
  • The invasion of the Aryans, recurrent floods (7 floods), social breakup of Harappans, Earthquakes, successive alteration in the course of the river Indus and the subsequent drying up of the areas in and around the major cities etc are listed as possible causes for the decline of the Indus Valley Civilization.
  • There are multiple theories proposed by various scholars which explain the decline of this civilization.

 

Theory by Mortimer Wheeler :

  • This theory suggested that attack by the Aryans was responsible for the decline.
  • The main drawback of this theory was that it is confirmed that Aryans came to India around 1500 BC whereas Harappan civilization ended by 1750 BC.

 

Theory by Riggs :

  • He proposed that the civilization declined due to earthquake which was followed by floods. 
  • Evidences of floods have been found in Mohenjo-Daro.
  • The main drawback of this theory was that this theory is confined only to certain regions of Harappan civilization and not to all the places where the civilization flourished.

 

Theory by Fariservis :

  • He proposed that ecological imbalance was responsible for decline of the civilization but failed to provide sastisfactory data to prove his theory.

 

Theory by Das and Sood :

  • They proposed that change in course of Indus river was the reason for decline of the civilization and as most of the cities were on the banks of river Indus, the civilization was destroyed.

 

Theory by Malik and Pochal :

  • They argued that Harappan civilization was not completely destroyed and there was a link between Harappan and post-Harappan culture but the uniformity of the civilization ended.

 

Important Sites of the Indus Valley Civilization :

  1. Harappa : Harappa is situated in Montogomery district of Punjab (Pakistan). Excavations at the site have led to the following specific findings –
  • Two rows of six granaries with brick platforms; 12 granaries together had the same area as the Great Granary at Mohenjo-Daro.
  • Woriking floors, consisting of rown of cirucular brick platforms lay to the south of granaries and were meant for threshing grain.
  • Evidence of coffin bruial and cemetery ‘H’ culture.
  • The dead were buried in the southern portion of the fortified area called cemetery R-37.
  • Single room barracks just below the walls of the citadels for the laborers and factory workers.
  • Evidence of direct trade and interaction with Mesopotamia.
  • Discovery of a red sandstone male torso and stone symbols of female genitals.
  • Almost 36% of the total seals excavated in the Indus Civilization are excavated from Harappa alone.
  • Other discoveries include Bronze image of an ‘ekka (vehicle) and a seat with the representation of the sign of ‘swastika’ on it.
  1. Mohenjo-daro : Also known as the ‘Mound of the dead’, it lies in Larkana district of Sind (Pakistan). Some of the specific findings during the excavations of Mohen-Jodaro include :

 

Great Bath –

  • The Great Bath of Mohenjo-Daro is called as earliest public water tank of the ancient world. 
  • It was a huge bath made of brunt/baked bricks.
  • It was probably used for public ceremonies and was situated in a public place.
  • There were rooms around the bath for changing clothes and wells to pour water.

 

Bronze statue of a Dancing girl –

  • This shows that use of Bronze (an alloy) was known to the people thus this age is alos known as Bronze Age.

 

The Great Granary –

  • Was used to store excess grains.
  • This also proves the existence of a civic administration which collected surplus grains and distributed it later.
  • There was possibly a taxation system.
  • There are evidence of sue of cotton.
  • Superficial evidence of a horse or an ass.
  • A pot-stone fragment of Mesopotamian origin.
  • Evidence of direct trade contact with Mesopotamia.
  • Evidence of violent death of some of the inhabitants (discovery of human skeletons put together).
  • Largest number of seals are found here. 
  • Seals were made of aesthetite which is a form of clay.
  • These scale were cirucular, square and cylindrical in shape.
  • Seals were used to depict their script.
  • Seals were also used as a mark of authority and a medium of exchange.
  • A seal representing Mother Goddess with a plant growing from her womb and a woman to be sacrificed by a man with a knife in his hand.
  • A bearded man.
  • A seal with a picture suggesting Pashupati Mahadev.
  • The ciry is alos an extreme example of conservatism, as deposit having been flooded almost nine times, they never tried to shift to a safer place. Rather, they came back to the original site whenever the water table receded. Nor did they ever try to build strong embankments to protect themselves from floods.

 

  1. Alamgirpur :
  • The famous Harappan site is considered the eastern boundary of the Indus culture. It developed during the late-Harappan culture.
  • The site is remarkable for providing the impression of cloth on a trough.

 

  1. Kalibangan : Kalibangan was an important Harappan city. The word Kalibangan means ‘black bangles’. A poughed field was the most

important discovery of the early excavations. Later excavations at Kalibangan made the following specific discoveries –

  • It was situated on the banks of river Ghagger.
  • Evidence of ploughing has been found at his site.
  • Evidence of Pre-Harapan culture is also found here.
  • A wooden furrow.
  • Seven fire altas in a row on a platform suggesting the practice of the cult of sacrifice.
  • Remains of a massive brick wall around both the citadel and the lower town (the second Harappan site after Lothal to have the lower town also walled.
  • Bones of a camel.The skull of a child found suffering from hydrocephalus.

 

  • Evidence of two types of burials –

(1) Burials in a rectangular grave and

(2) Burials in a cicular grave.

 

  1. Kot-diji :
  • Kot-Diji is a Pre-Harappan site.
  • Houses were made of stone.
  • The remains of Kot-Diji suggest that the city existed in the first half of the third milennium B.C. Excavation at the site suggest that the city was destructed by force.

 

  1. Lothal : Lothal was an important trade centre of the Harappan culture. The town planning in Lothal was different from that of Harappan and Mohenjodaro. The city was divided into six sections. Each section was built on a wide platform of unripe bricks. Each platform was separated by a road with width ranging from 12 feet to 20 feet. Excavations at Lothal led to some specific discoveries which include –
  • It was on the banks of river Bhogwa in Gujarat (ancient name of Sabarmati river).
  • Remains of rice husk (the only other Harappan city where the rice husk has been found is Rangpur near Ahmedabad).
  • An artificial dock yard.
  • Evidence of a horse fro a doubtful terracotta figurine.
  • Impressions of cloth on some of the seals.
  • Evidence of direct trade contact with Mesopotamia.
  • House with entrances on the main street (the houses of all other Harappan cities had side entries).
  • A ship designed on a seal.
  • A terracotta ship.
  • A painting on a jar resembling the story of the ‘cunning fox’ and the ‘thirsty crow’ narrated in Panchatantra.
  • Evidence of double brial (burying a male and a female in a single grave) found in three graves whereas in Kalibangan one such grave has been found.
  • Evidence of games similar to modern day chess.
  • An instrument for measuring 180, 90, 45 degree angles (the instrument points to modern day compass).

 

  1. Amri :
  • It is a Pre-Harappan settlement. However t lacks the forification plan of the Pre-Harappan phase.
  • It gives the impression of existnce of transitional culture between pre and post Harappan culture.
  • Important findings at Amri include the actual remains of rhinoceros, traces of Jhangar culture in late or declining Harappan phase and r altars.

 

  1. Chanhu-daro :
  • Excavations at Chanhu-daro have revealed three different cultural layers from lowest to the top being Indus culture and the Pre-Harappan Jhukar culture and the Jhangar culture.
  • It provides evidences about different Harappan factories. These factories produced seals, toys and bone implements.
  • The evidence of bead maker’s shops.
  • It was the only Harappan city without a citadel.
  • Some remarkable findings at Chanhu-daro include bronze figures of bullock cart and ekkas, a small pot suggesting an inkwell, footprints of an elephant and a dog chasing a cat.

 

  1. Ropar :
  • Ropar is a Harappan site from where remains of Pre-Harappan and Harappan cultures have been found.
  • Buildings at Ropar were made mainly of stone and soil.
  • Important findings at the site include pottery, ornaments, copper axes, terracotta blades, one inscribed steatite seal with typical Indus pictographs, several burials interred in oval pits and a rectangular mud brick chamber.
  • There is also an evidence of burying a dog below the human brial.

 

  1. Banawali :
  • Situated in Hissar district of Haryana, Banawali has provided tow phases of culture during its excavations : the Pre-Harappan (Phase I) and the Harappan (Phase II).
  • The roads were not always straight nor did they cut at right angles.
  • It also lacked another important feature of the Harappan civilization – a systemetic drainage system.
  • High quality barley has been found.
  • Other importantn material remians include crramics, steatite seal and a few terracotta sealing with typical Indus script, ear rings shaped like leaves of a people tree and terracotta bangles.

 

  1. Surkotda :
  • Situated in Kutch (Bhuj) district of Gujarat and excavated by J.P. Joshi in 1972, Surkotda was an important fortified Harappan settlement.
  • This site is important because it provides the first actual remains of horse bones.
  • A cemetery with four port burials with some human bones has alos been found.
  • A grave has been found in association with a big rock (megalithic burial), a rare finding of the Harappan culture.

 

  1. Sutkagendor :
  • Sutkagendor situated in Sindh (Pakistan) was an important coastal town of the Indus civilization.
  • Excavations of Sutkagendor have revealed a twofold division of the township: the Citadel and the Lower City, it is said that Sutkagendor was originally a port which later cut off from the sea due to coastal uplift.

 

Chapter : 3

The Vedic Civilization

Topics :

  • Early Vedic or Rigvedic Period.
  • Later Vedic Period/Painted Grey Ware Phase.
  • The Vedic Literature.

Vedic Civilization can be divided into two phases –

  • Early Vedic Civilization (1500 BC – 1000 BC).
  • Later Vedic Civilization (1000 BC – 600 BC).
  • Different theories exist regarding the original place of the Aryans.
  • The Central Asia Theory given by Max Muller is the most accepted one. It states that the Aryans were semi-nimadic pastoral people around the Caspian Sea in Central Asia.
  • The entered India probably through the Khyber Pass (in the Hindukush Mountains) around 1500 BC.
  • The holy book of Iran ‘Zend Avesta’ indicated entry of Aryans to India via Iran.
  • The Vedic texts may be divided into two broad chronological strata: the Early Vedic (1500 – 1000 B.C.) when most of the hymns of the Rig Veda were composed and the Later Vedic (1000-600 B.C.) when the remaining three Vedas and their branches were composed.

 

Early Vedic or Rigvedic Period

(1500 – 1000 B.C.)

  • The Rigveda is a collection of prayers offered to Agni, Indra, Varuna and other gods by various families of poets and sages.
  • Rigveda mentions about 33 gods that time who were divided into three categories viz., heavenly gods, atmosphere god and earthly gods. Varuna, Surya, Aditi, Savitri were heavenly gods. India, Rudra, Maruts etc were atmospheric gods. Agni, Soma and Prithvi were earth gods.
  • Four rivers of Afghanistan are mentioned : Kubha, Krumu, Gomati (Gomal), Suvastu (Swat).
7 Rivers mentioned in Rig Veda
Ancient Name Present Name
Saraswati Ghagghar
Kubha  Kabo
Parushni  Ravi
Askini Chenab
Vitasta Jhelum
Sutudri Sutlej
Vipasha Beas

 

  • It consists of ten Mandala or books of which Book II to VII is the earliest portion. Book I and X seem to have been the latest additions.
  • The Rig Veda has many things in common with Avesta, which is the oldest text in the Iranian language. The two texts use the same names for several Gods and even for social classes.
  • The history of the later Vedic period is based mainly on the Vedic texts which were complied after the age of the Rig Veda. These include the three Vedas – Samveda, Yajurveda, Atharveda and the Brahamanas, the Aranyakas, the Upnishads and the Sutras.
  • The collection of the Vedic hymns or mantras were known as Samhitas.
  • The Yajurveda contains not only the hymns but also the rituals which have to accompany their recitation.
  • The Atharvaveda contains charms and spells to ward off evils and diseases.
  • All the Vedic literature is together called the Shruti and they include apart from the four Vedas, the Brahamanas, the Aranyakas and the Upnishads.
  • The Brahamanas are a series of texts that followed the Vedic samhitas. Each Veda has several brahamanas attached to it. These are ritual texts.

 

Veda Brahamanas
Rigveda Aitareya, Kaushitaki (Composed By hotri Priest)
Samveda Jamini, Tandyamasha, Panchavis, Chhandogya
Yajurveda Satpath Brahaman (Composed By Adhvaryu Priest.)
Atharvaveda Gopatha Brahamana.

 

  • The Brahamanas throw light on the socio-political life of the Aryans and form of sort of explantation of their religion, especially sacrifice. They also contain ritualistic formulae for the respective Vedas and its priest.
  • The Aranyakas are forest books that are treaties on mysticism and philosophy and are concluding portion of the Brahamanans. They explain the metaphysics and symbolism of sacrifice. They lay emphasis not on sacrifice but on meditation. Their stress is on moral virtues. They form a bridge between the way of the works (karma-marga, advocated by the Upanishad). Some important Aranyakas are Aitreya Aranyaka, Kaushitaki Aranyaka and Taittriya Aranyaka.
  • The Upanishads contain philosophical speculations. They are generally called Vedanta which means the end of the Vedas. These texts were complied around 600 B.C. and citicized the rituals and laid stress on the values of right belief and knowledge. They emphasized that the knowledge of the self and the atma should be acquired and the relation of atma with Brahma should be properly understood.

 

Upanisads
  • Ishopanishat
  • Kenopanishat
  • Kathopanishat
  • Parshnopanishat
  • Mandukopanishat
  • Koushikopanishat
  • Thaittariyopanisat
  • Chhandogyopanishat
  • Brihadaranyaopanishat

 

  • The Smriti are the auxiliary treatises of the Vedas or their supplements. It refers to that literature that has been passed on from one generation to the other. Manusmriti written by Manu is the oldest of all the Smritis.
  • The Puranas are 18 in number, of which the Bhagawat Purana and Vishnu Purana are the most important.

 

Geographical Spread :

  • The early Aryans settled in eastern Afghanistan, modern Pakistan, Punjab and parts of western U.P. The whole region in which the Aryans first settled in India is called the Land of seven Rivers or Sapta Sindhava (the Indus and the five tribunaries and the Saraswati).

 

Political Organization :

  • The political organization was of monarchial form.
  • The tribe was known as Jan and its king as Rajan. His office was not hereditary and was selected among the clan’s men. The Rajan was not an absolute monarch for the government of the tribe was in part the responsibility of the tribal councils like sabhas, samitis, gana and vidhata.
  • Women attended gana and Vidhata only.
  • Many clans (Vish) formed a tribe. The basic social unit was the Kula or the family and the Kulapa was the head of the family.
  • The kind was assisted by a number of officers of which Purohita was the most important. Next important functionary was the Senani (leader of the army) even though there was no regular or standing army. The Aryans succeded everywhere because they possessed chariots driven by horses.
  • There was no regular revenue system and the kingdom was maintained by voluntary tribute (Bali) of his subjects and booty won in battle.

 

Social Life :

  • The term Varna was used for color, the Aryans being fair and the Dasas dark.
  • Family was the basic unit of society and was patriarchal in nature.
  • Women enjoyed equal power with me. Marriage was usually monogamous and indissoluble but there are a few instances of polyandry, levirate and widow marriage.
  • Thee are no examples of child-marriage. Both dowry and bridge price were recognized during the Early Vedic period.
  • The word ‘Arya’ came to refere to any person who was respected.
  • Aryans were fond of soma, sura, food and dresses.
  • Education was imparted orally.
  • The Aryans loved music and played the flute and harp. There are reference to singing and dancing girls. People alos delighted in gambling. They enjoyed chariot racing. Both men and women wore ornaments.

 

Economy :

  • Aryans followed a mixed economy – pastoral and agricultural – in which cattle played a predominant part. 
  • Most of their wars were fought for cow (most important form of wealth) Cattle were in fact a sort of currency and values were reckoned in heads of cattle (man’s life was equivalent to that of 100 cows), but they were not held sacred at the time. The horse was almost as important as the cow.
  • Coins of gold were also used (Nishka, Krishnal and Satmana).
  • Gavyuti was used as a measure of distance and Godhuli as a measure of time.
  • Reference to money lending first occurs in Shatpatha Brhamana, which described a usurer as Kusidin.
  • Lived in fortified mud settlements.
  • Physicians were then called ‘Bhishakas’.
  • The staple crop was ‘yava’ which meant barely.

 

Religion :

  • The Aryans personified the natural forces and looked upon them as living beings.
  • The most important divinity was Indra who played the role of warlord (break of forts Purandar and was also associated with storms and thunder).
  • The second position was held by Agni (firegod). He is considered an intermediary between gods and men.
  • Varuna occupied the third position. He personified water and was supposed to uphold the natural order (Rta). He was ethically the highest of all Rigvedic gods.
  • Soma was considered to be the god of plants. Maruts personified the storms.
  • Some female deities are also mentioned like Aditi and Usha who represented the appearance of dawn.
  • Didn’t believe in erecting temples or idol worship. Worshipped in opne air through yajnas.
  • Aryans didn’t worship animals – only gods in man’s form.
  • The asvamedha sacrifice concluded with the sacrifice of 21 sterile cows.
  • From Brihadaranyaka Upanishad we get the first exposition of the doctrine of gransmigration of soul.

 

Later Vedic Period/Painted Grey Ware Phase (1000 – 600 B.C.)

Geographical Spread :

  • During this phase, the Aryans expanded from Punjab over the whole of western U.P. covered by the Ganga-Yamuna doab.
  • In Later Vedic peirod, many great cities like Videha, Kaushambhi, Kasi, Ayodhya, Hastinapur and Indraprastha etc. had sprung up.

 

Political Organization :

  • Tiny tribal settlement were replaced by strong kingdoms.
  • The earliest legend on the origin of kingship occurs in the Aitareya Brahmana.
  • They established powerful kingdoms as Kuru, Panchala, Kosala, Magadha, Kasi and Anga.
  • Powers of the king who was called the Samrat increased.
  • Women were no longer permitted to attend assemblies and the term ‘Rashtra’ indicating territory first appeared in this period.
  • The sabha and the Samiti were now hot powerful enough to check the power of the kings. The office of the morarch had now become more or less hereditary.
  • A regular army was maintained for the protection of the kingdom.
  • Priest (Purohita), Commander in chief (Senapati), Charioteer (Suta), Treasurer (Sangrihita), Tax collector (Bhagdugha), Chief queen (Mahisi) and the Great companion (Aksavapa) were some common assitant to king.

 

Social Life :

  • The four fold division of society became clear initially based on occupation which later became hereditary; Brahmins (priests), Kashtriyas (warriors), Vaishyas (Agriculturists, cattle-rearers and traders) and shudras (servers of the upper three).
  • The institution of gotra appeared in this age first time Gotra signified descent from common ancestors.
  • Chariot racing was the main sport and gambling the main pastime.
  • Woman gradually losing her position of importance in the religious and social sphere. The king and the nobility had now begun to marry more than one wife and the birth of a daughter was now regarded as source of misery.
  • The re-marriage of a widow was prevalent and the practices of sati, child-marriage, purdah and child infanticide were not heard of.
  • Many new castes were born, leading to the complexities of the caste system.
  • The life of an ordinary man was divided into four stages popularly known as the four Ashramas.

 

Types of Marriages
Marriage Feature
Brahma Marriage of a duly dowered girl to a man of the same class.
Daiva Marriage in which the father gave his daughter to a sacrificial priest as part of his fess.
Arsa Marriage in which a token bride price of a cow and a bull was paid to the daughter’s father.
Prajapatya Marriage in which the father gave the girl without any dowry and without demanding bride price.
Gandharva Marriage often clandestine by the consent of the two parties.
Asura Marriage by purchase.
Rakshasa Marriage by capture.
Paishacha Marriage involving the seduction of a girl while sleeping . etc.
Anuloma Marriage Marriage of higher varna man with a lower varna woman.
Pratiloma Marriage Marriage of a lower varna man with a higher varna woman,

 

Vedic Rituals
Ritual Feature
Asvamedha A king performed this sacrifice which meant control over the area in which the royal horse ran uninterrupted. The ceremony lasted for three days at the end of which the horse sacrifice was performed. The Asvamedha sacrifice concluded with the sacrifice of 21 sterile cows.
Vajapeva A Chariot race was performed in which the king must win the race (it was fixed). It was meant to re-establish the supremacy of the king over his people.
Rajasuya A sacrifice ceremony which conferred supreme power on the king.
Ratnahavimsi A part of Rajasuya ceremony where different royal officials (ratnins) invoked different gods and goddesses.
Upanayana An initiation ceremony to procure a male child.
Pumsayam A ceremony to procure a male child.
Garbhadhana A ceremony to promote conception in women.
Culakarma A ceremony also known tonsure performed for boys in their third year.
Semonannayam A ceremony to ensure the safety of the child in the womb.
Jatkarma A birth ceremony performed before the cutting of the umbilical cord.

 

Pottery :

  • The later Vedic people used four types of pottery: black and red ware, black-slipped ware, painted grey ware and red ware.
  • Red ware for commners was most popular and has been found almost all over western U.P. However, the most distinctive pottery of the period is known as Painted Grey Ware which comprised bowls and dishes, used either for rituals or for eating by upper classes.

 

Economy :

  • Krishnala berry was unit of weight and led to the use of coinage. The Nishka replaced cow as a unit of value.
  • Rigveda mentions only gold and copper or bronze but Later Vedic texts mention tin, lead, silver and iron.
  • In addition to the cultivation of barely, wheat and rice, many new grains such as sesame (Tila) and beans began to be cultivated.

 

Religion :

  • Rituals and formulae became prominent in the cult of sacrifice.
  • Indra, Varuna, Surya and Agni lost their importance. Prajapati (the creator) became supreme.Vishnu came to be conceived as the preserver and protector of the people.
  • Pushan responsible for well being of the cattle became the God of the Shudras.

 

The Vedic Literature

The Vedas :

  • The word ‘veda’ comes from the root ‘vidi’ signifying knowledge.
  • Vedas are also known as ‘Shruti’ (to hear) as they were passed from generation through verbal transmission.
  • They are four in all – Rigveda, Samaveda, Yajurveda and Atharveda. Each veda is further subdivided into Samhitas.

 

Rigveda :

  • Oldest religious text in the world. Must have been composed around 1700 B.C.
  • A collection of hymns. Were recited at the time of sacrificial rites and other rituals with utmost devotion.
  • Contains 1028 hymns and is divided into 10 mandals.
  • II to VIII are the earliest mandals, each of which is ascribed to a particular family of seers (rishis) – Gritsamada, Visvamitra, Vamadeva, Arti, Bhardwaj and Vashistha. VII Mandals is ascribed to the Kanvas and Angiras. IX is the complitation of Soma hymns. I and X are considered the later additions.
  • The X Mandals contains the famous Purushukta which explains that the four varnas (Brahmans, Kshatriya, Vaishya and Shudra) were born from the mouth arms, thighs and feet of the creator, Brahma.
  • Words in Rig Veda : Om (1028 times), Jan (275 times), etc. 250 hymns are dedicated to Indra while 200 are dedicated to Agni.
  • The third Mandala contains the Gayatri Mantra.
  • Saraswati is the deity river in Rig Veda and is referred to 8 times while the Sindhu/Idus is referred to 18 times.

 

Samveda :

  • Derived from the root ‘Saman’ i.e. ‘melody’. It is ca collection of melodies.
  • It has 1603 verses but except 99 all the rest have been borrowed from Rig Veda.
  • Contains ‘Dhripada Raga’ which is the oldest of the ragas.

 

Yajurveda :

  • Deals with the procedure for the performance of sacrifices.

 

Atharvaveda :

  • Entirely different from three other Vedas.
  • Divided into 20 Kandas (books) and has 711 hymns – mostly dealing with magic (along with personal problems of people).
  • Atharvaveda refers to king as protector of Brahmanas and eater of people.

 

The Brahmans :

  • They explain the hymns of the Vedas in an orthodox manner.
  • Each Veda has several Brahmans attached to it.
  • The most important is ‘Satpatha Brahmana’ attached to Yajurveda which is the most exhaustive and important of all. It recommends ‘One Hundred Sacred Paths’.

 

The Aranyakas :

  • Called ‘forest books’, written mainly by the hermits living in the jungles for their pupils.
  • These are the concluding part of the Brahmanas.
  • Deals with mysticism and philosophy. Opposed to sacrifice and emphasized meditation.
  • Form a bridge between ‘way of work’ (Karma Marg) which was the sole concern of the Upanishads and the ‘Way of Knowledge’ (Gyan Marg) which the Brahmanas advocated.

 

The Upanishads :

  • The word means ‘to sit down near someone’ and denotes a student sitting near his guru to learn.
  • Called Vedanta (the end of the Vedas) firstly because they denote the last phase of the Vedic period and secondly because they reveal the final aim of the Vedas.
  • They are the main source of Indian Philosphy.
  • There are 108 Upnishads.
  • They also condemn the ceremonies and the sacrifices.They discuss the various theories of creation of the universe and define the doctrine of action (Karma).
  • Mandukyu Upanishad is the source of ‘Satya Mevy Jayate’.

 

Smritis :

  • Explain rules and regulations in the Vedic life.
  • Main Smritis are Manusmriti, Naradsmriti, Yagyavalkyasmriti and Parasharsmriti.
  • Dharmasutras contain social laws popularly known as ‘Smriti’. Earliest Dharmasutra is the Manusmriti which is alos called Manav Darshan.

 

Vedangas :

  • Six Vedangas are Shikha which deals with pronunciation, Kalpa which deals with rituals, Vyakaran which deals with grammer, Nirukta which deals with etymology or phonetics, Chhanda which deals with metrics and Jyotisha which deals with astronomy.

 

Epics :

  • The period that lies between the Rigvedic period and the rise of Buddhism in India i.e., 2000 to 700 B.C. has been disignated by some as the Later Vedic Period and by some as Epic Age.
  • The Mahabharata, attributed to Vyasa is considered older than the Ramayana and describes the period about 1400 B.C. compiled from the tenth century B.C. to the fourth century A.D. It is divided into eighteen books with the Harivansa attached to it at the end.
  • The Ramayana attributed to Valmiki has 24,000 verses. Its composition started in the fifth century B.C. and passes through five stages; the fifth stage ending in the 12th century A.D.

 

Six Schools of Indian Philosophy

Samkya : Sage Kapila.

Yoga : Patanjali.

Vaisheshika : Kannada.

Nyaya : Akshapada (Gautama).

Vedanta : Gaudapada and Shankarcharya.

Mimamsa : Jaimini.

 

Chapter : 4

Buddhism and Jainism

Topics :

  • Buddhism.
  • Jainism.

 

Buddhism

  • Buddhism is the middle way of wisdom and compassion. It stands for three pillars –

(1) Buddha – its founder.

(2) Dhamma – his teachings.

(3) Sangha – Order of Buddhist monks and nuns.

 

Five Great Events of Buddha’s Life and their Symbols :

  • Birth : Lotus and Bull.
  • Great renunciation : Horse.
  • Nirvana : Bodhi tree.
  • First Sermon – Dharmchakra or wheel.
  • Parinirvana or death – Stupa.

 

Buddha :

  • Also known as Sakyamuni (the sage of the Sakyas), Jina (the Victorious) or Tathagata (one who has reached the truth).
  • Born in 563 B .C. on the Vaishakha Poornima Day at Lumbini (near Kapilvastu) in Nepal.
  • His father Suddhodhana was the Saka ruler.
  • His mother (Mahamaya of Kosala dynasty) died after 7 days of his birth and he was bought up by his stepmother Gautami.
  • Buddha was married at 16 to Yashodhara and enjoyed married life for 13 years and had a son named Rahul.
  • After seeing an old man, a sick man, a corpse and an ascetic, he decided to become a wanderer.
  • He left his place at 29 (with Channa, the Charioteer and his favourite horse, Kanthka) in search of truth (also called “Mahabhinishkramana” or the Great renueciation) and wandered for 6 years.
  • He first meditated with Alaka Kaiama. But he was not convinced that man could obtain liberation from sorrow by mental discipline and knowledge. His next teacher was Udarka Ramaputra. He then joined forces with five ascetic – Kondana, Vappa, Bhadiya, Mahanama and Assagi, who were practicing the most rigorous self-mortification in the hope of wearing away their karma and obtaining final bliss.
  • After six years he felt that his fasts and penance had been useless so he abandoned these things and the firve desciples also left him.
  • He attained Nirvana or Enlightenment at 35 at Uruvela, Gaya in Magdha (Bihar) under the Pipal tree.
  • He delivered the first sermon at Sarnath at Deer Park where his five disciples had settled. His first sermon is called “Dharmachakrapravartan” or ‘Turning of the Wheel of Law’
  • He attained Mahaparinirvana at Kushinagar in 483 B.C. at the age of 80 in the Malla republic. His death is said to have been caused by a meal of pork (sukramaddava), which he had taken with his lay disciple Chunda at Pavapuri. His body was cremated and his ashes were divided among the representatives of various tribal societies and King ajatshatru of Magadha.

 

Philosophy of Buddhism or Arya Satya Four Noble Truths :

(1) The world is full of sorrow.

(2) The cause of sorrow is desire of materialistic things.

(3) There is a way to get rid of sorrow.

(4) To follow eight fold path is the solution for getting rid of sorrow which is popularly knwon as Ashtangika Marg – It is also known as the middle path (avoiding extremes of both materialistic life and auster life)

Buddha gave a balance between material life and austere life which was previously very difficult to attain.

  • Right View.
  • Right Resolve.
  • Right Speech.
  • Right Concentration.
  • Right Livelihood.
  • Right Exercise.
  • Right Recollection or Memory.
  • Right Meditation.

 

(5) Symbols of Buddha :

 

Birth Lotus and Bull
Renunciation Hourse
Enlightenment Bodhitree
First Sermon Dharma Chakra
Nirvania (Death) Foor prints

 

Belief in Nirvana :

  • When desire ceases, rebirth ceases and nirvana is attained i.e. freedom from the cycle of birth and death by following the eight-fold path.
  • According to Buddha the soul is a myth.

 

Belief in Ahimsa :

  • One should not cause injury to any living being, animal or man.

 

Law of Karma :

  • Man reaps the fruits of his past deeds.

 

The Sangha :

  • Consists of monks (Bhikshus and Shramanas) and nuns.
  • Bhikshus acted as torch bearer of the Dhamma.
  • Apart from Sangha, the worshippers were called Upasakas.

 

Buddhist Councils
Council Place Year Chairman Features
First Council Rajgriha 483 B.C. Mehakassaapa (King was Ajatshatru) Divided the teachings of Buddha into two Pitakas – Vinaya Pitaka and Sutta Pitaka. Upali recited the Vinay Pitaka and Ananda recited the Sutta Pitaka.
Second

Council

Vaishali 383 B.C. Sabakami (King was Kalasoka of Shishunga Dyansty). Followers were divided into Sthavirmadins and Mahasanghikas.
Third

Council

Pataliputra 250 B.C. Mogaliputta Tissa (King was Ashoka) Tripitaka was coded in the Pali language.
Fourth

Council

Kahmir (Kundalvan) 72 A.D. Vasumitra (King was Kanishka). Vice Chairman was Ashwagosha. Divided into Mahayana and Hinayana sects
Fifth

Council

Mandalay Burma (now Myanmar) 1871 Theravada monks in the reign on King Mindon.
Sixth

Council

Kaba Aye in Yangoon 1954 Sponsored by the Government.

 

  • In Mahayan idol worship is there. It became popular in China, Japan, Korea, Afghanistan, Turkey and other South East countries.
  • Hinayana became popular in Magadha and Sri Lanka. It believed in individual salvation and not in idol worship.
  • Apart from these two there is third vehicle called Vajrayana, which appeared in the 8th century and grew rapidly in Bihar and Bengal. They did not treat meat, fish, wine etc. as a tatoo in the dietary habits and freely consumed them.

 

Hinyanists Mahayanists
Considered Buddha as Mahapurush. Considered Buddha as God.
Did not believe in Bhakti and idolitry. Believed in Bhakti and idolatry.
Empasised on individualism. Focused on welfare of all.
Have strict rules to follow. Have liberal rules to follow.
Salvation of individual is the goal. Salvation of all being.
Pali Language. Prakrit Language.
Mainly restricted to India. Spread in Cenral Asia.

 

Buddhism after Buddha :

  • Hienun Tsang : (the Chinese traveler), in the 7th century A.D. found that the Lesser Vehicle or Hinayanism is almost extinct in most of India and only flourshing in a few parts of the west.
  • From Nalanda, the missionary monk Padmasambhava went forth to convert Tibet to Buddhism in the 8th century A.D.
  • In the 6th century A.D. the Huna King Mihirkula destroyed monasteries and Killed monks.
  • A fantacal Shaivite king to Bengal, Sanshanka, in the course of an attack on Kannauj in the beginning of the 7th century A.D. almost destroyed the Tree of Wisdom at Gaya.

 

Buddhist Literature :

  • Buddhist literature in Pali language is commonly referred to as Tripitakas i.e. ‘Threefold Basket’.
  • Vinaya Pitaka is the rules of disciplines in Buddhist monasteries.
  • Sutta Pitaka is the largest and contains collection of Buddha’s sermons.
  • Abhinandan Pitaka is the explanation of the philosophical principles of the Buddhist religion.
  • Mahayan and Deepvamsa are other Buddhist texts. They provide information about the then Sri Lanka.
  • Jatakas are the fables about the different births of Buddha.
  • The fundamentals of Buddhist teaching are contained in the “Dharmacakka – Pavattana Sutta (Sermon of the Turning of the Wheel of Law). Buddha first taught this to his first disciples at Banaras. This contains the four noble truths and the Noble eight-fold path, which are accepted as basic categories by all Buddhist sects.
  • Among the chief Mahayana texts is the Lalitvistara, a flowery narrative of the life of Buddha. This test was utilized by Sir Edwin Arnold for The Light of Asia, a lengthy peom on the life of Buddha, which enjoyed much popularity at the end of the last century.

 

Causes of Decline of Buddhism :

  • It succumbed to the Brahmannical rituals and ceremonies such as idol worship, etc. which Buddhism had earlier denounced.
  • Revival of reformed Hinduism with the preaching of Shankaracharya from ninth century onwards.
  • Use of Sanskrit, the language of intellectuals in place of Pali, the language of the common people.
  • Deterioration in the moral standards among the monks living in the Buddhist monasteries.
  • Attacks of Huna king Mihirkula in the sixth century and the Turkish invaders in the 12th century A.D. which continued till the 13th century A.D.

 

Jainism

  • Founded by Rishbhanath the first Tirthankara.
  • There were 24 Tirthankara (Prophets or Gurus) and all of them were Kshatriyas. Rishabhnath’s reference is also there in the Rigveda. But there is no historical basis for the first 22 Tirthankaras. Only the last two are historical personalities.
  • The 23rd Tirthankara Parshwanath (symbol : snake) was the son of King Ashvasena of Banaras. His main teachings were : Non-injury, Non-lying, Non-stealing, Non-possession.
  • The 24th and the last Tirthankara was Vardhama Mahavira (symbol : lion). He added celibacy to his main teaching.
Jain Tirthankaras
1. Rishabhde

2. Ajitnath

3. Sambhavnath

4. Abhinandan

5. Sumitnath

6. Padmaprabhu

7. Suparsavanath

8. Suridhi

9. Chandraprabh

10. Sheetal Nath

11. Shreyanshnath

12. Vasupujya

13. Vimalnath

14. Anandnath

15. Dharmanath

16. Shantinath

17. Kunthunath

18. Arnath

19. Mallinath

20. Munisuvrata nath

21. Neminath

22. Arishtanemi

23. Parshvanath

24. Mahavira

 

Vardhman Mahavira :

  • He was born in Kundagram (district Muzaffarpur, Bihar) in 599 B .C.
  • His father Siddhartha was the head of Jnatrika clan. His mother was Trishla, sister of Lichchhavi Prince Chetak of Vaishali.
  • Mahavira was related to Bimbisara.
  • He married to Yashoda and had a daughter named Priyadarsena, whose husband Jamali became his first discipline.
  • At 30, after the dealth of his parents he became an ascetic.
  • In the 13th year of his asceticism, outside the town of Jrimbhikgrama, he attained supreme knowledge (Kaivalya). From now on he was called Jaina or Jitendriya and Mahavira and his followers were named Jains. He also got the title of Arihant i.e. worthy. 
  • At the age of 72, he attained death at Pava, near Patna in 527 B.C.
  • After ther death of Mahavira during the reign of King Chandragupta a severe famine led to the great exodus of Jain monks from the Ganga valley to the Deccan, where they established important centers of their faith. This migration led to a great schism in Jainism. Bhardrabahu who led the emigrants insisted on the retention of the established. Sthulabhadra, teh leader of the monks who remained in the north allowed his followers to wear white garments, owing to the hardships and confusion of the famine. Hence arose two sects of the Jains : the Digambaras (sky-clad i.e. naked) and the Svetanbaras (white-clad).

 

Teachings of Mahavira :

  • Rejected the authority of the Vedas and do not attach any importance to the performance of the sacrifices.
  • He believed that every object even the smallest particle possesses a soul and is endowed with consciousness. That is why they observe strict non-violence.
  • The Jains reject the concept of the Universal soul or a Supreme power as the creator or sustainer of the Universe.
  • Jainism does not deny the existence of Gods but refuses to give Gods any important part in the universal scheme. Gods are placed lower than the Jina.
  • Universal brotherhood (non-belief in the caste system).
  • In Jainism, three Ratnas (Triratnas) are given and they are called the way to
  • Nirvana. The are Right Faith. Right Knowledge and Right Conduct.

 

Teachings of Jainism :

  • Non-violence.
  • Not to steal.
  • Always telll the truth.
  • Not to accumulate wealth.
  • Celibacy.

First four were given by Parshvanath and the fifth was given by Vardhaman Mahavir.

Jain Councils
Council Place Year BY Featur
First

Council

Pataliputra beginning of third century B.C. Sthulabhadra Compilation of 12 Anagas to replace the former 14 Purvas. The Digambaras rejected this canon and declared that the original one was lost. Thus, there was a great urgency to devise new scriptures.
Second Council Vallabhi

(Gujarat)

5th Century A.D. Devridhigain Final compilation of 12 Angas and 12 Upangas.

 

Philosophy of Jainism

  • Concept of God : Tirthankaras are superior to God and God is not the creator of Universe
  • Regarding the Universe : Universe has no beginning or end. Phase of rise Utsarpini; Phase of Decline – Avasarpini.
  • Concept of Soul : Universe is full of souls and it exists in living and non – living things. Wherever there is sould, there is suffering.
  • Concept of Nirvana : It means free from cylce of birth and death. Santhara has to be performed (fasting till dealth). Chandragupta Maurya performed Santhara.
  • Five stages of Knowledge : Mathi, Sruti, Avadhi, Manahpraya, Kevalya.
  • Syadvad : 7 possibilities of truth. Also known as Anekantvad.
  • Jainism reached the highest point in Chandraprabha Maurya’s time. In Kalinga it was greatly patronized by Kharavela in the first century A.D.
  • Various factors were responsible for the decline of Janism in India. They took the concept of Ahimsa too far. They advised that one should not take medicine when one fell sick because the medicine killed germes. They believed that there was life in trees and vegetables and so refrained from harming them. Such practices could not become popular with the common man.
  • Lack of patronage from the later kings.
  • Jain literature is in Ardh-Magadhi and Prakrit dialects.
  • Due to the influence of Jainism, many regional languages emerged out, like Sauraseni, out of which grew the Marathi, Gujarati, Rajasthani and Kannada languages.

 

Cause for the Growth

  • The Vedic rituals were expensive and the sacrifices prescribed were very complicated and h ad lost their meaning.
  • The caste system had become rigid.
  • Supermacy of the Brahmins created unrest.
  • All the religious texts were in Sanskrit, which was not understandable to the masses.

 

Buddhism and Jainism : Similarities

  • Both donot believe in Vedas.
  • Both taught in common language.
  • Both were against caste system, rituals and polytheism.
  • Both opposed animal sacrifice.
  • Both believed in renunciation of world.
  • Both followed non-violence.
  • Both had tritarnas.
  • Both made doctrine of Kama as the Central theme of their teachings.
  • Both believed in Humanism.

 

Buddhism and Jainism : Dissimilarities

  • Jainism ascribed life to plants, stone and water; Buddhism rejected it.
  • Jainism practiced regrous ascetism and self-mortification; Buddhims was opposed to extreme penace and privations and advised a middle path (Majjhima magga) – Eight fold path.
  • Mahavara advised his followers to discard garments: Buddha denounced that practice.
  • Jainism practiced extreme form of Ahimsa/ Non-violnece; Buddhism did not observe it in extreme form.
  • Jainsim did not believe in Nirvana; Buddhism preached Nirvana.
  • Jainism had little progress beyond India; Buddhism became world religion.
  • Jainism rejects the concept of God & accepts that world is full of sorrow & believes in the theory of karma. This philosophy shows a close affinity to Hindu Samkhya philosophy; Buddhism neither accepted nor rejected the existence of God. It was more concerned about the individual & his actions & also did not believe in the existence of soul.
  • Jainism did not entirely reject the caste system; Buddhism rejects caste system completely.
  • Jainism believed that full salvation is not possible to a house holder & a monastic life is essentioal for it; Buddhism believed that it was possible to attain Nirvana I household life al.

 

Chapter : 5

Buddhism and Jainism

Topics :

  • Emergence of Mahajanpad.
  • Magadha Empire.
  • Haryanka Dynasty.
  • Shishunaga Dynasty.
  • Nanda Dynasty.

 

Emergence of Mahajanpadas

(6th – 5th century B.C.)

  • This era is known in History as second urbanisation. The first period was during the Harappan period.
  • There were 16 Mahajanpadas most of which were in the Gangetic Plain. 16 Mahajanpadas are mentioned in the Buddhist literature ‘Anguttar Nikaya’.
  • These are Kamboj, Gandhara, Kuru, Panchal, Chedi, Avanti, Matsya, Sursena, Koshla, Vatsa, Malla, Vajjis, Anga, Magadha, Kashi, Asmaka.
  • Some of these were ruled by hereditary monarch but others were republican or oligarchial states, ruled either by representative of the people as a whole or by nobality.
  • Of the non-monarchial clans, the most important was the Vajjis confederacy of eight clans, the most powerful of which were the Lichchavis ruling from their capital at Vaishali.
  • There were matrimonial relations between the rulers of Magadha, Kosala, Vatsa and Avanti but they did not prevent them from fighting with one another for supremacy.
  • Ultimately the kingdom of Magadha emerged as the most powerful and succeeded in founding in empire.
Mahajanpadas Capital
Gandhara Taxila
Kamboja Rajput
Asmak Patna
Vatsa Kaushambi
Avanti Ujjan
Shurasena Mathura

 

 

  • Some of these were ruled by hereditary monarch but others were republican or oligarchial states, ruled either by

 

 

Chedi Shuktimati
Malla Kushinara
Kurus Hastinapur
Matsya Virat Nagari
Vajjis Vaishali
Anga Champa
Kashi Banaras
Kosala Srasvasti
Maadha Girivraja
Panchala Ahichhatra (North), Kampilya (South)

 

Magadha Empire (6-4 B.C.)

  • Magadha embraced the former districts of Patna, Gaya and parts of Shahabad and grew to be the leading state of the time.
  • Its success was attributed to its geographical position i.e. proximity to rich iron deposits which yielded effective weaponry and the benefits of the fertile Ganga soil.
  • Also elephants were first used in war.

 

  • Archaeologically 6th century B.C. marks the beginning of the NBPW (Northern Black Polished Ware); a glossy, shining type of pottery. This marked the beginning of the Second Urbanization in India.

 

Haryanka Dynasty :

    • This dynasty ruled from 6th century B.C. to 5th century B.C.
    • Bimbisara and Ajatashatru were famous kings. Ajatashatru was the son of Bimbisara.

 

  • They were contemporaries of Buddha and Mahavira.

 

  • Ajatashatru killed Bimbisara and was later killed by his son Udayan.
  • Bimbisara (544 B.C. – 492 B.C.) :
  • A contemporary of Buddha, he conquered Anga (east Bihar) to gain control over the trade routes with the southern states.
  • His capital was position by matrimonial alliances with th e ruling families of Kosala, Vaishali and Modra (3 wives).
  • The earliest capital of Magadha was at Rajgir, which was called ‘Giriraja’ at that time. His capital was surrounded by 5 hills, the openings of which were closed by stone walls on all sides. This made Rajgir impregnable.

 

Ajatshatru (492 B.C. – 460 B.C.) :

  • Bimbisara’s son who killed his father and seized the throne.
  • Annexed Vaishali and Kosala (annexed Vaishali with the help of a war engine which was used to throw stones like catapults. Also possessed a chariot to which a mace was attached, thus facilating mass killings). Kosala was ruled by Prasenjit at the time.

 

Udayin (460 – 444 B.C.)

  • He founded the new capital of Pataliputra situated at the conflunece of the Ganga and the Son.

 

Shishunaga Dynasty :

  • Founded by a minister Shishunaga who was succeeded by Kalashoka. The dynasty lasted for two generations only.
  • Their greatest achievement was the destruction of the power of Avanti and its final incorporation into the Magadhan Empire.
  • The most famous even was the shifting of the capital to Vaishali.

 

Nanda Dynasty :

  • It is considered first of the non-Kshatriya dynasties.
  • It was founded by Mahapadma Nanda who added Kalinga to his empire.
  • Nandas controlled some parts of Kalinga (Orissa) is borne out by the Hathigumpha Inscription of King Kharavela, assigned to the middle of the first century B.C.
  • Alexander attacked India during the reign of Dhana Nanda who was called Agrammessor Xandrammems by Greek writers, in 326 B.C.
  • The Nandas were fabulously rich and extremely powerful; maintaining an infantry of 2,00,000 soldiers, 60,000 cavalry and 6,000 war elephants which supposedly checked Alexander’s army from advancing towards Magadha.
  • They had developed an effective taxation system, built canals and carried out irrigation projects and had a strong army.
  • Nandas are described as the first Empire buildiers in India. The first Nanda king is described in Puranas as the “destroyer of all Kshatriyas and a second Parasurama or Bhargava etc.”
  • The Nandas were overthrown by the Maurya Dynasty under which the Magadhan Empire reached the apex of its glory.

 

Alexander the Great :

  • Alexander III of Macedon, commonly known as Alexander the Great, was a king of Macedon, a state in northern ancient Greece.
  • He was born in Pella in 356 B.C. and was tutored by Aristotle until the age of 16.
  • Invaded India during 326 B.C. to 324 B.C.
  • He came through Hindu Kush through Afghanistan and Pakistan.
  • He returned back via Sindh.
  • The first Indian King who surrendered to Alexander was Ambhi.
  • He was known as Sikander in Iran and Alakshender in India.
  • He did not attack major parts of India due to :
  • Hot climate of India.
  • Soldiers of Alexander were very tired.
  • Fear that they won’t be able to defeat Nanda’s huge army.

 

Chapter : 6

The Mauryan Empire

Topics :

  • Historical Sources.
  • Origin of the Mauryas.
  • Chandragupta Maurya.
  • Bindusara.
  • Ashoka.
  • Ashokan Edicts.
  • Ashoka’s Dhamma.
  • Mauryan Administration.
  • Art and Architecture.
  • Arthashastra.
  • The Mauryan Dynasty was founded by Chandragupta Maurya who was the king from 321 to 298 B.C.
  • The other important rulers of this dynasty were Bindusara and Ashoka.

 

Historical Sources

  • The sources of the history of Mauryas can be drawn from sources as the Buddhist and the Jain traditions; the Kalpasutra of Jains and the Jatakas, Dighanikaya, Dipavamsa and Mahavamsa of Buddhists literature.
  • The Arthashastra of Kautilya the Greek accounts, the first decipherable inscription of Ashoka (deciphered by James Princip in 1837) and the archaeological remains.
  • The Puranas and Mudrarakshasa of Vishakhadutta though belong to a later date, throw light on the history of the Mauryans alongwith Patanjali’s Mahabhashya.

 

Origin of the Mauryas

  • The Puranas describe them as Sudras. But, this may be due to the fact that the Mauryas were motly patrons of heterodox sects.
  • The European classical writers, such as Justin, describe Chandragupta as a man of humble origin, but do not mention his exact acste.
  • The Junagarh Rock Inscription of Rudradaman (150 AD) has some indirect evidence,which suggests that the Mauryas may have been of Vaishali origin.
  • The Buddhist works link the Mauryan dynasty with the Sakya Kshatriya clan to which Gautama Buddha belonged. According to them, the region from which the Mauryan came was full of peacocks and hence they came to be known as the Moriyas. It is obivious from this that the Buddhist were trying to elevate the social position of Ashoka (their patron) and his predecessors.
  • In conclusion, we can say that the Mauryas belonged to the Moriya tribe and were certainly of a low caste, though it is not clear as which low caste.

 

Chandragupta Maurya

  • Chandragupta Maurya was the founder of Mauryan dynasty. Also known as Sandrocottus (kind toward friends) by Greek scholars.
  • According to Mudrarakshasa, the name Muarya was derived from Mura; a Shudra woman in the court of Nandas, and Chandragupta was son or grandson of the woman.
  • Vishnu Purana also mentions him of low origin i.e. a Shudra. But the Buddhist and Jain sources ascribed him a Kshatriya status.
  • According to Justin, a Greek writer, he overthrew Nandas between 325-332 B.C. According to Plutarch. he met Alexandar in Punjab and implicitly invited him to attack Nandas but offended him by his boldness of speech.
  • Chandragupta occupied Magadhan throne in 321 B.C. with the help of Chanakya (Kautilya).
  • He defeated Seleucus Nicator, then Alexander’s govenor in 305 B.C. who ceded to Chandragupta the three ruch provinces of Kabul, Kandahar and Heart in return for 500 elephants.
  • Seleucus probably gave one of his duaghters to Chandragupta and sent his ambassador, Megathenes to t he Maurya Court, who wrote an account (Indica) not only of the administration of the ciry of Pataliputra but also of the entire Mauryan Empire.
  • The Greek writer Justin calls Chandragupta’s army as a “Dacoits gang”.
  • According to the Jain work Parishista-Parvan. Chandragupta converted to Jainism in the end years of his life and went to sourth near Sravanbelgola with his Guru Bhadrabahu. It is said that he starved himself to death here.
  • Vishakhadatta wrote a drama Mudrarakshasa (describing Chandragupta’s enemy) and Debi Chandraguptam in 6th Century A.D.

 

Bindusara

  • Bindusara was the son of Chandragupta and was known as Amitraghata (slayer of foes) and succeeded Chandragupta in 297 B.C.
  • He continued friendly links with Syrian king Antiochus I and is stated to have requested him for a pesent of figs and wine together with a sophist to which Antiochus sent figs and wine but replied that Greek philosophers were not for export.
  • He also received a Greek ambassador Daimachos from Antiochus I.
  • Ptolemy II Philadelphus of Egypt also sent an envoy Dionysius to Bindusara’s court.
  • There was a council of ministers of 500 members in the court of Bindusara, which was headed by Khallatak.
  • Bindusara did not make any territorial conquest and towards the time of his death he joined the Ajivika sect.

 

Ashoka

  • Ashoka (273 – 232 B.C.) had served as governor of Taxila and Ujjain. 
  • Ashoka is called “Buddhashakya and Ashok” in Maski edict and “Dharmasoka” in Sarnath inscription. He was also known as “Devampriya” i.e. of pleasing appearance.
  • His empire covered the whole territory from Hindukush to Bengal and extended over the Afghanistan. Baluchistan and the whole of India with the exception of a small area in the farthest south comprising of Kerela. Kashmir and Valleys of Nepal were also included and was the first empire to do so. Assam was not included in his dominition.
  • The Kalinga war fouhgt in 261 B.C. and mentioned in XII Rock Edict changed his attitude towards life and he became a Buddhist.
  • He inaugurated his Dharmayatras from the 11th year of his reign by visiting Bodhgaya.
  • In the 14th year of his reign he started the institution of Dhamma Mahamatras (the officers of righteousness) to spread the message of Dhamma.
  • During his reign the policy of Bherighosha (physical conquest) was replaced by that of Dhammaghosha (cultural conquest).
  • In course of his second tour in the 21st year of his reign he visited Lumbini, the birth place of Buddha and exempted the village from Bali (tribute) and the Bhaga (the royal share of the produce) which were reduced to one eighth.
  • He organized a network of missionaries to preach the doctrine of Buddhism both in his kingdom and beyond. He sent them to Ceylon, Burma (sent his son Mahindra and daughter Sangamitra to Ceylon) and other South-east Asian regions notably Thailand.
  • Ashoka’s Hellenistic Contemporaries were Antiochus II of Syra. Ptolemy II Philadelphus of Egypt, Magas of Cyrene, Antigonus Gonatas of Macedonia and Alexander of Epirus. These are mentioned in his thirteenth Rock Edict.
  • Ashoka was the first Indian king to speak directly to the people through his inscriptions, which seem to be the earliest specimen of Prakrit language in India.
  • They are mostly engraved on rocks and found not only in Indian subcontinent but also in Afghanistan. These inscriptions communicate royal orders. These inscriptions were composed in Prakrit and were written in Brahmi script throughout the greater part of the empire. But in the north-western part they appear in Aramaic and Kharoshthi script.
  • In his inscriptions following languages have been used : Brahmi, Kharoshthi, Aramaic, Greek etc.
  • The Ashokan inscriptions were mostly placed on ancient highways and threw light on the career of Ashoka’s policies and the extent of his empire.
  • Tarai pillars show Ashoka’s respect for Buddhism.
  • Ashoka in his fifth rock edict mentions that he had several brothers and sisters. Two of these brothers are named in Divyavadana as Susima and Vuigatasoka, whom the Sinhalese Chronicles name as Suman and Tishya. The former was step-brother of Ashoka. Ashoka’s mother was step-brother of Ashoka. Ahoka’s mother was Subhadrangi.
  • Ashoka does not call himself by his personal name Ashoka in any of his inscriptions except two : these are Maski and Gujarra inscriptions.
  • Ashoka died in 232 B.C. and with hims departed the glory of Mauryan Empire.

 

Ashokan Edicts
Major Rock Edicts
1st Rock Edict It puts prohinition on animal sacrifices in festival gatherings. Interestingly, only three animals (2 peacocks and 1 deer) could be used for the royal kitchen as well instead of hundreds of them used earlier.
2nd Rock Edict It mentions about the medical mission sent everywhere for both men and animalsby Ashoka. It mentions Chola, Chera, Pandaya and Satyaputra and has also a list of herbs and trees to be planted in different areas.
3rd Rock Edict In the 12th year of Ashoka’s inauguration the edict enjoins a quenquennial humiliation.
4 th Rock Edict In the 12th year of Ashoka’s reign compares the past condition of the kingdom with that of the present.
5 th Rock Edict It, for the first time, ,mentions about the appointment of the Dhamma mahamatras to look after propagations of Dhamma. They were appointed in the 13th year of Ashoka’s consecration.
6 th Rock Edict It shows his concern for the people’s grievances for round the clock consultations or any type of appeal and that the mahamattas should communicate to him all the matters concerning public business even if he is in his harem. It announces the appointement of pativedakas, custodies morum and criminal magistrates.
7 th Rock Edict It contains the kings desire to obliterate diversities of religious opinions and tells us that Ashoka, after ten years since his consecration, visited Bodhi tree, ended all pleasure tours and instead, concentrated on the Dhamma tours.
8 th Rock Edict It contrasts the carnal enjoyments of former rajas with the harmless enjoyments of the kingvisits to holy place, almsgiving, respect to elder etc.
9 th Rock Edict It shows the uselessness of all other ceremonies except the Dhamma as it includes ethical concepts within its fold. It basically continues the Dhamma discourse.
10 th Rock Edict In his edict, Ashoka shows the lack of any worldly desire except the desire to propagate Dhamma and to see people following it.
11 th Rock Edict In suggest to people that the gift of Dhamma is the best gift or the chiefest of charitable donations as it brings gain in this world and merit in the next. It is at Dhauli and Girnar.
12 th Rock Edict It expresses Ashoka’s concern for the well-being of all other sects. In this he prefers to advance the essence of all the docrines. He also requests all the officers to internalize this basic philosophy behind propagation of Dhamma.
13 th Rock Edict In this edict, Ashoka shows his remorse for the devastation caused by his Kalinga War. The killing of so many families made Ashoka take resort to cultural conquest (Dhammavijaya) rather than even think in the future about any war and aggrandizement. It is incomplete.
14 th Rock Edict It stats that this inscription of Dhamma was engraved at the common of the beloved of the Gods, the king Piyadassi. It exists in abridged, medium length and extended versions for each classes has not been engraved everywhere. It summarises the preceeding and is complete in itself.

Separate Edicts

First Separate Edict (Dhauli and Jaugada) Addressed to officers of Tosali and Samapa. One royal officer will tour every five years to see that men are never imprisoned of tortured without good reasons. The prince of Ujjain shall send out a similar group of officers, but at intervals not exceeding three years. Similarly at Taxila.
Second Separate Edict Addressed to the prince at Tosali and the officials at Samapa, it states that the officers shall at all times attend to the conciliation of the people of the frontiers and to promoting Dhamma among them.

Minor Inscriptions

Queen’s Edict On the Allahabad pillar, the gift of the second queen, the mother of Tivara, Karivaki for sdispensing charity or any other donation.
Barabar Cave Inscription (i) In 12th year the Banyan cave given to Ajivikas.

(ii) In 12th year cave in Khalitka mountain given to Ajivikas.

(iii) The king Piyadassi, consecrated since nineteen years.

Kandhar Bilingual Rock Inscription Greek version king refrains from eating meat and his hunters and fishermen have stopped hunting. Aramic version – very few animals were killed by Ashoka. Fishing prohibited.
Bhabru Inscription The king of Magadha, Piyadassi shows deep respect for the faith in Buddha, the Dhamma and the Sangha. This edict confirms Ashoka’s conversion to Buddhism.
Rummindei Pillar Inscription In 20th year Piyadassi visited Lumbini and here exempted people from land tribute (udbalike) and fixed contribution at 1/8 (atthabhagiya).
Nigalisagar Pillar Inscription On 14th year the stupa of Buddha Kanakamuni was enlarged to double in size.
Schism Edict At Kaushambi (Allahabad Pillar), Sanchi and Sarnath. All dissenting monks and nuns to be expelled and made to wear robes and the laymen and officials are to enforce this order on confession (upostha) days addressed to officials of Kausambi and Patliputra.

Pillar Edict

1st On 27th regional year. His principle is to protect through Dhamma to administer according to Dhamma to please the people with Dhamma to guard the empire with Dhamma.
2nd Dhamma is good and what is Dhamma ? It is having few faults and many good deeds: mercy, charity, truthfulness and purity.
3rd One only notices one’s good deeds, does not notice one’s wicked deeds, one should notice this and think. Cruelty, harshness, anger, pride and many are indeed productive of sin.
4th In the 26th year, appointment of Rajukas over hundreds and thousands, with independent authority over judgement, there should be uniformity in judicial procedure and punishment. Men who are imprisoned or sentenced to death are to be given three days respite.
5th In the 26th year, prohibition of killing specific animals and burning forest; cattle and horses are not to be branded. Twenty ve releases of prisoners have been made.
6th Mention of major rock edicts, which have been issued in 12th year, to honour sects.
7th Only in the Delhi-Topara Pillar, Rajuka, Ajivika and Nirgrantha (Jainas) were mentioned in th is edict. Dhamma is better advanced by persuasion than by legislation.

 

Ashoka’s Dhamma

  • Ashoka’s Dhamma cannot be regarded as sectarian faith. Its broad objective was to preserve the social order. It ordained that people should obey thier parents, pay respect to Brahmanas and Buddhist monks and show mercy slave and servants.
  • He held that if people behaved well they would attain Swarga (heaven). He never said that they would attain nivana, which was goal of Buddhist teaching.

The Mauryan Empire after Ashoka :

  • Ashoka was successes by Kunal and Brihadratha. He was killed by his commander in chief Pushamitra Sunga, who ascended the throne in 187 B.C. The royal dynasty founded by him is known as Sunga Dynasty.

 

Mauryan Administration

  • A vast and highly centralized bureaucratic rule with the king as fountain head of all powers. The king claimed no divine rule, rather it was paternal despotism. Kautilya called the king Dharmapravartaka or promulgator of social order.
  • The highest functionaries at the centre called tirthas and were paid fabulously.
  • They were Mantri, Purohita, Senapati and Yuvaraja. Besides the two chief officers at the Centre were Sannidhata (treasurer) and Samaharta (tax collector).
  • Kautilya mentions 27 superintendents (adhyakshas) mostly to regular economic activities.

 

The Municipal Administration

  1. Nagarika : the officer in charge of the city administration.
  2. Sitadhyaksha : Superintendent of crown land.
  3. Panyadhyaksha : Super-intendent of Commerce.
  4. Pautavadhyaksha : Super-intendent of weight and measures.
  5. Sulkadhyasha : Super-intendent of tolls.
  6. Samsthadhyaksha : Super-intendent of market.
  7. Akaradhyaksha : Super-intendent of mines.
  8. Navadhyaksha : Super-intendent of ships.
  9. Lohadhyaksha : Super-intendent of Iron.

 

  • Rajukas : Theywere the later day Patwaris. They were responsible for surveying and assessing the land. In rural areas they were the judicial officers.
  • Yuktas : A subordinate revenue officer of the district level. He was responsible for the secretarial work of accounting.
  • Except the capital Pataliputra, the whole empire was divided into four provinces controlled by a viceroy either a prince or a member of the royal family. Provinces were sub-divided into districts and had three main officers.
  • Pradesika responsible for the overall administration of the district.
  • Sub-district consisted of a group of villages numbering 5 to 10 and was administered by ‘Gopa’ (accountant) and ‘Sthanika’ (tax collector). The villages were administered by the village head man who was responsible to the Gopas and Sthanikas.

 

The Arthashastra mentions the important functionaries known as Mahamatra or Tirthas. These are :

  1. Yuvraja : Crown prince.
  2. Senapati : Commander-in-Chief.
  3. Mantriparishad Adhyaksha : Head of the council of Minsters.
  4. Mantrin : Minister.
  5. Purohita : Chaplain.
  6. Dauvarika : Palace usher.
  7. Antarvamsika : Officer of the Royal harem.
  8. Prasasta : Minister in charge of Encampment.
  9. Samaharta : Chief of Revenue collector.
  10. Sannidhata : Controller of Stores.
  11. Nayaka : Commandant.
  12. Pradesta : Magistrate.
  13. Karmantika : Chief Architect.
  14. Danda Pala : Chief Army officer.
  15. Durga Pala : Officer-in-charge of Fort.
  16. Antapala : Officer-in-charge of Frontier post.
  17. Atavika : Chief of the Forest tribe.

 

  • The administration of capital Pataliputra has been described by six boards consisting of five members each being entrusted with matters relating to industrial arts, care of foreigners, registration of births an deaths, regulation of weights and measures, public sale of manufactured goods and the last with collecting toll on the articles sold, this being one tenth of the purchase price.
  • Mauryans had a big army any there is no evidence of its reduction even by peace loving Ashoka.
  • According to Pliny, Chandragupta maintained 6,00,000 foot soldiers, 30,000 cavalry and 900 elephants.
  • According to Megasthenese, the army was administered by six commmittees consisting of five members each taken from a board of 30 members. The six committees or the wings of army were: the army, the cavalry, the elephants, the chariots, the navy and the transport.
  • Spies operated in the guise of sanyasis, wanderers, beggars etc. and were of two types ‘Sanstha’ and ‘Sanchari’. The former worked by remaining stationed at a public place and later by moving from place to place. They collected intelligence about foreign enemies and kept an eye on numerous officers. The ‘Prativedikas’ were the special reporters of the king.
  • Land revenue was the main source of income of the state. Peasants paid of the produce as Bhaga and extra tax Bali tribute.
  • Pindakara (assessed on group of villages), ‘Kara’ (levied on fruits and flower gardens) and Hiranya (paid only in cash) were also collected.
  • The state also provided irrigation facilities and charged water tax.
  • Industrial arts and crafts proliferated as a result of swift communication through a network of good and long roads and incentives given by the governmen.
  • The punch-marked silver coins, which carry the symbols of peacock and hill and regent, formed the imperial currency of the Mauryas.
  • Megasthenes noticed the absence of slavery. But it is contradicted by Indian sources.
  • Kautilya recommends the recruitment of Vaishyas and Shudras in the army, but their actual enrolment is extremely doubtfull.
  • In the Mauryan period, stone culture emerged as the proincipal medium of Indian arts.
  • The animals, which are carved on the Mauryan pillars are Bull, Lion, Elephant.
  • According to Arthashastra, a man could be slave either by birth, by voluntarily selling oneself, by being captured in war or as a result of judicial punishment. Megasthenese did not find slaves in India.
  • The trade links between India and Egypt were so developed that Ptolemy had established a port named Bernis on the Red sea. India exported turtle skin, pearls, precious and semi-precious stones, cotton and costly wood o Egypt.

 

Art and Architecture

  • The Mauryas introduced stone masonry on large scale.
  • Fragments odf stone pillars and stumps indicating the existence of an 80-pillored hall have been discovered at Kumararha on outskirts of Patna.
  • The pillors represnt the masterpiece of Mauryan sculpture. Each pillor is made of single piece of sandstone, only their capitals which are beautiful pieces of sculpture in form of lion or bull are joined with with pillar on the top.
  • Single Lion Capital at Rampurva and Lauriya Nandangarh.
  • Single bull capital at Rampurva.
  • Four lion capital at Sarnath and Sanchi.
  • A carved elephant at Dhauli and engraved elephant at Kalsi.
  • The Mauryan artisians also started the pracitce of hewing out caves from rocks for monks to live in. The earliest examples are Barabar caves in Gaya.
  • Stupas were built throughout the Empire to enshrine the relics of Buddha. Of these, the most famous are at sanchi and Barhut.

 

Arthshastra

  • Arthashastra, written by Chandragupta Maurya’s Prime Minister Chanakya, primarily delves into they nuances of economy and administration. The treatiese lays down various rules that ashould be formulated for a ruling monarch. It laid down strategies for a well-planned state economy. The arthashastra has 15 adhikarnas or books, of which the first five deals with tantra or internal administration of the state, eight deals with avapa or its relations with neighboring states, and the last two are miscellaneous in character. The work is concerned with all the topics that deal with the internal administration and foreign relation.
  • Decline of Mauryan Empire : The Mauryan Empire lasted a little over a century and broke up fifty years after the death of Ashoka. Slowly the various princes of the empire began to break away and set up independent kingdoms. In 185 B.C. the Mauryan king was overthrown by Pushyamitra Shunga, an ambitious Commander in Chief of armed forces. He started the Shunga dynasty in Magadha. The Mauryan Empire unshered in a dream that was to survive and echo again and again in centuries to come. Some probable causes of deeling of the Mauryan Empire;

 

  • Brahmanical reaction.
  • Financial crisis.
  • Oppressive rule.
  • Neglect of North west frontier.
  • Weak Successors.
  • Pacific policy of Ashoka.
  • New knowledge in outlying areas Dissemination of knowledge of Manufacturing Iron.

 

Chapter : 7

The Post Maurayan Period

Topics :

  • The Sunga Dynasty.
  • The Kanva Dynasty.
  • The Satvahanas or the Andhras.
  • The Indo-Greeks.
  • The Sakas or Scythians.
  • The Parthians.
  • The Kushans.
  • Art and Culture.

In eastern India, Central India and the Deccan the Mauryans were succeeded by a number of native rulers such as the Sungas, Satvahans etc. In north-western India they were succeeded by a number of ruling dynasties from Central Asia.

 

The Sunga Dynasty (185 B.C. to 73 B.C.)

  • The Sunga dynasty was founded by Pushyamitra Sunga, a Brahman of the Sunga family. HIs dominion extended up to Narmada river in the south and included cities of Patliputra, Ayodhya and Vidisha. The capital was Patliputra.
  • Divyavadana and Taranath depict Pushyamitra as a veritable eney of the Buddhist.
  • Two Ashvamedhas were performed by Pushyamitra. He also defeated the Bactrian king Demetrius.
  • The fifth king was Bhagabhadra, whose court was visited by Heliodorus, the Greek ambassador.
  • A Sunga king Agnimitra was the hero of Kalidasa’s Malavikagnimitram.
  • Patanjali’s classic Mahabhashya was written at this time.
  • The last ruler of Sunga dynasty, Devabhuti was killed by his minister Vasudeva in 73 B.C.

 

The Kanva Dynasty

  • The Kanva dynasty was founded by Vasudeva, a Brahaman who killed the last Sunga king Devabhuti in 75 B.C.
  • After a span of 45 years Kanvas were overthrown by Andharas or Satvahanas of he Deccan. Susaraman was the last ruler.

 

The Satvahanas or the Andhras

  • In Deccan and in central India the Mauryans were succeded by the satvahanas around first century B.C. and ruled for about 300 years with its capital at Paithan or Pratisthan on the Godavari in Aurangabad district.
  • Bana describes the Satvahanas as the ‘Lord of the three oceans – Trisamudradhipati.
  • Gautamiputra Satakarni, who defeated Sakas and set up the capital at Paithan.
  • The name of the mother of Gautamiputra Satakarni (A.D. 30-104) was Gautami Balasari. It was a matrilineal society.
  • They did not issue gold coins; they issued mostly coins of lead. They also used tin, copper and bronze coins.
  • The Satvahanas were the first rulers to make land grants to the Brahamans. The called themselves Brahmans and worshipped gods like Krishna, Vasudeva etc. and performed Vedic rituals. They also promoted Buddhism by making land grants to the monks.
  • The two common constructions were the Buddhist templets that were called ‘Chaitya’ and the monasteries which were called ‘Viharas’. The most famous Chaitya is that of Karle in western Deccan.
  • The official language was Prakrit and the script was Brahmi as in Ashokan times. A Prakrit text Gathasaptasati or Gathasattasai is attributed to a Satvahana king Hala.

 

The Indo-Greeks

  • With the decline of Mauryan Empire a series of invasions from Central Asia began around 200 B.C.
  • The first to cross the Hindukush were the Indo-Greeks,who ruled Bactria. Demetrius, the king of Bactria invaded India about 190 B.C.
  • The most famous Indo-Greek ruler was Menander (165-145 B.C.), who is said to have pushed forward as far as Ayodhya and reached Pataliputra. His capital was Sakala (Sialkot).
  • Menander, who was also known as Milinda, was coverted to Buddhism by famous scholar Nagasena (Nagarjuna). The conversation between the two is recorded in a book named Malindapanho (Questions of Milinda).
  • The Greek introduced features of the Hellenistic Art in north-west part of India which is also known as Gandharva Art.
  • The Greek ambassador called Heliodorous set up a pillar in honour of Vishnu at Vidisha (Madhya Pradesh).

 

The Sakas or Seythians (90 B.C.)

  • The Greeks were followed by the Sakas, who controlled much large part of India than the Greek did.
  • The King of Ujjain in 58 B.C. is said to have defeated the Saka and styled himself Vikramadity. An era called the Vikram Samyat is reconed from the time of his victory over the Sakas.
  • The most famous Saka ruler was Rudradaman I (130 – 150 A.D.) who ruled in western India and is famous for repairing the Sudharshan Lake in Kathiawar, built during the regin of Chandragupta Maurya. It is recorded in the first ever long inscription in chaste Sanskrit in Junagadh which was issued by Rudradaman and highlighted his achievements.

 

The Parthians

  • The Sakas were followed by Parthians. 
  • The Parthians originally lived in Iran and invaded in the beginning of the Christian era, from where they moved to India. In comparison to the Greeks and Sakas they occupied only a small territory in north-west India in the first century.

 

The Kushans

  • The Parthians were followed by the Kushanas who were also called Yuchis or Tocharians.
  • Kanishka (78 – 144 A.D.) extended his empire from Oxus to the eastern borders of U.P. (Banaras) and Bokhara in north to Ujjain in the south.
  • He was a great patron of Buddhism and the 4th Buddhist council is said to have been held under his patronage.
  • He patronised Asvaghosa, the writter of Buddhecharita, the biography of Buddha and Sutralankar and also patronised Charka, the great authority in Medical science who wrote Sasruta alongwith Nagarjuna who wrote Madhyamik Sutra.
  • Purushpura (Peshawar) was the capital of Kushanas. Mathura seemed to be their second capital.
  • Kanishaka controlled the famous silk route in Central Asia which started from China and passed through his empire in Central Asia and Afghanistan to Iran and Western Asia which formed the part of Roman empire.
  • Kanishka started a era known as Saka era whch commenced from 78 A.D.
  • The Kushanas were the first ruler in India to issue gold coins on a wide scale.
  • The Gandha School of art received the royal patronage of Kushanas.
  • The fourth Buddhist Council was held under the patronage of Kanshka at the Kundalavna monastery in Kashmir.

 

Trade and Commerce :

  • Manu’s code, which is the most important code of conduct of the Hindus, belongs to these centuries of Post-Mauryan phase only.
  • India received a huge amount of gold due to its Central Asian contacts that actually came from the Altai Mountains.
  • The control of the silk route by the Kushanas in the first century of the Christian era was very significant from the point of view of the increasing prosperity of India in these centuries.
  • The Central Asians introduced better cavalry and better technologies to be used by the Indians later.
  • In the period between 2nd centuries B.C. to 2nd century A.D. craft working made great progress and so did cloth making, silk weaving, making of arms etc. Mathura was known for a special type of cloth called sataka.
  • The Kushanas issued largest number of copper coins in north and north-west India.
  • They were also the first to issue gold coins in India that increased in number during the period of the Kushanas.

 

Art and Culture

  • The post Mauryan period is an epoch of gret sculptural achievements that marks the freedom from the overpowering influence of the court in the history of the Indian Art.
  • The reliefs on the gateways of the Stupa at Bharhut were executed during the reign of the Sangas. Here, the Bodhisattavas were represented in the human forms according to the needs of the stories. But Buddha is represented only in terms of the symbols viz., Bodhi tree, the vajrayana, the footprints, the wheel, the parasol etc.
  • At Sanchi, the human figure become much more graceful and the power of the composition and the narration is more advanced that at Bharhut. The Sanchi sculptures include the Jataka stories and many historical themes like Bimbisara leaving Rajagriha to meet Buddha, or Ashoka’s pilgrimage to the Bodhi tree etc.
  • The Barhut stupa, Amravati stupas were created during this phase. The stupa implied a place where the relic associated with Buddha was kept.
  • The purpose of the Hathi-gumpha inscription was to record the construction of residential chamber for Jaina ascetics on the top of the Udyagiri hills.
  • Both Gandhara school of art and the Mathura school belong to this phase. The Gandhara art was completely influence by the Greek and Roman styles while the Mathura art form had completely indigenous origins.
  • The great period of the Mathura art also begins with the Christian era, and its most profile reached its zenith under the Kushanas.
  • It is at Mathura that we for the first time come across making of images of the various Indian divinities. The cult image gets introduced. It is the first art form in India that was quite dominant in its Indian ethos unlike the Gandhara art, which had a lot of influence from the Greeco-Roman featuers.
  • The sakas and Kushanas introduced turbans, tunics, tousers, heavy long coats, caps, helmets and boots used by warriors.

 

Chapter : 8

The Gupta Period

Topics :

  • Chandragupta I
  • Samudragupta I
  • Chandragupta II
  • Kumargupta I
  • Skandagupta
  • Fall of the Gupta Empire
  • Fahien
  • Trade and Economy
  • Political Organization
  • Social Organization
  • Religion
  • Science and Technology
  • Literature
  • Art and Architecture

 

  1. After the breakup of Mauryan Empire, the Satavahana and Kushana emerged as two large Political powers.
  2. The Satavahana acted as a stabilizing factor in the Deccan and south to which they gave political unity and properity.
  3. The Kushanas performed the same role in the north.
  4. Both these empires came to an end in the middle of the 3rd century A.D.
  5. Kushana power in North India came to an end in about 230 A.D. and after that, a good part of central India fell to Murundas who continued to rule till 250 A.D.
  6. The Guptas finally overthrew Kushanas in about 275 A.D. The Guptas may have been of vaishya origin.
  7. Little is known of the early Guptas; first known ruler was ‘Sri Gupta’ probably ruling over a small portion of north Bengal and South Bihar.
  8. He was succeeded by his son Ghatotkacha. Both adopted the title of Maharaja.

 

The Gupta Dynasty

  1. Chandragupta I : 320-335 A.D.
  2. Samudragupta : 335-375 A.D.
  3. Ramgupta :375-380 A.D.
  4. Chandragupta Vikramaditya : 380-413 A.D.
  5. Kumargupta Mahendraditya : 415-455 A.D.
  6. Skandagupta : 455-467 A.D.
  7. Later Gupta : Purugupta, Narasimhagupta, Baladitya, Kumaragupta II, Buddhagupta, Bhanugupta, Harshagupta, Damodargupta, Mahasengupta

 

Chandragupta I (319-335 A.D.)

  • Chandragupta was the first Gupta king who minted silver coins after defeating Saka satraps of Ujjain and also in the name of his queen and the Lichchhavi nation.
  • He started Gupta Era in A.D. 319-20 which maked the date of his accession.
  • He emphasized his power and prestige by marrying Kumara Devi. Princess of the Lichchhavi nation of Nepal.
  • He acquired the title of Maharajadhiraj.

 

Saudragupta (335-375 A.D.)

  • Samudragupta (335-380 A.D.), called the ‘Napoleon of India’ by Vincent Smith, enlarged the Gupta Kingdom enormously.
  • The Allahabad pillar inscription composed by Harisena, his court poet enumeates the people and countries that were conquered by Samudragupta, which had been divided into 5 groups.
  • 12 Kings were defeated in course of Samudragupta’s dakshinapath campaign, who reached as far as Kanchi and Pallava ruler Vishnugupta was compelled to recognise his suzerainty. But he reinstated all the 12 kingdoms as tributary states.
  • In one of his coins he called himself ‘Lichchhavi duhitra’ (daughter’s son of the Lichchhavis).
  • He performed Asvamedha Yajna to claim imperial title and stuck gold coins of yupa type to commemorate the occasion.
  • He maintained the tradition of religious toleration, granted permission to Buddhist king of Cylon, Meghavarman to build a monastry at Bodh Gaya, so, he was called ‘Anukampavav’.
  • He was a great patron of art, adopted the title of ‘Kaviraja’. Poets like Harisena and Vasubandhu adorned his court; on some gold coins he was shown playing the Veena. He issued coins of different types like archer type, tiger type and battle type.
  • He also patronized the Buddhist scholar Vasubandhu and studied Buddhism under him. He was tolerant towards other faiths. He received a missionary from the ruler Meghavarman of Sri lanka, seeking his permission to build a Buddhist temple at Gaya, which he granted.

 

Chandragupta II (380-413 A.D.)

  • Samudragupta was succeeded by Ramgupta but Chandragupta II killed him and married his queen Dhruvadevi.
  • Chandragupta II was also a great conqueror like his father and his reign saw the high water mark of the Gupta Empire. Mehrauli Iron pillar inscription cliams his authority over North-Werstern India and a good portion of Bengal.
  • Chandragupta II’s daughter Prabhavati was married to the Vakataka King, Rudrasena II who died very soon.
  • The sea-borne trade with Europe brought Chandragupta II in close contact with Europe through Egypt.
  • Chandragupta is represented as killing a lion on his coins unlike his father who is shown killing a tiger.
  • Though Fa-hien (the Chinese pilgrim) travelled extensively in Chandragupta’s empire and records the prosperity during this time, it is interesting to note that the Chinese pilgrim never recorded the name of the king because he was totally preoccupied with the study of Buddhism.
  • Chandragupta II Vikramaditya was the first among the Gupta kings to issue gold coins.
  • Virasena’s Udyagiri cave inscription refers to his conquest of the whole world.
  • He defeated the last of the Saka ruler Rudra Simha III and annexed the territories of western Malwa and Gujarat. He was also called ‘Vikramadity’. He also took the title of Simhavikrama.
  • Chandragupta II made Ujjain the second capital of the empire.
  • Mehrauli Iron Pillar inscription says that the king defeated the confederacy of Vangas ad Vahilkas.
  • He strengthened the empire by matrimonial alliance, married his daughter Prabhavati to a Vakataka Prince Rudrasena II, he himself married a Naga prince ‘Kuber Naga’.
  • He was also a man of art and culture, his court at Ujjain was adorned by ‘Navratna’, including Kalidasa, Amarsinha, Fa-hien, Acharya Dinganaga etc.
  • Virasena was the Court Poet and Minister of Chandragupta II
  • Fa-hien, the Chinese trveller, came during the time of Chandragupta II

 

Kumaragupta I (413-455 A.D.)

  • He assumed the title of Mahendraditya.
  • Founded the Nalanda University.
  • He was a worshipper of Lord Kartikeya (Son of Lord Shiva).
  • Kumargupta I introduced a new type of coins of gold. One of them figures the God Kartikeya ridding on his peacock on the reverse, and the king feeding a peacock on the obverse.
  • Kalidas flourished in the reign of both Kumargupta I and Chandragupta II.
  • The first Huna attack took place during Kumargupta I. He was very old that time. The aged Kumargupta died when the crown prince was still in the field in A.D. 454 or 455.
  • Kumargupta performed Asvamedha sacrifices.
  • Towards the close of his reign, the empire was attacked by the Pushyamitra tribe.
  • By 485 A.D. the Hunas occupied eastern Malwa and a good portion of Central India.

 

Skandagupta (455-467 A.D.)

  • One of the gold coins of the king Skandgupta depicts the king as standing with a bow in one hand and an arrow in the other with a Garuda standard in front of him. To his right is Goddess Laxmi facing the king with a lotus in her hand.
  • He restored the Sudarshana Lake.
  • Skandgupta repulsed the ferocious Hunas twice; this heroic feat entitled him to assume the title of Vikramaditya.
  • Skandagupta’s successors proved to be weak and could not resist the Huna invaders, who excelled in horsemanship and possibly used stirrups made of metal.

 

Fall of the Gupta Empire

  • The weak successors of Skandagupta could not check the growing Huna power and feudatories rose in Bihar, Bengal, M.P., Vallabhi etc.
  • Mihirkula was the most famous Huna King. Hieun Tsang mentions him as a firece persecutor of Buddhim. He was defeated by Yashodharman, one of the feudatories of the Guptas in Malwa.
  • Later Gupta of Magadha establilshed their power in Birar, alongside them the Maukharies rose to power in Bihar and U.P. with their capital at Kannauj, the Maitrakas of Vallabhi established their authority in Gujarat and Western Malwa.
  • In North India the Pushybhutis of Thaneshwar established thier power in Haryana and they gradually moved to Kannauj.
  • The Gupta state may have found it difficult to maintain a large professional army on account of the growing practice of land grants for religious and other purposes, which was bound to reduce their revenues.
  • Their income may have further been affected by the decline of foreign trade.
  • Decline of trade led to decay of towns, the post – Gupta period witnessed the ruin of many old commercial cities.
  • The later Guptas, though they ruled in Magadha till about the eight century, were not genealogically connected to the Imperial Guptas.

 

Fahien

  • Fahien, a Chinese Buddhist monk visited India during the reign of Chandragupta II and stayed in India for six years.
  • His travel account throws considerable light on the socio-religious life in the country during this period.
  • Fahien noted that Buddhism was still popular, though, Hinduism was gaining ground under the patronage of the Guptas. He also commented that due to the influence of Buddhism and Jainism many people from higher sections of society had become vegetarians. His writings give important information about early Buddhism.
  • After his return to China he translated into Chinese the many Sanskrit Buddhist texts he had bought back.

 

Trade and Economy

  • Kalidasa give food description of the market towns.
  • The volume of trade with China greatly increased during Gupta period and the Chinese silk was called ‘Chinansuka’ in India.
  • India muslin created a great demand in the city of Rome.
  • At Kaveripattinam the Yavana section of the city overflowed with prosperity.
  • At Arikamedu, a sizeable Roman settlement and a Roman factory was discovered (it was known for Muslin).
  • Barygaza or Broach was the largest port on the western coast.
  • Glass production started in the Gupta period.
  • Varahmihira paid tribute to Greek astronomers by saing that they deserve as much respect as our own rishis.
  • Gold coins were called Dinars and Silver coins were called Rupyakas.

 

Political Organization

  • In contrast to the Mauryas, the Gupta kings adopted pompous titles such as ‘Parmeshwar’ ‘Maharajadhiraja’ and ‘Param-bhattarka’ which signify that they ruled over lesser kings in their empire.
  • Kingship was hereditary, but royal power was limited by the absence of a firm practice of primogeniture.
  • Council of ministers existed : evidence of one man holding several posts like Harisena and posts becoming hereditary.
  • The most important officers were Kumaramatyas.
  • The empire was divided into ‘Bhukti’ placed under the charge of an ‘Uparika’.
  • Bhuktis were divided into districts placed under the charge of ‘Vishaypati’.
  • The sub-districts were called ‘Peth’ and the villages ‘Gramika’ or ‘Mahattar’.
  • The Guptas did not maintain a vast bureaucracy like that of the Mauryas.
  • ‘Kumaramatyas’ were the most important officers who were appointed by the king in the home provinces.
  • Chariots receded into the background and cavalry came to the forefront.
  • In judicial system, for the first time civil and criminal laws were clearly defined and demarcated.
  • In the Gupta period land taxes increased in number, and also those on trade and commerce.
  • A large part of the empire was administered by feudatories, many of whom had been subjected by Samudragupta.
  • Salary was not paid in cash.
  • Religious functionaries were granted land called ‘Agarhara’, fire f taxes for ever, and they were authorised to collect from peasants all taxes, which could have otherwise gone to the emperor.
  • Lan revenue was about 1/7 of the produce payable either in cash of kind.

 

Social Organization

  • Land grants to Brahmanas suggest Brahaman supremacy.
  • Caste proliferated into numerous sub-castes, firstly as a result of assimilation of a large number of foreigners into Indian society, and secondly due to absorption of many tribal people in Brahmanical society through process of land grants.
  • Though woman were idealized in literature, mother goddesses were worshipped, but in reality they were accorded lower postion viz. pre-puberty marriage, denial of education, treated as an item of property etc. They were allowed to listen to the Epics and the Puranas, like the Shurdra.
  • The position of the Shudra somewhat improved but number of untouchables and the practice of untouchability increased.
  • The first example of Sati came from Eran of 510 A.D. Sati system was very rare in the Gupta period, almost the only recorded instance in the age being that of the Goparaja’s wife in A.D. 510 came to light from Eran (M.P.).
  • Nagarjuna established the Shunyavada philosophy; he infused a new life into Buddhism and helped the eventual development of the Advaita School in the Hidnu Vedanta.

 

Religion

  • Many legal text books were written during this period such as the Bhagwad Gita, Yajanavalkaya Smriti, Narada Smriti, Brihaspati Smriti etc.
  • Hinduism acquired its present shape, Brahma; Vishnu & Mahesh emeged as the supreme deity.
  • Devotional Hinduism got perfection and Bhagvatism became more popular, centred round the worship of Vishnu or Bhagwat. History was presented as a cycle of 10 incarnations of Vishnu.
  • Theory of Karma and idea of Bhakti and Ahimsa became the foundation of Bhagwatism.
  • Idol worship in the temples became a common feature.
  • Various female deities such as Durga, Amba, Kali, Chandi etc. came to be regarded as mother goddesses.Four ends of life were enumerated – Dharma, Artha, Kama and Moksha first three collectively called ‘Triverga’.
  • Six schools of philosophy were peerfected.
  • Buddhism no longer received royal patronage in the Gupta period.
  • Fa-hien has given the impression that this religion was in flourishing state.

 

Science and Technology

  • Gupta period is unparalled for its achievements in the field of mathematics and astronomy.
  • Brahmgupta in 7th century developed rules for-operating with zero and nagative quantities, he began to apply algebra to astronomical problems. He wrote Brahmasphutic Siddhanta in which he hinted at the law of gravitation.
  • Prominent astronomers were Arybhatta and Varahamihira. Arybhatta was the first astonomer who wrote Arya-bhattiyam, found the cause of lunar and solar eclipses, calculated the circumference of the earth in Suryasiddanta.
  • Aryabhatta described the value of first nine numbers and the use of zero in Arybhattiyam. He also calculated the value of pie and invented Algebra.
  • He was first to reveal that the sun is stationary and the earth revolves round it.
  • Varahamihira’s well-known work was ‘Brihatsamhita’ which gives the summary of five astonimical books current in his time.
  • Romaka Siddhanta a book on astonomy was alos compiled.
  • Vagbhatta was the most distinguished physicial of the ayurvedic system of medicine.
  • Palakapya wrote Hastygarved, a treatise on the diseases of elephants.
  • Dhanvantri was famous for Ayurveda knowledge.

 

Literature

  • Sanskrit language and literature made much headway during this period. This was the language of scholars.
  • The greatest Sanskrit poet and dramatist of the Gupta age was Kalidas, his important works were – Meghdutam, Abhijana Shakuntalam, Kumarsambhava, Raghuvamsa, Ritusamhara, Malvikagnimitra etc.
  • Vishakhadatta product the

‘Mudrarakshasa’ and the ‘Devichandraguptam’.

  • Sudraka authored Mrichckakatikam, Bharavi wrote Kiratarjunia, Dandin authored Kavyadarshana and Dasakumaracharita Bhasa wrote Charudatta.
  • Vishnu Sharma wrote Panachatantra and Hitopdesh.
  • Both the Ramayana and the Mahabharata along with various Puranas ans Smrities were finally compiled.
  • Amarsimha wrote ‘Amarkosha’.

 

Book Author
AbhijnanShakuntalam Kalidas
Ritusamhara Kalidas
Malvikagnimitram Kalidas
Kumarasambhava Kalidas
Meghaduta Kalidas
Raghuvamsa Kalidas
Vikram Urvashiyam Kalidas
Mudra Rakshsa Vishakhadutta
Devichandram Vishakhadutta
Guptam
Svapanavasavdattam Bhasa
Charudutta Bhasa
Daskumaracharitra Dandin
Kavyadarshan Dandin
Harshcharitra Ban
Kadambari Ban
Ratnavali Harsha
Priyadashika Harsh
Kirantarjunyam Bharvi
Ravan vadh Vatsabhattin
Amarkosh Amarsimha
Mrichchakatika Shudrak
Sankhya karika Iswara Krishna
Kamsutra Vatsyana
Panchatantra Vishnu Gupta
Hitopdesh Narayan Pandit
Arybhatta Aryabhatiyan
Brahma SIddhantika Aryabhatiyan
Surya Siddantika Aryabhatiyan
Charak Samhinta Charak
Jnanassiddhi Indrabhuti
Panchasiddhantika Varahamihira
Brihad Samhita Varahamihira

 

Art and Architecture

  • The Gupta craftsmen distinguished themselves by thier work in iron and bronze. Several bronze images of the Buddha were produced.
  • In the case of iron objects, the best example is the famous Iron pillar found at Mehrauli. It has withstood rain and weather for centuries without rusting.
  • This period marks the beginning of temple architecture.
  • Dasavatara temple at Deogarh in Jhansi is the finest square temple with a low and squat shikhara (tower) above.
  • The temple at Bhitargaon near Kanpur is made of brick.
  • Gupta stone sculptural art was related to the Mathura school.
  • Painting reached its Zenith with regard to furnished by the Ajanta Painting.
  • Their themes were borrowed from Jataka stories i.e. previous incarnations of Buddha and from other secular source – ‘dying princes’, ‘Mother and Child etc.
  • Buddha sitting in Dharma Chakra mudra belongs to Sarnath and the Buddha images of Bamiyan, Afghanistan belong to the Gupta period.
  • Images of Vishnu, Shiva and some other Hidnu gods featured for the first time in this period.

 

Chapter : 9

The Post Gupta (7-12 Century)

Topics :

  • The Pushyabhutis.
  • Harsha Vardhan.
  • Buddhism during Harsha’s reign.
  • Political Organization and State Administration.
  • Hieun-Tsang.
  • The Vakatakas.
  • The Shakas of Mahishaka.
  • The Rastrakutas.
  • The Gangas.
  • The Palas o Bengal.
  • The Senas.

 

  • By the middle of the 6th century a line of Gupta rulers with the same surname, but not connected in the official geneology with the line ruled in Magadha. krishna Gupta (480-502 A.D.), the founder of the dynasty, and his two successours, Harsha Gupta and Jivita – Gupta may be regarded as feudatories of the main Guptas. malwa was the chief centre o Later Guptas until the rise of Harsha.
  • Mahasena Gupta was the most amous ruler of this dynasty, he defeated the Maukhar is He associated himselff with the rising Pushyabhuti dynasty and iving in marria his sister to Aditya Vardhan, the grand father of Harsha. Thus, mahasena Gupta, with the help o Pushyabhuti recovered his kingdom and got victory over kamarupa (Assam). Mahasena Gupta two sons were sent to Thansehwar to be companions o harsha and the third son remained at Malwa. Harsha’s empire included Magadha which he entrusted to the Madhava Gupta. the first son of Mahasena Gupta.

 

The Pushyabhutis

  • The first three rulers of this dynasty i.e. Nara Vardhan. Rajya Vardhan and Aditya Vardhan are given the simple title o Maharaja. These rulers were initially feudal- lords under Gupta Kingdom and subsequently the Huna kings.
  • Aditya Vardhan’s son Prabhakara Vardhan (A.D. 583-605) was the irst ruler of the dynasty to assume the title param bhat-tarak maharaja-dhiraja/ Prabhakar vardhan had made a matrimonial alliance with the maukharis by giving in marriage his daughter Rajyashri to Graha Varman.
  • Prabhakar Vardhan was succeeded by his clder son Rajya Vardhan, but shortly he was killed in a battle with shasanka of Gauda (Bengal). He was succeeded by harsha Vardhan, his younger brother.

 

Harsha Vardhana (606-647 A.D.)

  • He belonged to the Pushyabhuti family and was the son of Prabhakar vardhan, originally the feudatories of the Guptas.
  • Harsha succeeded his brother at Thaneswar. He brought most of north under his control and assumed the title of ‘Siladitya’.
  • He originally belonged to Thaneswar, but shited to Kannauj which after his death was won rom his successors by sthe pratiharas.
  • He brought ‘ 5 Indies’ under his control Punjab, Kannauj, Bengal, Bihar, and Orissa.
  • Harsha used to celebrate a solemn festival at Prayag Allahabad at the end of every 5 years.
  • He wsas a great patron o learning and established a large monastery at Nalanda. Banabhatta. who adored his court, wrote harshacharita, Parvatiparinay and Kadambari.
  • Harsha himsel wrote 3 plays: Priyadarshika, Ratnavali and Nagananda.

 

Buddhism During harsha’s reign

  • The Chinese traveller Hieun-T sang counted nearly 200,000 Buddhist monks, yet it is clear that Buddhism was clearly on the path of decline aainst the resurgent Puranic Hinduism.
  • In Harsha’s time Jainism was prevalent only in the places like vaishali and eastern Bengal.
  • In spite of losses due to accidents and robbery, Hieun-Tsang took with him to China 150 pieces of Buddha’s bodily relics; many images of teachers in gold, silver and sandalwood and 657 volumes of manuscripts, Carried upon 20 horses.
  • In this period Tantricism in both Hinduism and Buddhism came to the forefront.

 

Political Organization and State Administration

  • Samanta system emerged in the post – Gupta period and by the time of harshvardhan ; it was widely prevalent all over North India.
  • Harsha relied more on personal supervison than on an organized bureaucracy.
  • There was a council of ministers, which wielded real power on occasions.
  • According to Hieun- T sang the oicers received their salaries in kind, in grants of land and were paid according to their work.
  • Treason against the king was punished by lifelong imprisonment. Taxation was light and 1/6 was the royal share of the land revenue rom the people.
  • The existence of a department of records and archives shows the enlightened character of the administration.
  • Harsha governed empire on the same line as the Guptas did except that his administration had become more feudal and decentralised.
  • Land grants continued to be made to priests or special services rendered to the state.
  • The chinese pilrim Hieun T sang informs us that the revenucs o Harsha were divided into four parts. one part was earmarked or the expenditure of the king. a second for scholars, a third for the endowment of officials and public servants and fourth for religious purpose.
  • He also tells us that ministers and hih oficers of the state were endowed with land. The eudal practiceo rewarding and paying officers with grants of land seems to have begun under harsha. That is why too many coins were not issued by King harsha.
  • In the empire of Harsha, law and order was not well maintained.
  • Robbery was considered to be a second treason or which the right hand of the robber was amputated. But under the inluence of Buddhism, the severity of punishment was mitigated and criminals were imprisoned for life.
  • Harsha is called the last great Hindu emperor of India, but he was neither a staunch Hindu nor the ruler of the whole country. His authority was limited to North India, except Kashmir-Rajasthan, Punjab, Utter pradesh, Bihar and orissa were under his direct control, but his sphere o infiuence spread over a much wider area.
  • Harsha was unable to extend his power in castern and southern India.
  • In eastern India he faced opposit ion from the Shaivite king Shashanka o Gauda.
  • Harsha’s southward march was stopped on the Narmada River by the Chalukyan king pulkesin II in 620 A.D. who ruled over a great part of modern Karnataka and Maharashtra with his capital at badami in the modern Bijapur district of Karnataka.
  • The kingdom of Harsha Vardhan disintegrated rapidly into small states after his dealth. The three border states of Assam, Nepal and Kashmir resumed their independence. Northern India was divided among several Rajput States.

 

Hieun – Tsang

  • Hieun-T sang (or Yuan Chwang) visited Indian in the first half of the 7th century A.D. and spent about 15 years (630 – 645 ) in the country.
  • He travelled all over the countery and observed everything very minutely. He retuned to his country with a lot of material concerned with the Buddhist aith(such as Buddhist relice. images o Buddha and about 657 volumes of manuscripts) but above all he carried with him the memories of this land.
  • He translated all his memories in the book- from entitled ‘Si-yu-Ki’ or the recordes of the western world. This books is an invaluable source of information regarding Harsha and the political, social, religious and economic conditions of India during his reign.

 

The Vakatakas

  • The Vakatakas came to control parts o the Deccan and Central India till the rise of the Chalukyas.
  • The founder of this Brahmin dynasty was Vindhyasakti.
  • The most important king was Pravarasena I who performed 4 Ashvamedha yagnas
  • He was succeeded by Rudrasen I, Prithvisen I and Rudrasen II respectively.
  • Chandragupta II married his daughter Prabhavati to the vakataka king Rudrasen II.
  • Rudrasen II was succeeded by Divakarasena, Damodarasena or pravarasena who composed a Prakrit work titled setubandha in glorification of Rama, though he was a devotee of Shiva.

 

The Shakas of Mahishaka

  • It was founded by Mana after the decline of the Satvahanas in the Deccan.

 

The Rashtrakutas

  • Its founder was Dantidurga. 
  • Originally he was a district oficer under Chalukyas of Badami.
  • Krishna I is remembered for constructing the amous rock-cut Kailasha temple at Ellora. It was constructed in the Dravidian style.
  • Amoghvarsha was another great ruler who ruled for 68 years.
  • Krishna III set up a pillar of victory and a temple at Rameshwaram after defeating the Cholas.
  • Rashtrakutas are credited with building the cave shrine of Elephants. It was dedicated to shiva, whose image as mahesh (popularly known as Trimurti ) counts among the most magnificent art creations of India. The three faces represent Shiva as Creator, Preserver and Destroyer, and only Shiva is represented in 3 faces and not Brahma, Vishnu etc.

 

The Gangas

  • Also called Chedagangas of Orissa.
  • Narsimhadeva Constructed the Sun temple at Konark.
  • Anantvarman Ganga built the famous Jagannath temple at Puri
  • Kesaris, who ruled Orissa before Gangas built the Lingaraja temple at Bhubaneshwar

 

The Palas of Bengai

  • In the middle the 8th century, the Pala dynasty came into power. Its ounder was Gopala was an ardent Buddhist.
  • Suleiman, an Arab merchant had termed tghe Pala kingdom as Rumi.
  • Dharmpala revived Nalanda University.
  • He also founded the Vikramshila University.

 

The Senas

  • They ruled bengal after the Palas.
  • Its founder was Samantasena. His grandson Vijataprasasti in memory of Vijayasena.
  • He was succeeded by Ballalasena. He wrote danasaara and Adbhutsagara.
  • He was succeeded by lakshmanasenam, Jayadeva. The amous Vaishnava poet of Bengal and the author of Gita Govinda lived at his court.
  • His reign saw the decline of Sena power. The invasions of Bakhtiyar Khalji gave it a crushing blow.

 

Chapter : 10

Post Gupta Period in South India

 

The Chola Empire (9-12 Century)

  • The founder of Chola Dynasty was Vijayalaya Chola, who was at fierst a feu datory of the Pallavas. He captured Tanjore in 850A.D.
  • The greatest Chola rulers were Rajaraja (985-1014 AD ) and his son Rajendra I (1014- 1044AD).
  • Rajaraja built temples in his own name in all these areas. He built a Saiva temple of Rajarajeshwara at Tanjore.
  • Rakemdra I assumed the tiltle of Gangaikondachola and built the city called Gangaikondacholapuram.
  • The Chola Empire was divided into Mandalams or provinces and these in turn were divided into Valanadu and Nadu.
  • The arrangement of Local self government has been regarded as the basic eature of the administration of Cholas.
  • The style of architectuire which came into vogue during this period is called dravida. Ex. Kailashnath temple of Kanchipuram
  • Another aspect was image making which reached its climax in dancing fiure of Shiva called Natraja.
  • Kambama who wrote Ramavatrama was one of the greatest figures of Tamil poetry. His Ramayana is known as Kamba Ramayana.
  • Pampa, Ponna and Ranna are considered as three gems of Kannada poetry.

 

Administration

  • The whoie empire was divided into Mandalam (province ) and these in turn into “Valanadu” or Kottam and Nadu.
  • Village was the basic unit of administration.
  • The Cholas are best known or their Local self – government at village level. Each village had an assembly to look after the affairs of the village.
  • The general assemblies were o three types:
  1. Ur- a general assembly of the village consisting of tax paying residents.
  2. Sabha or Mahasabha – consisted of a gathering o the adult men in the Brahmana villages called ‘Brahmadeya’ and agarhara village granted to the brahmanas and of the and was restricted to the Brahmans of the villages.
  3. Nagaram was found in trading centres alone.
  • The chola officials had only a supervisory roly over these assemblies. The mahasabha possessed the proprietary rights over community lands and controlled the private lands within its jurisdietion. The judicial committee of the Mahasabha xalled the nattar settled both civil and criminal cases o dispute.

 

Famous committees o the Mahasabha :

  • Variyam : Executive Committee of Sabha
  • Tottavariyam : Garden committee
  • Pon – variyam : Gold committee
  • Eri – Variyam : Tank Committee
  • Alunganattar : Executive Committee of Ur
  • Nyayattar : Judicial Committee
  • Udasin – Variyam : Committee of Ascetics
  • Samstua – Variyam : Annual Committee

 

Chalukyas of Vatapi/ Badami

  • This dynasty rose to power in the deccan from the 5th to the 8th century AD and againfrom the 10th to the 12th century AD.
  • They ruled over the area between the Vindhyachal and the Krishna River.
  • The Chalukyas were the arch enemies of the Pallavas, another famous dynasty of the south.

 

Pulakesin I

  • He founded the city of Vatapi (modern badami in Bijapur district of Karnataka) and made it his capital.
  • He performed ashwamedha Yagna to attain supremacy as a ruler.
  • The kingdom was further extended by his sons Kirtivarman and Mangaless.
  • The best known speeimens of Chalukyan art are the Virupaksha temple. (built by Queen Lokamahadevi in 740 AD to commemorate her husband’s victory overthe Pallavas), and the Mallikarjuna temple both at Pattadakal, Karnataka.

 

Pulakesin II

  • Pulakesin II, son of Kirtivarman was the greatest ruler of the Chalukya dynasty, who ruled for almost 34 years.
  • His greatest achievement was his victory in the defensive war against Harshavardhan (A north Indian emperor with his capital at Kannauj) in the year 620 AD.
  • In 641 AD. the chinese pilgrim Hiuen Tsang, visited the kingdom and paid glowing tributes to the king for his efficient and just rule.
  • Pulakesin II was defeated and killed by the Pallava king Narasimhavarman in 642 AD.His capital Vatapi was completely destroyed.
  • Pulakesin was succeeded by his son Vikramaditya who was also a noble and just ruler. He renewed the struggle against his cnemies and managed to restore the former glory of his dynasty to a certain extent.
  • The Chalukyas were ousted by a chieftain Dantidurga. who laid the foundation of Rashtrakuta dynasty.

 

Contribution of the Chalukyas

Art and Architeecture

  • They developed the Deccan or Vesara Style in the building or structural temples, which reached culmination under the Rashtrakutas and the Hoyasalas.
  • The Chalukyas perfected the art of stone building stones finely joined without mortar.
  • The Buddhists the jainas and the Brahmins competed with each other in building cave temples.

 

Temples:

  • The temple-building activity under the Chalukyas of Badami can be broadly divided into two stages. The First stage is represented by the temples at Aihole and Badami. Aihole is a town of temples of which ffour are noteworthy : Ladh Khan temple is a flat at roofed building : durga temple was an experiment seeking to adopt the buddhist chaitya to a brahmanical temple: Hucimaligudi is very similar to the Durga temple but smaller than it: Jaina temple of Meguti Shows some progress in the erection of structural temples, but it is uninished.
  • The second stage is represented by the temples at Pattadakal.
  • The Papanatha temple is the most notable among the temples of the northern style: it also reveals attempts to combine northern and southern eatures in one structure.
  • The Virupaksha temple was built by one of the queens of Vikramaditya II.

 

Pallavas of Kanchi

  • There is controversy regarding the origin of Pallavas. Possibly the Pallavas were a local tribe who established their authority in the Tondainadu or the land or creepers.
  • They were orthodox Brahminical Hindusa and their capital was at Kanchi.
  • With Simha Vishnu (575-600 A.D.) begins the most glorious epoch of the Pallava history. He is said to have deeated rulers of the three Tamil States of Cheras. Cholas and Pandyas and also the ruler of Ceylon.
  • Mahendra Varman (600-625 A.D.) had to fight a deadly and long drawn battle with the Chalukyas. Mahendra Varman was a great patron of art and literature.
  • Mahendra Varman was Succeeded by his son narasimha Varman (625-645 A.D.) in about 625 A.D. He is perhaps the most important ruler o the Pallava dynasty. he defeated the Chalukya ruler Pulakesin II in about 642 A.D. and took hold of his capital Badami of Vatapi. He also fought successful wars against the Cheras, Cholas and the king of Ceylon.
  • It was during his reign, that the celebrated chinese pilgrim Hieun-Tsang visited Kanchi in about 642 A.D. and stayed there for sometime.
  • Narsimha Varman was a great builder like his father. He built many rock-cut temples and laid the oundation of a new city, which was known as Mahabalipuram. He beautified this city with many wonderul shrines: the chief among them was the Dharmaraja Ratha.
  • After the death of narsimha Varman in about 645 A.D. the pallave Empire began to fall with a rapid speed. The successors o Narasimha Varman continued their rule upto the end of 9th century A.D. when under Aparajita Varman (876-895 A.D.) their territory was annexed by the Cholas in about 895 A.D.
  • The pallavas with their capital at kanchipuram were a hereditary hindu dynasty.

 

Art and Archiltecture

  • The development of temple architecture, particularly Dravida style, under the Pallavas can be seen in four staes.
  • Mahendra Group : They comprise the cave style of architecture is to be seen in this group. Examples; are the rock-cut temples at Bhairavakonda (North Arcot district), and Anantesvara temple at Undavalli(Guntur district).
  • Narasimha Group : They comprise the rathas or monolithic temples, each of which is hewn out of a single rock boulder. These monolithic temples are found at Mamallapuram. The rathas, popularly called the Seven Pagodas. are actually eight in number. They are 1. Dharmaraja. 2. Bhima, 3. Arjuna, 4. Sahadeva, 5. Draupadi, 6. Ganesa. 7. Pidari and 8. Valaiyankuttai.
  • Rajasimha Group : There are five examples of this group – at Mahabalipuram (Shore, Isvara and Mukunda temples), one at panamalai in South Arcot, and the Kailasanatha temple at Kanchi. Among all these the most mature example is the last one.
  • Nandivarman Group: This group mostly consists of small temples except the Vaikunthaperumal temple at Kanchi and in no way orms an advance on the achievements of the previous age. But they are more omate, resembling the chola architecture. The best examples are the temples of Muktesvara and Matangesvara at Kanchi the Vadamalisvara at Orgadam (near Chingalpul) and the parasuramesvara at Gudimallam (near Renigunta).

 

Religion

  • The Pallavas were orthodox Brahmanical hindus and most of the Pallava kings were devotees of Shiva, the exceptions being Simhavishnu and Nandivarman who were worshippers of Vishnu.
  • Mahendravarman I was the first to be influenced by the famous Saivite saints o the age.
  • Pallavas were tolerant towards other religions like Buddhism and Jainism.
  • Tamil saints of the 6th and 7th centuries AD were the progenitors of the bhakti movement. The hymns and sermons of the Nayanars (Saivite saints) and Alvars of bhakti. Saivite saints were Appar, Sambandar, Sundarar, and others. Most remarkable thing about this age was the presence o women saints such as Andal (an Alvar).

 

Vijayanagara Empire

  • This was the most famous empire in the histroy of southern India. It lasted for three centuries and checked the expansion o Islamic powers in the region.
  • Two brothers named harihara and Bukka (Sons o Sangama,a chieftain at the court of the Hoysala rulers ) had ffounded city or Vijayanagara on the southern bank of the river Tunggabhadra in the state o Andhra Pradesh.
  • Harihar became the first king of the newly founded empire. After his death Bukka succeded him. After bukka’s death, harihara II (son of Harihar) ascended the throne. he expanded his domains by conquering almost the whole of southern India. A staunch worshipper of Lord Shiva, Harihara II was fairly tolerant towards the followers of other faiths too. He became the irst king of the Vijayanagara Empire to assume the title o maharajadhiraj rajasparmeshwara (the mighty, Sovereign, king of kins).
  • In 1486 Vir Narasimha of Chandrairi, (who belonged to the Tuluva dynasty ) took over the reigns o the Vijaynagar Empire. His son Krishanadev Raya has been acclaimed the greatest ruler of Vijayanagara and one of the most famous kings iin the history of India.
  • A great warrior he almost invariably won the wars which he waed throughout his period of kingship.
  • During the period 1511-1514 he captured southern Mysore, Shivasmudram fortress and Raichur (Karnataka), defeated gajapati the erstvhile king of Orissa and captured Udaigiri (Orissa) in that order.
  • His most outstanding achievement was the defeat inflicted on one of the Bahamani rulers Ismail Adil Shah on 19th March 1520. This iandmark evernt put an end to the Muslim dominace in the southern part of the country.
  • During his later years, Krishnadeva Raya strongly focused on the oranization of his empire and improving its administration. In order to maintain friendly relation with foreign powers (who were beginning to gain a oothold in India) particularly the Portuguese, he ranted some concessions to the portuguese governor Alphonsde de Albuquerque.
  • The period witnessed tremendous growth and development in the spheres of Literature, music are and culture.
  • Raya himself was an accomplished poet, musician, and scholar and extremely well versed in Sanskrit, Telugu and Kannada. He patronized many poets and authors notably the Ashtadiggajas (Literally: Poets or a giggantic stature ) of Telugu language.
  • The famous scholar and writer Tenali Rama adorned his court.
  • The famous Vithalswami temple and the hazara tempie (literally a thousand ) both at Hampi built during his reign are magnificent specimens of Hindu Temple architecture, executed in the Vijaynagar style of architecture.
  • The Vijayanagar Empire witnessed the arrivai of European traders (especially the Portuguese ) in India.
  • Krishnadeva Raya encouraged forein trade which necessitated the use of currency. The coins of the Vijayanagara Empire were chiefly made with gold and copper. Most of the gold coins carried a sacred image on one side and the royal legend on the reverse. Some gold coins bore the images of Lord Tirupatis.

 

Bahamani Kingdom

  • According to historical records, a rebel chietaiin (Allauddin Hassan) of Daulatabad, near Ellora, Maharashtra, which was under Muhammad Bin Tughalaq, founded the bahamani kingdom.
  • Allauddin Hassan assumed the name of Gangu Bahamani in memory of his Brahmion mentor. His kingdom comprised parts of present day karnataka, Maharashtra, and Andhra Pradesh. South of his kingdom lay the Vijayanagara Empire against which it had to fight continuous wars for political reasons.
  • Firuz Shah Bahamani (1397-1422 AD) fought three major battles against the Vijayanagara Empire without any tangible results. He was a great scholar, well tangible in reliious and natural sciences.
  • According to his court poet Ferhishta firuz Shah was true Muslim in spirit notwithstanding his vices fondness for wine and music both strictly orbidden by islam.
  • Firuz Shah was compelled to abdicate in favour of his brother Ahmad Shah I who successfully invaded Warangal and annexed most part of it to his empire. The conquest of Warangal proved to be a shot in the arm o the Bahamanis. The kingdom gradually expanded and reached its zenith under the prime ministership of Mahmud Gawan (1466-1481AD).
  • Mahmud Gawan arrived and settled down in bidar from Persia in the Year 1453. A great scholar o fIslamic cultural traditions, he established and funded a Madarassa which was modelled along the lines of the universities of samarkand and Khorasan (both in Central Asia).
  • In 1482 Gawan was executed by Sultan Muhammad Shah the last ruler of the undivided Bahamani Empire.
  • After Gawan’s death the kingdom got fragmented into five parts- the Adil Shahis of Bijapur the Qutub shahis o Golconda, the Nizam Shahis of Golconda, the Nizam Shahis of Ahmednagar, the Barid Shahi of Bidar and lastlyh the I mad Shahis of Berar.
  • The five kingdoms came together to wage a war agbainst the mighty Vijayanagara Empire and in flicted a death- blow to it in 1565. A few years down the line the Imad Shahi kingdom was conquered by Nizamshahis in 1574 AD; the Barid Shahi kingdom was annexed by Adil Shahis in 1619 AD. 
  • The Bahamani peridod withnessed the upsurege of secularism and communal harmony. Hazrat Banda Nawaz (1321-1422 AD) the great Sufi was patronized by the Bahamani kings and his dargah located at Gulbarga in Karnataka, is a famous Pilgrimage for both Hindus and Muslims alike.
  • In the field of architecture, the bahamani rulers evolved a distinct style by drawing heavily from persian, Turkey, and Arabic architectural styles and blending it with local styles. One of the largest and most famous domes in the world, the Gol Gumbaz at Bijapur and the majestic gateway Charminar at Hyderabad and the Golconda Fort near Hyderabad are the hallmarks of Bahamani architecture.

 

Chapter : 11

The Sangam Age

Topic :-

  • The Pandayas
  • The Cholas
  • The Cheras
  • Sangam Literature
  • Sangam Administration

 

The Pandayas (Emblem – Fish)

  • The Pandyas were first metioned by Megasthanese, who said that their kingdom was famous for pearls.
  • The Pandyan territory included modern districts of Tirnelvelli Ramanand and Madurai in tamil nadu it had its capital at Madurai Situated on the banks of Vaigai river.
  • The Pandya king profited from trade with Roman Empire and sent emissaries to Roman emperor Augustus and Trojan.
  • The Pandyas find mention in the Ramayana and mahabharata.
  • The earliest known Pandyan ruler was Mudukudumi, who ruled from madurai. He accused Kovalan of theft. As a result the city of Madurai was laid under a curse by Kannagi (Kovalam’s wife).

 

The Cholas (Emblem – Tiger)

  • The chola kingdom called as Cholamandalam was situated to the north east of Pandya kingdom between Pennar and Vellar rivers.
  • The Chola kingdom corresponded to modern Tanjore and Tiruchirapalli districts.
  • Its inland capital was uraiyaur a place famous for cotton trade. One of the main sources of wealth for Cholas was trade in cotton cloth.
  • Puhar identical with Kaveripattanan was the main port of Cholas and served as alternative capital of Cholas.
  • The earliest know Chola king was Elara who in 2nd centurey BC conquered Sri Lanka and ruled over it for nearly 50 years.
  • Their greatest king was Karikala (man with charred leg ) who founded puhar and constructed 160 km of embankment along the Kaveri River.
  • They maintained and efficiend navy.
  • The Cholas were wiped out in the attack of pallavas from North.

 

The Cheras (Emblem-Bow)

  • The Chera country occupied the portion of both Kerala and Tamil Nadu.
  • The capital of Cheras was Vanjji.
  • It main ports were Muzris and Tondi.
  • The Romans set up two regiment at Muzris Identical with Cranganore) in Chera country. The also buitlt a temple of Augustus at Muzris.
  • One of the earliest and better known among Chera rulers was Udiyangeral. It is said that he fed both the armies of Kurukshetra war and so earned the title udiyangeral.
  • The greatest of Chera king however was Sengutuvan of Red Chera. It is said that he invaded north and even crossd the Ganga.
  • He was also the founder of the fimous Pattini cult related to worship of goddess of chastity Kannagi.

 

Sangam Administration

  • The king was the center of administration. He was called Ko. Mannam. Vendan Korravan or Iraivan. Avai was the court of crowned monarch.
  • The kingdom was divided into mandalam, nadu (province), ur (town, sirur (Small village), perur (big Village).
  • Pattinam : Name of coastal town
  • Puhar : Harbour areas
  • Cheri : Suburb of town

 

Officials of Sangam Adminisration Revenue Administration
Amaichhar : Karai : Land Tax
Ministers
Purohitar : Purhoits Irai : Tribute paid by feudatories and boots collected in war.
Dutar : Envoys Ulgu: Customs duties
Senapatiyar : Senapati Irvavu : Extra demand or forced gift
Orar : Spies Variyam : A well known unit of territory yielding tax
Variyar : Tax collector

Sangam Literature

 

Sangam Literature

  • Sangam was college or assembly or Tamil poets held probably under royal patronage of pandyan kings in Madurai. According to tradition the assembly lasted or 9990 years and was attended by 8,598 poets and 197 pandyan kings.
  • The first Sangam was attended by Gods and legendary sages and its entire works have perished.
  • Of the second Sangam the only surviving work is Talkappiyam an early work on Tamil grammar written by tolkapiyyar.
  • The sangam literature can roughly be divided into two groups narrative and didactic.
  • The narrativetivetexts are called melkannaku or eighteen major works consisting of eight anthologies (Ettutogai) and ten idylls (pattupattu).
  • The didactic works are called Kilkannaku or eighteen minor works consisting or Tirukural and Naladiyar.

 

The Epics

  • Silappadika ram (The jewelled Anklet): Written by I lango adigal, it deals with the story of Kovalam and Madhavi o Kaveripattinam.
  • Manimekalai : Written by Sattanar, dealas with the adventures or Manimekalai, daughter born of Kovalan and Madhavi
  • Sivaga Suindamani : Writen by Tiruttakkardevas.

 

Chapter : 12

Art and Arehiteeture in Ancient India

Topics :-

 

  • Art o Sculpture

 

  • Gandhara School
  • Mathura School
  • Amravati School

 

 

  • Cave Architecture

 

  • Ajanta Caves
  • Ellora Caves
  • Bhimbetaka Caves
  • Elephanta Caves
  • Bagh Caves
  • Mahakali Caves
  • Jogeshwar and Kanheri Cave
  • Karla and Bhaja Caves

 

 

  • Temple Architeeture

 

  • Nagara School
  • Dravida School
  • Vesara School

 

Art of Sculpture

  • Ancient India witnessed remarkable progress in the art o sculpture. The three important schools namely – Gandhara, Mathura and Amravati grew and progressed during ancient India.

 

Gandhara School (50 B.C. – 500 A.D.)

  • It clearly exhibits the influence of Greek, Hellenistic art and Roman art (called as Greeco – Roman, Greeco – Buddhist, and Indo – Greek).
  • The art flourished in the North Western frontier of India, the region called the Gandhara Pradesh and therefore, it has been named as the Gandhara School of Art.
  • However, the patrons of this art were not Greeks but sakas and Kushans.
  • The art pieces of Gnadhara School have been ound at Bimaran, hastnagar, Sakra Dheri, Shah – ji ki dheri, and at the various sites of Taxila.
  • The school specialized in Buddha and Bodhisattva images, stupas and monstaries. 
  • Built mostly of blue schist stone.
  • Buddhas o this school are gentle, graceful and compassionate (lacking the spirituality of those of the Gupta period). The images of the Buddha were so beautifully made that they look like the image of apollo, the Greek god of beauty.
  • The chief characteristics are the realistic representation of human figuresm distinguished muscles of the body and transparent garments. It is marked by the representation of thick drapery with large and bold foldings. It is also known for rich carving elaborate ornamentation and complex symbolism.
  • In its later stage it was affected by the mathura school and when finally grown up it affected the art of sculpture in china and Central Asia.

 

Mathura School (150-300 A.D.)

  • The Mathura School was inluenced by the Gandhara School in the first half of second century A.D. Buddhas of Gnadhara were copoed here but in a more refidned way.
  • The art represents an important formative stage in the history of Indan art.
  • The great majority of creation consisted of nude seminude figures of female yakshinis or Apsara in erotic pose.
  • A standingfemale figure of Amohini the standing statue of Kanishka kept in tghe museum of Mathura, the statue of a slave girl kept in the museum of Benaras and a large member of igures and images in stone of the Buddha and Boddhisttavas Yakshas and Yakshinis males and females ffound at Mathura and its nearby region have been regarded as the finest piece of the art o sculpture.
  • The images exhibited not only form masculinity and energetic body but also grace and religious feeling.
  • Yet the most remarkable poece of the Mathura Art are its beautiful female figures. Most off these figures are nude or semi nude, have full found breasts, full heavy lips and slender waists. Besides, posture of their body head and hands and legs are definitely erotic. Thus their aim is franly sensual.
  • The stone used was mostly spotted red andstone found at Fatehpur Sikri near Agra.
  • The attempt to display spiritual strength by halo began with Mathura School.
  • The forms of Brahamanical deities became crystallized at Mathura for the first time.
  • In the early stages the school was inspored by jainism. Afterwards the images of the Buddha replaced them.
  • The mathura artists also carved out images o Brahmanical divinities. Popular Brahmanical gods, Shiva and Vishnu were represented alone and sometimes with their consorts, Parwati and laxmi respectively. Images of many other Brahmanical deities like Brahma, Surya, Balram, Agni, kartikeya, Kubera etc. were also executed in stone.

 

Amravati School (150-400 A.D.)

  • This school of art developed at Amravati, on the banks of the River Krishna in modern Andhra Pradesh.
  • It is the site for the largest Buddhist stupa of south India. Its construction began in 200BC and was completed in 200AD.
  • Created beautiful human figures.
  • During this period, for the first time art came closer to the physical and emotional needs of man.
  • The art is frankly naturalistic and sensuous. The female figures in diferent moods and poses(standing, sitting, bending, flying, dancing etc.) are its best creations.
  • This school serves as a link between the earlier art of Bharhut, Gaya and Sanchi on the one hand and the Gupta and Pallava art on the other.
  • Its main centres were Amravati Nagararjuna Konda and jaggayapeta.
  • Its artists mainly used white marble for the construction o figure and images.

 

Cave Arehiteeture

Ajanta Caves

  • The cave temples of Ajanta are situated north of Aurangabad, Maharashtra. These caves were discovered by the British officers in 1819 AD.
  • The thirty temples at Ajanta are set into the rocky sides of a crescent shaped gorge in the shayadri hills of the Sahyadri ranges. At the head of the gorge is a natural pool which is fed by a waterfall.
  • The earlier monuments include both chaitya halls and monasteries. These date from the 2nd to 1st centuries B.C. The excavations once again revived during the reign of the Vakataka ruler Harishena durintg 5th century.
  • The sculptures contain an impresivwe array of votive figures, accessory figures, narrative episodes and decorative motifs.
  • The series of panintings is unparalleled in the history of Indian art, both for the wide range of subjects and the medium.
  • The caves depict a large number of incidents from the life of the Buddha (Jataka Tales).
  • Cave number one contains wall fresos that include two great Bodhisattvas, Padmapani and Avalokiteshvara. Other wonderful paintings in Ajanta are the flying apsara, dying princess and Buddha in preaching mode.

 

Ellora Caves

  • Ellora is located at 30km from the city of Aurangabad, Maharashtra. Ellora has 34 caves that are carved into the sides of a basaltie hill.
  • The caves at Ellora contain some of the finest specimens o cave temple architecture and exquisitely adorned interiors, built by the Rashtrakuta rulers.
  • Ellora represents the epitome of Indian rock- cut architecture. 
  • The 12 Buddhist caves, 17 Hindu caves, and 5 Jain caves, built in proximity, demonstrate the religious harmony prevalent during this period of Indian history.
  • The nobililty, serenity and grace of Buddha are visible in the Buddhist caves of Ellora.
  • Ellora caves also contain images of Vishwakarma, the patron saint of Indian craftsmen.
  • The Kailasha temple in Cave 16 in indeed an architectural wonder, the entire structure having been carved cut of a monolith.

 

Bhimbetaka Caves

  • Bhimbetka is located in the Raisen District of Madhya Pradesh about 45 km to the southeast of Bhopal.
  • Bhimbetaka, discovered in 1958 by V.S. Wakanker, is the biggest prehistoroc art depository in India. Atop the hill a large number of rock- shelters have been discovered, of which more than 130 contain paintings.
  • Excavations in some of the rock-shelters revealed history of continuous habitation from early stone Age (about 10000 years) to the end of Stone Age (c. 10,000 to 2,000 years) as seen from artificially made stone tools and implements like hand- axes, cleavers, scrappers and knives.
  • Neolithic tools like points, trapezes and lunates made of chert and chalcedony, besides stone querns and grinders, decorated bone objects, poeces of ochre and human burials were also found here.

 

Elephanta Caves

  • The Elephanta Caves are a network of sculpted caves located on Elephanta Island in Mumbai harbour. the island located on an arm of the Arabian Sea, consists of two groups of caves: the irst is a large group of five Hindu caves, the second, a smaller group of two Buddhist caves.
  • The Hindu caves contain rock cut stone sculptures, representing the Shaiva Hindu sect, dedicated to the god Shiva. The caves are hewn from solid basalt rock.
  • The 6th century Shiva temple in the Elephanta caves is one o the most exquisitely carved temples in India. The central attraction here is a twenty-foot high bust o the deity in three-headed from. His image symbolizes the fierce, feminine and
  • meditative aspects of the great ascetic and the three heads represent Lord Shiva as Aghori Ardhanarishvara and Mahayogi.
  • Aghori is the Aggressive form of Shiva where he is intent on destrunction. Ardhanarishvara depicts Lord Shiva as half- man half woman signifying the essential unity of the sexes. The Mahayogi posture symbolises the meditative aspect.
  • Ail the caves were aslo originally painted in the past but now only traces remain.

 

Bagh Caves

  • Dhar district in Madhya Pradesh
  • Buddhist in inspiration
  • Paintings are both secular and religious
  • Influenced by Ajanta style of paintings
  • Most beautiful one is that of Avalokiteshvara padmapani
  • Strong resembleance to the frescoes of Sigiriya in Sri Lanka.

 

Mahakali Caves

  • These are rock- cut Buddhist caves situated in the Udayagiri hills, about 6.5km from Mumbai.
  • These were excavated during 200 BC to 600 AD and are now in ruins.
  • They comprise of 4 caves on the southeastern face and 15 caves on the northwestern ace. Cave 9 is the chie cave and is the oldest and consists of a stupa and figures of Lard Buddha.

 

Jogeshwar and Kanheri Coves

  • Located in the western suburbs of Bombay, it is second largest known cave after the Kailasa cave in Ellora and houses a Brahamanical temple dating back to the 6th century AD.
  • Excavated between the 1st and 2nd centuries, the Kanheri is a 109-cave complex located near Borivili National Park in Bombay. The kanheri caves contain illustrations from hinayana and Mahayana Buddhism and show carvings dating back to 200 BC.

 

Karla and Bhaja Caves

  • About 50-60 kms away from Pune these are rock- cut Buddhist caves dating back to the Ist and 2nd centuries BC.
  • The caves consist of several viharas and chaityas.

 

Temple Architeetur

Parts of a temple complex

  • Jagati – raised surface, platform of terrace upon which the temple is placed.
  • Mandapa/mantapa – pillared outdoor hall or pavilion for public rituals.
  • Antarala – a small antichamber or foyer between the garbhagriha (sanctum sanctorum) and the mandapa, more typical of north Indian temples.
  • Ardha Mandapa – intermediary space between the temple exterior and the garba griha (sanctum sanctorum) or the other mandapas of the temple
  • Asthana Mandapa – assembly hall
  • Kalyana Mandapa – dedicated to ritual marriage celebration of the Lord with Goddess
  • Maha Mandapa – When there are several mandapas in the temple, it is the biggest and the tallest. It is used for conducting religious discourses.
  • Garbhagriha – the part in which the idol off the deity in a Hindu temple is installed i.e. Sanctum sanctorum. The area around is referred as to the Chuttapalam, whcih generally includes other deities and the main boundary wall o the temple. Typically there is also a Pradikshna area inside the Grbhagriha and one outside, where devotees can take Pradakshinas.
  • Sikhara or Vimana – Literally means “mountain peak” refer to the rising towere over the sanctum sanctorum where the presiding deity is enshrined is the most prominent and visible part of a Hindu temples.
  • Amalaka – a stone disk usually with ridges on the rim that sits atop a temple’s main towere (Sikhara).
  • Gopuram- the elaborate gateway-towers of south Indian temples, not to be confused with Shikharas.
  • Urushringa – An urushringa is a subsidiary Sikhara, lower and narrower, tied against the main sikhara. They draw the eye up to the highest point, like a series of hills leading to a distant peak.

At the turn of the first millennium CE two najor types of temples existed, the northern or Nagara style and the southern or Dravida styal of temple architecture. They are distinguishable mainly by the shape and decoration of their shikhara.

  • Nagara style : The shikhar is beehive/curvilinear shaped.
  • Dravida style : The shikhar consists of progressively smaller storeys o pavilions.
  • A third style termed Vesara style was once common in karnataka which combined the two styles. This may be seen in the classic Hindu temples o India and southeast Asia, such as Angkor Wat, Brihadisvara, Khajuraho, Mukteshvara, and Prambanan.

 

Nagara School

  • Nagara temples have two distinet features :-
  1. In plan the temple is a square with a number of graduated projections in the middle of each side givinga cruciform shape with a number of re-entrant angles on each side.
  2. In elevation, a Sikhara, i.e., tower gradually inclines inwards in a convex curve.
  • The projections in the plan are also carried upwards to the top of the Sikhara and thus there is strong emphnasis on vertical lines in elevation.
  • The Nagara style is widely distributed over a greater part of India, exhibiting distinet varieties and ramiication in lines of evolution and elaboration according to each locality.
  • Examples of Nagara architecture are:

 

Odisha School

  • 8th to 13th century
  • Lingaraj temple in Bubaneshwar
  • Sun temple o Korank (climax of Nagar Style)

 

Chanadela School

  • Kandaria Mahadev temple, Kajuraho
  • Typical nature is Erotism

 

Gujarat under solankis

  • Modhera sun temple
  • Pajasthan delwara jain temple

 

Dravida School

  • Dravidian style tempies consist almost invariably of the four following parts, differing only according to the age in hich they were executed :-
  1. The principal part, the temple itself, is called the Vimana. It is always square in plan and surmounted by a pyramidal roof of one or

more stories; it contains the cell where the image of the god or his emblem is placed.

  1. The porches or Mantapas, which always cover and precede the door leading to the cell.
  2. Gopurams are the principal geatures in the quadrangular enclosures that surround the more notable temples.
  3. Pillared halls or Chaultris – used for various purposes, and which are the invariable accompaniments of these temples.
  • Besides these, a temple always contains temple tanks or wells for water (used for sacred purposes or the convenience of the priests); dwellings for all grades of the priesthood are attached to it and other buildings for state or convenience.
  • Examples : Brihadeshwara temple (Periya kovil) Tanjavur, Temple of gangaikondacholapuram.
  • The Dravidian style of temple architecture developed under the following rulers:-
  1. Pallavaa Style
  2. Chola Style
  3. Pandya Style
  • Dravida Style under the Pallavas can be seen in four stages.

 

Mahendravarman Style

  • This style flourished during the period of Mahendravarma.
  • The influence of the cave style of architeeture is to be seen in this style.
  • Temples were called mandaps and were simple pillored halls.
  • Examples are the rock cut temples at Bhairavakonda (North Arcot District ) and Anantsvara temple at Undavalli (Guntur districet).

 

Narshinghvermana Style (Mamala Style)

  • This style flourished during the period of narshingvermana I.
  • The temples are more ornamental slender and taller.
  • These comprise the rathas or the monolithic temple each of which is hewn out of a single rock- boulder. These monolithic temples are found at Mamallapuram.
  • The rathas Popularly known as the Seven are Dharmaraja, Bhima, Arjuna Sahadeva Draupadi, ganesha Pidari and Valaiyankuttai.

 

Rajasimha Style

  • This style flourished during the period of Narshingvermana II.
  • Bricks and timber substituted the stones in building temples.
  • There are five examples of this gropu- three at Mahabalipuram (Shore, Isvara and Mukunda temples) one at Panamali in south Arcot and the temple of Kailash temple at Kanchi.

 

Nandivarmans style

  • This group mostly consists of small temples except the Vaikuntaperumal temple at Kanchi and in no way froms an advance on lthe achievemnets of the previous age. But they are mosr ornate, resembling the Chola architecture.
  • The best exmples are the temples of Mukteshwar and Matangeshwar at Kanchi, the Vadamalisvara at orgadam (near Chingalput), and the Parasuramesvara at Gudimallan (Renigunta).

 

Chola Style

  • In the temples, the vimana or the tall pyramidical tower dominates the whole stucture of the shrine and imparts an extraordinary dignity to it.
  • Gopuram and Garbhagriha are the other two important structures.
  • Brihadisvara temple at Tanjore (built by Rajaraja); also called Rajarajesvara temple.
  • Gangaikondacholapuram temple (built by Rajendra Chola).
  • Other examples are the temples of vijayala- Choleswara the nageswara temple, the Koranganatha temple and the muvarakovintah temple.

 

Pandya Style

  • Gopuram attained maturity under Pandyas.
  • Example : Tirumalai temple

 

Hoyasala Art

  • Temples usually stand on a high plat form.
  • The minute carving of the Hoyasala temples is their most attractive feature, achieving the effect of Sandalwood and ivory carving and reproducing the same infinite variety of ornamental decoration.
  • The temple at Hoyasaleshvara at Halebid is the greatest achievement of Hoysala art.

 

Vesara School

  • The Vesara style is also called as the Badami chalukya style.
  • It has the combined features of both Nagara and Dravida style. The main reason behind the combination is the location of Badami Chalukyas which was at the buffer zone between northern Nagar style and southern Dravida style.
  • The Vesara style reduces the height of the temple towers even though the numbers of tiers are retained. This is accomplished by reducing the height of indivaidual tiers The semi circular structures of the BVuddhist chaityas are also borrowed as in the Durga temple at Aihole.
  • Virupaksha temple of Pattadakal is the finest example of Vesara style.
  • The trend started by the Chalukyas of Badami was further refined by the Rashtrakutas of Manyakheta in Ellora, Chalukyas of Kalyani in Lakkundi, Dambal, Gadag etc. and epitomized by the Hoysala Empire.
  • The trend started by the Chalukyas of Badami was further refined by the Rashtrakutas of manyakheta in Ellora, Chalukyas of Kalyani in Lakkundi, Dambal, Gadag etc. and epotomized by the hoysala Empire.
  • The Hoysala temples at Belur, halebidu and Somnathpur are supreme examples of this style.
  • The temples built in the Vesara style are found in other parts of India also. They include temples at Sirpur, Baijnath, Baroli and Amarkantak.
  • Stone Temple : Vishun temple at deogarh commonly called the dasavatara in an example of Gupta architecture.
  • Parvati temple at Nachna-Kuthara is contemporaneous with the vishnu temple at Deogarh and is a notable achievement of Gupta Art.
  • Brick Temple : Temple at Bhitargaon.

 

Nagara Style Dravida Style Visara Style
Northern Region Southern region In between – combination of darvida and nagara
Shikhara is curvilinear Sikhara pyamidal
No role of pillar Pillar importantq
No tank Tank may be there
No enclosure Enclosure and poguram Vimana
Ex: Mahadeva Temple, Kajuraho Ex: Brihadeshwara temple, Tanjavur Ex: Virupaksha Temple, Pattadakal

 

Temples of Gupta period
Place Temple
Bhumara (Nagod) Shiv temple
Tigawa (Jabalpur) Vishnu temple
Devgarh (jhansi) Dasavatara Temple
Shirpur Lakshman temple (Brick temple)
Udaygiri Vishnu Temple
Bhitri Brick Temple
Nagod (Koh) Shiv temple

 

Temple Style Ruler / Dynasty
Lingraj temple Nagara Anantavarman Chodaganga Deva (Eastern Ganga dynasty)
Sun temple at Konark Nagara Narasimhadeva I (Eastern Ganga Dynasty)
Khajuraho temple Nagara Chandela ruler
Temple of Kandariya Mahadev Nagara Vidhyadhara (Chandela dynasty)
Sun temple at Modhera Nagara
Jain temple at Diwara Nagara Rashtrakuta dynasty
Kailash temple (Ellora) Vesara Rashtrakuta dynasty
Dasavatara temple (Jhansi) Vesara Gupta Period
Cave temple at Elephanta Vesara Rashtrakuta
Mamailapuram temple Dravida Pallava dynasty
Kailash temple (Kanchi) Dravida Pallava dynasty
Vaikunta Perumal temple Dravida
Brihadeshwara temple Dravida Rajaraja Chola
Gangaikanda Cholapuram temple Dravida rajendra I Chola
Tirumalai temple Dravida Pandya dynasty

 

History and Management

History and Management

Geetanjali Academy- By Jagdish Takhar

 

 

Unit – I

(यूनिट – I)

Part – A

भाग – अ

Note : Attempt All questions. Answer the following questions in 15 words each. Each question carries 2 marks.

 

नोट: सभी प्रश्नों के उत्तर दें। निम्न प्रश्नों का उत्तर 15-15 शब्दों में दें। प्रत्येक प्रश्न के 2 अंक हैं।

Q.1 प्रबोधन युग’ (Enlightenment Age) ने यूरोप के इतिहास की धारा को किस प्रकार प्रभावित किया?

      How Enlightenment Age impacted the theme of European history?

Q.2 लिओनार्दो दा विंची और माइकल एंजेलो का पुनर्जागरण में योगदान।

      Contribution of Leonardo de vinchi and Micheal Angelo in Renaissance?

Q.3 रिफॅारमेशन एवं प्रोटेस्टैंट धर्म ।

      Presbyterian sect and calvin sect.

Q.4 प्रेसबिटेरियन संप्रदाय एवं कैल्विन संप्रदाय।

      Presbyterian sect and calvin sect.

Q.5 सवाई प्रताप सिंह की सांस्कृतिक उपलब्धियों के बारे में लिखिए।

     Describe the Cultural Achievements of Sawai Pratap Singh

Q.6 मथुरा शैली जहां विशुद्ध भारतीय शैली थी वहीं गांधार कला पर ग्रीक प्रभाव देखने को मिला, दोनों का तुलनात्मक परीक्षण प्रस्तुत करें।

      When the Mathura style is typical Indian style while Gandhar style show the Greek impact, Comparative examine it.

Q.7 स्वर्ण काल।

Golden Age.

Q.8 एगमोर दल

     Agmor troop

Q.9 संगम साहित्य, दक्षिण भारत की संस्कृति का प्रतीक है। स्पष्ट करें।

      Sangam Literature is a symbol of South Indian Culture. Illustrate.

Q.10 बारदोली किसान सत्याग्रह

     Bardoli Peasant Movement

Q.11 कंपनी चित्रकला शैली 

     Company School of Painting

Q.12 ब्रिटिश कालीन धन निष्कासन सिद्धांत से आप क्या समझते है?ं इसके प्रमुख आयाम स्पष्ट करें।

    What do you mean by British period drain of wealth. Describe its various dimention.

Q.13 नम्बूदरी एवं बाप दफन जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ हुए कृषक विद्रोह को स्पष्ट कीजिये।

     Describe the peasant movement against Namboodari and Baap Dafan Zamindari system.

Q.14 स्वामी दयानन्द सरस्वती के शुद्धि आंदोलन से आप क्या समझते है?

    What do you mean by “Reform Movement” of Swami Dayanand Saraswati?

Q.15 बैराठ का महत्व।

     Importance of Bairath.

Q.16  राजस्थान की मृण मूर्ति कला को समझाओ।

     Describe Terracotta art of Rajasthan.

Q.17 बीकानेर चित्रकला पर टिप्पणी लिखिए।

    Comment on Bikaner style of painting.

Q.18चौमुखा मन्दिर

    Chaumukha Temple.

Q.19 चिश्ती और सूफी मत ने किन शिक्षाओं पर बल दिया।

     Chishti and Sufis sect emphasized on what teaching?

Q.20अकबर कालीन किन्हीं दो चित्रकारों के नाम लिखिए।

    Mention two names of painters during Akbar’s regime?

 

Part – B

भाग – ब

Note : Attempt All questions. Answer the following questions in 50 words each. Each question carries 5 marks.

नोट:सभी प्रश्नों के उत्तर दें। निम्न प्रश्नों का उत्तर 50-50 शब्दों में दें। प्रत्येक प्रश्न के 5 अंक हैं।

 

Q.21 ‘‘क्रिप्स मिश्न एक पोस्ट- डेटेड चैक था’’ टिप्पणी।

    Comment Cripps Mission – A Post dated cheques.

Q.22 क्या आप इस मत से सहमत है कि द्वितीय विश्व युद्ध ने एक नई विश्व व्यवस्था की स्थापना की?

     Do you agree that the second world war created a new world order.

Q.23 बौध और जैन धर्म के प्रचार एवं विचारधारा पर टिप्पणी कीजिए।

     Comment on Buddhism and Jainism Ideology and their impeaching method.

Q.24 शाहजहॉ कालीन वास्तुकला की मुख्य विशेषताओं पर टिप्पणी लिखिए।

    Comment on Shahjahan period architecture attributes.

Q.25 सरदार पटेल की राष्ट्रीय एकीरण में भूमिका।

      Role of Sardar Patel in national integration.

Q.26 सूफी व भक्ति उपासनाओं मे समानता को स्पष्ट कर।

    Clarify Sufi and Bhakti sect similarities.

Q.27 पुनर्जागरण ने साहित्य को किस प्रकार प्रभावित किया।

    How Renaissance have impacted the literature.

Q.28 रावचंद्रसेन राठौड़ व अकबर के मध्य संघर्ष का विवरण लिखिए।

   Describe the struggle in between Rao Chandrasen Rathore and Akbar.

 

Part – C

भाग – स

Note : Attempt All questions. Answer the following questions in 100 words each. Each question carries 10 marks.

Q.नोट: सभी प्रश्नों के उत्तर दें। निम्न प्रश्नों का उत्तर 100-100 शब्दों में दें। प्रत्येक प्रश्न के 10 अंक हैं।

Q.29 महात्मा गाँधी ने “राष्ट्रीय आंदोलन को जन आंदोलन” में परिवर्तित कर दिया। सविस्तार उल्लेख कीजिए।

      Illustrate the sentence “Mahatma Gandhi converted the national movement in a mass movement.

Q.30 प्रति धर्म सुधार आंदोलन (Counter Reformation) से क्या आशय है? इस संबंध मे ट्रेन्ट परिषद (Trent Council) के योगदान का वर्णन कीजिए।

    What do you mean by counter reformation. How Trent Council contribute in it.

Q.31 औद्योगिक क्रांति से क्या आशय है, उन कारणों का उल्लेख कीजिए जिनसे औद्योगिक क्रांति संभव हुई।

    What do you mean by the Industrial revolution. Describe the causes which make it possible.

Q.32 भारत का पहला महान स्वतंत्रता संग्राम अपने उद्देश्यों में असफल रहा किंतु प्रयासों में सफल था। समीक्षा कीजिए।

The first war of Indian independence failed in its objectives but successful in its efforts. Analyse it.

Q.33 मौर्योत्तर काल राजनीतिक अस्थिरता के साथ-साथ सांस्कृतिक सजीवता एवं आर्थिक विकास का युग था, व्याख्या कीजिए।

Post Mauryan period was the era of cultural inheritance and economic development along with the political instability. Describe.

Q.34 “भक्ति एवं सूफी परंपरा ने भारतीय प्राचीनतम सांस्कृतिक गौरव को पुनः से उजागर किया अर्थात् यह भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण था” कथन को मद्देनज़र रखते हुए दोनों परम्पराओं का तुलनात्मक महत्व स्पष्ट करें।

Bhakti and Sufi tradition had highlighted the oldest cultural pride of India again, keeping the midwifery in view of Indian cultural renaissance, explain the comparative significance of both traditions.

Q.35 भारत का विभाजन अपरिहार्य था ‘‘टिप्पणी कीजिए।

Partition of India was inevitable. Comment.

 

Unit – II

भाग – अ

Note : Attempt All questions. Answer the following questions in 15 words each. Each question carries 2 marks.

 नोट: सभी प्रश्नों के उत्तर दें। निम्न प्रश्नों का उत्तर 15-15 शब्दों में दें। प्रत्येक प्रश्न के 2 अंक हैं।

Q.1 निर्देश की एकता 

     Unity of instruction

Q.2 भर्ती में लेटेरल एंट्री से आप क्या समझते है ?

    What do you understand by Lateral Entry in Recruitment.

Q.3 ग्रेपवाइन से आप क्या समझते है?

    What do you understand by Grapevine?

Q.4 मानसिक क्रांति (Mental Revolution) ?

Q.5 ऑन द जॉब प्रशिक्षण विधियाँ क्या हैं?

What are the methods of on the job training?

 

Part – B

भाग – ब

Note : Attempt All questions. Answer the following questions in 50 words each. Each question carries 5 marks.

नोट: सभी प्रश्नों के उत्तर दें। निम्न प्रश्नों का उत्तर 50-50 शब्दों में दें। प्रत्येक प्रश्न के 5 अंक हैं।

Q.6 कार्यशील पूँजी की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले 5 कारकों को स्पष्ट कीजिए।

      Spread 5 factors influencing the need for working capital

Q.7 विज्ञापन पर व्यय एक सामाजिक अपव्यय है। क्या आप इससे सहमत है?

    Advertising expenditure is a social diameter. Do you agree with this?

Q.8 हर्जबर्ग के द्विघटकीय सिद्धांत को समझाइये।

     Explain Hergberg two factor theory.

Q.9 नेतृत्व की आकस्मिकता विचारधारा को समझाइये।

     Explain contingency model for leadership.

Q.10 360 डिग्री मूल्यांकन पद्धति क्या है?

     What is the 360 degree evaluation method.

Q.11 विपणन में संवर्द्धन मिश्रण को समझाइये।

     Explain promotion mix of marketing.

Q.12 अभिप्रेरण के विभिन्न सिद्धांतों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।

     Describe various theories of motivation in brief.

Q.13 संगठन की परिभाषा लिखिए एवं इसके प्रकारों को बताइये।

    Define organisation and write its types.

IR & POLITY SOLUTION

IR & POLITY SOLUTION

Geetanjali Academy- By Jagdish Takhar

 

Question – 1 सहकारी संघवाद

Answer – संघवाद सवैधानिक  राज्य सचांलन की उस प्रवृत्ति  का प्रारूप है, जिस के अंतर्गत विभिन्न  राज्य एक संविदा द्वारा एक संघ की स्थापना करते है। भारत  के संविधान को ’अर्द्व सघात्मक’ संविधान का दर्जा दिया गया है। यह सामान्य  परिस्थितियों में Federal व आपातकाल में एकात्मक स्वरूप वाला प्रतीत होता है । Artical – I में भारत  को राज्यों का संघ (Union of States) कहां गया है।

Exam – 1.GST Council की Meeting मे कोई भी संशोधन करने के लिए  केन्द्र व राज्य दोनों को शक्तिया दी गयी है, बल्कि राज्यों को ज्यादा शक्तियाँ है 

 2.NITI आयोग की स्थापना 

3.केन्द्र राज्यों  के मध्य शक्तियों का बंटवार

4.संविधान  संशोधन में राज्यों का समर्थन।

 

Question – 2  प्रेसिडेंशियल रेफरेंस  से क्या तात्पर्य है ?

Answer –  अनु. 143 में  वर्णित राष्ट्रपति  व उच्चतम न्यायालय का परामर्शकारी  सम्बन्ध। यदि किसी समय राष्ट्रपति  को प्रतीत होता है कि विधियाँ तथ्य  का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है या होने की सम्भावना है, जो ऐसी प्रकृति  का और ऐसे व्यापक  महत्व का है कि उस पर  उ .न्या, से राय प्राप्त करना समीचीन  है अर्थात् राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय से किसी पूर्व  संधि , सनद समझौते  या सार्वजनिक महत्व  के विषयों पर परामर्श मांग  सकता है। Exam. अयोध्या बाबरी मजिस्द  वाद

 

Question – 3 बंदी प्रत्यक्षीकरण

Answer –  शाब्दिक अर्थ  है ’’हमारा आदेश है  कि’’ यह एक प्रकार की  रिट है, जिस के द्वारा किसी  गैर कानूनी कारणों से गिरफ्तार व्यक्ति  को रिहाई  मिल सकती है

अनु. 32 सुप्रीम कोर्ट व अनु . 226 हाईकोर्ट द्वारा जारी  , इसमे …………………..

  1. न्यायालय द्वारा यह आदेश जारी किया जाता है कि  हिरासत में लिए  व्यक्ति  को उस के सामने प्रस्तुत  किया जाये 
  2. किसी व्यक्ति  को जबरन, अवैध तरीके से हिरासत  मे नही लिया जा सकता
  3. अगर  हिरासत मे अवैध तरीके से लिया गया है तो उसे स्वतंत्र किया जाये अपवाद  जब यह जारी नहीं की जा सकती

1.हिरासत  कानून सम्मत हो।

2.कार्यवाही किसी विधानसभा या न्यायालय  की अवमानना के तहत हुई हो। 

3.हिरासत  न्यायालय के न्याय क्षेत्र के बाहर  हो।

4.न्यायालय के द्वारा हिरासत।

अनुच्छेद 21 प्राण व दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार प्रांसिगकता हेतु महत्वपूर्ण

 

Question – 4   73 वाँ संविधान संशोधन

Answer –   24 अप्रैल 1993 को भारतीय संविधान के 73 वे संशोधन को मंजूरी जिस में अनुच्छेद 243क  से 243 तक, भाग 9, अनु सूची पचांयती राज के सम्बन्ध में प्रावधान , कुल 29 कार्य निर्धारित  किये गये

विशेषताएंः-

  1. पंचायतों को सवैधानिक दर्जा (लक्ष्यीमल सिंघवी समिति, सिफारिश) इसके तहत ग्राम सभा, पंचायतो के गठन, पंचायतों की संरचना, स्थानों का आरक्षण, पंचायतों की अवधि, सदस्यता के लिए निरर्हताएं, पंचायतों की शक्तियां, प्राधिकार और उत्तरदायित्व, पंचायतों द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्तियाँ और उनकी निधिया, वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित आयोग का गठन , पचायतो के लेखाओ  की सपरीक्षा, पंचायतों के लिए निर्वाचन, विद्यवान विधियो व पंचायत का बना रहना आदि प्रावधान शामिल है। 

 

Question – 5 राष्ट्र—निर्माण से क्या अभिप्राय है?

Answer –   राज्य की शक्ति का उपयोग करते हुए राष्ट्रीय पहचान का निर्माण करना ही राष्ट्र निर्माण (छंजपवदंस इनपसकपदह) है, यह एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कुछ समूहों मे राष्ट्रीय चेतना प्रकट होती है। वास्तव में राष्ट्र निर्माण एक ऐसी परिकल्पना है जिसमें राष्ट्र से जुडे हुए पहलू का ध्यान अत्यंत आवश्यक हैं।

दूसरे शब्दों मे हम कह सकते है कि राष्ट्र एक सामाजिक सांस्कृतिक अवधारणा है, जिसमे एक कल्पित समुदाय समान भाषा, धर्म, ऐतिहासिकता, वैचारिकता, से जुडे हुए हो। आधुनिक संदर्भ में राष्ट्र राज्य परिकल्पना जिसमे संप्रभुता, निश्चित भू—भाग व सरकार जनसंख्या सम्मिलित है।

 

Question – 6  भू—राजनीति क्या है?

Answer –   अन्तरराष्ट्रीय राजनीति तथा अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धो पर भूगोल के प्रभावों का अध्ययन भू राजनीति कहलाती है। दूसरे शब्दों में भू राजनीति विदेश नीति के अध्ययन की वह विधि है जो भौगोलिकचरो के माध्यम से  अन्तरराष्ट्रीय राजनैतिक गतिविधियों को समझने, उनकी व्याख्या करने और उनका अनुमान लगाने का कार्य करती है। भौगोलिक चर के अंतर्गत उस क्षेत्र का क्षेत्र फल, जलवायु टोपोग्राफी, जनसांख्यिकी, प्राकृतिक संसाधन तथा  अनुप्रयुक्त विज्ञान आदि आते है। यह शब्द सबसे पहले रूडोल्फ जेलेन ने दिया। 99 में

उद्देश्य — राज्यों में मध्य सम्बन्ध एवं उनकी परस्पर स्थिति के भौगोलिक आयामों के प्रभाव का अध्ययन

 

Question – 7 भारतीय विदेश नीति में गुटरिपेक्षता का क्या अर्थ है?

Answer –   विदेश नीति के अंतर्गत कुछ सिद्वान्त, हित और वे सभी उद्देश्य आते है, जिन्हे किसी दूसरे राष्ट्र के सम्पर्क के समय बढ़ावा दिया जाता है।

भारतीय विदेश नीति के मूल उद्देश्य व सिद्वान्त

  1. राष्ट्रीय हितों का ध्यान
  2. विश्व शांति की प्राप्ति
  3. निःशस्त्रीकरण
  4. अफ्रीकी-एशियाई देशों की स्वतंत्रता
  5. राष्ट्रों को आत्मनिर्भरता का अधिकार
  6. पारंपरिक सौहार्द
  7. विवादों का शांतिपूर्ण हल

इन्हे प्राप्ति का महत्वपूर्ण भाग है गुटनिरपेक्षता:- गुटनिरपेक्षता न तो उदासीनता है, न ही तटस्थता, न ही स्वयं को पृथक रखना है, अपितु बिना किसी दवाब के गुण दोष के आधार पर स्वतंत्र राय रखना है, 1961 बैलग्रेड सम्मेलन (नेहरू-नासिर-टीटो) अर्थात् शीतयुद्व दौर में दो महाशक्तियों (USSR & USA) किसी गुट में शामिल न होकर, दोनो से सक्रिय साझेदारी द्वारा स्वयं एवं औपनिवेशिक देशों का विकास करना। अर्थात् यह किसी भी पॉवर ब्लॉक के संग या विरोध की बात नही करता है।

 

Question – 8 सुरक्षा-परिषद में वीटो

Answer –  संयुक्त राष्ट्र परिषद के स्थायी सदस्यों को Permanent Five, Big Five और P5 के नाम से जाना जाता है, इसके पांच स्थायी सदस्य है अमेरिका, इंग्लैड, रूस, फ्रांस, चीन है और 10 अस्थायी सदस्य है (कुल 15) 

वीटो का अर्थ होता है ’मैं निषेध करता हूँ।’ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों को एक विशेषाधिकार मिला हुआ है। जिसके तहत स्थायी सदस्य देश परिषद में प्रस्तावित किसी भी प्रस्ताव को रोक सकते है या उसे नकार सकते है, भले ही उसके पक्ष में कितने भी वोट पडे़ हो। SC में किसी प्रस्ताव को पारित करने के लिए सभी स्थायी सदस्यों का वोट और 4 अस्थाई सदस्यों का वोट मिलना जरूरी होता है।

जैसे- शीतयुद्व दौर में USSR द्वारा वीटो कर भारत को विश्व से अलग-थलग करने से बचाव।

 

Question – 9 मोतियों की माला रणनीति

Answer –  मोतियों की माला रणनीति, चीन द्वारा भारत को भू-राजनीतिक एवं सामरिक दृष्टि से घेरना है जिसमे चीन द्वारा दक्षिण चीन सागर से लेकर

मलक्का सन्धि, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर तक (यानि पूरे हिन्द महासागर में) सामरिक ठिकाने (बन्दरगाह, हवाईपट्टी, निगरानी तंत्र इत्यादि) तैयार

करना है। स्ट्रिंग ऑफ प्लर्स का उल्लेख 2005 ’एशिया मे ऊर्जा का भविष्य’ नाम की एक खुफिया रिर्पोट में हुआ। इसमें पाकिस्तान में ग्वादर और कराची में

मिलिट्री बेस, श्रीलंका मे कोलम्बों नया पोर्ट हम्बनटोटा मे आर्मी फैसिलिटी, मालदीव के माले बन्दरगाह व बांग्लादेश के चटगांव मे कटेनर सुविधा बेस, म्यांमार

के यांगून व सिटवे बन्दरगाह पर मिलिट्री बेस।

 

Question – 10 न्यायिक पुनरावलोकन क्या है?

Answer –  संयुक्त राज्य अमेरिका की अवधारणा, सन् 1803 अमेरिका मुख्य न्यायाधीश मार्शन द्वारा मार्वरी बनाम मेडिसन नामक प्रसिद्ध वाद में प्रथम बार प्रस्थापना की गयी।

विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अधीन न्यायालय की शक्ति, जिसमे वह व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित नियम, कार्यपालिकीय आदेश, प्रशासनिक कार्यवाही को संवैधानिक उपबन्धो के विरूद्ध पाए जाने पर अवैध, अमान्य व शून्य घोषित कर सकता है। न्यायिक पुनरीक्षण। न्यायिक पुनर्विलोकन।न्यायिक पुनरावलोकन कहाँ जाता है।

न्या. पु. का हमारे सविंधान में स्पष्ट उल्लेख नहीं परन्तु इसका आधार है अनु 13 (2), अनु. 32, अनु,. 226, अनु. 131, अनु. 243 और न्यायाधीशों द्वारा संविधान के संरक्षण की शपथ।

 

Question – 11 ब्रिक्स

Answer – .ब्रिक मूल रूप से चार देशों का संगठन था – ब्राजील, रूस, भारत व चीन, लेकिन 2010 में दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने से यह ब्रिक्स बन गया, जिसका मुख्य उद्देश्य हैं-

  • सम्बन्धित देशों का आर्थिक विकास
  • नवाचार को बढ़ाना।
  • परस्पर सहयोग कर इस क्षेत्र में शांति स्थापित करना।
  • समावेशी विकास।
  • वैश्विक आतकवाद व पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दों पर कार्य
  • अन्तरराष्ट्रीय वित व्यवस्था में सुधार

ब्रिक शब्द दिया अमेरिकी वितीय कम्पनी गोल्डमैन शशं के चैयरमेन जिम ओ नील ने, (2001) में स्थापना व प्रथम शिखर सम्मेलन 16 जून, 2009 रूस के येकान्टिनबर्ग मे चौथा शिखर सम्मेलन 2012 नई दिल्ली, 8 वां 2016 गोवा, 10 वां 2018 जाहोन्सबर्ग(दक्षिण अफ्रीका में सम्पन्न) वित व्यवस्था सुधार हेतु फार्टालेजा (ब्राजील में) 6 वे सम्मेलन में 2014 में, 100 अरब डॉलर से न्यू डेवलमेन्ट बैंक (एनडीबी) ब्रिक्स बैंक की स्थापना, मुख्यालय शंघाई, चीन

 

Question – 12 मैग्नाकाटां

Answer –  अन्य नाम The Great Charter Of Freedoms

स्वतंत्रता का महान घोषणा पत्र। अधिकार पत्र, 1215 इंग्लैड में जारी, अर्थात् यह इंग्लैड का एक कानूनी परिपत्र है जो सबसे पहले 1215 में राजा जॉन द्वारा जारी किया गया तथा अपने सामन्तो (Nobles and borans) को कुछ अधिकार दिये गये और वचन दिया कि राजा की इच्छा कानून की सीमा में बंधी रहेगी। मैग्नाकार्टा ने राजा द्वारा प्रजा के कुछ अधिकारों की रक्षा की स्पष्ट रूप से पुष्टि की जिसमें से बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका उल्लेखनीय है।

घोषणापत्र जो उस क्षेत्र में मील का पत्थर साबित

  •  भारतीय संविधान का मैग्नाकाटा – मौलिक अधिकारों को
  • ईस्ट इडिया कम्पनी का मैग्नाकाटा – 1717 दस्तक के अधिकार को  
  • शिक्षा का मैग्नाकाटा- 1854 चार्ल्स वुडडिस्पेच को
  • दिसम्बर 1948, मानवधिकारों का मैग्नाकार्टा

 

Question – 13 नीति आयोग ?

Answer –  राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान, 1 जनवरी 2015 को अस्तित्व मे आया, योजना आयोग के स्थान पर स्थापित, कार्यपालिका संकल्प छप्ज्प् आयोग द्वारा गठित, गैर संवैधानिक निकाय, सहकारी संघवाद पर आधारित। यह संस्थान सरकार के थिंक टैंक के रूप में सेवाएं प्रदान करेगा और उसे निर्देशात्मक एवं नीतिगत गतिशीलता प्रदान करेगा।

उद्देश्य राष्ट्रीय उद्देश्यों को दृष्टि गत रखते हुए राज्यों की सक्रिय भागीदारी के साथ राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं, क्षेत्रों और रणनीतियों का एक साझा दृष्टिकोण विकसित करेगा। अध्यक्ष PM /उपाध्यक्ष (राजीव कुमार)/CEO – अमिताभ कान्त/ 3 पूर्ण कालिक सदस्य/ 4 पदेन सदस्य/ क्षेत्रीय परिषद/ शासकीय परिषद/ बोटम टू टोप पर बल (3वर्षीय, 7 वर्षीय, 15 वर्षीय प्लानिंग)

 

Question – 14 नागरिकता से क्या तात्पर्य है?

Answer –  नागरिकता का उल्लेख सविंधान के भाग 2 में अनु. 5 से अनु. 11 तक है, किसी राष्ट्र के निवासियों को संविधान से प्राप्त कानूनी अधिकार जो उस राष्ट्र के निवासी के रूप में घोषित करते है।

भारतीय नागरिकता के कुछ विशेष लक्षण 1. इकहरी नागरिकता 2. नागरिकता संघीय विषय 3. नागरिकता अनुशोधन अधिनियम 1986 संविधान लागू होने के समय नागरिकता की व्यवस्था 1. जन्म जात नागरिक 2. शरणार्थी नागरिक 3. विदेशों में रहने वाले भारतीय संविधान लागू होने के बाद नागरिकता की व्यवस्था, भारतीय नागरिकता अधि. – 1955 नागरिकता की प्राप्ति 1. जन्म से 2. रक्त सम्बन्धों या वैशाधिकार से 3. पंजीकरण द्वारा 4. देशी करण द्वारा 5. भूमि विस्तार द्वारा अर्थात् नागरिकता एक विशेष सामाजिक, राजनैतिक, राष्ट्रीय या मानव संसाधन समुदाय का एक नागरिक होने की अवस्था है। सामाजिक अनुबंध के सिद्वान्त के तहत नागरिकता की अवस्था में अधिकार व उत्तरदायित्व होना शामिल होते है।

 

Question – 15 वैश्विक आतंकवाद क्या है?

Answer –  आतंकवाद का वैश्विक रूप जो अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर व्याप्त होकर अनेक देशो को प्रभावित करता है। अर्थात् वैश्विक स्तर की वह हिंसात्मक गतिविधि जो कि अपने आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं विचारात्मक लक्ष्यों की प्रति पूर्ति के लिए गैर-सैनिक अर्थात् नागरिकों की सुरक्षा को भी निशाना बनाते है।

आतंकवाद के मुख्य मापदडों में हिंसा, मनोवैज्ञानिक प्रभाव, भय, एक राजनीतिक लक्ष्य के लिए आदि। 

यथा आईएस आईएस द्वारा प्रायोजित

इस हेतु 1996 में UN में आतकवांद विरोधी प्रस्ताव।

 

Question – 16 भारतीय विदेश नीति के निर्धारक तत्व बताइये?

Answer –  विदेश नीति वैदेशिक सम्बन्धो का सारभूत तत्व है अर्थात् विदेश नीति उन सिद्वान्तों का समूह है जो एक राष्ट्र, दूसरे राष्ट्र के साथ अपने सम्बन्धों के अन्तर्गत अपने राष्ट्रीय हितों को प्राप्त करने के लिए अपनाता है।

भारतीय विदेश नीति के निर्धारित तत्व

  1. भौगोलिक अवस्थिति – तीन तरफ हिन्द महासागर, हिमालय, जनसंख्या
  2.  विचारधारा
  3. कूटनीतिक सम्बन्ध
  4. आदर्श – ब्रुध, अशोक, गांधी
  5. सांस्कृतिक परिदृश्य – वासुधैव कुटुम्बकम्भ्म
  6. आर्थिक स्थिति
  7. राजनीतिक संगठन – संसदीय, संघात्मक प्रणाली
  8. सैन्य शक्ति – विश्व की तीसरी बड़ी सेना
  9. सामाजिक बचाव – विविधता में एकता 
  10. इतिहास – औपनिवेशक शासन
  11. गुटनिरपेक्षता
  12. ऐतिहासिक परम्पराएं
  13. राष्ट्रीय हित
  14. साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद का विरोध
  15. नस्लवादी भेदभाव का विरोध
  16. पंचशील
  17. विश्व शान्ति के लिए समर्थन
  18. निःशस्त्रीकरण का समर्थन
  19. परमाणु नीति
  20. सार्क से सहयोग 
  21. वैश्विक संगठनों में हिस्सेदारी
  22. वेदेशिक सम्बन्ध
  23. पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्ध आदि।

 

Question – 17 संयुक्त राष्ट्र संघ में अपेक्षित सुधार

Answer –  स्थापना 24 अक्टूबर 1945, संयुक्त राष्ट्र अधिकार पत्र के माध्यम से एक अन्तरराष्ट्रीय संगठन, उद्देश्य – अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनों को सुविधा जनक

बनाने हेतु सहयोग प्रदान करना, अन्तरराष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक एवं सामाजिक विकास तथा मानवाधिकारों की सुरक्षा के साथ-साथ विश्व शांति के लिए कार्य

करना।

सुधार (क) UNO में संरचनात्मक बदलाव

  1. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों की संख्या में वृद्धि हेतु G-4 (भारत, ब्राजील, जर्मनी, जापान) का गठन।
  2. अफ्रीकी देशों द्वारा मांग – अफ्रीका महाद्वीप से 2 स्थायी व 2 अस्थायी सदस्य अनिवार्य
  3. कॉफी अन्नास फ़ॉर्मूला – 24 सदस्य देश
  4. अर्द्वस्थायी सदस्यों का प्रस्ताव अर्थात् अस्थायी सदस्यों की संख्या में वृद्धि हेतु प्रस्ताव।
  5. UN संस्था का लोकतांत्रिकरण
  6. वीटो पावर को सीमित किया जाए
  7. यूरोपीय राष्ट्रों का प्रभुत्व कम हो
  8. विकासशील देशों की भागीदारी में वृद्धि हो
  9. UN की संस्थाओं के निर्णयों को बाध्यकारी बनाया जाये

(ख) न्यायदिश क्षेत्र निर्धारण बदलाव

  1. UNO का न्यायदिश क्षेत्राधिकार, शान्ति, विकास, मानवीय सम्बन्धो तक सीमित या विस्तार का मुद्दा सम्मिलित हैं।

 

Question – 18 अनुच्छेद-21 न्यायिक सक्रियता के संदर्भ में महत्वपूर्ण अधिकार है। कैसे?

Answer –  सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 1978 में मेनका गांधी बनाम भारत सरकार के वाद में अनु. 21 की सुक्ष्म व्याख्या प्रस्तुत कर इसे न्यायिक सक्रियता के

संदर्भ में महत्वपूर्ण अधिकार साबित कर दिया।

  1. अनु. 21 प्राण व दैहिक स्वतंत्रता के अंतर्गत नागरिकों के सर्वागीण विकास पर ध्यान केन्द्रित
  2. निजता का अधिकार, स्वच्छ पर्यावरण व पेयजल का अधिकार सम्मिलित किया
  3. विदेश भ्रमण का अधिकार, स्वच्छ वायु व जल का अधिकार
  4. जनहितकारी विवादों को मान्यता
  5. राजनीतिक क्षेत्र मे न्यायिक सक्रियता
  6. प्राण व दैहिक स्वतंत्रता मे जीविकोपार्जन का अधिकार भी शामिल
  7. चिकित्सा सहायता और स्वास्थ्य अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता मिली
  8. धारा 497A को रद्द करना (एडल्ट्री कानून)-आधार कार्ड को सभी राज्यों में अनिवार्य बनाकर केवल पैन कार्ड व सरकारी योजनाओं के लाभ मे अनिवार्य बनाना।
  9. धारा 377 को गैर कानूनी घोषित करना
  10. हाइवे पर शराबबन्दी, भागलपुर (बिहार) के कैदियो की दशा में सुधार (शयराबानों केस) उपयुक्त विवरणों से हम कह सकते है कि न्यायिक सक्रियता से अनु. 21 का अत्यधिक विस्तार हुआ है।

 

Question – 19 भारत-चीन संबंधों में तनाव के मुद्दे बताइये?

Answer –  1. सीमा विवाद- अक्साईचीन, सियाचिन ग्लेशियर, अरूणाचलप्रदेश।

  1. तिब्बत की स्वायत्तता, भारत द्वारा प्रदान, दलाई लामा विवाद
  2. ब्रह्मपुत्र नदी पर बाँध निर्माण विवाद
  3. दक्षिणी चीन सागर पर चीन की आक्रामकता से भारत प्रभावित
  4. OBOR पर भारत द्वारा समर्थन न देना (Belt and Road Initiative)
  5. रीजनल आर्थिक सहयोग सगंठन का भारत द्वारा सदस्य न बनना।
  6. चीन की मोतियों की माला नीति (स्ट्रीग ऑफ पर्ल्स)
  7. चीन द्वारा की जा रही डम्पिंग
  8. ओएनजीसी द्वारा वियतनाम में तेल अत्खनन का चीन द्वारा विरोध
  9. CPEC (China-Pakistan Economic Corridor)
  10. United Nationals Securtity Concil में भारत के खिलाफ चीन का वीटो
  11. डोकलाम विवाद (चिकिननेक)
  12. व्यापार सन्तुलन में चीन को लाभ
  13. भारत के प्रोजेक्ट मौसम (हिन्द महासागर के 39देशों के साथ सांस्कृतिक सम्बन्धों को स्थापित करने के लिए) चीन से विवाद
  14. Numismatic Guaranty Corporation का भारत को सदस्य बनने से रोकना।

 

Question –  20 समान नागरिक संहिता से क्या अभिप्राय है। इसके संबंध में विवादों का परीक्षण कीजिए?

Answer –  भारतीय संविधान के भाग 4 में अनु. 44 नीति निर्देशक तत्वों के अनुसार एक समान नागरिक सहिता होनी चाहिए जिसका अभिप्राय क़ानूनों के ऐसे

समूह से है जो देश के समस्त नागरिकों (चाहे व किसी धर्म या क्षेत्र से सम्बन्धित हो) पर लागू होता है। यह किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी क़ानूनों से ऊपर होते है।

समान नागरिकता कानून के अंतर्गत

(1) व्यक्तिगत स्तर

(2) सम्पति के अधिग्रहण और संचालन का अधिकार

(3) विवाह, तलाक और गोद लेना आदि शामिल है।

विवाद

(1) मुस्लिम बहुविवाह नियम, तीन तलाक प्रथा (ट्रिपल तलाक), हलाला करना

(2) हिन्दू में रिज एक्ट, 1955 पर विवाद, हिन्दुउत्तराधिकारी नियम 1956

(3) विवाह पश्चात् महिलाओं के सम्पत्ति मे उत्तराधिकारी सम्बन्धि विवाद

 

Question – 21 मूल अधिकार और निदेशक तत्व के मध्य संबंधों का परीक्षण न्यायिक व्याख्या एवं संशोधन के संदर्भ में कीजिए?

Answer –  मूल अधिकार भाग-3 Art 12.35 में वर्णित, DPSP भाग-4 Art. 36.51 में वर्णित मूल अधिकार, न्यायालय में वाद योग्य व DPSP वाद योग्य

नहीं।

1971 में 25 वें संशोधन द्वारा जोडे़ गए अनुच्छेद 31 सी (ग) में प्रावधान है कि अनुच्छेद 39 (B)-(C) में निदेशक सिद्धांतों को प्रभावी बनाने के लिए बनाया

गया कोई भी कानून इस आधार पर अवैध नहीं होगा कि वे अनु. 14,19 और 31 द्वारा प्रदत मूल अधिकारों से अवमूल्यित है अतः जहां 31 (ग) आता है वहां अनु 39 लागू, 14 व 19 का प्रतिषेध अन्य-1951 में शंकरी प्रसाद बनाम सरकार में मूल अधिकारों को नीति निदेशक तत्वों पर मान्यता प्रदान की थी। 1967 के सज्जन सिंह बनाम सरकार में भी इसकी पुष्टि।

24 वां व 38 वे संशोधन द्वारा इनको नकारा गया। केशवानन्द भारती, वामनराव, इंदिरा अध्े राजनारायण इत्यादि के केसों मे सर्वोच्च्य न्यायालय ने एक

दूसरे के पूरक मानते हुए मूल अधिकारों को ही मान्यता प्रदान की ।

संशोधन के संदर्भ मेंः-

  1. 44वे संविधान संशोधन द्वारा सम्पति के अधिकार को मौलिक अधिकार से हटाना।
  2. 42 वें संशोधन द्वारा DPSP में अनु.39(क), 43(A), 48(क) प्रवेशित
  3. अनु. 45 मे वर्णित नीति निदेशक तत्व को 86 वे संशोधन के द्वारा अनु. 21(क) मे मूल अधिकारों की श्रेणी में डालना।

 

Question – 22. कॉलेजियम बनाम राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के विवाद का उल्लेख कीजिए?

Answer –  कॉलेजियम प्रणाली-न्यायपालिका मे जजों को चुनने के लिए बनाई गई जजों की एक समिति, जो जजों के चुनाव के लिए सुझाव देती है।

महत्वपूर्ण 3 जजेज केस

प्रथम-न्यायाधीश मामले में अनुच्छेद 124 के तहत सहमति को मात्र औपचारिक सहमति माना गया परन्तु द्वितीय न्यायाधीश मामले मे सहमति अनिवार्य (न्यायाधीश नियुक्ति के संदर्भ में) कर कॉलेजियम व्यवस्था की स्थापना (1CJI + 2 अन्य) तृतीय मामले में बहुसख्यंक सहमति 1$4 अनिवार्य की गई। केन्द्र सरकार द्वारा 99 वे संविधान संशोधन द्वारा नियुक्ति हेतु राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (CJI + 2 न्यायाधीश + 2 विधि विशेषज्ञ + कानूनमन्त्री) गठन जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया। अब न्यायाधीश नियुक्ति हेतु कॉलेजियम के तहत ’मेमोरडम ऑफ प्रोसीजर’ का प्रयोग किया जा रहा है। उच्चतम न्यायालय ने NJAC को न्यायिक समीक्षा की शक्ति द्वारा असवैधांनिक घोषित करके समाप्त कर दिया, जिससे सरकार व न्याय पालिका के मध्य विवाद

जिसके तर्क

  1. न्यायधीशों की नियुक्ति में सरकारी हस्तक्षेप वांछनीय नहीं।
  2. स्वतंत्र न्यायपालिका संविधान का मूल ढाँचा , अतः इसमें हस्तक्षेप नहीं।

 

Question – 23. दक्षिण एशिया के शक्ति संतुलन में भारत की भूमिका का परीक्षण कीजिये?

Answer –  दक्षिण एशिया में हिन्द महासागर में चीन (मुक्ता माला/स्प्रिंग ऑफ पर्ल्स) अमेरिका (डियागो गार्सिया) की उपस्थिति, चीन की दक्षिण चीन सागर

तक पहुंच, शक्ति को असंतुलित करती है ऐसे में भारत की भूमिका-

  1. 2015 मालाबार नौसेनिक अभ्यास (भारत-जापान-अमेरिका) (हैड-इन-हैड)
  2. बीजिंग द्वारा किये जा रहे वित्तीय निवेश को नियंत्रित करना
  3. 2014 में भारत की नेबरहुड फ़र्स्ट अर्थात् ’पहले पड़ोसी’ नामक योजना शुरू जिसमें भारत ने इस क्षेत्र के अन्य देशों के साथ अपनी भागीदारी बढ़ाना शुरू किया
  1. 2017 प्रथम ऑस्टेलिया-भारत सामूहिक अभ्यास (AUSTNDEX)
  2. UK व भारत का सयुंक्त Statement of intent (तीसरे देशों मे सहयोग की भागीदारी दक्षिण एशिया में विकास के लिए आवश्यक सहायता-निधि को केन्द्र मे रखकर)
  3. भारत द्वारा एशियाई विकास बैंक के दक्षिण उप-क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग (SASEC) आपॅरेशन प्रोग्राम में भाग लिया जाना।
  4. BIMSTEC, IORARC (Indian Ocean Rim Association for Regional Co-operation) को महत्ता
  5. अमेरिका के साथ रक्षा सहयोग समझौता व Shanghai Co-operation Organisation, BRICS के माध्यम से चीन के साथ सहयोग।
  6. भारत का प्रोजेक्ट मौसम, सागरमाला परियोजना
  7. SAARC के स्थान पर बिक्सटेक को पुल बनाना।
  1. एक्ट ईस्ट पॉलिसी के माध्यम से ASEAN देशों से सहयोग वृद्धि
  2. भारत की ’’एल्डर ब्रदर’’ के रूप में भूमिका न कि ’बिग ब्रदर’ के रूप मे
  3. भारत द्वारा अफग़ानिस्तान, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, म्यांमार आदि देशों मे विकास परियोजनाओं का संचालन करके इनका विकास करके क्षेत्र में शक्ति संतुलन स्थापित करना।

 

Question – 24. सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता के पक्ष में तर्क दीजिए?

Answer – 

  1. भारत सुरक्षा परिषद का 7 बार अस्थायी सदस्य रह चुका हैं।
  2. UN के शांति अभियानों कांगो, सोमालिया, नाइजीरिया आदि में भारत की भूमिका
  3. भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक तथा उपनिवेशवाद व रंगभेद के विरोध में भारत के प्रयासों से ही प्रस्ताव पारित
  4. अत्यधिक आबादी वाला देश, 10 साल के भीतर दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या देश बन सकता है।
  5. भारत दुनिया मे दूसरी सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था भी है।
  6. भारत की पहचान एक जिम्मेदार लोकतंत्र के रूप में होना
  7. भारत को हमेशा ही एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप मे माना जाता रहा है।
  8. देश की विशालता।
  9. शक्ति प्रयासों के लिए संयुक्त राष्ट्र के कार्यो में उसका योगदान और अन्य सभी क्षेत्रों में भी उसकी सुदृढ़ स्थिति और इन सभी के साथ उसके पक्ष में एक

बात यह भी है कि संयुक्त राष्ट्र की आमसभा मे भी पर्याप्त देशों के वोट उसे मिल सकते है।

  1. 1954 में निः शस्त्रीकरण सम्मेलन में भारत की भूमिका (PPP)
  2. लोकतांत्रिक देश, 6वी बड़ी अर्थव्यवस्था, (GDP के आधार पर) द्वितीय स्थान पर जनसंख्या, क्रय शक्ति के आधार पर तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था
  3. गुट निरपेक्ष राष्ट्रों का समर्थक
  4. सतीश नाम्बियार (ले. जनरल), वित्तमंत्री विजय लक्ष्मी पंडित, वाजपेयी जी, दलबीर भडारी (न्यायाधीश) आदि के प्रयास
  5. वासुधैव कुटुम्बकम की नीति का परिपालन
  6. विश्व की प्रमुख निर्यात नियत्रंण व्यवस्थाओं (NICR, AC वासेनार) कारनदस्य (सफल अंतरिक्ष कार्यक्रम आस्टेलिया समूह)

 

Question – 25. शीत युद्धोत्तर विश्व में आर्थिक सांस्कृतिक संबंध अधिक महत्त्वपूर्ण हो गये हैं- टिप्पणी दीजिए?

Answer –  शीतयुद्धोतर विश्व 1991 के बाद उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण के युग में आर्थिक सम्बन्धों में वृद्धि फलस्वरूप

  1. आर्थिक सगंठनो G-20, SAARC का निर्माण।
  2. वैश्विक आर्थिक आत्मनिर्भरता में वृद्धि।
  3. आर्थिक हितों के आधार पर ही नीतियाँ निर्माण।
  4. International North-South Transport Carridor, OBOR (One Belt ONe Road) पिवोट एशिया पॉलिसी (अमेरिका), सेंट्रल एशिया

पॉलिसी-ऊर्जा (भारत)

  1. भारत से चीन की कटुप्रतिद्वन्द्वीता के बावजूद भी व्यापार मे बड़ा भागीदार है। आदि

वहीं सांस्कृतिक सम्बन्धों में यथा

  1. भारत में गुजरात सिद्धांत
  2. बौद्ध संस्कृति के माध्यम से ASEAN देशों से जुड़ाव
  3. गंगा-सहयोग सगंठन
  4. प्रोजेक्ट मौसम
  5. एक्ट ईस्ट पॉलिसी
  6. अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन
  7. चीन की वन चाईना-पॉलिसी। आदि

हार्वर्ड विश्व विद्यालय के प्रोफेसर जोसफ न्ये द्वारा सोफ्टपॉवर शब्द का इस्तेमाल किया गया जिसके तहत राष्ट्रों के मध्य सैन्य नीति से इतर सांस्कृतिक व

आर्थिक सम्बन्धों को महत्वपूर्ण माना गया है।

 

Question – 26. विगत 7 दशकों में भारतीय राजनीति की गतिशीलता को स्पष्ट कीजिए?

Answer –  15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई तथा भारत में लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के दौर में कांग्रेस द्वारा राष्ट्रवादी दल के रूप में प्रकुरत भूमिका निभाई गई अतः स्वतऩ्त्रता के पश्चात् देश मे केवल एक ही राजनीतिक दल का प्रमुख काफी समय तक रहा, क्योंकि भारत में कांग्रेस की स्थापना(28 DEC. 1885) व भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के दिनो मे कांग्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका थी और इनके नेतृत्वकर्ताओं को ही राजनीति चलाने का तात्कालिक समय में अनुभव था। अतः स्पष्ट है कि नेहरू जी, राजेन्द्र प्रसाद, जे.पी.कृपलानी, वल्लभ भाई पटेल, सुब्रहमन्यम अय्यर, K.T. तेलंग, सर्वपल्ली राधाकृष्णन आदि के व्यक्तित्व के कारण प्रारंभिक दशकों मे एक दलीय प्रभुत्व का दौर रहा। इस दौर में मूल्यों की राजनीति को महत्व दिया गया। तथा राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़े होने व राष्ट्रीय आन्दोलन की मुख्य शिक्तियों व पुरोधाओं का इस दल से जुड़े होने के कारण जनता की इस दल के प्रति असीम निष्ठा रही।

लेकिन 1974-75 के दौरान हुए आन्दोलन, इंदिरा सरकार द्वारा आपात काल का दौर जैसी स्थिति के कारण देश में सता परिवर्तन हुआ तथा एकछत्र साम्राज्य के पश्चात् बहुदलीय व्यवस्था ने प्रभुत्व स्थापित किया व राष्ट्रीय दल के रूप में जनता दल का उदय तथा अनेक क्षेत्रीय दलों का उद्धव हुआ- भाषागत आधार पर तेलगु देशम, विचारधारा आधारित मार्क्सवादी कम्यूनिष्ट पार्टी, क्षेत्रीय आधार पर असम प्रजा परिषद, धर्माधारित सिक्ख सभा, वर्गाधारित बहुजन समाज पार्टी आदि यह अस्थिरता व अधिनायकत्व का दौर था, जिसमे राज्यों की सरकारों को गिराया जाना, लोकतंत्र के मूल्यों पर चोट, न्यायपालिका से तनातनी, वी.पी.सिंह की सरकार के दौरान OBC आरक्षण, 1992 में राम मन्दिर मुद्दा आदि जाति, धर्म व संप्रदाय जैसे मुद्दों ने राजनीतिक व्यवहार को प्रभावित किया। जाति का राजनीतिकरण व राजनीति का जाती करण हुआ। 

सन् 1991 आर्थिक सुधारों के आलोक में LPGको अपनाना आदि मुद्दों ने देश की राजनीति को अलग दिशा प्रदान की, तत्पश्चात् गठबंधन सरकारों को दौर चालू हुआ, सन् 1989 में जनता मोर्चा, तत्पश्चात् राष्ट्रीय मोर्चा, राजग, UPA इत्यादि गठबंधन का दौर प्रारम्भ हुआ। 1998 के पश्चात् देश में राजनीतिक स्थायित्व का दौर आया एवं राजनीतिक मुद्दों में परिवर्तन आया तथा बेरोज़गारी, आर्थिक विकास, विदेश नीति, विदेश निवेश, शिक्षा, स्वच्छता आदि मुद्दे प्रमुख होने लगे। वर्तमान देश राजनीतिक गतिशीलता के दौर से गुजर रहा है तथा भूमंडलीकरण के कारण व समाजवाद तथा पूंजीवाद मिश्रण के कारण नए आयाम उभर रहे है। 2014 में भाजपा द्वारा पूर्ण बहुमत हासिल कर एकमत। एक दलीय प्रभुत्व। अधिनायकत्व/अस्थिरता/ गठबंधन सरकारे आदि सभी मिथको को तोड़ा गया। वर्तमान राजनीति मतदान व्यवहार, जनता की आकाक्षाएँ, विदेश नीति, जातिगत विकास को प्रतिबंधित करती है, जो किये जा रहे सुधार (चुनावी बॉड, राजनीतिक अपराधी करण पर VVPAT प्रणाली, NOTA) एक वर्ष पूर्व गठित हल द्वारा दिल्ली में पूर्ण बहुमत की सरकार बना लेना भारतीय राजनीति की गतिशीलता का परिचायक ही है।

 

Question – 27. बदलते हुए वैश्विक परिदृश्य में भारतीय विदेश-नीति की नूतन प्रवृत्तियों का परीक्षण कीजिये?

Answer –  शीतयुद्धोतर वैश्विक व्यवस्था में भारतीय विदेश नीति में भी बदलाव आना स्वाभाविक है भारतीय नीति पंचशील से आये पंचामृत (सवांद, सम्मान, सुरक्षा,संप्रभुता, संस्कृति) पर बल देने लगी है। भारतीय विदेश नीती की नूतन प्रवृतियां निम्न है-

  1. पड़ोसी प्रथम की नीतिः- प्रधानमंत्री द्वारा शपथ ग्रहण समारोह में पड़ोसी राष्ट्रों को बुलाना व उनकी यात्रा करना।
  2. विदेश नीति के केन्द्र में आम आदमी का होनाः- हाल ही कुछ घटनाओं जैसे ट्वीटर, फेसबुक के माध्यम से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज्य द्वारा भारतीय नागरिकों की विदेश में सहायता, कुलभूषण जाधव का मामला ICJ में ले जाना
  3. लुक ईस्ट पॉलिसी के स्थान पर एक्ट ईस्ट पॉलिसी:- इसके अंतर्गत पूर्व के देशों यथा इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, ब्रुनोई, थाईलैंड आदि देशों के साथ सहयोगात्मक सम्बन्ध व ASEAN सम्मेलनों को अधिक महत्व देना शामिल। (आदर्शवादिता के स्थान पर यथार्थवादिता)
  4. SAARC के स्थान पर BIMSTEC को महत्व:- बंगाल की खाड़ी से लगे देशों के साथ आर्थिक, सामरिक व राजनीतिक सम्बन्धों को बढ़ाने पर जोर
  5. अमेरिका से बढ़ती नजदीकिया:- अमेरिका द्वारा चीन को प्रति संतुलित करने हेतु भारत को प्रमुख रक्षा साझीदार, LEMOA, STA-1, COMCASA, CAATSA के प्रावधान 231 मे लचीलापन
  6. चीन व पाक के प्रति आक्रामक नीति:- द. चीन सागर विवाद के दौरान पूर्वी देशों का समर्थन, चीन के साथ डोकलाम विवाद पर आक्रामक नीति, चीन की CPEC में ग्वादर बन्दरगाह विकास के प्रतिक्रिया स्वरूप ईरान में चाबहार बन्दरगाह का विकास पाक के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक, SAARC मे पाक का बहिष्कार आदि।
  7. शिखर सम्मेलन व विदेश दौरा – वर्तमान PM द्वारा अधिक से अधिक दौरे कर वैश्विक जनमत व साख वृद्धि।
  8. इडियन डाइस्पोरा:- भारतीय PM द्वारा हर विदेशी दौरे पर विदेशी भारतीय डाइस्पोरा से सवांद स्थापित कर भारत के विकास में सहयोग माँगना।
  9. बहुपक्षीपता:- इसके तहत, विभिन्न राष्ट्रों के साथ वापस द्विपक्षीय सम्बन्धों का पुन निर्धारण किया जा रहा है। इसे NAM 2.0 भी कहा जा रहा है।
  10. रूस से S – 400 मिसाइल रक्षा प्रणाली व दक्षिण-दक्षिण सहयोग पर बल
  11. आदर्शों से परे राष्ट्रीय हितों को प्रमुखता-गुट निरपेक्षता के आदर्श को दरकिनार करते हुए NAM सम्मेलन में भाग न लेकर अमेरिका के साथ रक्षा सहयोग। (क) मॉरिशस सेसल्स देशों की यात्रा व सहयोग (ख) भारत-अफ्रीकी फोरम (ग) लुकवेस्ट नीति के माध्यम से मध्य एशियाई सहयोग (घ) आसियान राष्ट्रों की ओर अधिक ध्यान
  12. छोटे-छोटे राष्ट्रों के माध्यम से जनाधार विकसित
  13. अन्तरराष्ट्रीय प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास- MTCR, वासेनार व आस्ट्रेलिया समूह की सदस्यता बिना एनपीटी पर साइन करे प्राप्त करना,

निशस्त्रीकरण हेतु नो फ़र्स्ट यूज पॉलिसी।

  1. सामरिक रक्षा, सहयोग पर बल- युद्धाभ्यास-मलाबार, इन्द्र, हैड-इन-हैड, रक्षा समझौते- लेमोओ, कोमकासा (अमेरिका)
  2. आर्थिक रूप से सुदृढ़ता के साथ पर्यावरण विकास-आर्थिक सुदृढ़ता हेतु आरसीईपी की सदस्यता हेतु प्रयासरत पर्यावरणीय विकासार्थ 2015 पेरिस

सम्मेलन पर बल।

  1. राजनीतिक रूप से प्रमुखता-टेक 2 की वार्ता-भारत-अमेरिका
  2. सांस्कृतिक सम्बन्धों पर बल बौद्ध सार्किट का निर्माण प्रोजेक्ट मौसम

 

Question – 28. वर्तमान वैश्विक चुनौतियों का संदर्भ प्रस्तुत करते हुए नई विश्व व्यवस्था की संभावनाओं का उल्लेख कीजिये?

Answer –  वैश्विक परिदृश्य में राष्ट्रों के मध्य आपसी सम्बन्ध व शक्ति सन्तुलन की स्थिति विश्व व्यवस्था कहलाती है। खाड़ी युद्ध में अमरीका द्वारा हस्तक्षेप

कर मानवता के नाम पर युद्ध करने को जॉर्ज बुश द्वारा नई विश्व व्यवस्था की संज्ञा प्रदान की गई थी। वर्तमान विश्व व्यवस्था की प्रमुख चुनौतियों निम्न

प्रकार है-

(1) अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद

(2) गरीबी उन्मूलन

(3) संस्थाओं में सुधार

(4) वैश्विक तापन

(5) आर्थिक मंदी

(6) वैश्विकरण के स्थान पर संरक्षणवाद को अपनाना(अमेरिका फर्स)

(7)व्यापार-युद्ध (चीन-अमेरिका)

(8) मुद्रा अवमूल्यन(चीन-यूआन)

(9) पर्यावरणीय संकट

(10) शरणार्थी समस्या(म्यामार, बांग्लादेश)

(11) नृजातीय संघर्ष

(12) अमेरिका द्वारा ईरान, रूस व उ.कोरिया पर आर्थिक प्रतिबंध।

नई विश्व व्यवस्था की सम्भावनाऐं:-

  1. पर्यावरण समस्या हेतु एक जुटता 2015- पेरिस सम्मेलन, सभी राष्ट्रों द्वारा INDC बनाना व जलवायु न्याय का समर्थन
  2. वैश्विक आतंकवाद निरोध हेतु अनेक संगठनों यथा BRICS, SCO के माध्यम से प्रयास। 1996 में UNO में प्रस्ताव
  3. सरंक्षणवाद को रोकने हेतु G-20 मे व G-7 में वार्ता
  4. शरणार्थी समस्या (रोहिग्या, चकमा)हेतु देशों के मध्य समझौता व विकासार्थ सामूहिक प्रयास।
  5. व्यापार युद्ध को रोकने हेतु चीन द्वारा अमेरिका की अपेक्षा कम आयात शुल्क लगाना व पुनः वैश्वीकरण की ओर मुडना।
  6. द्विपक्षीय व बहुपक्षीय सम्बन्ध स्थापित करना
  7. CPEC द्वारा चीन भारतीय संप्रभुता को प्रभावित
  8. US चीन तर्क ट्रैड वार की स्थिति में भारत का फायदा, भारत की आर्थिक वृद्धि दर में तेजी।
  9. सीरिया व क्रीमिया संकट हेतु वैश्विक स्तर पर प्रयास।
  10. अन्तरराष्ट्रीय संगठनों G-77, G-201 G-71 BRICS एशिया प्रशांत, SCO सार्क, बिम्सटेक, हिमतक्षेस के माध्यम से प्रयास।
  11. विकसित राष्ट्रों द्वारा विकासशील राष्ट्रों के विकास में सहयोग आतंकवाद की परिभाषा तय कर समन्वतात्मक गतिविधि, पेरिस समझौते का सही क्रियान्वयन, ISA भारत व फ्रांस इत्यादि द्वारा उपरोक्त चुनौतियों का सामना करना चाहिए

ये सभी नई विश्व व्यवस्था की स्थापना की ओर प्रकाश डालती है।

 

Question – 29. राष्ट्रीय एकीकरण की चुनौतियों का परीक्षण कीजिये?

Answer –  प्रमुख चुनौतियां:-

  1. जातिवाद – जातिवाद के कारण संघर्ष की एक स्थिति पैदा जिसके अंतर्गत विभिन्न जातियों के मध्य आरक्षण विवाद जो कि राष्ट्रीय एकीकरण में बाधक
  2. क्षेत्रवाद – राष्ट्र के स्थान पर अपने क्षेत्र विशेष को अधिक प्राथमिकता प्रदान करना। इसके कई रूप जैसे (क) राष्ट्र से पृथक होने की मांग- जम्मू कश्मीर (ख) पृथक राज्य मांग गौरखालैड(प. बंगाल), विदर्भ (महाराष्ट्र) (ग) पूर्ण राज्य की मांग- दिल्ली (घ) संसाधन पर अधिकार जताना – कावेरी विवाद
  3. नक्सलवादः- लाल कोरिडोर का 8 राज्यों में निर्माण अर्थात् छत्तीसगढ़, प.बंगाल, आंध्रप्रदेश, झारखंड आदि राज्यों में पिछडे़ आदिवासियों व कृषकों द्वारा जल, जंगल, जमीन को बचाने के नाम पर नक्सलवादी आन्दोलन जो कि सुरक्षा चुनौतियाँ का कारक।
  4. अलगाववादी प्रवृत्ति- जम्मू व कश्मीर में अलगाववादी ताक़तों को बल मिलना, विदेशी सहायता प्राप्त होने के कारण इनके अलग होने की मांग, उत्तर-पूर्वी राज्यों में मिजोरम मिजो नेशनल फ्रंट, नागालैड में नागा शक्ति संघर्ष, असम में असम गण परिषद आदि के द्वारा अलग होने की मांग राष्ट्रीय एकीकरण में चुनौती उत्पन्न
  5. आतंकवाद:- आतंकवाद राष्ट्र के विघटन का मार्ग प्रशस्त करता है। जो युवाओं को राष्ट्र से एकीकृत होने के स्थान पर अलगाववाद की और मोड़ता है।
  6. साम्प्रादियकताः- साम्प्रादियकता धार्मिक असहिष्णुता को जन्म देती है जिसमें कारण वर्तमान में भीड़ हिंसा को बल मिलना, गौ हत्या आदि अनेक घटनाओं को जन्म देती है।
  7. कर्नाटक द्वारा नए झडे को मान्यता देने की मांग।
  8. राष्ट्रवाद के नाम पर अन्य धर्मों का बहिष्कार, मॉब लिचिंग
  9. जम्मू व कश्मीर मे धारा 370, 35ए आदि लागू होना
  10. असंतुलित विकास – राष्ट्र के विभिन्न भागों में असंतुलित विकास भी इसका कारण है। पूर्वोत्तर राज्यों का कम विकास, उत्तर के राज्यों के अनुपात में दक्षिणी राज्य ज्यादा विकसित। इसके कारण उत्तर-दक्षिण विवाद भी बना रहता है। श्रमिक समस्याऐं भी आती है। हाल ही में गुजरात से उत्तरप्रदेश व बिहार के लोगों को खदेड़ना।
  11. भ्रष्ट राजनीति- राजनीति के भ्रष्ट होने के कारणवश नेता अपने कुरिसत स्वार्थ पूर्ति हेतु राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों, वर्गों, धर्मों, जातियों को भड़काते है।
  12. जाति, धर्म, क्षेत्र उपरोक्त सभी कारक राष्ट्रीय एकीकरण में प्रमुख बाधक होते है सभी कारण भारतीय राजनीति में विद्यमान है।
  13. अन्तर्राज्यीय विवाद तथा केन्द्र राज्य विवाद
  14. अन्य मुद्दे -सीमा विवाद, आर्थिक असमानता, केन्द्र का अत्यधिक नियंत्रण।

 

Question –  30. राजस्थान में पंचायती राज संस्थाओं ने सामाजिक राजनैतिक विकास में महती भूमिका निभाई है यद्यपि अभी भी चुनौतियाँ विद्यवान हैं। स्पष्ट कीजिये?

Answer –  भारतीय स्वतंत्रता के पश्चात् 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम समीक्षा हेतु बलवन्त राय मेहता समिति का गठन किया गया था। इस समिति

की अनुशंसा पर भारत में पंचायतीराज व्यवस्था का शुभारम्भ 2 अक्टूबर 1959 को नागौर (राज.) से किया गया। तत्पश्चात् निर्वाचन समय पर न होने,

संवैधानिक दर्जा न होने के कारण असफल रहने पर 1993 में 73 वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायती राज के अंतर्गत त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था में जिला

स्तर पर जिला परिषद, मध्य स्तर पर पंचायत समिति तथा निम्न स्तर पर पंचायतों का प्रावधान। इन्होनें सामाजिक, राजनैतिक विकास में निम्न भूमिकाओं का

निर्वाह-

  1. गरीबी उन्मूलन में सहायक
  2. केन्द्र व राज्य सरकार की योजनाओं को लक्षित व्यक्ति तक व उचित क्रियान्वयन में सहायक
  3. PDS प्रणाली को मजबूत करके भूखमरी व कुपोषण को दूर करने में सहायक
  4. महिलाओं की प्रशासन में उचित भूमिका व भागीदारी (50ः आरक्षण)
  5. नीति व योजना निर्माण में भूमिका
  6. राजनीतिक रूप से साक्षर बनाना व गांवो की भूमिका को राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया में सार्थक करना शामिल है।

आज देश में 2.55 लाख पंचायती राज संस्थान कार्यरत है, जिसमे जनता की प्रत्यक्ष भागीदारी, स्थानीय स्तर पर योजना निर्माण व क्रियान्वयन, राजनीतिक सहभागिता व लोकतंत्र की प्रयोगशाला की भूमिका अदा की हैं। परन्तु इन सबके बावजूद भी पंचायती राज व्यवस्थाओं में कुछ चुनौतियाँ वि़द्यमान है यथा- 

  1. राज्य सरकारों द्वारा वित्तीय अधिकार पूर्ण रूप से न देना, अनुदान हेतु संस्थाऐ राज्य सरकार का मुंह ताकती है।
  2. प्रशासनिक शक्तियों का पूर्ण हस्तानन्तरण नहीं, राज्य सरकारों का हस्तक्षेप बना रहता है।
  3. जागरूकता का अभाव-पर्याप्त प्रचार-प्रसार के अभाव में अभी भी जनमत में पर्याप्त जागरूकता की कमी है।
  4. वित्त अधिकारी के प्रयोग के प्रति अनिच्छा व भय का भाव
  5. कार्यपालिका का असहयोगात्मक रवैया।
  6. जातिगत राजनीति-स्थानीय स्वशासन सबसे अधिक जातिगत राजनीति से प्रभावित क्षेत्र है जो इसके विकास में कई बार बाधा उत्पन्न कर देता है।
  7. बहुस्तरीय व्यवस्था-पंचायत, पंचायत समिति, ब्लॉक आदि बहुस्तरीय व्यवस्था कभी कभी कई महत्वपूर्ण मामलों में अत्याधिक देर का कारण बन जाती है।
  8. उपयुक्त संसाधनों की कमी अभी भी पंचायतीराज संस्थाओं को अपने क्षेत्र के विकास हेतु पर्याप्त मात्रा में संसाधन नहीं मिल पाते है।
  9. भ्रष्टाचार का प्रसार
  10. नेताओं की अप्रभावित- पंचायती राज संस्थाओं में एक बार चुने जाने के बाद नेताओं को प्रभावी रूप से कार्य न करना भी एक चुनौती है।

कार्यपालिका का असहयोगात्मक रवैया। इन सब चुनौतियों के बावजूद भी महत्वपूर्ण स्थान है। प्रधानमंत्री द्वारा अप्रैल से ग्राम स्वराज अभियान का संचालन

पंचायतीराज संस्थाओं के सशक्तीकरण हेतु आरम्भ किया गया है। कुछ महत्वपूर्ण सुधारों द्वारा इन चुनौतियों से निपटा जा सकता है।

 

Question – 31. निम्न में से किन्ही दो पर टिप्पणियाँ लिखिए-

  1. संघवाद से आप क्या समझते हैं।
  2. केन्द्रीय सतर्कता आयोग
  3. पंथ निरपेक्षता को स्पष्ट कीजिए।
  4. नृजातीयता क्या है।

Answer –  संघवाद:- भारत के संविधान में कहीं भी ’संघ’ शब्द का प्रयोग नही किया गया है। तथापि उसे ’राज्यों का संघ’ कहां गया है क्योंकि अनुच्छेद 2 के अनुसार भारत (1)राज्यों के बीच हुए किसी समझौते का परिणाम नही है। (2) किसी भी राज्य को भारत से अलग होने की अनुमति नहीं है। संघवाद से तात्पर्य किसी राजनीतिक व्यवस्था में केन्द्र व राज्यों के मध्य शक्तियों के उर्ध्वाधर विभाजन से है। केन्द्र व राज्यों के मध्य शक्तियों का बँटवारा का कर सहभागिता पूर्ण शासन संचालन करना। फेडरलिजम शब्द फोएड्स से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है ’समझौता’ संघवाद के दो प्रकार है एक में बड़ा राज्य छोटे राज्यों मे विभक्त होकर आपसी सहमति से शासन करना-कनाडा मॉडल। दूसरे में छोटे राज्य मिलकर बड़ा राज्य बनाकर शासन करना- USA मॉडल। भारत में भी संघवाद को ही अपनाया गया है। अनुच्छेद 1 में भारतीय राज्यों का संघ उल्लेख किया गया है मगर भारत मे फेडरेशन की जगह यूनियन का इस्तेमाल क्योंकि भीमराव अंबेडकर के अनुसार भारतीय संघ राज्यों के समझौते का परिणाम नहीं है तथा ना ही राज्यों को संघ से पृथक होने का अधिकार है। अविभाज्य राज्यों का अविभाज्य संघ। भारतीय संघ में संघवाद के मौजूद लक्षण है- दोहरी सरकार, कठोर संविधान स्वतंत्र न्यायपालिका, नाम मात्र का कार्यपालिका प्रमुख, संविधान की सर्वोच्चयता इत्यादि।

पंथ निरपेक्षता:- पंथ निरपेक्षता शब्द संविधान में 42 वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया हालांकि इसमे पहले से पंथनिरपेक्षता के गुण थे।

पंथ निरपेक्षता से तात्पर्य भारत किसी भी धर्म को राज्य धर्म के तौर पर मान्यता नहीं देगा। इस हेतु संविधान में किये गये प्रावधान है। भारतीय संदर्भ में

इसका अर्थ है सभी धर्मों को समान भाव से देखना व सभी धर्मों को विकास के समान अवसर उपलब्ध कराना।

अनु. 15- धर्म, मूलवंश, जाति के आधार पर असमानता का प्रतिबंध

अनु.25- धर्म को अबाध मानने, आचरण तथा प्रसार की स्वतंत्रता

अनु.26 व 27- धर्मविषयक मामलों के प्रबन्ध की स्वतंत्रता, धार्मिक मामलो में करो के संद्राय से मुक्ति।

अनु.28 – स्कूलों, कॉलेजों व अन्य संस्थाओ में धार्मिक प्रार्थनाओ में उपस्थित होने से स्वतंत्रता।

 

Question – 32. किन परिस्थितियों में भारत के राष्ट्रपति के द्वारा वित्तीय आपातकाल की उद्घोषणा की जा सकती हैं? ऐसी उद्घोषणा के लागू रहने तक, इसके अनुसरण के क्या क्या परिणाम होते हैं।

Answer –  अनु. 360 के अनुसार राष्ट्रपति के द्वारा भारत के समक्ष वित्तीय संकट होने पर वित्तीय आपातकाल की घोषणा की जा सकती है। ऐसी उद्घोषणा 6-6 माह की अनुमति के साथ अनिश्चित काल तक लागू रह सकती है। मिनर्वा मिल्स वाद के तहत इस आपतकाल की न्यायिक समीक्षा भी की जा सकती है।

अनुमोदन:- वित्तीय आपातकाल की उद्घोषणा का अनुमोदन सामान्य बहुमत से इसकी घोषणा के 2 माह के भीतर किया जाना चाहिए। एक बार अनुमोदन पश्चात् दोबारा अनुमोदन की जरूरत नही है।

प्रभाव:- वित्तीय आपातकाल के तहत राज्य द्वारा लोक व्यय में कटौती, उच्च न्यायालय व अन्य लोक सेवकों के वेतन में कटौती, नई भर्ती निषेध जैसे प्रावधान किया जा सकता है(राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, उच्च न्यायलय के न्यायधीशों के वेतन में कटौती, सभी सरकारी कर्मचारी के वेतन में कटौती, अनुदान में कटौती)

परिणाम:-

  1. भारत में मुद्रास्फीति की स्थिति संभावित
  2. भारत का वैदेशिक व्यापार प्रभावित
  3. भारत सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के फंड आवंटन में कमी
  4. इसके तहत केन्द्र राज्य सम्बन्ध बदल जाते है, करो का सग्रहण केन्द्र सरकार द्वारा

भारत मे स्वतंत्रता प्राप्ति से अब तक एक बार भी वित्तीय आपातकाल की घोषणा नहीं की गई है। 1991 मे भुगतान सन्तुलन के संकट के समय वित्तीय

आपातकाल की आशंका की नजर आई थी मगर केन्द्र सरकार द्वारा प्रभावी नीतिगत निर्णयों के माध्यम से वित्तीय आपातकाल को टाल दिया गया। वित्तीय

आपातकाल से देश की वैश्विक स्तर पर साख खराब होती।

 

Question –  33 राफेल सौदा क्या है?

Answer –  फ्रांस की डसाल्ट एविएशन व भारत सरकार के मध्य समझौता, जो मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बेट एयरक्राफ़्ट (एमएमआरसीए) का हिस्सा है राफेल

एक फाइटर जेट है, समझौता सितम्बर 2016 में इसके तहत हमारी वायुसेना को 36 अत्याधुनिक लडाकू विमान मिलेंगे, यह सौदा लगभग 7.8 करोड़ यूरो का

है। यह टू सीवर ट्विन इंजन, मिडीयम मल्टीरोल फाइटर जेट है।

हाल ही में विवाद रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर बनाए जाने पर हालिय राजनीतिक मुद्दा।

 

Question – 34. ऑपरेशन पवन?

Answer –  भारतीय शांति सेना द्वारा श्रीलंका में जाफना का लिट्टे के कब्ज़े से मुक्त कराने के लिए संचालित ऑपरेशन। यह एक भारतीय सेना दल था, जो 1987 से 1990 के मध्य संचालित, गठन भारत-श्रीलंका सन्धि के अधिवेश के अंतर्गत किया गया था उद्देश्य-युद्धरत श्रीलंकाई तमिल राष्ट्रवादियों जैसे लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) और श्रीलकांई सेना के मध्य श्रीलंकाई गृह युद्ध को समाप्त करना था। इसके तहत T-72 टैंक का महत्वपूर्ण योगदान था।

 

Question – 35. इंदिरा नुई?

Answer –  इन्दिरा कृष्णामूर्ति नुई वर्तमान में पेप्सिकों कम्पनी की मुख्य कार्यकारी अधिकारी है। दुनिया की प्रभावशाली महिलाओं में उनका नाम सुमार है। वे येल निगम के उत्तराधिकारी सदस्य है 2007 भारत सरकार द्वारा उद्योग व व्यापार के क्षेत्र में पद्मभूषण से सम्मानित, 2008 कला और विज्ञान के अमेरिकन अकादमी के फ़ेलोशिप के लिए चुनी गई थी।

 

Question – 36. सबरीमाला मंदिर विवाद?

Answer –  केरल के तिरूअन्तपुरम मे स्थित भगवान अयप्पा का मन्दिर, यहाँ 10-50 वर्ष की महिलाओं को उनके मासिक धर्म चक्र के कारण प्रवेश की अनुमति न होने के कारण उत्पन्न विवाद। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में अनु. 14,15(लैगिक समानता) 25,26,27,28 (धार्मिक स्वतंत्रता)के अधिकार के आधार पर सभी पर प्रहार करते हुए वैधानिक शासन की स्थापना सुनिश्चित की। शुरूआत कन्नड़ अभिनेत्री जयमाला के दावे से, 2006 से

 

Question – 37. अस्ताना घोषणा पत्र

Answer –  शंघाई को-ऑपरेशन (एससीओ), 6 देशों के इस संगठन की शुरूआत 2001 में की गई,SCO एक पॉलिटिकल और सिक्युरिटी सूप है इसका हैडक्वार्टर बीजिंग में है।मध्य एशिया के देश कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में SCO की 9 जून 2017 की बैठक आयोजित हुई। बैठक में भारत व पाकिस्तान दोनों देशों को इसकी सदस्ता प्रदान की गयी। यह संगठन खासतौर पर मेम्बर कंट्रीज के बीच मिलिट्री को-ऑपरेशन के लिए बनाया गया।

महत्वपूर्ण (1) यह विश्व को बहु-ध्रुवीय बनाने का जरिया बनेगा। (2) SCO के चार्टर के अनुसार इस संगठन में शामिल देश अपने द्विपक्षीय मुद्दों को नहीं उठा सकते है। (3) भारत हेतु महत्वपूर्ण क्योंकि भारत-पाक SCO आतंकवाद विरोधी अभियान के तहत एक साथ सैन्य अभ्यास करेंगे अर्थात् अस्ताना में स्वीकार किया गया। आतंकवाद विरोधी करार भारत के लिए संतोष का विषय है। (4) इसमें आतंकवाद, उग्रवाद और पृथक्तावाद को शैतान के 3 सिर माना गया है।

 

Question – 38. INSTC एवं भारत

Answer –  अन्तरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा (International North-South Transport Corridor) भारत, ईरान, अफग़ानिस्तान, आर्मोनिया, उणरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्ग का 7200 कि.मी. लम्बी बहु मोड़ नेटवर्क है

भारत पर प्रभाव (1)भारत की यूरोपीय देशों तक पहुँच सुनिश्चित (2) भारत के व्यापारिक हित सुदृढ़ (3) भारत के प्रमुख शब्द मुम्बई का मॉस्को, तेहरान, बाकू, बंदर-ए-अब्बास, आस्त्राखान, बंदर-ए-अजंली आदि से सम्पर्क (4) वर्तमान में इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक मार्गो पर समय और धन के संदर्भ में लागत को कम करना आदि।

 

Question –  39. रौहिंग्या संकंट?

Answer –  रोहिग्या समुदाय, म्यामांर में रखाइन प्रान्त (पूर्व बर्मा) का एक सुन्नी इस्लामिक (बंगाली भाषी) समुदाय है, म्यामांर में बौद्व बहुसंख्यक होने के कारण उत्पन्न नृजातीय संकट, म्यामांर देश ने इन्हे नागरिकता देने से मना कर दिया, सरकार के अनुसार रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेशी है, जो (अवैध रूप से)। ब्रिटिश औपवैशिक काल के दौरान उनके देश मे दाखिल हुए थे।

रोहिग्या लोग ऐतिहासिक तौर पर अरकानी भारतीय के नाम से भी पहचाने जाते है, म्यांमार देश के रखाइन व बाग्लादेश के चटगाँव इलाके मे बसने वाले राज्य विहिन हिन्द-आर्य लोगों का नाम है। ये लोग राहिंग्या भाषा बोलते है, बल्कि वैसे मुसलमान है वर्तमान में इनके द्वारा अन्य देशों में शरण लेना, जिससे अन्य देशों मे उत्पन्न शरणार्थी संकट। इस हेतु भारत द्वारा एन सी आर तैयार जिससे भारतीय लोगों की नागरिकता सुनिश्चित हो सके।

 

Question – 40. तिब्बत कोण क्या हैं

Answer –  2017 में भारत सरकार चीन के विरूद्ध तिब्बत कार्ड तैयार कर रही है तिब्बत-भारत-चीन त्रिकोण जिसमे तिब्बत भारत व चीन के मध्य बफरस्टेट की भूमिका में है। परन्तु चीन द्वारा तिब्बत पर आधिपत्य व तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा को भारत द्वारा शरण देना इस त्रिकोण को दर्शाता है।

तिब्बत कोण के निर्माण के कारण (1) भारत पाकिस्तान को Mother Shipofterrorism बताकर विश्व में अलग-थलग करना चाहता है परन्तु चीन द्वारा पाक का समर्थन (2) भारत की अपनी ’’महाशक्ति प्रतिष्ठा’’ हासिल करने के प्रयासों में चीन मदद करे, और राह न रोके (3) चीन स्वयं को हिन्द क्षेत्र में (IOR) आगेन बढ़ाये और भारत के प्रभाव क्षेत्र का सम्मान करे, किन्तु इन सभी मुद्दों पर चीन की अंसवदेनशीलता देखते हुए भारत वीघर फालनगोंग और तिब्बती पृथकतावादियों को भारत नियंत्रित करता है।

 

Question – 41. मोदी सिद्वान्त (भारतीय विदेशी मामले)

Answer –  अगस्त 2016 में PM ने भारत की विदेश नीति को ’’इंडिया फ़र्स्ट’’ का सांराश रूप दिया। ये भारत के अपने सामरिक हितों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता और अपने घर में अधिक समृद्धि और विकास की तलाश दर्शाता है मोदी सिद्धांत का नेतृत्व एक दर्शन से होता है और वास्तविक कार्यो से लागू किया जाता है विभिन्न कूटनीति आदान-प्रदानों को प्रमुख घरेलू कार्यक्रमों जैसे कि मेक-इन-इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया या स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाने हेतु किया जा रहा है घरेलू और कूटनीति लक्ष्यों का आपस में ताल-मेल मोदी सिद्धांत का प्रमुख पहलू है। इस 1996 नीति को वर्तमान में पड़ोसी प्रथम नीति में तब्दील किया गया है जिसमे आपसी सहयोग, संयोजकता और अधिक नागरिक सम्पर्क शामिल है।

 

Question – 42. शघांई सहयोग संगठन?

Answer –  SCO डयूरेशिया का एक राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य संगठन है जिसकी स्थापना 26 अप्रैल मे शंघाई (चीन) में हुई। चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान सदस्य देश उज्बेकिस्तान शामिल 5 जून 2001 को। नाम पड़ाSCOए 24 जून 2016 को भारत और पाकिस्तान को भी औपचारिक तौर पर अस्ताना में आयोजित शिखर सम्मेलन मे संगठन का सदस्य बनाया गया। 2018 का SCO सम्मेलन किगदांओ में आयोजित हुआ PM मोदी द्वारा SECURE सिद्धांत दिया गया।

 

Question – 43. राजनीतिक जनांकिकी क्या हैं?

Answer –  अन्य नाम जनसांख्यिकी, शाब्दिक अर्थ होता है लोगों का वर्णन जनाकिंकी विषय के अंतर्गत जनसंख्या से सम्बन्धित अनेक रूझानों तथा प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जैसे जनसंख्या के आकार मे परिवर्तन, जन्म, मृत्यु तथा प्रवसन के स्वरूप और जनसंख्या की संख्या और गठन अर्थात् उसके स्त्रियों, पुरूषों और विभिन्न आयुवर्ग के लोगों का क्या अनुपात है शामिल है। जनांकिकी आँकडे़, राज्य की नीतियाँ, विशेष रूप से अधिक विकास और सामान्य जन कल्याण सम्बन्धी नीतियाँ बनाने और कार्यान्वित करने के लिए महत्वपूर्ण होते है।

 

Question – 44. मतदान व्यवहार क्या हैं?

Answer –  निर्वाचन लोकतंत्र की एक अनिवार्य शर्त होता है। मतदान निर्णय लेने या अपना विचार प्रकट करने की एक विधि है जिसके द्वारा कोई समूह (जैसे कोई निर्वाचन क्षेत्र या किसी जिला मे इकट्टे लोग) विचार विनीमय तथा बहस के बाद कोई निर्णय ले पाते है। किसी मतदाता के व्यवहार का अध्ययन जिसके आधार पर वह मत देने हेतु प्रेरित होता है निरूत्साहित होकर मत नहीं देता या किसी विशेष प्रत्याशी को ही क्यो मत देता है का विश्लेषण मतदान व्यवहार कहलाता है। सेफोलॉजी मतदान व्यवहार विश्लेषण की शाखा है मतदान व्यवहार के निर्धारक-धर्म, जाति, क्षेत्रीयता, भाषा, राजनीतिक दल की विचारधारा, स्थानीय मुद्दे , किसी राजनेता का व्यक्त्वि, उम्मीदवार की पृष्ठभूमि, चुनाव प्रणाली आदि।

 

Question – 45. भारत अमेरिका इजराइल सम्बन्ध त्रिकोण क्या हैं?

Answer –  अमेरिका ईजराइल सहयोगी राष्ट्र है तथा अरब-इजराइल संघर्ष में भारत फिलीस्तीन का समर्थक होने के बाद भी इजराइल से सहयोग रखता है। भारत-अमेरिका-इजराइल कूटनीतिक त्रिकोण है जिसकी परिणति हेतु भारत की इजराइल मात्रा, ग्राम सम्मेलन (इजराइल सहयोग व सिंचाई सुविधा मे तकनीकी सहयोग शामिल है) अर्थात् भारत, USA व इजराइल द्वारा आतंकवाद को समाप्त करने, आर्थिक सम्बन्धों को मजबूत करने, अन्तरराष्ट्रीय शांति व सहयोग बढ़ाने, अलगाववादी व हिंसक ताक़तों के प्रभाव को समाप्त करने हेतु तीनों देशों का निर्मित त्रिकोण इसमे

  1. USO द्वारा येरूशलम को राजधानी के रूप में मान्यता प्रदान
  2. UNESCO की सदस्यता छोड़ना (इजराइल व नौ। द्वारा)
  3. भारत व इजराइल तथा भारत- USA के मध्य रक्षा उपकरणों व प्रोद्योगिकीयों का हस्तांतरण शामिल
  4. अन्य सम्बन्ध-साइबर सुरक्षा सहयोग, तेल और प्राकृतिक गैस, एयर ट्रासपोर्ट, फिल्म को-प्रोडक्शन, होम्योपैथिक चिकित्सा में अनुसंधान, अंतरिक्ष क्षेत्र में निवेश, इन्वेस्ट इन इंडिया व इन्वेस्ट इन ईजराइल आदि इस सम्बन्ध त्रिकोण को ओर मजबूत बनाते है।

 

Question – 46. राजस्थान में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के विभिन्न चरण स्पष्ट कीजिए?

Answer –  राजस्थान में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के तीन चरण मुख्य रूप से दृष्टि गत होते है-

  1. एक दलीय प्रभुत्व का दौर -(1952 से 1977) प्रथम विधानसभा गठन से लेकर पांचवी विधानसभा तक राजस्थान में एक ही राजनीति दल (कांग्रेस का वर्चस्व) इस दौरान मोहनलाल सुखाड़िया सर्वाधिक समय (17 वर्ष) तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। हिरालाल शास्त्री, जय नारायण व्यास व मोहनलाल सुखाड़िया का कार्यकाल
  2. गठबंधन दौर (अस्थिरता का दौर) 1977 से 1998 इस दौरान पहली बार कांग्रेसी वर्चस्व समाप्त तथा भैरोसिंह शेखावत के नेतृत्व में सरकार का गठन, इस दौर में तीन बार राष्ट्रपति शासन तथा कई मुख्य मंत्रियों के दौर देखे गये यथा भैरोसिंह शेखावत, शिव चरण माथुर, हरि देव जोशी आदि 
  3. द्विदलीय प्रणाली (1998 से अब तक) इस दौरान सरकार के स्थायित्व का काल तथा प्रत्येक 5 वर्ष पश्चात् सत्ता परिवर्तन द्विदलीय प्रणाली जारी कांग्रेस→भाजपा→कांग्रेस→भाजपा 1998 के बाद का काल राजनीति का संक्रमण काल कहलाता है, वर्तमान में राजस्थान में काग्रेस व भाजपा दो मुख्य प्रतिर्स्पाधात्मक राजनीति दल है। अब तक 14 बार विधानसभा के चुनाव सम्पन्न हो चुके है। 15 वीं विधानसभा चुनाव प्रणाली आगामी 7दिसम्बर 2018 को राज्य में सम्पन्न करवाये जायेंगे।

 

Question – 47. धारा 35ए को स्पष्ट कीजिए।

Answer –  धारा 35ए भारत के सविंधान के परिशिष्ट-2 में पूर्व राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा अपने आदेश से 1954 में जोड़ी गई। यह जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में एक विशेष उपबन्ध है, जो अनुच्छेद (धारा) 370 के तहत् जम्मू-कश्मीर से सम्बन्धिन विशेष अधिकार प्रदान करती है। इसके तहत-

  1. जम्मू-कश्मीर विधानसभा को स्थायी नागरिकता को परिभाषित करने का अधिकार दिया गया है। (1954 से पहले 10 वर्ष से निर्वासित ही J&K के नागरिकों के रूप में मान्य)
  2. इसके तहत कोई भी बाहरी व्यक्ति (राज्य के बाहर का) जम्मू-कश्मीर में भूमि नहीं खरीद सकता, न ही सरकारी नौकरी में भर्ती हो सकता है।
  3. इसके तहत अगर कोई महिला किसी गैर कश्मीरी नागरिक से विवाह कर लेती है तो उसकी सम्पत्ति से बेदखली व नागरिकता खत्म जो अनु.14 का उल्लंघन है। यह धारा जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को अपने राज्य हितों को देखते हुए बनायी गयी इसको हटाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका अनु. 368 के तहत नही करके तथा ससद मे नही रखकर असंवैधानिक माना जाता है।

 

Question – 48. नियंत्रक और महालेखापरीक्षक को एक अत्यावश्यक भूमिका निभानी होती है, क्या आप इस मत से सहमत है?

Answer –  भारतीय संविधान के अनु. 148 से 151(भाग-5) में नियंत्रण व महालेख परीक्षक का प्रावधान किया गया है। इन्हे लोक लेखा समिति का मित्र, गाइड, मार्गदर्शन या पथ प्रदर्शक की संज्ञा दी जाती है। CAG विनियोग लेखा, वित्त लेखा व सार्वजनिक उपक्रम लेखा सम्बन्धि तीनों रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौपता है तथा भारत की संचित निधि व लोक लेखा से हुई व्ययों की जांच करता है। यह भारत के लिए महानियंत्रक व राज्य के लिए लेखाकार व नियंत्रक दोनो का कार्य करता है, अतः इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है। इनकी रिपोर्टों के माध्यम से ही विधायिका कार्यपालिका पर नियंत्रण स्थापित करती है जो शक्ति पृथक्करण के सिद्धांतों की प्रतिपूर्ति करती है। CAG द्वारा औचित्य लेखा से संसाधनों व धन का इस्टतम उपयोग करने हेतु कार्यपालिका बाध्य होती हैं। इस दृष्टि से इसकी भूमिका अत्यावश्यक है।

लेकिन कोई भी राज्य या केन्द्र इसकी अनुमति के बिना संचितनिधि से धन की निकासी कर सकता है, इसका कार्य केवल धन निकासी के पश्चात् लेखा परीक्षक के रूप में दूसरा इनके द्वारा राष्ट्रपति को सोपी गयी रिपोर्ट की जांच लोक लेखा समिति करती है जो के राजनीतिक हस्तक्षेप है। यह कार्य केवल मात्र ’’शव परीक्षा’’ की तरह है फिर भी इसकी अत्यावश्यक भूमिका को देखते हुए भारत में भ्रष्टाचार मुक्त सरकार की कल्पना करना स्वाभाविक है।

 

भारतीय संविधान एवं राज-व्यवस्था

भारतीय संविधान एवं राज-व्यवस्था

Geetanjali Academy- By Jagdish Takhar

प्रश्न:- प्रस्तावना भारतीय संविधान के दर्शन को कैसे सूचित करती है, समझाइये। (100 शब्द)

अथवा

प्रस्तावना के अंतर्गत जिन आदर्शों एवं उद्देश्यों की घोषणा की गई थी वे भारत में सामाजिक क्रांति के वाहक हैं, समीक्षा कीजिए। (100 शब्द)

उत्तर  –  प्रस्तावना  संविधान के दार्शनिक  भाषा के रूप में जहाँ  एक तरफ संविधान की सत्ता  को सूचित करती है, वहीं दूसरी तरफ उन आदर्शों, मूल्यों व उद्देश्यों का ज्ञान प्रदान करती है जिनकी प्राप्ति करना संविधान का मूल ध्येय है। प्रस्तावना  के अंतर्गत भारत की राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को प्रभुसत्ता के साथ संयुक्त कर दिया गया है और लोकतांत्रिक प्रणाली के माध्यम से इसे प्राप्त  करना उद्देश्य के रूप में घोषित किया गया है। प्रस्तावना में लोकतांत्रिक मूल्यों के रूप में स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुता की जो संकल्पना प्रस्तुत  की गई है वह अंबेडकर के यूनियन ऑफ ट्रिनिटी के अंतर्गत सामाजिक लोकतंत्र के विचार को समर्थन देता है जिसे राजनीतिक लोकतंत्र की पूर्व शर्त माना गया है। 

प्रस्तावना  के अंतर्गत मानव  सभ्यता के सर्वोच्च  सद्गुण अर्थात न्याय का  व्यापक उल्लेख किया गया है  और सामाजिक न्याय को प्रस्तावना  में स्थान दिया गया है। सामाजिक  न्याय का यह आदर्श पिछले सात दशकों  से भारतीय राजनीति का मार्गदर्शन कर रहा  है और इसने लोक कल्याणकारी राज्य के विचार  को साकार किया है।

(संत ऑगस्टाइन – न्याय के बिना समाज एक डाकुओं का झुंड है)

प्रस्तावना  में दिया गया  पंथनिरपेक्षता का  विचार जहाँ एक ओर  राज्य धर्म का निषेध  करता है वहीं विभिन्न  धर्मों को संरक्षा प्रदान करता है क्यों कि सर्वधर्मसमभाव भारत की पंथनिरपेक्षता का आधार है।

प्रस्तावना  में दिया गया  समाजवाद गाँधीवादी  दर्शन पर आधारित है  जिसमें शांतिपूर्ण एवं  अहिंसक साधनों से समाजवाद  लाने का प्रयास किया गया है।  जैसा कि डी.एस. नकारा बनाम भारत  संघ में कहा गया है कि भारतीय समाजवाद गाँधीवाद और मार्क्सवाद का मिश्रण  है जिसका झुकाव गाँधीवाद की ओर है।

इस  प्रकार  संविधान की  प्रस्तावना न  केवल संविधान की  सर्वोच्च सत्ता के  रूप में घोषणा करती  है वरन् प्रस्तावना जैसा  कि केशवानन्द भारती वाद में  कहा गया है कि जहाँ संविधान की  भाषा संदिग्ध और स्पष्ट हो वहाँ  संविधान की व्याख्या में प्रस्तावना का सहारा लिया जा सकेगा, संविधान को आधार भी प्रदान करती है।

अथवा

प्रस्तावना  के अंतर्गत न  केवल शाब्दिक रूप  से बल्कि भावनात्मक  और दार्शनिक रूप से ऐसे  आदर्श स्थापित किये गये हैं  जो पिछले 7 दशकों में भारतीय  राजनीति शासन एवं प्रशासन का व्यापक  रूप से मार्गदर्शन करते आए हैं और इसीलिये  भारतीय संविधान के विषय में कहा जाता है कि  वह केवल विधिक संग्रह नहीं है वरन् सामाजिक आर्थिक परिवर्तनों का विस्तृत घोषणा पत्र है (ग्रेनविल ऑस्टिन)।

प्रस्तावना  में सामाजिक  न्याय एवं सामाजिक  लोकतंत्र का जो समन्वय  स्थापित करने का प्रयास है  उसने लोक कल्याणकारी राज्य की  भारतीय अवधारणा का क्षितिज विस्तृत  कर दिया है जिसके कारण भारत की विभिन्न योजनाओं  एवं कार्यक्रमों  में जीवन की आधार भूत  आवश्यकताओं से लेकर आवश्यक  सुविधाओं तक उपलब्ध कराना इस राज व्यवस्था का ध्येय रहा है।

प्रस्तावना  में कालांतर  में शामिल किये  गये पंथनिरपेक्ष व  समाजवाद जैसे तत्व ना  केवल भारतीय समाज के परंपरागत  आदर्शों को बताते हैं वरन् एक  विकसित कहे जाने वाले राज्य जिसमें  सामाजिक आर्थिक परिवर्तन के बहुत सारे पक्ष विद्यमान हों, वहाँ ये तत्व निरंतर व्यवहार में आते हैं। पंथनिरपेक्षता ने जहाँ भारतीय नीति निर्माताओं को  ऐसी नीतियाँ अपनाने हेतु प्रेरित किया, जिसमें अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक जैसे विवादों को स्थान ना मिले बल्कि एक ऐसी सामाजिक (Composite) संस्कृति निर्मित हो सके जहाँ राष्ट्र की प्रगति एवं समृद्धि में हर संप्रदाय अपना योगदान दे सके।

समाजवाद 1990 के पहले तक भारत की राजकीय नीतियों का केन्द्र बना रहा और सार्वजनिक उद्यम एवं निजी लाभ के  स्थान पर सरकारी सेवा व सहायता को प्रभुखता प्रदान की गई और यदि किसी प्रकार की सामाजिक-आर्थिक असमानता  विद्यमान रही भी तो विभिन्न संशोधनों व क़ानूनों के माध्यम से असमानता को दूर करने का प्रयास किया गया।

निःसंदेह  यह सत्य है  कि प्रस्तावना  में घोषित आदर्श  व मूल्य सामाजिक आर्थिक  परिवर्तन के वाहक हैं परन्तु  इस दिशा में अभी बहुत कुछ करना  शेष है। क्योंकि 1990 के दशक से  वैश्वीकरण ने राज्य के उद्देश्यों में  ज़बरदस्त परिवर्तन किया है और साथ ही राज्य  का सामना कुछ नयी प्रकार की चुनौतियों से हुआ  है। जिनके समाधान के लिये प्रस्तावना में घोषित आदर्शों  का व्यापक संदर्भ प्राप्त करना होगा तभी ये आदर्श भारत में  सामाजिक आर्थिक परिवर्तन के वास्तविक वाहक सिद्ध होंगे।

प्रश्न:- भारतीय संविधान पर पड़ने वाले विदेशी प्रभावों का विस्तृत विवेचन कीजिए ?

अथवा

क्या भारतीय संविधान उधार ली गई वस्तुओं का संकलन मात्र है अथवा इससे कुछ अधिक है उदाहरण सहित कथन की पुष्टि कीजिए ।

उत्तर.  भारतीय  संविधान दीर्घ  ऐतिहासिक विकास प्रक्रिया  का परिणाम है और अपने निर्माण  से लेकर क्रियान्वयन तक अवस्था में  इसने विश्व के विभिन्न दृष्टिकोाों को  संग्रहित अवश्य किया है परन्तु उन सब का  प्रयोग मौलिक दृष्टि को विकसित करने में किया है।

ब्रिटेन  के प्रभाव  के परिणाम स्वरूप  भारतीय संविधान स्वभाविक  रूप से ब्रिटिश काल में बने  अधिनियमों और ब्रिटेन की व्यवस्था  की सर्वाधिक मात्रा ग्रहण करता दिखाई  देता है। फिर चाहे वह संसदीय लोकतंत्र  हो , प्रधानमंत्री और मंत्री परिषद हो या  विधि का शासन हो परन्तु ब्रिटेन के विपरीत  भारतीय संविधान में विभिन्न विषयों को ना केवल लिपिबद्ध  किया गया है, बल्कि वंशानुगत व्यवस्था के स्थान पर निर्वाचन पर आधारित  विशाल तंत्र का विकास किया गया है। इसके अतिरिक्त उपबन्धों, प्रावधानों को  युक्ति युक्त/तार्किक बनाने के लिए अपवादों व प्रतिबंधों का समावेश किया गया।

भारतीय  संविधान पर  अमेरिकी संविधान  के प्रभाव से मौलिक  अधिकार एवं न्यायिक व्यवस्था  को ग्रहण किया गया लेकिन मौलिक  अधिकारों को अत्यधिक विस्तृत स्वरूप  देते हुए अधिकारों के विषयों में संरक्षामूलक  भेदभाव को अपनाया गया इसलिए यह अधिकार एक वर्ग  विशेष का विशेषाधिकार न बनकर सामूहिक रूप से उपलब्ध  हो गया,

यद्यपि  अमेरिकी संविधान  में न्यायिक व्यवस्था  न्याय की भावना को स्थान  देती है परंतु भारतीय संविधान  न्याय के प्रक्रियागत पक्ष की अनदेखी नही करता है।

भारतीय  संविधान संघवाद  के प्रतिमान को स्वीकार  तो करता है परंतु इस संदर्भ  में कनाड़ा के संघ (यूनियन) के अधिक  निकट है, क्योंकि भारतीय राष्ट्रवाद संघ  व राज्यों के मध्य संघर्ष और सहयोग के मध्य  विकसित होता है, इसलिए जहा राज्यों को स्वायत्ता दी गई है वहीं संघ के नियंत्रण को प्रभावशााली बनाया गया है।

भारतीय  संविधान में  और भी प्रावधान  जैसे संविधान संशोधन  (दक्षिणी अफ्रीका), आपातकालीन  उपबन्ध (जर्मनी), मौलिक कर्तव्य  (सोवियत संघ) इत्यादि से लिए गए है।  परंतु उनका विवेचन भारतीय व्यवस्था की प्रांसगिकता  और चर्चा का विषय बनाया गया है। जिसका प्रभाव यह है  कि संशोधन के विषय पर विधानमंडल निरंकुश नही है, और आपातकाल विशिष्ट  परिस्थितियों में लगाये जाने योग्य । मौलिक कर्तव्यों का विचार भी भारत की  सामाजिक नैतिक जीवन से जुड़ा हुआ विचार ही प्रतीत होता है।

निष्कर्ष रूप में जैसा की अम्बेडकर का कथन है कि संविधान के मौलिक सिद्धान्तों में अन्तर विरोध नही पाये जाते है और संविधानों से प्रेरणा प्राप्त करना संविधान की कमजोर नही परिपक्ता की निशानी है।

प्रश्न:- भारतीय  संविधान लोक कल्याणकारी  राज्यों के आदर्शों को प्राप्त  करने वाला एक समग्र एवं जीवन्त दस्तावेज  है। संवैधानिक प्रावधानों के संदर्भ में उक्त कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर.भारतीय संविधान अपने निर्माणण से लेकर अब तक विभिन्न व्याख्याओं के अंतर्गत एक नये नमूने का संविधान प्रस्तुत करता है जिसका आधार राज्य के लोक कल्याणकारी स्वरूप का समग्र रूप से पोषण एवं विकास करना है। संविधान के अंतर्गत इसके दार्शनिक – भावनात्मक भागो अर्थात प्रस्तावना, अधिकार, नीति निर्देशक तत्व और मौलिक कर्तव्यों लोक कल्याणकारी भावना को प्रतिबिम्बित करते है।

प्रस्तावना  के अंतर्गत लोक  कल्याणकारी राज्य के  मूल आधारो जिनसे ना केवल  लोकतांत्रिक व्यवस्था सुदृढ़ होती वरन् व्यवस्था के विभिन्न अंगों में सद्भाव पैदा होता है इसलिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता एवं भातृत्व को प्रस्तावना में विस्तृत  संदर्भो में प्रस्तुत किया गया है। इसीलिए हर अधिकार विस्तृत विवेचन लिए हुये है। इसके अतिरिक्त अधिकारों के माध्यम से व्यष्टि तथा समष्टि के मध्य विरोध के विषय दूर करने का प्रयास किया गया है। साथ ही हर अधिकार को विभिन्न आधारो पर परखने का प्रयास किया गया है चाहे इसके लिए राज्य को संरक्षामूलक विभेदकारी व्यवहार को प्रचलन में लाना पड़ा हो, अन्ततोगत्वा इसका उद्देश्य भी सामूहिक जनकल्याा है।

राज्य  नीति के  निदेशक तत्व  तो लोक कल्याणकारी  राज्य का जीवन्त चित्र  प्रस्तुत करते है। और इसके  विविध प्रावधानों में समाज के  हर वर्ग, हर समूह और सजीव तथा  निर्जीव हर पक्ष पर ध्यान देने का  प्रयास किया है। ये तत्व लोककल्यााकारी  राज्य में नैतिक मानवतावादी दर्शान को प्रकट  करते है। ना केवल व्यक्तिगत रूप से बल्कि समुहो की भलाई के लिए इन तत्वों ने ऐसा प्रभाव डाला है कि ये तत्व प्रशासको की आचार संहिता बन गऐ है और न्यायिक सक्रियता का प्रारंभिक बिंदु भी।

मौलिक  कर्तव्य  वास्तविक रूप  में शासन और जनसामान्य  के मध्य उन सम्बन्धों के  सूचक है जिससे दायित्व की संकल्पना  जन्म लेती है और यदि व्यक्ति कर्तव्यों के पालन में रूचि दिखाते है तो शासन और  प्रशाासन भी जन सुरक्षा और जन समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनता है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता कि भारतीय संविधान लोककल्यााकारी राज्य के प्रत्येक आयाम को ना केवल स्थान देता  है वरन् लोककल्याा की भावना को भी सुनिश्चित करने का प्रयास करता है जिससे हर व्यक्ति संवैधानिक आवरण के भीतर सुरक्षित और संवेदनशील प्रशासन को महसूस कर सकता है।

मौलिक अधिकार एवं राज्य के नीति निदेशक तत्व

प्रश्न:- मौलिक अधिकारों को परिभाषित करते हुए इनकी प्रकृति एवं महत्व बताइये।

प्रश्न:- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का प्राण है, शर्त ये है कि वह तार्किक हो। (तर्कसंगत) 

प्रश्न:- अनुच्छेद-21 में मानवाधिकार के क्षेत्र को विस्तृत कर दिया है, टिप्पणी दीजिए।

प्रश्न:- मूल अधिकारों के संरक्षा के लिए संवैधानिक रिटों का उल्लेख कीजिए।

प्रश्न:- राज्यनीति के निदेशक तत्व लोक कल्याणकारी राज्य के वाहक हैं, सौदाहरण समझाइये।

प्रश्न:- मौलिक अधिकार एवं नीति निदेशक तत्वों के संबंधों की व्याख्या करते हुए संसद एवं न्यायपालिका के टकराव को बताइये।

उत्तर 4 – मौलिक अधिकार व्यक्ति के व्यक्तित्व के समग्र विकास हेतु आवश्यक दशाओं एवं सुविधाओं के पर्याय है।

अथवा

अधिकार  व्यक्ति के  सामाजिक जीवन  की वे परिस्थितियाँ  हैं जिनके बिना कोई व्यक्ति  पूर्ण आत्मविकास की आशा नहीं कर सकता है।

मौलिक  अधिकारों  की प्रकृति  सर्वसमावेशी, कर्तव्यों  से अनुप्प्राणित, प्रतिबंधों  में व्यावहारिकता, क़ानूनों से संरक्षित एवं अहस्तांतरणीय है।

अधिकारों का महत्त्व इस बात में निहित है कि ये व्यक्तित्व के विकास का साधन होने के साथ-साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था  के निर्माण और उसके विकास को संभव बनाते हैं अतः यह कहा जाता है कि किसी भी लोकतंत्र की पहचान उसके द्वारा अनुरक्षित किये गए अधिकारों से होती है साथ ही मौलिक अधिकार मानवीय जीवन की गरिमा एवं मानव के संतुलित विकास की सभी दशाओं को स्थापित करने के कारण महत्वर्पूण हैं।

उत्तर 5    अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रता  लोकतांत्रिक मूल्यों  की रक्षा और मानवीय गरिमा  के दृष्टिकोण से महत्वर्पूण हैं  क्योंकि लिखित, मौखिक एवं सांकेतिक  रूप से की जाने वाली अभिव्यक्ति ना  केवल व्यक्ति विशेष के विचारों का प्रसार करती  है बल्कि उससे लाभान्वित होने वालों के दृष्टिकोण  को भी विस्तृत करती है अतः यह माना जाता है कि अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रता नहीं वरन् उस पर लगाए गए प्रतिबंध क्रांति को  जन्म देते हैं, अतः अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के महान समर्थक जे.एस. मिल ने तर्क दिया था कि किसी व्यक्ति की राय समाज की राय से अलग होने पर समाज द्वारा उसे चुप करा देना निरंकुशता की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देगा।

लेकिन  अभिव्यक्ति  की ऐसी स्वतंत्रता  का महत्व उसी समय है  जबकि वह तार्किक प्रतिबन्धों  एवं युक्तियुक्त/उचित  वर्गीकरण के साथ हो  अतः भारतीय संविधान के  अनु. 19 में अभिव्यक्ति की  स्वतंत्रता के साथ उस पर लगने  वाले प्रतिबंधों का आधार भारतीय  प्रभुता, एकता, अखंडता, राज्य की सुरक्षा,  लोक व्यवस्था, मानहानि, अवमानना जैसे विषयों में  स्पष्ट किए हैं, दूसरे शब्दों में अभिव्यक्ति की  स्वतंत्रता स्वछन्दता में परिवर्तित ना हो और इसका संतुलित  उपयोग देखा जाये इसके लिए प्रतिबंधों को होना (तार्किक होना)  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम ना करके उसे सार्थक एवं अनुकूल बनाता है।

अनुच्छेद 21 – (i) विधि के द्वारा स्थापित प्रक्रिया – उचित, न्यायपूर्णा , ऋजु (तार्किक), (ii) प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षा (जीवन-शारीरिक स्वतंत्रता)।

उत्तर 6  – अनु. 21 जिसमें विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया अर्थात् – प्रक्रियात्मक न्याय का उल्लेख है। लेकिन 1978 के मेनका गांधी  बनाम भारत संघवाद में न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणी से इसका क्षेत्र विस्तृत हो गया है और यह माना गया  है कि अनु. 21 का संबंध केवल कानून की शब्दावली ना होकर इसमें कानून की आत्मा/भावना भी अन्तर्निहित है और  1980 से अब तक विभिन्न मामलों में अनु. 21 की उदार व्याख्याओं के परिणामस्वरूप इसमें अनेक अधिकार शामिल हो गये  हैं यथा, गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार, त्वरित सुनवाई का अधिकार, स्वस्थ पर्यावरणण का अधिकार, चिकित्सीय सहायता का अधिकार,  महिला उत्पीड़न की रोकथाम का अधिकार एवं सूचना का अधिकार इत्यादि के कारण यह कहा जा सकता है कि अनु. 21 ने मानवाधिकारों  के क्षेत्र को विस्तृत स्वरूप प्रदान किया है।

उत्तर 7  – मूल अधिकारों का संरक्षा, स्वयं में मूल अधिकार है, स्पष्ट करें।

अनु.  32 मौलिक  अधिकारों के  संरक्षा की दिशा  में एक महत्वर्पूण  प्रावधान है जो सर्वोच्च  न्यायालय को संरक्षा का दायित्व सौंपता है जिसे न्यायालय 5 प्रकार की रिटों के माध्यम से संपादित करता है –

1.बंदी प्रत्यक्षीकरण –  भ्ंइमंने ब्वतचने नाम की यह रिट व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा का महत्वर्पूण उपाय है क्योंकि इसके माध्यम से निजी एवं सार्वजनिक दोनों ही अधिकारियों के विरूद्ध रिट जारी की जा सकती है। यदि ऐसा प्रतीत होता है  कि किसी व्यक्ति को अवैध रूप से हिरासत में या नजरबन्द कर रखा हो।

2.परमादेश  – इसके माध्यम  से किसी सार्वजनिक  अधिकारी को अपने लोक  कर्तव्य सम्पन्न करने का आदेश दिया जाता है क्योंकि कर्तव्यों के उल्लंघन से दूसरे के अधिकारों को क्षति पहुँचती है।

3.प्रतिषेध – इसके अंतर्गत उच्चतम न्यायालय नीचे के न्यायालयों को आदेश देता है कि किसी मामले में की जा रही न्यायिक कार्यवाही को इस आधार पर रोक दिया जाये कि मामला न्यायिक अतिक्रमा का प्रतीत होता है।

4.उत्प्रेषा –  किसी मामले में नीचे के न्यायालय द्वारा  र्निणय हो जाने के पश्चात् कार्यवाही को संबंधित दस्तावेज  शीर्ष अदालत अपने पास मंगवाती है यदि मामला ऐसा है जिसमें  नीचे के न्यायालय को र्निणय सुनाने का अधिकार नहीं था।

5.अधिकार पृच्छा – इस रिट के माध्यम से किसी सरकारी पद पर व्यक्ति विशेष के दावे की वैधता को जाँचा  जाता है। यदि उस पर व्यक्ति का दावा/अधिकार अनुचित है तो उसे कार्य करने से रोक दिया जाएगा जब तक कि मामले का स्पष्टीकरण ना किया जाये।

उत्तर 8  – राज्य नीति  के निदेशक तत्व  सामाजिक न्याय एवं  सामाजिक लोकतंत्र की  स्थापना के माध्यम से  उन आदर्शों की घोषणा करते  हैं जिन्हें शासन एवं प्रशासन  में स्थान देकर विभिन्न नीतियों  एवं योजनाओं के द्वारा लोककल्यााकारी राज्य का आदर्श प्राप्त किया जा सकता है।

ये नीति निदेशक तत्व समाज के प्रत्येक तत्व विशेष रूप से वंचित, पिछड़े, महिला, वृद्ध, निशक्तजन के  कल्याा को महत्वर्पूण स्थान देते हुए विभिन्न सामाजिक सुरक्षा के कार्यक्रमों यथा – पेंशन  योजना एवं बीमा सुविधाएँ जैसे प्रावधान किये गए हैं।

रोजगार,  जिसे लोक  कल्याण हेतु  आवश्यक तत्व माना  जाता है, उसे मनरेगा  जेसे कार्यक्रमों और न्यूनतम मजदूरी की विभिन्न घोषणाओं में महत्व प्राप्त  हुआ है साथ ही महिलाओं के सम्मान एवं गरिमा की रक्षा जो किसी भी लोकतांत्रिक  – कल्याणकारी राज्य की आवश्यकता पहचान है उसे विभिन्न कानूनी उपायों से संरक्षित किया गया है – 1997 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा विशाखा बनाम राजस्थान वाद तथा 2013 में कार्यस्थल  पर यौन उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध एवं प्रतितोष) लोक कल्याणकारी राज्य का भारतीय संदर्भ किशोर आयु के बच्चों को भी अधिनियम महत्वर्पूण स्थान देता है और इसे किशोर  न्याय अधिनियम में भी महत्वर्पूण स्थान दिया गया है।

इन तत्वों के अंतर्गत स्वस्थ समाज के निर्माण हेतु मादक द्रव्यों के दुरुपयोग को रोकने और भारत की  ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ीकरण करने हेतु कृषि व पशुपालन को भी शामिल किया गया  है जिसे ध्यान में रखते हुए भारत के विभिन्न प्रकार के अनुसंधान कार्यक्रम – हरित क्रांति व 1990  के दशक से प्रारम्भ किये गए आर्थिक सुधारों में भी इन्हें महत्वर्पूण स्थान दिया गया है।

इस  प्रकार  राज्य नीति  के निदेशक तत्व  उन लक्ष्यों की पूर्ति  का सशक्त माध्यम है जिन्हें  ध्यान रखते हुए ग्रेनविल ऑस्टिन ने भारतीय संविधान को ‘‘सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन लाने वाले विस्तृत घोषणा पत्र‘‘ का नाम दिया है।

उत्तर   –  संसद  एवं न्यायपालिका  का संघर्ष मौलिक अधिकार  बनाम नीति निर्देशक तत्वों  की व्याख्या से संबंधित है जिसमें  मौलिक अधिकारों की प्रकृति व्यक्तिगत  एवं नीति निदेशक तत्वों की सामूहिक है  एवं

मौलिक  अधिकार का  संरक्षा न्यायपालिका  द्वारा जबकि राज्यनीति के निदेशक  तत्व सरकारों हेतु मार्गदर्शन सिद्धांतों का कार्य करते हैं।

1951 में प्रथम संविधान  संशोधन (1951) में चंपाकम  दोइराजन वाद के प्रभाव को समाप्त करने का प्रयास  किया गया और इसमें संसद ने तर्क दिया कि अनु.  46 में समाज के दुर्बल वर्गों की रक्षा के लिये अनु.  15 मौलिक अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है। इसी क्रम  में महत्वर्पूण विवाद सम्पत्ति के मौलिक अधिकार पर हुआ, जहाँ  1951 के शंकरी प्रसाद वाद, 1954 बेला बनर्जी वाद व 1964 के सज्जन सिंह  वाद में न्यायालय ने यह तर्क दिया कि सम्पत्ति का अधिग्रहणण करते समय पर्याप्त  मुआवजा प्रदान किया जाये, यद्यपि संसद ने प्रथम संशोधन से अनु. 31(A) व 31(B) का समावेश करके यह निर्धारित किया

कि  नीति  निदेशक  तत्वों को  प्रभावी करने  के लिये व सम्पदा  का अधिग्रहणण करने हेतु  राज्य कानून बना

सकता है एवं 9वीं अनुसूची में इन क़ानूनों को शामिल करने से न्यायालय इनकी समीक्षा नहीं कर सकेगा। 1967  में गोलकनाथ वाद में न्यायपालिका ने संसद की संशोधन करने की शक्ति को अवैध घोषित

कर  दिया  और सम्पत्ति  के अधिकार सहित  सभी मूल अधिकारों  को संरक्षित कर दिया।  लेकिन 1971 में

संसद ने 24वें व 25वें संशोधन से महत्वर्पूण परिवर्तन किये जिसमें अनु. 31(C) जोड़ा गया और घोषित किया गया  कि नीति निदेशक तत्वों को प्रभावी करने हेतु अनु. 14, 19 व 31 में संशोधन किया जा सकता है। साथ ही ‘क्षतिपूर्ति‘ की जगह ‘रकम‘ शब्द रख दिया गया जिस पर विचार करना न्यायालय के क्षेत्र से बाहर कर दिया गया।

1973  के केशवानन्द  भारती वाद में  न्यायालय ने संसद  की संशोधन शक्ति को  स्वीकार कर लिया लेकिन संविधान के आधार भूत ढाँचे का सिद्धांत/विचार दिया, जिसमें संशोधन नहीं  किया जा सकेगा। 42वें संशोधन 1976 से न्यायिक पुनरावलोकन का क्षेत्र समाप्त कर दिया गया  और 1978 में 44वें संशोधन से सम्पत्ति का अधिकार मौलिक अधिकारों की सूची से बाहर कर दिया गया।

1980  में मिनर्वा  मिल्स बनाम भारत  संघ वाद में न्यायालय  ने कहा कि मौलिक अधिकार  व नीति निदेशक तत्वों का संतुलन  शासन हेतु आवश्यक है तथा जब अनु.  39(b) व (c) को लागू करना हो तो मौलिक अधिकार संशोधित किये जा सकते हैं अन्यथा मौलिक अधिकार प्रधान बने रहेंगे।

इस प्रकार स्पष्ट है कि संसद व न्यायपालिका का ये टकराव जिसका आधार संविधान के भागों की व्याख्या से संबंधित है उसमें संतुलन बनाये रखने की आवश्यकता है।

प्रश्न:- राज्य  नीति के निदेशक  तत्व वाद योग्य ना  होते हुए भी शासन के  संचालन में सक्रिय प्रभाव/  बाध्यकारी प्र्रभाव उत्पन्न करते है, उदाहरणण सहित इस कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर.-  भारत  जैसे लोकतांत्रिक  राज्य में नागरिकों  की सुरक्षा और उनका बहुमुखी  विकास मुख्य कार्य माने जाते है।  परंतु सुरक्षा को विकास पर प्राथमिकता  के कारण सविधान में नीति निदेशाक तत्वों  को बाध्यता से मुक्त रखा गया परंतु विकास के  छः दशकों मे इन तत्वों ने निरंतर नवीन आयाम और  प्रभाव प्राप्त किये है जिससे इनका पालन करवाना शासन एवं प्रशासन पर बाध्यकारिता उत्पन्न करता है। जिसका मूल इन तत्वों के विस्तृत विवेचन से स्पष्ट होता है। नीति  निदेशक तत्व समाजवादी समाज की स्थापना को प्रारंभिक लक्ष्य के रूप में स्वीकार करते है और विगत छः दशकों में विविध न्यायिक र्निणयों और संविधान संशोधनों  ने निदेशक  तत्वों के समाजवादी  दर्शन को अनूठा प्रभाव प्रदान किया है।

इन तत्वों में सामाजिक दृष्टिकोण से पिछड़े और वंचित वर्गो के बहुमुखी कल्याण को ध्यान में रखा गया है  जिसका सीधा सरोकार गरीबी, अशिक्षा, बेकारी, निशःशक्ता जैसी दशाओं से और प्रशासन की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं

द्वारा इन वर्गो को केन्द्र बिंदु बनाना इस बात का सूचक  है कि नैतिक मानवता रखने वाले नीति निदेशक तत्व यदि प्रशासन में स्थान प्राप्त न करे तो कल्याणकारी राज्य का स्वप्न अधूरा रह जायेगा। इतना ही नही न्यायिक सक्रियता के विकास ने शासन को इन कल्याणकारी उपायों के क्रियान्वन के लिए समय सीमा में बांध दिया है।

ये  तत्व  व्यक्ति  के जीवन और  स्वास्थ्य से सरोकार  रखने वाले विषयों को स्थान  देकर राज्य की व्यापारिक आर्थिक नीतियों का मार्गदर्शन करते है।

ये तत्व राज्य की कानूनी संरचना में भी मूलभूत परिवर्तन का पक्ष लेते है और शासन के विभिन्न अंगों में सक्रियता के विचार का समावेश करते है, इन तत्वों के होने मात्र से प्रशासन   को इस बात का ध्यान रखना होता है कि वे जनता के प्रति संवेदनशील दायित्वों से युक्त है और जब से नागरिक समाज जैसे विषयों का प्रभाव बढ़ा है तब से इन तत्वों के कारण सामूहिक चर्चा परिचर्चा को बढ़ावा मिला है। जिससे इन तत्वों को व्यापक अर्थ और संदर्भ प्राप्त हुआ है।

उपर्युक्त  विवेचन से स्पष्ट  है कि ये तत्व सवैंधानिक  प्रावधानों में भले गैर वाद  योग्य हो परन्तु उनका नैतिक मानवतावादी लक्ष्यों इतना व्यापक है कि जैसा संविधान निर्माण  सभा कहा गया था कि ‘‘ जनता के मतो पर चुनी गई सरकार इन तत्वों के अवहेलना का साहस नही कर पायेगी यह सार्थक और प्रासंगिक साबित हुआ।

प्रश्न:- भारतीय  राजनीतिक व्यवस्था  के अन्तर्गत संसदीय  सर्वोच्चता एवंम् न्यायिक  सर्वोच्चता के मध्य समन्वय  का प्रयास किया गया है। यद्यपि  विरोध अधिक देखा गया है। विभिन्न  वादो एवं संशोधनों के संदर्भ में कथन  का परीक्षण कीजिए?

उत्तर.-  संविधान की सर्वोच्चता:- संविधान के अन्तर्गत विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से सामान्य जन, शासन तथा प्रशासन के विभिन्न अंगो के शक्तियों , दायित्वों एवं कार्यो का पूर्ा एवं अन्तिम रूप से उल्लेख संविधान ही सर्वोच्चता है।  

न्यायिक  सर्वोच्चता :-  संविधान  की प्रकृति  कानूनी होने के  कारण इसकी व्याख्या  करने की न्यायिक शक्ति  न्यायिक सर्वोच्चता कहलाती है।

संसदीय  सर्वोच्चता :-  सर्वोच्च  विधायी संस्था  के रूप में संविधान  में बदलाव और नये क़ानूनों  का सर्जन करने की शक्ति ही संसदीय सर्वोच्चता है।

भारत  में यद्यपि  संविधान की सर्वोच्चता  विद्यमान है परन्तु संविधान  की व्याख्या और उसमें बदलाव लाने  के क्रम में विगत दशकों में संसद और  न्यायपालिका के आचरण में ऐसी प्रवृतियां  विकसित हुई, जिससे शासन के अंगों में से समन्वय के स्थान पर टकराव का वातावरण देखा।

यद्यपि  शासन के  दोनों अंगों  में यह टकराव  1950 के दशक में  ही प्रारम्भ हो गया  परन्तु 1970 के दशक में  इसे प्रमुखता प्राप्त हुई। यह  टकराव अनेक मुद्दों पर देखा गया  लेकिन मूल प्रश्न:- मौलिक अधिकार और  राज्य नीति के निदेशक तत्वों में प्राथमिकता किसे दी जाए के संदर्भ में देखा गया।

चम्पाकम दोईराजन 1951 के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने समानता के अधिकार को प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया जबकि  इसके प्रति उत्तर में संसद ने प्रथम संशोधन से समानता को व्यवहारिक बनाने हेतु कुछ वर्गो के लिए विशेष संरक्षा  की व्यवस्था की। यद्यपि यह विवाद उस समय समाप्त हो गया परन्तु इस प्रथम संशोधन ने 9 वीं अनसूची का समावेश करके  समाजवाद के नाम पर सम्पत्ति के व्यक्तिगत अधिकार को कम करने का प्रयास किया गया और इसी क्रम में चौथा संशोधन तथा बेला  बनर्जी वाद और 7 वां संशोधन तथा सज्जन सिंह वाद देखे गये जिसमें सम्पत्ति का अधिग्रहण और मुआवजे का निर्धारण जैसे विषय ने विवाद उत्पन्न किया।

यह टकराव 1967 गोलखनाथ वाद में अतितीव्र हो गया जब सर्वोच्च न्यायालय ने संसंद की संशोधन करने की शक्ति पर ही प्रश्न:- चिन्ह लगा दिया और मौलिक अधिकारों को संशोधनों से अक्षु य घोषित कर दिया परन्तु 1971 में 24 वें और  25 वें संशोधन में ना केवल संशोधन के अधिकार को पुनः प्राप्त किया बल्कि न्यायालय के क्षेत्राधिकार को अत्यंत सीमित कर दिया।

इसी  क्रम में  1973 में केशवानन्द  भारतीवाद में सर्वोच्च  न्यायालय ने यद्यपि संसद  की संशोधन शक्ति को स्वीकार किया परन्तु आधार भूत ढ़ांचे की संकल्पना देकर संसद की शक्ति पर परोक्ष रूप से नियंत्रण स्थापित किया।

42 वें संविधान संशोधन 1976 से संसद मे संशोधन की असीमित  शक्ति प्राप्ति की और न्यायपालिका में हस्तक्षेप को दूर कर  दिया तथा 44 वें संविधान संशोधन 1978 से संपत्ति के अधिकार  को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया। (अब सम्पत्ति का अधिकार अनुच्छेद 300 ‘क’ के तहत कानूनी अधिकार है)

1980  में एक  संतुलनकारी  दृष्टिकोण प्रस्तुत  करते हुए न्यायालय ने  इस टकराव को शासन की कुशलता  में हानिकारक बताया और संतुलन की  आवश्यकता दर्शायी परंतु इस के पश्चातवृत्ति  दशकों में भी जैसे आरक्षण, भूमि अधिग्रहण, जन प्रतिनिधियों  की योग्यता, न्यायाधीशों की नियुक्ति में कॉलेजियम प्रणाली इत्यादि  टकराव के बिंदु रहे है।

प्रश्न:- भारतीय संविधान के अंतर्गत दिये गए मौलिक कर्तव्य प्रत्यक्ष रूप से ही नहीं वरन् परोक्ष रूप से भी भारतीय सभ्यता और संस्कृति का ही विधिक रुपांतरण है। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर.    भारतीय  संविधान वस्तुतः  भारतीय सभ्यता एवं  संस्कृति के आदर्शों  की ही प्रति ध्वनि है  जिसका संदर्भ संविधान में अनेक  जगहों पर मिलता है और मौलिक कर्तव्यों  का विस्तृत विवेचन सभी परंपरागत भारतीय दर्शन  को समकालीन आवश्यकताओं के साथ संबंद्ध करने का संवैधानिक उदाहरण है।

भारतीय  संविधान के  अंतर्गत मौलिक  कर्तव्यों में सामसिक  संस्कृति का समावेश किया  गया है जिसका तात्पर्य है विभिन्न  धर्मों, जातियों, विचारों और मूल्यों  से सरोकार रखने वाले व्यक्ति एवं व्यक्तियों  का समूह पहचान को सुनिश्चित करते हुए एक समग्र विचार  का निर्माण किया जायेगा। दूसरे शब्दों में मौलिक कर्तव्य  व्यक्ति और समष्टि में कोई विरोध नही बताते है। ‘‘ एक सबके लिए और सब एक के लिए’’ इसका मूल मंत्र है।

मौलिक  कर्तव्यों  के अंतर्गत  नारी सम्मान का  समावेश किया गया है  और यह धारणा भारत की  परंपरागत विशेषता है, क्योंकि ‘ यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवता’ एक आदर्श वाक्य रहा है। भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों में महिला सम्मान का समावेश करके स्त्री की गरिमा को सामाजिक विकास की बुनियादी शर्त घोषित किया गया है। मौलिक  कर्तव्यों में मानववाद को ध्यान दिया गया है और यह मानववाद सम्पूर्ा भारतीय दर्शन का केन्द्र बिंदु है क्योंकि व्यक्ति की व्यक्ति के रूप में पहचान भारतीय संस्कृति का तत्व है और आधुनिक काल में मानवाधिकार की सम्पूर्ा भावना इसी चिंतन पर टिकी हुई है।

भारतीय  संस्कृति  जीव मात्र  के प्रति इतनी  संवेदनशील है की  प्रकृति मे भी जीव  को स्वीकारा गया है और  इसलिए पर्यावरण का संरक्षा  अतीतकालीन भारतीय व्यवस्था में  दिखाई देता है। जिसे मौलिक कर्तव्यों  में स्थान दिया गया है।

इस प्रकार मौलिक कर्तव्यों के प्रावधान निश्चय ही सैद्धांतिक नही वरन् व्यवहारिक दृष्टिकोण लिए हुए है और इनकी व्यवहारिकता का सूत्र भारतीय दर्शन की नैतिक मान्यताओं में मिलता है जिन्हे कर्तव्यों के रूप में विधिवत सहिताबद्ध किया गया है।

न्यायिक पुनरावलोकन

प्रश्न:-  न्यायिक पुनरावलोकन को परिभाषित कीजिए।

प्रश्न:- न्यायिक पुनरावलोकन से अग्रिम कदम है न्यायिक सक्रियता, स्पष्ट करें।

प्रश्न:- न्यायिक स्वतंत्रता का संवैधानिक संदर्भ दीजिये।

प्रश्न:- न्यायिक सुधार महत्ती आवश्यकता है, टिप्पणी करें।

उत्तर – संसद के क़ानूनों व सरकार के आदेशों की संवैधानिकता का न्यायिक परीक्षा ही ‘न्यायिक पुनरावलोकन‘ है। न्यायिक  पुनरावलोकन शाब्दिक रूप में उपलब्ध नहीं है परन्तु अनु. 13, 32 व 226 में इसे व्यापक संदर्भ प्राप्त  है। न्यायिक पुनरावलोकन के कारण ही न्यायपालिका संविधान के व्याख्याकार व उसके अभिरक्षक/ संरक्षक की भूमिका निभाती है अतः न्यायिक पुनरावलोकन को संविधान के आधार भूत ढाँचे का भाग घोषित किया गया है।

उत्तर  –  न्यायिक  सक्रियता :  न्यायपालिका के  द्वारा अपनी कानूनी  औपचारिक भूमिका से आगे  बढ़कर न्याय के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु कार्य करना ही न्यायिक सक्रियता है। दूसरे शब्दों में न्यायपालिका जब विधि के द्वारा स्थापित प्रक्रिया व विधि की उचित प्रक्रिया के मध्य का भेद कम/सीमित कर दे तो इसे न्यायिक सक्रियता कहा जाता है।

1980  के दशक  तक न्यायपालिका  के द्वारा न्यायिक  पुनरावलोकन का अधिकतम  उपयोग किया गया जिसके कारण संसद  व न्यायपालिका में संघर्ष उत्पन्न हुआ। अतः 1980  में न्यायपालिका ने अपनी स्थिति को स्थायी रूप से सुदृढ़ करने के उद्देश्य  से जनहित के मुद्दों को अपनी कार्यसूची का भाग बना लिया और इस प्रकार  न्यायिक सक्रियता न्यायिक पुनरावलोकन के अग्र कदम रूप में सिद्ध हुई।

न्यायिक सक्रियता के अंतर्गत न्यायपालिका ने पी.एन. भगवती और वी.आर. कृष्णा अय्यर के नेतृत्व में कानून की नई शैली  को अविष्कृत किया व जहाँ न्यायिक पुनरावलोकन का उद्देश्य मात्र शासन को उसकी सीमाओं का ज्ञान कराना था वहीं न्यायिक सक्रियता ने शासन व प्रशासन की उदासीनता को जनहित के विरोध में स्वीकारते हुए सभी प्रकार के विषयों को अपनी कार्य सूची का भाग बना लिया।

इस  प्रकार  न्यायिक सक्रियता  एवं न्यायिक पुनरावलोकन  एक दूसरे के विरोधी नहीं  है क्योंकि दोनों ही का उद्देश्य संविधान के व्याख्या कार एवं संरक्षक के रूप में न्यायपालिका की भूमिका को बनाए रखना है।

विधि के द्वारा स्थापित प्रक्रिया – कानून में निर्धारित की गई प्रक्रियाओं का अक्षरशः पालन ही विधि के द्वारा स्थापित प्रक्रिया है।

विधि की उचित/सम्यक प्रक्रिया – कानूनी शब्दावली ही नहीं वरन् कानून के पीछे छिपी न्याय की भावना को ध्यान रखना ही विधि की उचित/सम्यक प्रक्रिया है।

जनहित  याचिका (PIL) –  व्यापक  जनहित से  जुड़े मुद्दों  को न्यायालयों को  औपचारिक कानूनी प्रक्रिया  का पालन किये बिना प्रस्तुत करना ही जनहित याचिका है।

उत्तर – न्यायिक स्वतंत्रता बनाये रखने के उपाय:

  • न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका हस्तक्षेप से मुक्ति, 
  • न्यायाधीशों का नियत/निश्चित कार्यकाल,
  • पदावधि से हटाने की जटिल प्रक्रिया,
  • पर्याप्त वेतन, भत्ते और सुविधाऐं,
  • सेवा शर्तों में अलाभकारी परिवर्तनों का निषेध,
  • विधायिकाओं में न्यायाधीशों के आचरण पर चर्चा का निषेध,
  • न्यायालय  को अवमानना  के विरूद्ध दंड देने  की शक्ति (न्यायिक स्वतंत्रता  संविधान के आधार भूत ढाँचे का भाग है)

कॉलेजियम प्रणाली: न्यायिक नियुक्तियाँ (सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय) भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श पर आधारित।

अथवा

न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायिक परामर्श द्वारा किये जाने की पद्धति ही कॉलेजियम है (थ्री जजेज केस का संदर्भ) NJAC/राष्ट्रीय  न्यायिक नियुक्ति आयोग – 99वें संविधान संशोधन द्वारा विकसित जिसमें न्यायिक नियुक्तियाँ

न्यायाधीशों एवं सरकार के सम्मिलित प्रयासों का परिणाम परन्तु अवैध घोषित (SC द्वारा)।

कॉलेजियम  – 1982 से  1998 तक ‘थ्री  जजेस केसेज‘ के माध्यम  से विकसित हुई प्रणाली  जिसमें सर्वोच्च न्यायालय व  उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों  की नियुक्ति के समय भारत का मुख्य  न्यायाधीश अपने वरिष्ठम सहयोगियों से परामर्श लेगा जिस पर राष्ट्रपति अनुमति देंगे।

न्यायपालिका को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रखने हेतु यह पद्धति विकसित की गई है जो वर्तमान में भी जारी है।

(कॉलेजियम – 50 शब्द)

थ्री  जजेस केसेज  – कॉलेजियम का  परामर्श राष्ट्रपति  पर बाध्यकारी है या  नहीं इसका निर्धारण करने  वाला र्निणय ही ‘थ्री जजेस केसेस‘ कहा जाता है।

NJAC –  न्यायाधीशों  की नियुक्ति में  कॉलेजियम की प्रणाली  को समाप्त करने के उद्देश्य  से 99वें संशोधन द्वारा प्रस्तुत।  इसमें (NJAC में) मुख्य न्यायाधीश (SC),  दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, केन्द्रीय विधि मंत्री  एवं दो प्रसिद्धि प्राप्त कानूनी क्षेत्र के जानकार  जिनका मनोनयन एक समिति के द्वारा किया जाना निर्धारित  हुआ था परन्तु सर्वोच्च न्यायालय ने NJAC को न्यायिक स्वतंत्रता का अतिक्रमा बताते हुए अवैध घोषित कर दिया।

कॉलेजियम के पक्ष में तर्क:

  • कॉलेजियम कोई आकस्मिक परिवर्तन नहीं है वरन् डेढ़ दशक लम्बे न्यायिक विमर्श का परिणाम है।
  • न्याय  कार्य चूंकि  एक तकनीकी कार्य  है जिसमें अनुभव एवं  विशेषज्ञता की आवश्यकता  है व इसे न्यायिक वातावरण में ही सीखा जा सकता है। अतः ऐसे उपयुक्त व्यक्तियों का चयन सिर्फ न्यायपालिका ही कर सकती है।
  • कॉलेजियम के कारण न्यायपालिका की स्वतंत्रता राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रहती है।
  • अधिकांश  विवादों में सरकार एक पक्ष  होती है अतः सरकारी प्रतिनिधियों द्वारा न्यायधीशों की  नियुक्ति ना होने से न्यायपालिका अधिक निष्पक्षता से कार्य कर पाती है।

NJAC के पक्ष में तर्कः

    1. NJAC का प्रावधान संवैधानिक रूप से किया गया जबकि कॉलेजियम गैर-संवैधानिक व्यवस्था है। 
    1. न्यायिक  नियुक्तियाँ  न्यायाधीश द्वारा  ही किये जाने पर शक्ति  संतुलन जो संसदीय शासन की  व्यवस्था है वह नष्ट हो जाती है।
    1. NJAC की व्यवस्था संविधान निर्माताओं की उस भावना का सूचक है जिसे उन्होंने संविधान में पहले ही स्थान दे दिया था जिसके अंतर्गत न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा किया जाना निश्चित हुआ था। 
  1. NJAC का संशोधन संसद के 2/3 बहुमत व 20 राज्यों की विधान सभाओं द्वारा पारित किया जाना इस बात का सूचक है कि देश की जनता भी न्यायिक नियुक्तियों में सुधार की पक्षधर है।

प्रश्न:- न्यायिक  सक्रियता से क्या  आशय है, भारत में न्यायिक  सक्रियता के कारण जहां एक ओर  संवेदनशील मुद्दों का निपटारा हुआ है, वहीं न्यायिक सक्रियता न्यायिक अतिक्रमा के रूप में विकसित हुई है। टिप्पणी  लिखिए-

उत्तर.    भारतीय  संविधान शासन  के विभिन्न अंगों  के मध्य संतुलन और  सामन्जस्य की व्यवस्था  को स्वीकारता है और न्यायापालिका  की प्रकृति तकनीकी होने के कारण इसे  अधिक निश्चितता दी जाती है परंतु 1980  के दशक से न्यायिक सक्रियता के विचार ने  इस धारणा में बदलाव किया और अब न्यायपालिका  विशिष्ट भूमिका के साथ-साथ व्यापक भूमिका भी निभाती नजर आती है।

न्यायालय  के द्वारा  अपनी कानूनी  औपचारिक भूमिका  से आगे बढ़कर अनौपचारिक  भूमिका को ग्रहण करना, जिससे संर्वहित की सिद्धि हो सके, वह न्यायिक सक्रियता है। दूसरे शब्दों में न्याय करते समय इसके केवल कानूनी पहलुओं तक  ही सीमित ना रहना बल्कि समाजोपयोगी दशाओं को सुरक्षित और सुनिश्चित करने का प्रयास करना न्यायिक सक्रियता है।

अर्थात न्याय वह है जो ना केवल किया जाए बल्कि होता हुआ दिखाई दे।

न्यायिक  सक्रियता के  विकास में पी.एन.  भगवती और वी. आर. कृष्णा अय्यर  का मुख्य स्थान रहा और न्यायिक सक्रियता  का प्रारंभिक रूप मानवाधिकारों की रक्षा के  लिए विकसित हुआ। सुनील बत्रा बनाम् दिल्ली प्रशासन, मेनका गांधी वाद और हुशन आरा खातुन वाद में यह सुनिश्चित किया कि न्याय की प्रक्रिया का उचित एवं न्याय पूर्ण  होना चाहिए।

1980  के दशक  में जहां  न्यायिक सक्रियता  का सरोकार कानूनी न्याय  से था, वहीं 1990 के दशक  में वैश्वीकरण के प्रारम्भ से  हुई नवीन समस्याएं – जैसे मानवाधिकारो  का हनन, महिला उत्पीड़न में वृद्धि, वैश्विक  आतंकवाद, पारिस्थितिक असंतुलन आदि से भी हो गया। इसलिए न्यायिक सक्रियता के क्षेत्र में कुछ नवीन आयाम जुड़ गए और इसी कारण समाज का हर वर्ग, हर क्षेत्र और हर प्रकृति पर इसका ध्यान आकर्षित हुआ।

जनहित  याचिकाओं  के विकास के  कारण न्यायिक सक्रियता  में लोकहितवाद की संकल्पना  को महता प्राप्त हुई और न्यायपालिका  उन विशाल संख्या के जनमानस के लिए आशा  की किरण बनी जो प्रशासनिक उदासीनता और लापरवाही  से पीड़ित थे। न्यायिक सक्रियता के परिणामस्वरूप ही  विविध क्षेत्रों में जनअसंतोष के संवेदनशील तरीके जाने और समझे गये तथा सामाजिक न्याय के विशुद्ध विचार को उर्वर दृष्टि प्राप्त हुई।

भले ही न्यायिक सक्रियता न्यायिक दृष्टिकोण में उदारता और संवेदनशीलता की सूचक रही हो परंतु जैसा की ‘लार्ड एक्टन’ ने कहा कि ‘‘शक्ति भ्रष्ट करती है और निरंकुश शक्ति पूर्णतया भ्रष्ट कर देती है।’’  अतः न्यायपालिका ने भी न्यायिक  सक्रियता के बलबूते अपनी शक्तियों में  असीमित वृद्धि कर ली। जनहित याचिकाओं की  प्रकृति इतनी सरल हो गई है कि न्यायपालिका  के द्वारा सरकार के क़ानूनों और उसके कार्यो  की व्याख्या करने के क्रम में रूढ़िवादिता या  परिवर्तन  विरोध को जन्म  दिया इसके परिणाम  स्वरूप न्यायिक सक्रियता,  न्यायिक हस्तक्षेप और न्यायिक अतिक्रमा में रूपान्तरित हो गया जिसे लोकतंत्र के कुशल संचालन की एक बाधा माना जा सकता है।

निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि लोकतंत्र में नवाचारों का सदैव स्वागत होता  है। और न्यायिक सक्रियता ऐसा ही एक नवाचार है परंतु इसके साथ मौलिक प्रवर्त्तियों का विध्वंस स्वीकार्य नहीं हो सकता है अतः न्यायिक सक्रियता का विकास लोकतांत्रिक परिपक्वता के दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए ताकि शासन के अंगों में संतुलन और अन्तः क्रिया तथा संवाद बने रह सके।

प्रश्न:-     भारत का संविधान संघ है परन्तु इसकी प्रकृति संघीय है कथन को स्पष्ट करें?

अथवा

भारत में जिस प्रकार का संघवाद अपेक्षित था और जिस प्रकार संघवाद विकसित हुआ उसने भारतीय राज व्यवस्था में नूतन प्रवृतियों को जन्म दिया है उदाहरण देकर कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर.    भारतीय  संविधान राज्यों  के संघ के रूप में  संघ में आत्मनिर्भरता की  स्थापना करता है लेकिन भारत  एक विविध सांस्कृतिक विशेषताओं से युक्त राष्ट्र है, इसीलिए भारत में संघ को शिथिल बनाते हुए संघ राज्य सम्बन्धों के माध्यम से प्रांतों को भी मज़बूती दी गई है और इसीलिए भारत में संघीय गतिशीलता विगत छः दशकों से नये स्वरूप व नई प्रवृत्तियां प्राप्त करती गई है।

1950  के दशक  में राष्ट्रीय  नेतृत्व, राष्ट्रीय  मुद्दों की विद्यमानता,  तथा एकदल प्रभुत्व का था  और इसके कारण तत्कालीन विभाजनकारी परिदृश्य के बावजूद जिसमें धर्म तथा भाषा मुख्य उभार ले रहे थे तो भी सारे प्रयास संघ की मज़बूती के लिए हुए। इस दौर में संघ तथा राज्यों के मध्य एक सामूहित आत्मनिर्भरता का विकास हुआ जिसमें राज्य निर्माण  और राष्ट्र निर्माण के कारण ग्रेनविल  ऑस्टिन जैसे  विचारकों ने भारतीय  संघ को सहकारी संघवाद  का नाम दिया।

1970  के दशक  से भारतीय  राज व्यवस्था  में कुछ नवीन  प्रवृत्तियाँ उभरी  जैसे सर्वमान्य नेतृत्व  का अभाव, चरमपंथी ताकतों का उदय, सरकार एवं न्यायपालिका का टकराव इत्यादि कारणों से सौदेबाजी का संघ की प्रवृत्ति दिखाई  देने लगी। ओर आपातकालीन परिदृश्य के बाद तो क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ने से इन प्रवृत्तियों में तेजी आई।

1990 के दशक से भारतीय राजनीति में गठबंधन की  शुरूआत और धर्म, जाति, वर्ग जैसे मुद्दों का हावी होना तथा वैश्वीकरण के प्रारम्भ से आर्थिक मोर्चे पर मिलने वाली चुनौतियों में राज्यों के महत्व को नकारा जाना संघ के लिए न तो संभव था और ना ही व्यावहारिक। इसलिए राज्यों ने अपने महत्व को रेखांकित करते हुए संघ के साथ सौदेबाजी का व्यवहार अपनाया और संघीय गतिशीलता सौदेबाजी के संघ में परिवर्तित हो गई।

परन्तु  16 वीं लोकसभा  के चुनावों ने जिस  प्रकार मतदान व्यवहार  को प्रभावित किया और परंपरागत  राजनीति की कमियों को दूर किया तथा विकास, अर्थव्यवस्था और सशक्त विदेश नीति जैसे विषय प्रभावी माने गए परन्तु साथ ही राज्यों  के महत्व को नये सिरे से परिभाषित करने पर जोर दिया गया। इस प्रकार जहां एक ओर प्रधानमंत्री के सशक्त नेतृत्व  में गृह एवं विदेश दोनो मामलों में केन्द्रीकरण को प्रस्तुत किया है वही सबका  साथ सबका  विकास जैसे कदमों से  राज्यों को भी साथ लिए  जाने का समर्थन किया है।  इसके अंतर्गत योजना आयोग की  जगह नीति आयोग की संरचना की गई है। जिसमें नीतियों का निर्माण आधार से शीर्ष की बात शामिल है।

सार  रूप में  कहा जा सकता  है कि भारत में  संघ तथा संघवाद के  मध्य कोई अंतर्विरोध नहीं  है और समयानुकुल तथा अवसरानुकुल  संघवाद की प्रवृत्तियों में रूपान्तरण  देखने को मिला है और जैसा कि 1994 में  एस.आर बोम्मई वाद में परिसंघ को संविधान का आधार भूत ढंाचा घोषित किया गया है, इसलिए संघवाद निरंतर गतिमान अवधारणा है और इसमें आने वाले परिवर्तन इसकी सक्रियता के सूचक है।

प्रश्न:- राज्य  क्षमा का प्रयोग  करना राष्ट्रपति का  विशेषाधिकार है परन्तु  दया याचिकाओं पर होने वाला  विलम्ब न्याय की भावना के प्रतिकूल है। टिप्पणी कीजिए?

उत्तर.    भारत  जैसे लोकतांत्रिक  देश में कार्यपालिका  प्रमुख को न्यायिक शक्ति  दिया जाना सिद्धांत और व्यवहार  दोनों ही दृष्टि से विचित्र लग सकता  है परन्तु न्याय के नियमों का सार यह  है कि न्याय की भावना का पालन किया जाए और न्याय की प्रक्रिया में यदि कोई त्रुटि है तो फिर उस गलती को सुधारने का दायित्व अंतिम रूप से राष्ट्रपति को प्रदान किया जाये।

राष्ट्रपति को अनु. 72 के अंतर्गत जो क्षमादान की शक्तियां प्राप्त है उसमें वह क्षमा, लघु करण, प्रविलम्बन तथा विराम के माध्यम से इनका उपयोग करता है और अपराध की मात्रा और उसकी गुढ़ता (प्रभाव) के आधार पर इनका प्रयोग किया  जाता है। राष्ट्रपति की यह शक्ति उसकी विवेकाधीन शक्ति है परन्तु इसका प्रयोग सरकार की सलाह पर किया जाता है।

न्याय कार्य चूंकि तकनीकी विशिष्ट प्रकार का कार्य है इसलिए मेहरंसिंह वाद में सर्वोच्च न्यायलय ने यह र्निणय दिया कि  राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का न्यायिक पुनरावलोकन हो सकता है यदि वह किसी प्रकार के असद्भाव के आधार पर किया जाए, तो न्यायलय इसमें दिशा निर्देश जारी कर सकता है।

राष्ट्रपति  के द्वारा क्षमादान  की याचिका पर निर्णय में  होने वाला विलम्ब न्यायपालिका  के द्वारा, न्यायिक भावना के प्रतिकूल बताया गया है और इसलिए दया याचिकाओं के जल्दी निपटारे का समर्थन किया है।

वस्तुतः यह विषय व्यक्ति के हितों एवं अधिकारों से प्रत्यक्षतः जुड़ा हुआ है इसलिए इसमें किसी के भी दृष्टिकोण को तार्किक रूप से गलत  नही ठहराया जा सकता है बल्कि न्यायपालिका और राष्ट्रपति दोनो ही किसी मामले के गुणों एवं दोषों के आधार पर ही इसे समझाने का प्रयत्न करते है।

भारत जैसे देश में जहां एक मामले में न्याय की औसत आयु 15 वर्ष है वहां राष्ट्रपति से त्वरित न्याय की उम्मीद की जा  सकती है परन्तु सभी मामले राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति के भीतर लाए जायेगें तो न्याय की संस्थात्मक धारणा  की ध्वस्त हो जायेगी।

अतः आवश्यकता इस बात की है कि न्यायिक व्यवस्था में सुधारात्मक परिवर्तन हो जिससे हजारो लाखों व्यक्तियों को न्याय वास्तव में उपलब्ध हो सके, साथ ही राष्ट्रपति राष्ट्र के अभिभावक के रूप में क्षमादान की  शक्ति के माध्यम से न्याय की प्रक्रियागत तकनीकी खामी को दूर करते हुए न्याय की भावना को सुरक्षित रख सके।

प्रश्न:-  संविधान होने के बावजूद संवैधानिक निरक्षरता विद्यमान है। विवेचना कीजिए ?

उत्तर.  भारतीय  राज व्यवस्था  के अंतर्गत एक  विस्तारित प्रकार  का संविधान होने के  बावजूद संवैधानिक निरक्षरता  की विद्यमानिता गंभीर किस्म का विरोधाभाष  है भारतीय संविधान जनसामान्य के प्रत्येक वर्ग  और समुह तक अपनी पहुंच रखता है। इसलिए यह सर्वसमावेशी संविधान है, परन्तु संविधान के लागू होने से आज तक संविधान की व्याख्या और संविधान की समझ विकसित करना एक चुनौती बना हुआ है, इसे ही संवैधानिक निरक्षरता माना जाता है।

संविधान  केवल विषय  के रूप में  कुछ पाठ्य पुस्तकों  तक सिमट कर रह गया है  और संवैधानिक मूल्य, मान्यताएं, आदर्श  एवं परम्पराएं अभी भी लोगो को ज्ञात नहीं  है। इसमें निःसंदेह देश के बुद्धिजीवी, जन प्रतिनिधि  एवं नागरिक समाज के सदस्यों का यह दायित्व है कि वे  संवैधानिक ज्ञान को सीखे, आत्मसात करे और इसका व्यापक प्रचार प्रसार  करें। जिससे संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन और जानकारी का अभाव जैसी  शिकायतें कम से कम हो सकें। अतः संवैधानिक निरक्षरता निश्चित ही संवैधानिक व्यापकता का हनन है। जिसे दूर किया जाना चाहिए।

प्रश्न:-     भारत में हाल  की घटनाओं ने धार्मिक  असहिष्ाुता के प्रश्न:- पर  एक गम्भीर किस्म के विवाद को  जन्म दिया है। विवाद के संदर्भ में इस प्रश्न:- को बताते हुए उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए?

उत्तर.    धार्मिक  असहिष्णुता  का अभिप्राय  दूसरे के मत को  न केवल अस्वीकार करना  बल्कि उसका प्रतिरोध करना  भी है। भारत जबकि पंथनिरपेक्ष  राष्ट्र है और सर्वधर्म समभाव के  सिद्धांत की पालना करता है ऐसे में  धार्मिक असहिष्णुता का होना निःसंदेह पंथनिरपेक्ष छवि को आघात है।

भारत  में पिछले कुछ  समय से धर्म विशेष  से जुड़ी कुछ मान्यताओं और  संस्कारो को लेकर एक विशेष माहौल देखा गया  जिसमें पहनावें, खान-पान, धार्मिक क्रियाओं को  सम्पन्न करने का ढंग और पाठ्यपुस्तकों में कुछ  विशेष

ऐतिहासिक  व्यक्तियों  का पढ़ाया जाना  तथा संप्रदाय विशेष  के लोगो पर हो रहे हमले  निश्चय की धार्मिक असहिष्णुता के भाव  का समर्थन करते है। अतः आवश्यकता इस बात कि है कि धार्मिक  असहिष्णुता को मात्र अखबारों की सुर्खियों का विषय न बनाकर इस पर समवाद को बढ़ावा दिया जाये। जिसमें धर्मों के प्रतिनिधियों और समाज पर व्यापक प्रभाव डालने वाले वर्गो को शामिल किया जाये।

अतः  आवश्यकता  इस बात की  है कि विभिन्न  धर्मों, सम्प्रदायों,  मतों, पंथो एवं दृष्टिकोाों  के लोगों में साम्प्रदायिक सद्भावना  को बढ़ाने का प्रयास किया जाये। उदारणार्थ :-  स्थानीय मेलों का आयोजन, सार्वजनिक स्थलों का विकास,  पर्यटन को बढ़ावा, शैक्षणिक संस्थाओं में सहिष्णु व्यवहार एवं  निरपेक्ष शिक्षा, लॉफ्टर फ़ेस्टिवल, कलात्मक प्रदर्शनियों का आयोजन इत्यादि।

प्रश्न:–   पंथनिरपेक्षता किसे कहते है? क्या भारतीय संदर्भ में पंथनिरपेक्षता कोई विशेष पक्ष प्रस्तुत करती है।

उत्तर.    पंथनिरपेक्षता  का आशय है कि  राज्य धर्म और धार्मिक  मामलों में अपने कार्यो तथा  गतिविधियों को अलग रखेगा, क्योंकि  धर्म व्यक्ति के निजी विश्वास का विषय  है। इसी को आधार मानकर भारतीय संविधान की  प्रस्तावना में पंथनिरपेक्षता का समावेश किया गया  है (42 वां संविधान संशोधन विधेयक 1976)। और अनुच्छेद  25 से 28 तक में

धार्मिक  स्वतंत्रता  के अंतर्गत इसको  व्यवाहारिक रूप देने  की कोशिश की गई। (अनुच्छेद  25 अन्तःकरण ण की स्वतंत्रता) ।

परंतु भारतीय दृष्टिकोण धर्म को नैतिक मूल्यों से जोड़ने के कारण पंथनिरपेक्षता को धर्म का निषेध नही मानता वरन्

धर्म  के विषय  सभी धर्मों  को संरक्षा और  धार्मिक विषयों में  समन्वय का प्रतिपादन करता  है । इससे भारत में पंथनिरपेक्षता का विचार सकारात्मक भाव प्राप्त कर लेता है। यही भारतीय पंथ निरपेक्षता की बुनियादी पहचान है।

प्रश्न:-     अध्यादेश का संवैधानिक संदर्भ बताते हुए, इसके औचित्य का परीक्षण कीजिए। हाल के समय में अध्यादेश शक्ति का दुरुपयोग और बचाव के उपाय प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर.    संविधान  निर्माण के  समय परिस्थिति  विशेष में कानून  के अभाव जैसी समस्या  का समाधान करने के लिए  अध्यादेश का विचार प्रस्तुत  किया गया था । संविधान के अनुच्छेद  123 में इसे राष्ट्रपति की विधायी शक्ति  का भाग बनाया गया।

राष्ट्रपति को यह आभास होने पर की संसद के सत्र में न होने के कारण विधिक निर्माण की   प्रक्रिया संभव नहीं है और तुरंत कानून बनाना आवश्यक है तो राष्ट्रपति उन सभी विषयों पर अध्यादेश जारी कर सकता है जिन पर संसद कानून निर्माण कर सकती है यह संसद की कानून बनाने की शक्ति का निषेध और उसका विकल्प नही हो सकता । अध्यादेश  लाने का औचित्य केवल प्रक्रियागत कमियों का निपटारा करना है और 1970 के बाद में न्यायलय ने अध्यादेश जारी करने की शक्ति पर असद्भाव और तर्क विहिनता का प्रतिबंध लगाया है दूसरे शब्दों में अध्यादेश राष्ट्रपति के माध्यम से शासन की निरकुंश शक्ति का सूचक नहीं होना चाहिए।

पिछले कुछ समय में कुछ महत्वर्पूण विषय जैसे कि भूमि का अधिग्रहण इत्यादि पर संसद के भीतर और बाहर विरोध की आशंका के कारण भूमि अधिग्रहण पर दोहरान देखा जा रहा है।

यह दोहराव इतना अधिक था कि राष्ट्रपति को स्वयं अध्यादेश बार-बार लाए जाने की सरकार की योजना पर संदेह व्यक्त  करना पड़ा। वस्तुतः अध्यादेश की प्रकृति ऐसी है कि इसके माध्यम से सरकार महत्वर्पूण संवेदनशील विषयों पर  संसद में होने वाली चर्चा से बचने का प्रयास करती है, क्योंकि अध्यादेश के माध्यम से कानून का प्रकाशन  एवं प्रदर्शन पहले ही हो जाता है और एक निश्चित अवधि के लिए सरकार को किसी विषय विशेष पर देश का रूझान पता चल पाता है।

परन्तु  अध्यादेश  के कारण संसदीय लोकतंत्र की मूल भावना  में कमी देखी जा रही है। क्योंकि लोकतंत्र वाद-विवाद के माध्यम से ओर परिपक्व होता है जबकि अध्यादेश के कारण वाद-विवाद का यह पक्ष गौण हो जाता है।

अध्यादेश का इस प्रकार का दुरूपयोग निश्चय ही सवैधानिक भावना और सवैंधानिक सीमाओं का अतिक्रमा है, अतः कोशिश  यह होनी चाहिए कि अध्यादेश का सवैंधानिक संदर्भ और अध्यादेश की व्यावहार्यता दोनों को ध्यान में  रखा जाए  तथा अध्यादेश  सरकार के द्वारा  अपनी सुविधा के दृष्टिकोण  से नहीं वरन् जनहित के दृष्टिकोण  से लाए जाए और उनकी बारम्बरता में कमी  लाई जाए क्योंकि ऐसा होने पर ही अध्यादेश  संविधान विरोधी नहीं वरन् संविधान संगत प्रभाव रख सकेंगे।

प्रश्न:-     भारतीय राजनीति की प्रवृतियों में पिछले छः दशकों में आयी प्रवृतियों की समीक्षा कीजिये?

उत्तर.    भारत की राजनीति का आधार विस्तृत सामाजिक सांस्कृतिक दर्शन है इसलिए भारतीय राजनीति 1950 से लेकर अब तक  सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करती हुई प्रतीत होती है। इसलिए भारतीय राजनीति में समय-समय  पर आए परिवर्तनों ने राजनीति को रूपान्तरित करने का कार्य किया और इस कार्य को राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, विधिक, आधारों ने मज़बूती प्रदान की है।

1950  के दशक  में विकसित  हुई भारतीय राजनीति  का स्वरूप राजनीतिक कम  राष्ट्रीय अधिक था क्योंकि  राष्ट्रीय सुरक्षा, राजनीतिक स्थिरता  आर्थिक प्रगति भारतीय राजनीति के प्रधान  मुद्दे थे। इसलिए 1970 तक भारतीय राजनीति में एक दलीय प्रभुत्व देखने को मिला।

1970 के दशक में भारतीय राजनीति एक नये युग में प्रवेश कर गई जहां न्यायपालिका से सरकार का टकराव और भारतीय  राजनीति में विचारधारा की स्पष्टता दिखने लगी तथा नेतृत्व का संकट एक मुख्य मुद्दा बन गया। इस समय  पर 1975 में आपातकाल के माध्यम से भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति दमन और शोषण की प्रतीक बन गई और आगामी राजनीति उसी आधार पर विकसित होने लगी।

1980  के दशक  से वैश्वीकरण  के प्रभाव से भारतीय  राजनीति पर आर्थिक तत्व  का प्रभाव बढ़ने लगा और आर्थिक सुधारों  के माध्यम से भारतीय राजनीति विश्व की राजनीति  का हिस्सा बन गई । 21 वीं सदी का प्रथम दशक भारतीय  राजनीति में कई वैश्विक मुद्दों को लेकर आया और मानवाधिकार  संरक्षा लैंगिक उत्पीड़न से सुरक्षा, भूमंडलीय उष्णता, WTO में कृषि  और मानवाधिकारो को नागरिक समाज के आन्दोलनों की तीव्रता जैसे कारकों  से भारतीय राजनीति में मात्रात्मक के साथ-साथ गुणात्मक परिवर्तन भी दिखाई देने लगे।

इस  प्रकार  पिछले छः  दशकों में भारतीय  राजनीति अपने बाहरी  आवरण के साथ अपने आन्तरिक  अवयवों में भी परिवर्तित होती दिखाई दी है और यह परिवर्तन भारतीय राजनीति की गतिशीलता का सूचक है।

प्रश्न:-     मतदान व्यवहार पर टिप्पणी कीजिये?

उत्तर.    मतदान  व्यवहार का अर्थ  है, मतदाताओं में राजनीतिक विशेष कर  चुनावी विषयों पर अपने मत का प्रदर्शन  और इसमें महत्वर्पूण कारकों की भूमिका।  भारत में मतदान व्यवहार परंपरागत रूप से  धर्म, जाति, वर्ग क्षेत्र जैसे मुद्दों से प्रभावित  रहा है। मतदान व्यवहार में कई नई प्रवृत्तियां भी देखी  जा रही है। वर्तमान में मतदान व्यवहार विकास के मुद्दों भ्रष्टाचार  से मुक्ति, सुशासन, सशक्त विदेश नीति जैसे प्रश्ननो से सरोकार रखने लगा  है और मतदान व्यवहार में हुआ यह परिवर्तन भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता की निशानी है।

प्रश्न:- मतदान व्यवहार से क्या आशय है, निर्वाचन के अंतर्गत मतदान व्यवहार को निर्धारित करने वाले कारकों एवं प्रभावों की समीक्षा कीजिए?

अथवा

भारत  में मतदान  व्यवहार के परिवर्तनों  ने लोकतांत्रिक परिपक्वता  में महत्वर्पूण योगदान दिया  है यद्यपि अनेक बार नकारात्मक तत्व भी दृष्टिगोचर हुए है कथन के संदर्भ में मतदान व्यवहार की प्रवृतियों को इंगित कीजिए-

उत्तर. मतदान  व्यवहार  का आशय उन  प्रवृतियों एवं  रूझानों से है जिसके  माध्यम से निर्वाचन में  मतदाता अपने रूचि और विरोध को अभिव्यक्त करते है लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में निर्वाचन एक महत्वर्पूण मुद्दा है क्योंकि इसी से शासन एवं जनता  के मध्य सम्पर्को की स्थापना होती है। इसलिए निर्वाचन का केन्द्रीय तत्व मतदाता का व्यवहार है। जिसके माध्यम से निर्वाचन की दिशा, निर्वाचन के परिणामों एवं शासकीय नीतियों को प्रभावित करने का प्रयास होते है। मतदान  व्यवहार को निर्धारित एवं प्रभावित करने में अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन तत्वों का प्रभाव होता है। दीर्घकालीन तत्वों के अंतर्गत सामाजिक स्थिति, जाति, धर्म के परंपरागत मुद्दे, विचार धारा का स्वरूप, आर्थिक विकास  पर ध्यान, राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे, राजनीतिक स्थिरता, जनकल्याा इत्यादि को शामिल किया जाता है जबकि अल्पकालीन कारकों के अंतर्गत तात्कालिक मुद्दों का प्रभाव मतदान व्यवहार पर देखा जाता है जैसे किसी आपराधिक घटना का  घटित होना, आपदा के समय राहत कार्यो में गड़बड़ी, आवश्यक वस्तुओं के दामों में बढ़ोतरी, मीडिया द्वारा किये जाने वाले स्टिंग ऑपरेशन इत्यादि महत्वर्पूण है।

मतदान  व्यवहार  को प्रभावित  करने वाले कारकों  में एक अन्तः क्रिया  पायी जाती है और अनेक  बार कुछ मुद्दे रूपान्तरित होते है जैसे नेतृत्व एक दीर्घकालीन मुद्दा है परन्तु नेतृत्व में आकस्मात परिर्वतन एक अल्पकालीन मुद्दा है।

भारत  की राजनीतिक  व्यवस्था के अंतर्गत  प्रथम आम चुनाव से लेकर  16 वीं लोकसभा चुनाव तक मतदान  व्यवहार में यथास्थिति और परिवर्तन दोनों ही दृष्टिगोचर हुए है। प्रारंभिक समय  में एक दल की विचारधारा में विश्वास और नेतृत्व की सर्वमान्यता तथा राष्ट्र का विकास ऐसे मुद्दे थे जिनके कारण मतदान व्यवहार ना केवल  केंद्रीय राजनीति बल्कि राज्यों की राजनीति में भी प्रभावी रूप से दिखायी दिया। परन्तु 1990 के दशक से मतदान व्यवहार जटिल बन गया जिसमें  जातिगत वोट बैंक, धर्मगत तुष्टिकरण, क्षेत्रगत पहचान जैसे विषय इतने प्रभावी हो गए कि मतदान व्यवहार इन्हीं विषयों पर निर्भर  हो गया इसलिए भारत की राज व्यवस्थाओं में मतदान व्यवहार चुनावी भ्रष्टाचार के अंतर्गत एक सहायक उपकरण साबित हुआ।

लेकिन  16 वीं  लोकसभा चुनाव  ने मतदान व्यवहार  को नवीन आयाम प्रदान  किये। वैश्विक घटनाओं के  प्रभाव के कारण भारत की राज  व्यवस्था में विकास का मुद्दा  सर्वसमावेशी विचार के रूप में अत्यंत  महत्वर्पूण मुद्दा बना दिया। जिसके कारण  16 वीं लोकसभा चुनावों में जाति तथा धर्म  की परंपरागत जटिलता विकास और सुधार की लचीली व्यवस्था के समकक्ष गौण हो गयी और इसलिए मतदान व्यवहार में युवा वर्ग, नागरिक समाज, प्रबुद्ध मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग ने परंपरागत उदासीनता का त्याग किया और संर्कीण व्यवहारों पर व्यापक राष्ट्र हित को महत्त्व प्रदान किया।

यद्यपि मतदान व्यवहार में बदलाव हुआ परन्तु बदलाव की निरन्तरता मुख्य विषय है क्योंकि भारतीय समाज का एक बड़ा  वर्ग सामाजिक आर्थिक परिवेश की कठिनाइयों के कारण तत्कालीन विषयों तथा भावनात्मक नारों को प्राथमिकता  प्रदान करता है, इसलिए मतदान व्यवहार का एक निश्चित दिशा में विकास होना अभी भी चुनौतिर्पूण परिदृश्य है।

प्रश्न:- गठबंधन  सरकार का क्या आशय  है। भारतीय राजनीतिक व्यवस्था  में गठबंधन सरकार की आवश्यकता और  भूमिका का परीक्षण कीजिए।

अथवा

गठबंधन  सरकार भारतीय  राज व्यवस्था का  अनिवार्य तत्व बनकर  उभरी है परन्तु इसके  दुष्परिणाम ही अधिक दृष्टिगोचर हुए है। कथन की समीक्षा कीजिए?

उत्तर. गठबंधन  सरकार से  तात्पर्य दो  या अधिक राजनीतिक  दलों के आपसी गठबंधन  या गठजोड़ से है जिसका  उद्देश्य सरकार के बहुमत की सुनिश्चितता और सामूहिकता के भाव को विकसित करना है।

भारत  की राजनीतिक  व्यवस्था का आधार  इसका विस्तृत सामाजिक-सांस्कृतिक  दर्शन है, इसलिए भारतीय राजनीति को गतिशील बनाने  वाला कोई भी तत्व बहुलवादी होना स्वभाविक है। यहीं  कारण है कि भारत में गठबंधन सरकार राज व्यवस्था की एक अनिवार्य विशेषता एवं पहचान के रूप में प्रतिष्ठित हुयी है। गठबंधन सरकार 1990 के दशक से भारत की राजनीति का स्थायी चरित्र बनकर उभरी है और विगत दो दशकों से अधिक समय से भारत की राजनीति पर इसी का प्रभाव है।

गठबंधन सरकार की आवश्यकता कई कारणों से भारत की व्यवस्था में महसूस की जाती है:-

1.भारतीय  समाज हितों  की विविधता पर  आधारित होने के कारण  गठबंधन सरकार के लिए स्वाभाविक  दशा उत्पन्न करता है। साथ ही गठबंधन सरकार के होने से समाज में बिखरे हुए विभिन्न हितों को सत्ता के केन्द्र में पहुंचने का अवसर मिलता है।

2.लोकतंत्र  मतक्य – मतभेद  (सहमति – असहमति)  का शासन माना जाता  है इसलिए गठबंधन सरकार  अनुकूल वातावरण निर्मित करती  है जहां सतही मतभेदों को भुलाकर  राजनीतिक दल एक दूसरे के साथ जुड़ने  का प्रयास करते है।

3.गठबंधन सरकार के होने से राष्ट्रीय मुद्दों का भी विस्तार देखने को मिलता है क्योंकि प्रत्येक दल राज व्यवस्था  में अपनी उपस्थिति को प्रभावी बनाने के लिए विभिन्न मुद्दों पर कार्य करता है।

4.गठबंधन  सरकार एकदलीय  प्रभुत्व की व्यवस्था  का निषेध करती है जिसके  कारण यह लाभ मिलता है कि  शासन निरंकुश नहीं हो पाता और शासन का उद्देश्य विशुद्ध जनकल्याा बना रहता है।

5.गठबंधन सरकार होने से उन दलों को भी सत्ता से जुड़ने का मौका मिलता है जो दल किसी अल्पसंख्यक समुदाय अथवा  सदुरवर्ती क्षेत्र से सम्बन्धित होते है और इस कारण राष्ट्रीय विकास की योजनाएं सर्वसमाावेशी प्रकृति  की हो पाती है।

गठबंधन सरकार के दुष्परिणाम

1.लोकतंत्र  स्थायित्व एक  मुख्य विशेषता है  लेकिन गठबंधन सरकारें  स्थिरता के विषय को हितों  के आगे गौण कर देती है जिसके कारण लोकतांत्रिक परिपक्वता को नुकसान पहुँचता है।

2.गठबंधन  सरकारें विघटनकारी  प्रवृतियों को बढ़ावा  देती है क्योंकि इन सरकारों  में शामिल दल संर्कीण हितों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं जिससे राष्ट्रीय हितों को गौा परिदृश्य प्रदान किया जाता है।

3.गठबंधन  सरकार से क्षेत्रीय  आकांक्षाऐं इतनी प्रभुत्वशाली  हो जाती है कि संघवाद सौदेबाजी  के संघ के रूप में

रूपान्तरित  हो जाता है  और इन दलों को  महत्व देने वाले राज्य  अपने लिए विशेष सुविधाओं  की अनावश्यक मांग प्रस्तुत करते है।

4.गठबंधन  सरकार राष्ट्र  को सशक्त विदेश  नीति अपनाने से भी  रोकती है जैसा कि श्रीलंका  की तमिल समस्या के संदर्भ में भारतीय दृष्टिकोण को प्रभावित करने में राज्यों की राजनीति ने गठबंधन सरकार को प्रभावित किया है।

5.गठबंधन  सरकार के होने  से भविष्य में राजनैतिक  दलों की संख्या में वृद्धि  को प्रोत्साहन मिलता है जिसके कारण चुनावी व्यवस्था  अति बहुदलीयता के भाव से ग्रस्त हो जाती है जो स्वस्थ  लोकतंत्र के विकास में अनुपयुक्त दशा है जिसका परिणाम अंततः राजनीतिक दिशाहीनता में देखा जाता है।

भारतीय  राजनीति का  वर्तमान परिदृश्य  निश्चय ही गठबंधन सरकार  की अनिवार्यता को स्वीकारोक्ति  दे चुका है। इसके अतिरिक्त गठबंधन  का दृष्टिकोण गठबंधन के शीर्ष नेतृत्व  से सदैव प्रभावित और मार्गदर्शित होता है  और गठबंधन सरकार के कारण ही राजनीति सक्रियता  और गतिशीलता का तत्व दिखायी देता है और नागरिक  समाज की गतिविधियों को यह विचार-विमर्श का मंच प्रदान  करता है अतः गठबंधन सरकार भारतीय राजनैतिक व्यवस्था के अंतर्गत  एक नवीन प्रतिमान के रूप में विकसित हुआ परिदृश्य है जिसका प्रभाव  निकट भविष्य के उत्तरोत्तर वृद्धिकारक प्रतीत हो रहा है।

प्रश्न:- संसदीय  शासन के अंतर्गत  पिछले कुछ समय से  असंसदीय प्रकार की गतिविधियों  में वृद्धि हुई है जिसने संसदीय शासन की स्वस्थ परम्पराओं को क्षति पहुंचाया है। कथन की समीक्षा कीजिये।

उत्तर. संसदीय शासन उस व्यवस्था को कहते है जिसमें शासन के तीनों अंगों (व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका) के मध्य  संतुलन सामंजस्य पाया जाता है साथ ही कार्यपालिका अर्थात् सरकार अपनी संरचना, नीतियों और कार्यो के लिए संसद के प्रति उत्तरदायी होती है।

संसदीय शासन प्रक्रियाओं, नियमों और परम्पराओं के लिए जाना जाता है, लगभग सात दशकों में भारतीय संसद इस व्यवस्था  का निर्वहन करती नजर आयी परन्तु संसदीय व्यवस्था में पिछले कुछ समय से राजनीतिक सक्रियता के कारण और संसदीय व्यवस्था में नवाचारों के अभाव के कारण संसद अपनी परंपरागत श्रेष्ठता के आदर्श से दूर होती जा रही है।

संसदीय परंपरा में किसी भी विषय पर पर्याप्त तार्किक बहस को इसकें स्वस्थ तार्किक लक्षा के रूप में देखा जाता है  परन्तु बहस का स्थान बहिष्कार की राजनीति और हंगामेदार बैठकों से लिया जाने लगा है। यहां तक कि संसद में पूछे जाने वाले प्रश्ननो का संदर्भ पैसे से जोड़कर देखा गया है। जिसके लिए कुछ वर्षो पूर्व ऑपरेशन चक्रव्यूह और ऑपरेशन दुर्योधन देखने को मिले।

संसदीय  शासन में  अध्यक्ष अपनी  शक्ति परम्पराओं  से ही प्राप्त करता  है परन्तु अध्यक्ष के  पद पर नियुक्त होने वाले व्यक्ति दलीय निष्ठा के आकर्षण में इतने अधिक व्यस्त है कि इनका उद्देश्य केवल सत्तारुढ़ वर्ग को लाभ पहुंचाना प्रतीत  होता है जैसे अध्यक्ष के द्वारा विपक्ष के नेता को मान्यता देने में होने वाला विलम्ब और दल-बदल के आधार पर सांसदों की अयोग्यता का निर्धारण।

संसदीय  परंपरा के  अंतर्गत सांसदों  से उच्च कोटि के  नैतिक व्यवहार की अपेक्षा  की जाती है लेकिन राजनीति मे बढ़ते अपराधीकरण और अपराधियों के बढ़ते राजनीतिकरण के कारण संसद के भीतर ऐसे सांसदों की संख्या में वृद्धि हुयी है, जिनका उद्देश्य संसदीय कार्यवाहियों को निरंतर बाधित और हिंसक व्यवहार का प्रदर्शन करना है।

इस  प्रकार संसदीय  परंपरा लोकतंत्र  की परिपक्वता को सूचित  करने वाला साधन है परन्तु  जिस प्रकार से संसदीय परंपरा  को असंसदीय व्यवहारों से क्षति  पहुंच रही है इसके कारण संसदीय गतिविधियाँ  ‘विरोध के लिए विरोध‘ के रूप में परिवर्तित हो रही है।

प्रश्न:- संसदीय  विशेषाधिकार से क्या  तात्पर्य है। इस प्रकार  के विशेषाधिकारों का होना  लोकतांत्रिक व्यवस्था में कितना सार्थक है? टिप्पणी कीजिए।

अथवा

संसदीय  विशेषाधिकार  के कारण संसदीय  सर्वोच्चता की स्थापना  से नागरिकों के मौलिक अधिकारों  का विषय गौण हो जाता है कथन का परीक्षण कीजिए?

उत्तर. संसद देश की सर्वोच्च विधायी संस्था होने के नाते सांसदों को विभिन्न प्रकार के दायित्वों का निर्वहन करता होता है और  राहत कार्य में स्वतंत्र और निर्बाध तरीके से कार्य कर सके इसलिए अनुच्छेद 105 में संसदीय विशेषाधिकार का समावेशन किया गया है।

संसदीय विशेषाधिकारों को व्यक्तिगत एवं सामूहिक दो वर्गो में विभाजित किये जाते है। जहां व्यक्तिगत विशेषाधिकार का  संदर्भ सांसद की वाक् अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से लिया जाता है जिसके अंतर्गत अधिकृत रूप से संसद के भीतर  या बाहर कही गयी किसी बात के लिए सांसद को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। उसी प्रकार संसद के सत्र के दौरान गिरफ्तारी और साक्षी होने से छुट/उन्मुक्ति प्राप्त होती है।

इसी  प्रकार  सामूहिक विशेषाधिकार  में सदन को अपनी कार्यवाही के  नियमन प्रकाशन, प्रसारण पर नियंत्रण  अधिकार प्राप्त है और संसद अपने सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा करती है।

यद्यपि संसदीय विशेषाधिकार जिस उद्देश्य से प्रस्तुत किये गये थे उनका पालन अवश्य हुआ परन्तु सांसदों ने अपने विशेषाधिकार  को अपनी असीमित स्वतंत्रता के रूप में परिवर्तित करके संसदीय विशेषाधिकार से आगे संसदीय अवमानना का प्रयोग प्रारम्भ किया है। लोकतंत्र में विचार एवं विरोध एक दूसरे से अंतर सम्बन्धित  होते है, और इसी से लोकतंत्र की परिपक्वता एवं सफलता सुनिश्चित होती है। लेकिन संसदीय विशेषाधिकारों के कारण संसद ने एक

ऐसी संस्था के रूप में स्वयं को रूपान्तरित किया है जो जन प्रतिनिधि होते हुए भी जनता के विपक्ष में नजर आती है। संसदीय  विशेषाधिकार को ‘‘सर्चलाइटवाद’’ में मूल अधिकारों पर प्राथमिकता दी गयी थी, लेकिन इसका सम्बन्ध केवल अनु.19  से ही था और 1980 के दशक से न्यायपालिका जिस प्रकार अनुच्छेद 21 को एक सर्वसमावेशी अधिकार बनाया है वहां संसदीय विशेषाधिकार को अनु. 21 के अधीन माना जा रहा है।

इस प्रकार संसदीय विशेषाधिकार लोकतंत्र की एक विशेषता अवश्य है परन्तु जिस प्रकार से संसदीय विशेषाधिकार ने संसद  को अतिविशिष्ट व्यक्तियों की संस्था का स्वरूप प्रदान किया है उसने संसदीय भावना को निश्चित रूप से जनता  के दृष्टिकोण से असम्मानजनक स्थितियों में पहुंचा दिया है। जिसका दुष्परिणाम यह हुआ है कि संसद जो लोकतंत्र  के मंदिर के रूप में जानी जाती है यह केवल विरोध प्रदर्शनों और अपनी सत्ता को स्थायित्व देने के उद्देश्य से एकत्रित व्यक्तियों के संस्थान के रूप में परिवर्तित हो गयी।

प्रश्न:- निर्वाचन सुधारों पर टिप्पणी लिखिये?

उत्तर.-  मॉरिस  जॉनसन के  अनुसार चुनाव  उन असंख्य कार्यो  में से एक है जिनमें  भारतीय सदैव अच्छा प्रदर्शन  करते है। निर्वाचन लोकतांत्रिक  व्यवस्थाओं में इसके सिद्धांत को  मिलाने की प्रक्रिया है। इस प्रकार  निर्वाचन का सम्बन्ध संरचना और प्रक्रिया दोनों विषयों से होने के कारण निर्वाचन सुधार के अंतर्गत दोनों का ही विश्लेषण आवश्यक है। भारत  में चुनाव सुधारों का ऐतिहासिक परिदृश्य 1970 से माना जाता है, जब से भारत ने राजनीतिक परिवर्तन का प्रमुख तत्व दृष्टिगत हुआ और भारत की राजनीति में एकदलीय प्रभुत्व को चुनौती प्राप्त हुयी। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व  में नागरिक समाज का पहला दृष्टांत समग्र क्रांति में देखा गया और इसके बहुपक्षीय स्वरूप के अंतर्गत राजनीतिक सुधारों को चुनाव सुधारों का संदर्भ दिये जाने की प्रक्रिया प्रारम्भ हुयी। जिसके लिए ‘‘सिटीजन  और डेमोक्रेसी’’  के  अंतर्गत  1974 में  तारकुण्डे  समिति प्रथम  संस्थागत  सुधार के रूप  में गठित हुयी और  तब से यह प्रक्रिया विकासमान है।

चुनाव  सुधारों  का सम्बन्ध  चुनावी प्रक्रिया  की समस्याओं से है  परन्तु गतिशील राजनीति  में निर्वाचन सम्बन्धित समस्याएं भी परिवर्तित होती है और इसलिए धनबल तथा भुजबल से प्रारम्भ हुआ यह दृश्य 3M   अर्थात् मनी, मसल्स, माफिया पॉवर के रूप में विकसित हुआ। निर्वाचन के संस्थागत तरीकों में कई बदलाव आए जैसे मताधिकार की आयु सीमा घटायी गयी, मतदाता पहचान पत्र के प्रयोग को प्रसारित किया गया, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रयोग होने लगा इत्यादि। परन्तु निर्वाचन के सम्पूर्णा तंत्र में नयी कमियाँ दिखायी देने लगी।

इस  अवधि  में राजनीति  का अपराधीकरण एक  चर्चित समस्या के रूप  में देखा गया और बोहरा  कमेटी  ने  इस पर ध्यान  केन्द्रित किया।  1990 के दशक में  ही चुनाव आयोग के एक  सदस्य होने पर विचार हुआ  और सशक्त चुनाव आयोग टी.एन. सेशन के नेतृत्व में चुनाव सुधारों को राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र की स्थापना से जोड़ा।

21  वीं सदी  में वैश्वीकरण  के प्रभाव से और  नागरिक समाज के सशक्त  होने के विचार में चुनाव  सुधार को लोकतांत्रिक सुधारों  तथा लोकतांत्रिक स्थायित्व से जोड़ा  और विविध आयोग की रिपोर्टों में इसका  संदर्भ रेखांकित किया गया। निर्वाचन आयोग  ने भी शक्ति दिखाते हुए राजनीतिक दलों और  उम्मीदवारों के लिए चुनावी आचार संहिता को केन्द्र में रखते हुए इसके पालन को प्रभावी बनाया। दलों को निर्देश दिए गए कि वे चुनावी घोषणा पत्र में उल्लेखित किए गए वायदों को क्रियान्वित करने के तंत्र के बारे में सूचित करेंगे।

नवीनतम  चुनाव सुधारों  के अंतर्गत ‘‘राईट  टू रिकॉल  और राइट टू  रिजेक्ट’’  पर  विचार  होने लगा  है। राइट टू रिकॉल  को जहां निर्वाचित प्रत्याशी  के लोगों की अपेक्षाओं पर सही  साबित होने के मनोवैज्ञानिक प्रभाव  से संदर्भित किया गया है वहीं ‘राइट टू रिजेक्ट को नोटा’ की प्रक्रिया के माध्यम से दलों पर एक चुनाव पूर्व मनोवैज्ञानिक प्रभाव है।  जिसके अंतर्गत दलों पर एक चुनाव पूर्व मनोवैज्ञानिक प्रभाव है जिसके अंतर्गत  दलों को उम्मीदवार के चयन की प्रक्रिया में सुधार करने का संदेश प्रसारित हुआ है।

इस  प्रकार  चुनाव सुधार  भारत की राजनीति  के अंतर्गत एक ऐसा  विषय है जिस पर निरंतर  विचार विमर्श की आवश्यकता है  ताकि इसकी वास्तविक समस्याओं को पहचाना  जा सके और इसके सुधार के क्रम बहुपक्षीय समन्वय को विकसित  किया जाये जिसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायलय, चुनाव आयोग, मीडिया  समूह, गैर सरकारी संगठन और नागरिक समाज प्रभावी भूमिका का निर्वहन करें।

प्रश्न:- समान  नागरिक संहिता से  क्या आशय है। भारत  में समान सिविल संहिता  के लागू होने के कौनसी परिस्थितियां बाधक है?

अथवा

समान नागरिक संहिता का निर्धारण देश के पंथ  निरपेक्ष स्वरूप के साथ किस सीमा तक सांमजस्यपूर्ण व्यवस्था है टिप्पणी कीजिए।

उत्तर. संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य नीति के निदेशक तत्वों के अंतर्गत एक समान सिविल संहिता को लागू किये जाने का  विचार दिया गया है। इसका सरोकार इस देश में रहने वाले विविध धर्मों, जातियों एवं संस्कृतियों के लोगों  का उनके निजी व्यवहारों के पक्षों जैसे विवाह, तलाक उत्तराधिकारी एवं सम्पत्ति के सम्बन्ध में देश की सामान्य  विधियों के अधीन लाया जाये ना कि उनकी पृथक – पृथक धार्मिक विधियों के अधीन लाया जाये।

समान  सिविल संहिता  संदर्भ 1986 के  शाहबानों प्रकरण  से  चर्चित  बना जहां  शरीयत के प्रावधानों को लागू करने के लिए  दीवानी संहिता को कमजोर बनाया गया और माननीय  सर्वोच्च न्यायालय के र्निणय को संसद के द्वारा कट्टरपंथी  धार्मिक उलेमा वर्ग के दबाव में मुस्लिम महिला भरण-पोषा एवं  तलाक अधिनियम को स्थापित किया गया। ऐसा ही प्रश्न:- 1995 के सरला  मुद्गल  वाद  और  डेनियल  लतीफी तथा  जॉन बलात्म वाद  में  समान सिविल संहिता का प्रश्नन विचारणीय प्रश्न बना।

समान  नागरिक  संहिता के  विषय पर माननीय  सर्वोच्च न्यायालय  का दृष्टिकोण सकारात्मक  है और उसके अनुसार निजी विधियाँ और लोक  विधियों में धर्म का संदर्भ लिया जाना देश  के पंथनिरपेक्ष चरित्र का उल्लंघन और साथ ही एक  देश में  विरोधाभासी  क़ानूनों को जन्म  देने का प्रयास है  परन्तु वर्तमान समय तक  भी इस दिशा में कोई सार्थक प्रगति अभी तक नहीं देखी गयी है बल्कि सरकारों का रूझान इस दिशा में नकारात्मक ही रहा है।

समान नागरिक संहिता को लागू करने में कुछ बाधायें हैं:-

क़ानूनों की सफलता जन सहमति पर निर्भर करती है और इसलिए क़ानूनों को थोपे जाने से यह विषय नहीं सुलझ सकता है इसलिए आवश्यकता है कि विभिन्न धर्मों के अनुयायियों को कानून की प्रकृति और उसके उद्देश्य का ज्ञान कराके कानून के पक्ष में व्यापक माहौल निर्मित किया जाये।

धर्म के व्याख्याकारो मे विशेष प्रकार की कट्टर संकीर्ा सोच विद्यमान होती  है और इसलिए इनकी धार्मिक व्याख्याये

धर्म  के मूल  तत्वों से  विरोधी होती  है अतः आवश्यकता  इस बात की है कि  धर्म के मूल सिद्धांतों  का व्यापक प्रचार-प्रसार कराया जाये और जन सामान्य से धर्म के सम्बन्ध में संवाद की प्रक्रिया से जोड़ा जाये।

भारत  में वोट  बैंक की राजनीति  समान नागरिक संहिता  में लागू होने में एक  अन्य बाधा है। चूंकि इसका  सम्बन्ध अल्पसंख्यकों के द्वारा  इस विषय को सदैव विवादस्पद बनाये  रखना एवं राजनीतिक धु्रवीकरण के लिए  सहायक है। अतः वोट बैंक की राजनीति का त्याग करना होगा और नागरिक  समाज की संस्थाओं को जनशिक्षण एवं जनजागृति को बढ़ावा देने का प्रयास करने होगें।

अतः  समान नागरिक संहिता भारतीय राज व्यवस्था  के अंतर्गत एक ऐसा विषय है जिसका सरोकार धर्म  तथा धार्मिक विधियों, पंथनिरपेक्षता, सामाजिक संरचना,  महिला समानता एवं सशक्तिकरण तथा राजनीतिक स्तर पर लाभ  की आकांक्षा एवं न्यायिक दृष्टिकोण जैसे विषयों से संबंधित होने के कारण इस विषय पर समग्र एवं  संतुलित कार्यवाही करने की आवश्यकता है ताकि सामाजिक व्यवस्था के भीतर ही यह विषय अधिकतम  संभव मात्रा में समाधान तक पहुंच सकें।

राजनीतिक गत्यात्मकता (भारतीय राजनीति में गत्यात्मक प्रवृत्ति) 

  • राज्य निर्माण,
  • राष्ट्र निर्माण,
  • नेतृत्व व नेतृत्व का संकट,
  • आर्थिक विकास,
  • राजनीतिक स्थिरता,
  • संसद बनाम न्याय पालिका,
  • आपात काल का संदर्भ,
  • धर्म, जाति एवं नृजातीयता से विघटन का संकट,
  • विदेश नीति पर चिंतन एवं पुनर्चिंतन,
  • वैश्वीकरण का प्रभाव,
  • वैश्विक चुनौतियों एवं संकटों का संदर्भ,
  • नागरिक समाज एवं राजनीतिक सुधार।

भारतीय राजनीति में 1950 से अब तक कई सारे तत्व इसकी गतिशीलता में सहायक सिद्ध हुए हैं लेकिन प्रारंभिक मुद्दा राज्य निर्माण एवं राष्ट्र निर्माण का है।

1.राज्य निर्माण  – भौगोलिक एवं प्रशासनिक  एकीकरण जो देश के राजनीतिक  नेतृत्व, आर्थिक विकास एवं लोक कल्याण से निर्धारित होता है।

2.राष्ट्र निर्माण – भावनात्मक एवं सांस्कृतिक एकीकरण जिसमें राष्ट्रीय निष्ठा, राष्ट्रीय सुरक्षा व राष्ट्रीय प्रेम विकसित होता है।

1950 से 1970 तक की अवधि में एक दलीय प्रभुत्व, नेहरू का राष्ट्रीय नेतृत्व, कृषि व औद्योगिकरण पर बल  तथा समाजवाद पर आधारित आदर्श समाज की स्थापना व विदेश-नीति में आदर्शमूलक गुटनिरपेक्षता ऐसे  कारक हैं जिन्होंने भारतीय राजनीति को अतिशील बनाया। यद्यपि इस दौर में राजनीति वैदेशिक मोर्चे  पर सकारात्मक परिणाम नहीं दे सकी।

1970  के दशक  में नेतृत्व  का संकट और एक  दलीय प्रभुत्व को  चुनौती भारतीय राजनीति  हेतु निर्धारक सिद्ध हुए परन्तु भारतीय राजनीति इस समय राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों ही स्तरों पर अत्यधिक सफल सिद्ध हुई। जहाँ एक ओर  गरीबी हटाओ जैसे आकर्षक नारे व संविधान का संरक्षा जैसे मुद्दे प्रधान बने वहीं 1971 में यथार्थवाद पर आधारित विदेश नीति का  परिणाम भारत-सोवियत मैत्री संधि, बांग्लादेश निर्माण में भारत की भूमिका, परमाणु परीक्षण एवं सिक्किम का भारत में विलय भारतीय राजनीति में नवीन गतिशीलता का संकेत दे रहे थे।

एक  दलीय  प्रभुत्व  – ऐसी स्थिति  जिसमें कई दल विद्यमान  होने पर भी एक ही दल केन्द्र  व राज्यों में सत्तारूढ़ बना रहता है। (1950 से 1967 का कांग्रेस तंत्र) रजनी कोठारी लेकिन इसी दशक में भारतीय राजनीति में दो बड़े विघटनकारी तत्व देखे गये। जहाँ 1975 में आपातकाल ने भारत की लोकतांत्रिक संस्कृति को क्षति पहुँचाई वहीं दूसरी ओर भारत की चुनावी राजनीति विवादों के कारण चर्चित हुई और यहीं से भारत में चुनाव सुधार पर प्रयास प्रारंभ हुए।

1980 के  दशक में भारतीय  राजनीति धर्म, जाति,  वर्ग व नृजातियता के  तत्वों से संबंधित हो गई  जिसने एक ओर भारतीय राजनीति  की गतिशीलता में निर्वाचन प्रणाली  को प्रभावित किया वहीं इस दौर में  विघटनकारी प्रवृत्तियाँ (पंजाब व जम्मू कश्मीर में आतंकवाद तथा उत्तरपूर्वी राज्यों में अलगाववाद) के रूप में सामने आईं।

1990  के दशक  के पूर्व  में ही भारतीय  राजनीति में गठबंधन  राजनीति को प्रारंभ कर  दिया था और इसी समय वैश्वीकरण  के प्रारंभ ने भारतीय राजनीति के  सम्मुख जहाँ एक ओर अवसर पैदा किए वहीं  दूसरी ओर वैश्विक चुनौतियों जैसे मानवाधिकार   उल्लंघन, ग्लोबल वॉर्मिंग, आर्थिक संकट, लैंगिक   उत्पीड़न, मानव तस्करी, शरणार्थी-विस्थापित संकट, वैश्विक आतंकवाद, साइबर चुनौतियाँ सामने आईं।

21वीं सदी में भारतीय राजनीति परंपरागत मुद्दों के साथ नये विषय ग्रहण कर चुकी है।

‘नागरिक  समाज‘ की  जागरूकता, सोशल  मीडिया का प्रयोग,  प्रशासनिक सुधारों के  प्रति चेतना, भ्रष्टाचार  निवारण व सुशासन की अवधारणा  ने भारतीय राजनीति में नये प्रकार  के तत्व शामिल कर दिये। इन विभिन्न  आयामों में भारतीय राजनीति कई संवैधानिक  व संवैधानेतर प्रवृत्तियों से संयुक्त हुई  है जिसमें एक ओर धर्म, जाति, क्षेत्र के परंपरागत मुद्दे अभी भी राजनीति को गतिशील बनाये हुए हैं वहीं दूसरी ओर भारतीय संघवाद में एक नया उभार

देखने को मिला  है और समावेशी विकास  का मुद्दा भारतीय राजनीति की  गतिशीलता का नया संकेतक बन गया है।

नागरिक  समाज/सिविल  सोसायटी –  राज्य  के व्यवस्थित  प्रशासनिक तंत्र  से सामाजिक मुद्दों/सरोकारों  पर अंतःक्रिया करने वाला सक्रिय, बुद्धिजीवी, संवेदनशील नागरिकों का समूह।

नागरिक  समाज आधुनिक  विश्व में लोकतांत्रिक  राज्यों की राजनीतिक गतिशीलता  में सहायका सिद्ध हुआ है व भारत  में नागरिक समाज, सामाजिक आंदोलनों  के माध्यम से सामाजिक न्याय, राजनीतिक  सुधार, आर्थिक प्रगति एवं प्रशासनिक  विकास का माध्यम  बन कर उभरा है जिसे गैर  सरकारी संगठनों एवं न्यायिक सक्रियता के माध्यम से भारतीय राजनीति में मुख्य आधार प्राप्त हो गया है।

सुशासन  –  ऐसा  प्रशासन  जो संवेदनशील,  स्थायी, कुशल, प्रशिक्षित,  जनोन्मुखी, नवाचार प्रेरित, उत्तरदायी,  जवाबदेही, संतुलित, निष्पक्ष, पारदर्शी, समयबद्ध व नवीनतम तकनीकी ज्ञान से युक्त हो, वही सुशासन है।

सुशासन  का विचार  सरकारों व प्रशासन  को जनता से निरंतर सम्पर्क  बनाये रखने हेतु उत्प्रेरित करता  है तथा जन समस्याओं का त्वरित निस्तारण  के प्रयास करता है जिससे लोक कल्याणकारी  राज्य के आदर्श को साकार किया जा सके।

भारतीय राजनीति की गत्यात्मकता – राष्ट्रीय एकता एवं अखण्ड़ता से जुड़े मुद्दे –

  1. साम्प्रदायिकता: अवधाराा, अर्थ, परिभाषा, उद्गम प्रसार, प्रभाव/दुष्परिणाम, नियंत्रण के उपाय; 
  2. नक्सलवाद
  3. आतंकवाद
  4. अलगाववाद

साम्प्रदायिकता  –  एक  धार्मिक  समूह द्वारा  अपनी धार्मिक श्रेष्ठता  व दूसरे धर्मों के प्रति  निकृष्टता का भाव ही साम्प्रदायिकता है।

किन्हीं दो धर्मों  के मध्य उनके कर्मकांडीय  पक्षों पर ना केवल अंतर पाया जाता  है बल्कि मतभेद भी पाए जाते हैं और  जब यह मतभेद धार्मिक कट्टरता, धार्मिक  असहिष्णुता व धर्मान्धता में परिवर्तित हो  जाता है तो इसे साम्प्रदायिकता कहा जाता है।

साम्प्रदायिकता के कारण बताइए –

  1. ऐतिहासिक   कारण – साम्प्रदायिकता   ब्रिटिशकालीन नीतियों का   उत्पाद है क्योंकि राष्ट्रीय   आंदोलन में हिन्दू-मुस्लिम एकता को  खंडित करने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार  द्वारा ‘‘फूट डालो राज करो‘‘ की नीति का जिस प्रकार से प्रचार किया गया उसने वर्षों से एक ही स्थान पर रह रहे हिन्दू व मुस्लिमों के मध्य संघर्ष के भाव विकसित  कर दिये और इसके उदाहरणणस्वरूप/प्रतीक स्वरूप – बंगाल विभाजन, मुस्लिम लीग की स्थापना व पृथक साम्प्रदायिक निर्वाचन की शुरूआत मुख्य कारक है।
  2. मनौवैचारिक  कारण – सांप्रदायिकता  एक विशेष प्रकार की मनःस्थिति  है क्योंकि समाजीकरण की प्रक्रियाओं  द्वारा व्यक्ति जीवन पर्यंत सांप्रदायिक  विचारों में शिक्षित व प्रशिक्षित होता रहता  है जिसमें परिवार, सामाजिक संबंध, शैक्षणिक संस्थायें, मित्र समूह और विचार-विमर्श की संस्थाएं महत्वर्पूण भूमिका निभाती हैं, इसके कारण व्यक्ति का मनोमस्तिष्क धर्म व संप्रदाय के विभेद को भूलकर सांप्रदायिक प्रकृति में अभ्यस्त हो जाता है।
  3. धार्मिक  सांस्कृतिक कारण  – धर्म में तर्क  की जगह श्रद्धा, भक्ति  व विश्वास का स्थान होता  है और धर्म मजबूत भावनात्मक  शक्ति के कारा लोगों का ध्रुवीकरण  करवाता है। विभिन्न धर्म गुरूओं द्वारा  की जाने वाली धर्म की विकृत व्याख्याएं धर्म  की समझ को नष्ट कर देती हैं तथा धर्म के नाम  पर केवल धार्मिक आडम्बरों तथा धार्मिक विधियों की कट्टरता  पाई जाती है जिसके कारण ‘‘एक धर्म को दूसरे धर्म से खतरा  है‘‘ यह प्रचारित करके सांप्रदायिकता का वातावरण बनाये रखा जाता है।
  4. राजनीतिक  कारण – सांप्रदायिकता  धर्म के राजनीतिकरण से  विकसित होती है। राजनीतिक  सत्ता की चाह में विभिन्न राजनीतिक  दल एवं उम्मीदवार वोट बैंक की राजनीति,  संप्रदाय विशेष का तुष्टीकरण व मतों का सांप्रदायिक  ध्रुवीकरण करते हैं जिसके कारण उनकी सत्ता में पहुँच  सुनिश्चित हो पाती है। 1980 के दशक से भारतीय राजनीति में  धर्म का प्रयोग एक महत्वर्पूण व्यवहार बन चुका है जिसने सांप्रदायिकता  में निरंतर वृद्धि की है।
  5. आर्थिक  कारक – आर्थिक  अभावों की उपस्थिति  तथा आर्थिक संसाधनों के  वितरण में असमानता के कारण  भी सांप्रदायिकता का विस्तार होता  है, क्योंकि जब एक धर्म या संप्रदाय  के व्यक्ति को दूसरे संप्रदाय के व्यक्ति  से अपने आर्थिक संसाधन छिन जाने का खतरा होता है तो व्यक्ति को सांप्रदायिक आचरण में समय नहीं लगता साथ ही  किसी  क्षेत्र  विशेष में  उद्योग धंधों  के बंद हो जाने  के कारण बढ़ती हुई  बेरोजगारी सांप्रदायिक  उद्देश्यों हेतु मानवीय संसाधन आसानी से उपलब्ध करवा देती है।
  6. विविध  कारण – ऐसे  कुछ तात्कालिक  कारण हैं जो सांप्रदायिकता  में सहायक हैं जैसे – धार्मिक  जुलूस व शोभायात्राओं के विवाद, संप्रदाय विशेष की महिलाओं से छेड़छाड़, गौवध, धर्मान्तरण की घटनाएं इत्यादि। साम्प्रदायिकता के प्रभाव
  1. सांप्रदायिकता धार्मिक अविश्वास को बढ़ावा देती है,
  2. राष्ट्र निर्माण पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है,
  3. राष्ट्र की पंथनिरपेक्ष छवि को नुकसान होता है,
  4. औद्योगिक विकास में बाधा,
  5. पर्यटन एवं निवेश में कमी,
  6. दूषित मुद्दों का राजनीति में समावेशन,
  7. दंगों में हिंसा से व्यापक जन-धन की क्षति,
  8. अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर राष्ट्र को नुकसान।

साम्प्रदायिकता पर नियंत्रण के उपाय

  1. वैचारिक शुद्धिकरण को प्रोत्साहन दिया जाए,
  2. तिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा प्रदान की जाये,
  3. समाजीकरण की संस्थाओं के माध्यम से व्यक्तियों के विचारों में सौहार्द की भावना का विकास किया जाए,
  4. विभिन्न धर्मों के मध्य संवाद  बढ़ावा दिया जाए,
  5. शांति समितियों की स्थापना की जाए जिसमें क्षेत्र के बुद्धिजीवी व सामाजिक कार्यकर्ता इत्यादि शामिल हों,
  6. धर्म  के आधार  पर जो राजनीतिक  दल मतों का ध्रुवीकरण  करें, उन्हें चुनाव आयोग  द्वारा प्रतिबंधित करने की व्यवस्था हो,
  7. राज्य के आसूचना तंत्र को मजबूत बनाया जाए,
  8. मीडिया व पुलिस प्रशासन सांप्रदायिक दंगों के समय सकारात्मक भूमिका का निर्वाह करें,
  9. रोजगार व विकास के साधनों में वृद्धि करके व्यक्तियों को सोहार्द के वातावरण में प्रशिक्षित किया जाए,
  10. दंगों के दौरान की गई हिंसा को नियंत्रित करने हेतु क़ानूनों का कठोरता पूर्वक पालन किया जाए और इस संबंध में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्टों (7 व 8वीं) को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए।

नक्सलवाद

सामाजिक  अन्याय एवं  शोषण के विरोध  स्वरूप स्थानीय निवासियों  (भूमिहीन कृषकों, जनजातियों)  द्वारा 1967 में प्रारंभ हिंसक आंदोलन।

अथवा

प.  बंगाल  के नक्सलबाड़ी  से प्रशासनिक उदासीनता  एवं शोषण के प्रतिक्रिया स्वरूप  उत्पीड़ित वर्ग का हिंसक या सशस्त्र संघर्ष।

1967  में चारू  मजुमदार व कानू  सान्याल और जंगल संथाल  के नेतृत्व में जल, जमीन  व जंगल की लड़ाई के रूप में यह आंदोलन विकसित हुआ तथा 8 ऐतिहासिक प्रलेखों एवं माओवादी हिंसक क्रांति के दर्शन पर इस आंदोलन का प्रारंभ हुआ जो वर्तमान परिदृश्य में भारत की राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती के रूप में प्रस्तुत हुआ है।

नक्सलवाद का प्रसार-

5 दशकों के भीतर नक्सलवाद की तीव्रता और इससे मिलने वाली चुनौती अत्यधिक बढ़ गई है तथा यह आंदोलन  भारत की लोकतांत्रिक संस्कृति पर हिंसक ‘‘बंदूक संस्कृति‘‘ को स्थापित करना चाहता है और छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, प. बंगाल के विभिन्न क्षेत्रों तक नक्सलवाद का व्यापक विस्तार है।

नक्सलवाद  अपने प्रभाव  क्षेत्र को बढ़ाते हुए  ‘लाल गलियारा‘ (Red Corridor) स्थापित  करना चाहता है साथ ही, एक क्षेत्र में इनका दमन होने पर इनका पलायन दूसरे राज्यों में होने से नक्सलवादियों ने कुछ राज्यों में मिलाकर ‘द डकार य क्षेत्र‘ स्थापित कर लिया है।

1980  के दशक  से नक्सलवाद  PWG (People’s War Group)  और माओवादी कम्यूनिस्ट सेंटर

(MCC) तथा  विभिन्न दलों  की कठोर संरचना  से विकसित हुआ है  जिसमें नागभूषण पटनायक  व कोडापल्ली

सीतारमैया  जैसे नेतृत्व  महत्वर्पूण रहे  हैं और 2004 में  विभिन्न दलों के विलय  से ‘‘भारतीय साम्यवादी दल

(माओवादी)‘‘  को मज़बूती प्राप्त  हुई है तथा उत्तर. पूर्व  के माओवादी संगठन से मिलकर  यह आंदोलन भारतीय आंतरिक सुरक्षा के समक्ष बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है।

नक्सलवाद के कारण

  1. सामाजिक न्याय के अभाव से पीड़ित वर्ग,
  2. क्षेत्र विशेष के निवासियों के मानवाधिकारों का निरंतर हनन,
  3. स्थानीय समस्याओं के समाधान के प्रति प्रशासनिक उदासीनता, 
  4. पुलिस प्रशासन का निरंकुश व अनुचित व्यवहार,
  5. कुछ क्षेत्रीय असंतुलित विकास एवं पिछड़ापन, 
  6. सरकारों की दोषर्पूण भूमि अधिग्रहा नीतियाँ, 
  7. नक्सली क्षेत्रों में खनन माफियाओं का प्रभाव, 
  8. वैदेशिक षडयंत्रों से शस्त्र व धन की आपूर्ति,
  9. पुलिस प्रशासन को स्थानीय निवासियों का सहयोग न मिल पाना, 
  10. इस क्षेत्र में सूचना तंत्र की कमजोरियाँ,
  11. पुलिस व सैन्य बलों में आधुनिकीकरण का अभाव। 

दुष्परिणाम

  1. नक्सलवाद देश की आंतरिक सुरक्षा को संवेदनशील बनाता है।
  2. नक्सलवाद भारत के विभिन्न क्षेत्रों में ऐसा अंतर विकसित करता है जो देश के समग्र विकास में बाधक है।  
  3. नक्सलवाद कुछ क्षेत्रों का आधुनिकीकरण नहीं होने देता है, फलस्वरूप क्षेत्रीय असंतुलन अन्य समस्याओं को भी जन्म देता है।
  4. नक्सलवाद देश के आंतरिक परिदृश्य में विदेशी शक्तियों को आमंत्रित करता है।
  5. नक्सलवाद के कारण भारत में जनजातियों के साथ मानवाधिकार हनन का विषय अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की स्वस्थ छवि को बाधा पहुँचाता है।
  6. नक्सली हिंसा से  पुलिस व प्रशासन के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता  है जिससे इन्हें अपने दायित्वों के निर्वहन में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

समाधान के उपाय/नियंत्रण

नक्सलवाद  को नियंत्रित  करने हेतु सरकारी  स्तर पर कई प्रयास  किये गये हैं। 1970 के  दशक में

‘‘ऑपरेशन  स्टीपलचेज‘‘  का प्रारंभ किया  गया, इसके अतिरिक्त  ‘‘ऑपरेशन ग्रे हाउड्स‘‘,  ऑपरेशन ग्रीन हंट कॉबरा बटालियन का  निर्माण, सलता जुडूम (छत्तीसगढ़), रोशनी परियोजना जैसे कार्य किये गए हैं परन्तु अब भी कई प्रयास किए जाने आवश्यक हैं –

  1. संतुलित क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहन दिया जाए।
  2. नक्सली क्षेत्रों में सुरक्षा बलों का आधुनिकीकरण किया जाए।
  3. सेना, अर्ध सैनिक बलों व पुलिस के मध्य समन्वय को बढ़ावा दिया जाए। 
  4. प्रशासनिक संवेदनशीलता को बढ़ावा दिया जाए।
  5. पिछड़े हुए क्षेत्रों के विकास के लिए बजट प्रावधानों में अलग से व्यवस्था की जाए।
  6. नक्सली हिंसा का त्याग कर चुके युवाओं को मुख्य धारा में लाया जाए।
  7. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आधार भूत संरचनाओं के विकास पर ध्यान दिया जाए।
  8. स्थानीय लोगों को प्रशासन से जोड़ने के लिए स्थानीय भाषा का उपयोग व प्रदर्शनियों, लोक कलाओं/मेलों के आयोजन, नुक्कड़ नाटक इत्यादि को प्रचारित किया जाए।
  9. नक्सली हिंसा का समाधान करने हेतु  सुरक्षा नेटवर्क और वैदेशिक सहायता पर ध्यान  देते हुए उचित कदम उठाए जायें।

अलगाववादी मुद्दे

  1. वामपंथी अतिवाद/चरमपंथ/उग्रवाद,
  2. दक्षिणपंथी, अतिवाद/ चरमपंथ/उग्रवाद,
  3. क्षेत्रवाद, 
  4. पृथकतावाद,
  5. नृजातीय संघर्ष, 
  6. धार्मिक आतंकवाद, 
  7. वित्तीय आतंकवाद, 
  8. भूमि पुत्र का विचार, 
  9. स्वायत्तता की मांग, 
  10. भाषा का प्रश्न, 
  11. अवैध घुसपैठ, 
  12. संघर्ष के अन्य क्षेत्र।

अलगाववाद

राष्ट्रीय  भावना के विपरीत  अपने पृथक अस्तित्व  को धर्म, क्षेत्र, जाति,  नृजाती, भाषा के आधार पर पहचान  दिए जाने की भावना।

    • अलगाववाद  को पृथकवाद, क्षेत्रवाद,  स्वायत्तता की मांग से संबंधित  करके देखा जाता है, यद्यपि तकनीकी  आधार पर सभी में अंतर है।
    • पृथकतावाद  के अंतर्गत  भारत संघ से  पृथक एक स्वतंत्र  व संप्रभु अस्तित्व  की माँग की जाती है,  जेसे – पृथक नागालैंड राष्ट्र की माँग (म्यांमार, मिजोरम, नागालैंड को मिलाकर ग्रेटर नागालै ड की मांग)
    • क्षेत्रवाद – क्षेत्र विशेष के निवासियों द्वारा आर्थिक पिछड़ापन और असंतुलित विकास के आधार पर अपने क्षेत्र को अन्य क्षेत्रों या राज्य की तुलना में प्रधानता देने की भावना।
    • राज्यों  की स्वायत्तता  – एक राज्य विशेष  के द्वारा अपने लिये  अधिक आर्थिक सहायता, अधिक  प्रतिनिधित्व व विशेष दर्जे की मांग तथा अपने मामलों के निर्धारण में अधिकतम स्वतंत्रता (द. भारत में द्रविड़ राज्य के स्थान पर तमिल स्वायत्तता की मांग)
    • वामपंथी  चरमपंथ –  सामाजिक राजनीतिक  जीवन में आमूलचूल/  मूलभूत परिवर्तन लाने  के उद्देश्य से, माओवादी विचारधारा पर आधारित हिंसक संघर्ष (भारत में प्रचलित नक्सलवाद)।
    • दक्षिणपंथी अतिवादी – धार्मिक एवं सामंती संस्कृति पर आधारित जो समाज के प्रचलित ढाँचे के बनाये रखते हुए किसी भी परिवर्तन का हिसंक विरोध करे (जाति व संप्रदाय के संघर्ष – उदाहरण)।
    • नृजातीयता  – एक जैसा  ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य,  समान सांस्कृतिक ढाँचा व  एक भौगोलिक स्थिति के आधार  पर दूसरों से पृथकता रखना एवं अलग अस्तित्व का विषय। (पूर्वी पाक व पश्चिमी पाक का अंतर)
    • नस्ल  – एक जैसी  शारीरिक बनावट,  समान रहन-सहन व एक  समान रीति रिवाज के आधार  पर पृथक दिखाई देने वाला समूह नस्ल कहलाता है।
    • भूमिपुत्र  विचार – एक  क्षेत्र विशेष  के लोगों द्वारा  दूसरे क्षेत्र के लोगों  के प्रवेश पर रोक लगाना और  सभी लाभों को सिर्फ स्वयं के लिये संरक्षित करना।
    • भाषावाद  – एक भाषा  के समृद्ध इतिहास  व उसकी लोकप्रियता को  आंदोलनों के माध्यम से पृथक  राज्य के निर्माण हेतु प्रोत्साहन देना। (भाषाई आधार पर आंध्र प्रदेश का निर्माण)
  • आतंकवाद  – राजनीतिक,  धार्मिक व आर्थिक  उद्देश्यों के लिये  व्यापक पैमाने पर हिंसा  का नियोजित प्रयोग ही आतंकवाद है।

आतंकवाद  भारतीय परिदृश्य  में यद्यपि 1946 में  नगा ‘नेशनल काउंसिल‘ (NNC)  के माध्यम से पृथक नागालै ड की माँग के रूप में देखा गया था लेकिन भारत में आतंकवाद 1980 के दशक से विचारणीय बना जब अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम के कारण पाक प्रायोजित आतंकवाद पंजाब व जम्मू कश्मीर में देखा गया।

पंजाब में आतंकवाद एक दशक में समाप्त हो गया परन्तु जम्मू कश्मीर में यह अभी भी जारी है और जम्मू कश्मीर के अलगाववादी आंदोलनों से जुड़ गया है।

इसी  बीच उत्तरपूर्व  में नृजातीय विभिन्नता  और चीन के माओवादी दर्शन  के प्रभाव से उत्तर. पूर्व  का अलगाववाद भी जो वामपंथी अतिवाद  की श्रेणी में आता है वहां ‘नेशनल  सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालै (NSCN), United Liberation Front of Assam (ULFA), National Democratic Front of Bodoland (NDFB) के  द्वारा नागालै ड, असम, अरूणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, मणिपुर व त्रिपुरा में आतंकी घटनाक्रम देखे गए हैं। उत्तर.पू. के ये  अलगाववादी संगठन बांग्लादेश व म्यांमार के आतंकी संगठनों से गठजोड़ स्थापित  कर रहे हैं  जहाँ से इन्हें  हथियार, धन और मानव  सामग्री की पूर्ति हो  रही है। अरविंद राजखोवा,  अनूप चेतिया, परेश बरुआ जैसे नेतृत्व विदेशों में शरण ले रहे हैं।

यह आतंकवाद संगठित अपराधों के साथ भी जुड़ गया है जिससे मादक द्रव्यों की तस्करी, मानव तस्करी, नकली  नोटों (मुद्रा) का प्रचलन, मनी लांड्रिंग (हवाला) जैसे कार्य भी इसमें शामिल हो गए हैं।  अतः यह क्षेत्र बाहरी आतंक व भीतरी गृहयुद्ध दोनों ही प्रकार से संवेदनशील हो गया है।

उत्तर. पूर्वी भारत में अलगाववाद की समस्या पर लेख लिखिए।

अलगाववाद जिसका संबंध  क्षेत्रीय आकांक्षा, पहचान के संकट और पृथक अस्तित्व को मान्यता देने से है, भारत के उत्तर. पूर्वी राज्यों में विभिन्न कारणों से अलगाववादी घटनाक्रम देखे गए हैं।

  1. उत्तर पूर्व की शेष भारत से भौगोलिक दूरी। 
  2. ब्रिटिश काल में शेष भारत का इस क्षेत्र से सम्पर्क ना हो पाना। 
  3. उत्तर. पूर्व में पृथक नृजातीय व नस्लीय संदर्भ।
  4. असंतुलित क्षेत्रीय विकास।
  5. सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में कमी। 
  6. माओवादी विचारधारा का प्रभाव।
  7. वैदेशिक षड़यंत्र।
  8. सीमा प्रबंधन की समस्या।
  9. अलगावादियों और स्थानीय निवासियों में भेद ना कर पाना।

उत्तर  पूर्वी भारत  में जैसे-जैसे  राज्यों का पुनर्गठन  होता गया है, जनजातियाँ  और बाहरी तत्वों के मध्य का  संघर्ष बढ़ता गया है तथा साथ ही  इन क्षेत्रों में कार्य कर रही जनजातीय  परिषदें और इनके स्वशासन का लाभ सही ढंग से  वितरीत नहीं हो पाया है जिसके परिणामस्वरूप 1980  के दशक से अब तक उत्तर. पूर्व में अलगाववाद की समस्या न केवल विद्यमान है वरन् उसकी व्यापकता व भीषणता दोनों में वृद्धि हुई है।

अलगाववादी समस्या का समाधान करने हेतु सर्वप्रथम देश के समग्र संतुलित विकास को प्राथमिकता देनी होगी, इसके लिए उत्तर पूर्वी भारत को आवागमन व संचार साधनों से जोड़ना होगा।

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